मैं वैली स्कूल में पढ़ाती हूँ । यहाँ पर मिडिल स्कूल और हाई स्कूल की कक्षाएँ लेती हूँ । मिडिल स्कूल के छात्र-छात्राओं ने कई विषयों पर अवतरण लिखे जो निम्नलिखित हैं । इन अवतरणों को पाठ्य सामग्री की तरह उपयोग कर सकते हैं । या, फिर प्रश्नों की रचना करके अपठित गद्यांश की तरह भी उपयोग कर सकते हैं । या, इन अवतरणों को पढ़कर बच्चों को चित्र के द्वारा इन्हें समझाने को कहा जा सकता है । कुछ कविताएं केवल भाषा के रसास्वादन के रूप में प्रयोग की जा सकती हैं । आशा है कि यह विषय सामग्री उपयोगी सिद्ध होगी ।
फेयरवल
पर दोस्तों के लिए मेरा पैगाम
राह
देखी थी इस दिन की कभी
आगे
के सपने सजा रखे थे
ना
जाने कभी बड़े उतावले थे जाने
को
ज़िन्दगी
का अगला पड़ाव पाने को
पर
न जाने क्यों आज दिल में कुछ
और आता है
वक्त
रोकने का जी चाहता है
जिन
बातों के लिए रोते थे
आज
उन पर हंसी आती है
ना
जाने क्यों आज उन पलों की याद
बहुत सताती है
कहा
करता था बड़ी मुश्किल से बारह
साल सह गया
पर
न जाने क्यों आज कुछ पीछे रह
गया
कही
अनकही हज़ारों बातें रह गईं
न
भूलने वाली कुछ यादें रह गईं
मेरी
टाँग अब कौन खींचा करेगा?
मेरा
सर खाने को कौन पीछा करेगा?
मैं
अब बिना मतलब के किससे लड़ूंगा?
बिना
टोपिक (Topic)
के
किससे बकवास करूंगा?
कौन
मेरे फेल होने पर पार्टी करेगा?
और
गल्ती से नंबर आने पर गालियाँ
सुनाएगा ।
बिना
नमक वाला खाना किनके साथ खाऊंगा
?
रोटी
छुपाते हुए मोहन अंकल से कैसे
भागूंगा ?
पानी
मीनिंग (Meaning)
रसम
किसके साथ पीऊंगा ?
वो
हंसी के पल किसके साथ जीऊंगा
?
डेमबाल
(Damball)
मैं
किसके साथ खेलूंगा ?
कल्चर
(Culture)
क्लास
अब किसके साथ झेलूंगा ?
आंटी
के पीछे कौन राक्षस की तरह
हंसेगा ?
बेट
(Bet)
हारने
पर ट्रीट (Treat)
, अब
इस चक्कर में कौन पढ़ेगा ?
मेरी
मार्कशीट को रद्दी कहने की
हिम्मत कौन करेगा ?
सच
बोलने की हिम्मत कौन करेगा
?
अचानक
बिना मतलब के,
पागलों
की तरह हंसना
न
जाने कब होएगा ?
कह
दो दोस्तों दुबारा सब होगा
ज़्यादा
मार्कस के लिए,
आंटी
से कब लड़ूंगा ?
क्या
ये दिन फिर से आ पाएंगे ?
कौन
मेरी काबिलियत पर भरोसा दिलाएगा
?
और
ज़्यादा उड़ने पर,
ज़मीन
पर पटक देगा
बहुत
कुछ लिखना अभी बाकी है
बस
एक बात से डर लगता है दोस्तों
हम
अज़नबी न बन जाएं दोस्तों
ज़िन्दगी
के रंगों में ,
दोस्ती
का रंग फीका न पड़ जाए
कहीं
ऐसा ना हो दूसरे रिश्तों की
भीड़ में
दोस्ती
दम तोड़ जाए
ज़िन्दगी
में मिलने की फरियाद करते रहना
अगर
न मिल सकें तो कम से कम याद करते
रहना
चाहे
जितना हंस लो आज मुझ पर ,
मैं
बुरा नहीं मानूंगा
इस
छवि को अपनी यादों में बसा
लूंगा
और
जब याद आएगी तुम्हारी
इसी
हंसी को लेकर थोड़ा मुस्करा
लूंगा. .
. .
भिण्डे
है मेरा नाम,
और
ये था मेरे दोस्तों के लिए
छोटा-सा
मेरा पैगाम !
-ध्रुव
भिण्डे,
कक्षा
१२ (२०१२-१३)
गाँधी
जी
मोहनदास
कर्मचन्द गाँधी या महात्मा
एक अत्यंत महान व्यक्ति थे ।
भारत की सारी जनता उन्हें बहुत
आदर से देखती थी। महात्मा
गांधी जी ने भारत स्वतंत्रता
आन्दोलन में प्रमुख भाग लिया।
भारत के रहने वाले हर व्यक्ति
पर गांधी जी के काम का गहरा
प्रभाव पड़ा । उन्होंने हमें
बहुत कुछ सिखाया.
. . इसके
लिए हम उनके आजीवन आभारी हैं
। वे मेरे लिए बहुत प्रिय हैं
।
-
माध्यमिक
मिश्रित समूह ,
कक्षा
५
क्रिकेट
क्रिकेट
खेलने के लिए ग्यारह लोगों
का होना ज़रूरी है। अक्सर इनमें
से चार-पाँच
बल्लेबाज और चार-पाँच
गेंदबाज होते हैं। बल्लेबाज
के पीछे एक खिलाड़ी खड़ा होता
है जिसे हम विकेट रक्षक कहते
हैं। इस खेल का मुखिया एम्पायर
होता है। वही खेल के नियम लागू
करता है। गेंद अगर सीधे सीमा
पार हो जाए तो उसे "छक्का"
कहते
हैं। वही गेंद अगर ज़मीन छूकर
सीमा पार हो जाए तो उसे "चौका"
कहते
हैं। इस खेल को देखने के लिए
कई दर्शक आते हैं। हांलाकि
हाकी भारत का राष्ट्रीय खेल
है, परन्तु
क्रिकेट भारतीयों का मनपसंद
खेल है।
-
अजय,
राबिन्स
किताबें
मुझे
किताबों से बहुत लगाव है। मेरे
पास तकरीबन ३००० किताबें हैं
। मेरे माता-पिता
कहते हैं कि किताबें पढ़ने से
बहुत ज्ञान प्राप्त होता है
। मैं आजकल जो उपन्यास पढ़ रही
हूँ , उसका
नाम "Lord
of the Rings” है।
पर मुझे ज्ञानदायक किताबों
से ज्यादा उपन्यास पढ़ना अच्छा
लगता है। किताबें मेरी सबसे
प्यारी दोस्त हैं। मेरे पापा
को भी किताबें बहुत पसंद हैं।
मैं और मेरे पापा पढ़ी हुई
किताबों पर बहुत बातचीत और
बहस करते हैं। इससे मुझे और
पापा को बड़ा मज़ा आता है। पढ़ने
से मुझे नए-नए
शब्दों का ज्ञान होता है और
मुझे उन्हें वाक्यों में
प्रयोग करना अच्छा लगता है।
मैं अधिकतर अपना समय पढ़ने में
बिताती हूँ ,
इसलिए
मेरे पापा कहते हैं कि मुझे
व्यायाम भी करना चाहिए जो शरीर
के लिए लाभदायक है। -अवन्ती,
सनबर्डस
इस
धरती की रक्षा
हर
रोज़ हम बहुत सारी चीज़ें फेंकते
हैं जैसे-बचा
हुआ खाना,
कागज़,
बोतलें,
कम्प्यूटर,
प्लास्टिक
आदि। यह सब एक ही कचरे के डिब्बे
में डालकर एक ही ट्र्क से
खुली जगह में फेंका जाता है।
हम यह सोचते हैं कि मिट्टी में
सब कुछ मिल जाता है। पर ऐसा
नहीं होता है। और इसलिए धरती
नष्ट होती जा रही है।
हमें
अपनी धरती का ख्याल रखना चाहिए
। कचरे को तीन अलग डिब्बे में
डालना चाहिए-सूखा,
गीला
और ई-वेस्ट
। इस प्रकार सूखा कचरा रीसाइकिल
होगा, गीला
कचरा कोम्पोस्ट बन जाएगा और
ई-वेस्ट
कई चीजों में इस्तेमाल होगा।
यह
काम करके हम इतनी आसानी से
सिर्फ हमारे देश की ही नहीं
बल्कि सारे संसार की रक्षा
कर सकते हैं। तो दोस्तों जागो
और इस धरती की रक्षा करो ।
-शनाया
कपूर,
राबिन्स
चिल्ली
बिल्ली की कहानी
मेरी
बिल्ली
जिसका
नाम है चिल्ली
घर
में आकर
मुझे
बुलाकर खाना मांगती ।
दूध
पीकर
बिस्कुट
खाकर
मेरी
गोद में बैठती ।
उसके
तीन बच्चे
मुझे
लगते हैं अच्छे ।
-
सुनयना,
राबिन्स
दोस्ती
दोस्ती
करो तो धोखा मत देना
दोस्तों
को आँसू का तोहफा मत देना।
दिल
से रोए कोई तुम्हें याद करके
ऐसा
किसी को मौका मत देना
दोस्ती
को सिर्फ इत्तफाक है
यारों
दिलों की मुलाकात है
दोस्ती
नहीं देखती यह दिन है कि रात
है
इसमें
तो सिर्फ वफ़ादारी और ज़ज़्बात
हैं
दर्द
काफी है ज़िन्दगी के लिए
दोस्ती
ज़रूरी है ज़िन्दगी के लिए
कौन
मरता है किस के लिए
हम
तो ज़िन्दा हैं आप के जैसे
दोस्तों के लिए ।
-अनुवादक,
रिया-
राबिन्स
दो
जानवरों का गाना
मैंने
देखा एक बिल्ली,
वह
दीवार पर गाना गा रही थी !
गाना
था मछली के बारे में
जिसको
वह पकड़ न पाई ।
फिर
एक कुत्ता आया,
जिसने
बिल्ली को भगाया,
उसने
भी अपना गाना गाया !
गाना
था रोटी के बारे में,
जो
उसने थी पायी।
फिर
वहाँ पर एक छोटी-पतली
चींटी आई,
उसने
कुत्ते को देखा,
और
सोचा
चलो,
इसको
ही मैं काटूँ
और,
अपना
कमाल दिखाऊँ
फिर
मैं घर जाऊँ ।
-
शनाया
, राबिन्स
"पेड़"
कई
पेड़ ऊँचे होते,
तो
कई छोटे भी होते ।
कई
हरे-भरे
होते, तो
कई खाली भूरे होते ।
-
काश्वी,
राबिन्स
पेड़ों
के आकार हैं ऐसे,
बड़े-छोटे
पर रंग निराले
पीला,
नारंगी,
हरा,
लाल,
ये
होते हैं सारे साल ।
-
ईशा,
राबिन्स
पेड़
हमें आक्सीजन देते,
पेड़
हैं बहुत बड़े
पेड़
हैं शलगम जैसे,
पेड़
बहुत हैं भले ।
-
अचिंतय,
राबिन्स
कितने
सारे आकार वाले,
पेड़
हैं हरे-भरे,
हर
तरफ हरियाली रखते,
पेड़
ही हमारे दोस्त सबसे अच्छे
।
- रहेल,
सनबर्डस
कुछ
पेड़ होते लम्बे-लम्बे,
कुछ
पेड़ होते छोटे,
कुछ
पेड़ में बहुत पत्ते होते,
कुछ
में बहुत कम पत्ते होते ,
पेड़
नहीं होते तो हम जी भी नहीं
सकते ।
-
आर्य,
सनबर्डस
चित्रकार
सुनसान जगह में बना रहा था
चित्र
फिर
उसने आस-पास
में देखा उसका खास मित्र
उसे
पूछा,
“किधर
हैं बड़े पेड़ ?”
चित्रकार
ने देखे आम के दो पेड़
पीला-पीला
आम देखकर चला आगे
एक
डाल पे गुलाबी रंग के फूल
नीचे
देखो तो धूल ही धूल ।
-
शनाया
कपूर,
राबिन्स
कुछ
पेड़ हैं बहुत लम्बे,
और
कुछ हैं पतले डंडे जैसे,
सारे
पेड़ हैं बहुत सुंदर,
सब
पेड़ों पर लटकते हम बंदर जैसे
।
- शनाया,
राबिन्स
"हमारी
पाठशाला का मेला"
हमारी
पाठशाला में हर साल मेला लगता
है । इस बार यह मेरा ५ जनवरी
को लगा । मेले के लिए हम सबने
पहले से ही कूपन खरीद लिए । हम
सबने मेले के लिए बहुत दिनों
पहले ही तैयारी शुरु कर दी थी
। हमने मेले के लिए कैलेण्डर
पर चिपकाने के लिए चित्र और
पाम पेड़ों के पत्तों से तोरण
बनाए । मिट्टी से बने मटकों
को साफ किया और पत्तों से बने
कपों को पेंट किया । मेले के
दिन सभी बसें पहले बस स्टाप
से डेढ़ बजे शुरु हुईं और ढाई
बजे के करीब स्कूल में हम सब
पहुँच गए । सब लोग रंग-बिरंगे
भारतीय परंपरा के कपड़े पहनकर
आए । सब बच्चे अपने परिवार
जनों और दोस्तों के साथ आए थे
। छोटे-छोटे
बच्चे ट्रेंपोलिन पर खेल-कूद
रहे थे । मेले में बहुत -सी
दुकानें थीं जहाँ खाने की
चीजें मिल रही थीं जैसे कि-
चाकलेट,
गन्ना,
कपकेक,
चाट,
दोसा,
गन्ना
आदि । मेले में कैगल में बनी
चीजें भी मिल रही थीं जैसे कि
शहद, थैले,
लिपबाम,
अचार,
जैम
आदि । मेले में मिट्टी की बहुत
सारी चीजें भी बिक रही थीं
जैसे कि गमले,
मोमबत्ती
स्टैंड आदि । खेल की दुकान पर
बच्चे लट्टू और चकरी से खरीद
रहे थे । इस बार मेले में ऐसी
जगह भी थी जहाँ कुछ चीजों को
बना कर दिखाया जा रहा था और सब
लोग वहाँ बैठकर चीजें बनाना
सीख सकते थे जैसे कि कपड़ा बुनना,
फूलों
से माला बनाना आदि । कई दुकानों
पर दूसरी दुकानों से ज्यादा
भीड़ थी जैसे कि मेंहदी लगाने
की दुकान पर,
हाथ
देखकर भाग्य बताने की दुकान
पर , चेहरा
पेंट करने की दुकान पर। मेले
का अंत सांस्कृतिक कार्यक्रम
से हुआ । इस सांस्कृतिक कार्यक्रम
में कक्षा आठ,
नौ,
ग्यारह,
माध्यमिक
मिश्रित समूह के छात्र-छात्राओं
ने भाग लिया । हमारी पाठशाला
की विदेशी शाखा "ओक
ग्रोव स्कूल"
के
छात्र-छात्राओं
ने भी हमेशा की तरह इस बार भी
मेले में अपने मधुर गान से
सबका मन मोह लिया। सात बजे तक
मेला चला । साढ़े सात बजे हम सब
बसों के द्वारा अपने-अपने
घर वापिस गए ।
-माध्यमिक
मिश्रित समूह,
सामूहिक
गतिविधि
“जंगल"
जंगल
ने हमें क्या नहीं दिया?
फल-फूल,
हवा
दी,
हम
इसे ऐसे काट रहे हैं ।
जंगल
हमारा यार है,
बादलों
का प्यार है,
मत
मारो अपने यार और बादलों
के प्यार को ।
-आयुष,
कक्षा
आठ
जंगल
सुंदर और हरा-भरा,
सब
रहते जहां खुश और शान्त,
मत
काटना तुम इसे,
खाना-पीना
हमको देता यह जंगल ।
-
पृथ्वी,
कक्षा
आठ
जंगल
देते हमें सब कुछ-फूल,
फल,
जानवर,
पक्षी
और क्या-क्या
नहीं
फिर
ये जंगल हो रहे हैं क्यों
कम?
सड़क,
गाड़ी
और घर ज़्यादा क्यों ?
बढ़ते
जा रहे हैं लोग,
अपने
रहने के लिए जंगल को मिटा
और उजाड़,
यह
इंसान बनाता है क्यों अपनी
सुख-सुविधाओं
का प्यारा घर ?
-
नवनीत,
कक्षा
आठ
जंगल
हैं हमारे दोस्त और जानवरों
के घर,
जंगल
हैं देते फूल और खेतों के लिए
बीज ।
जंगल
के फूल हैं सुंदर और देते सबको
महक,
जंगल
के तालाबों में तैरती मछलियाँ
लगतीं सुंदर ।
जंगल
हैं सबके दोस्त,
समझ
लो मेरे भाई!
- आन्या
सी, कक्षा
आठ
मेरा
प्रिय खेल
पूरे
विश्व में बहुत-से
खेल लोकप्रिय हैं । भारतीय
खिलाड़ी जैसे सानिया मिर्जा,
साइना
नहवाल आदि जब राष्ट्रीय और
अंतरराष्ट्रीय मैच जीतते हैं
, तो
हम सब की छाती गर्व से चौड़ी
हो जाती है । लेकिन हमारी
पाठशाला में हार-जीत
के बिना खेल खेलने की प्रथा
है। मैडल का लालच न होने पर भी
हम दिल लगाकर खेलते हैं ,
वह
भी मज़े के लिए – यही खूबी है
हमारी पाठशाला की प्रथा की।
हमारे
स्कूल में तरह-तरह
के खेल सिखाए तथा खेले जाते
हैं। हफ्ते में तीन दिन ४०
मिनट के लिए खेलते हैं । मज़े
की बात यह है कि हमारी पूरी
कक्षा एक होकर खेलती है-चाहे
वो फुटबाल हो ,
वालीबाल,
बास्केट
बाल, खो-खो,
क्रिकेट
या साफ्ट बाल ।
मुझे
बास्केट बाल,
बैडमिंटन,
साफ्टबाल
और तैराकी बहुत पसंद हैं ।
मुझे फुटबाल,
सोफ्टबाल,
टेनिस,
क्रिकेट
और बैडमिंटन के मैच टी.वी.
पर
देखने का भी शौक है। अपने पिताजी
के साथ मैं एक बार क्रिकेट मैच
देखने स्टेडियम गई थी।
यदि
मुझे एक खेल चुनना पड़े तो मैं
तैराकी चुनुंगी । मुझे बचपन
से ही पानी में खेलने व तैरने
का शौक था ।मैंने भारत व कर्नाटक
की चैंपियन निशा मिलेट से
तैराकी सीखी थी। वह तो पानी
में मछली की तरह तैरती हैं ।
सही तरीके से हाथ-पाँव
चलाना तथा सिर की दिशा बदलना-
यह
सब उन्होंने मुझे सिखाया ।
गर्मी
के दिनों में ठंडे पानी में
डुबकी लगाना सारे जानवरों को
भी राहत देता है । लेकिन पानी
में साँस रोककर तरह-तरह
की क्रियाएँ करने को तैराकी
माना जाता है। मुझे फ्री स्टाईल,
बटर
फ्लाई स्ट्रोक और बैक स्ट्रोक
का ज्ञान है। पानी का तापमान,
स्वीमिंग
पुल का आकार ,
अन्य
तैराकों की उपस्थिति-यह
सब ध्यान में रखते हुए भी मैं
हर बार नए तरीके से तैरने की
कोशिश करती हूँ ।
कभी-कभी
तैराकी गुट में की जाती है
जैसे- रिले
और कभी अकेले । यह खेल मुझे
इसलिए भी प्रिय है कि किसी खास
वस्तु जैसे कि-बाल,
बैट,
रैकिट
इत्यादि की इसमें ज़रूरत नहीं
होती ,
केवल
साफ पानी की ज़रूरत होती है।
दुनिया के हर कोने में यह खेल
लोकप्रिय है तथा इसमें किसी
भाषा के ज्ञान की भी ज़रूरत
नहीं ।
मैं
यह तो नहीं कहूँगी कि मैं बड़े
होकर विश्व की सबसे बढ़िया
तैराक बनना चाहती हूँ । लेकिन
मैं सारी ज़िन्दगी तैराकी करते
रहना चाहती हूँ क्योंकि यह
मेरे स्वास्थ्य के लिए अच्छा
व्यायाम हैं व मुझे बहुत पसंद
भी है।
-अनुका,
कक्षा
आठ
बाघ
शिकार या शिकारी
बाघ
हमें एशिया के वनों में मिलेंगे
जैसे-भारत,
चीन,
अफ्रीका
के वनों में । बाघ का शरीर तीन
सौ किलोग्राम तक और लंबाई तीन
मीटर है पर मादा बाघ की लम्बाई
कम होती है। इसकी संतरी रंग
की खाल होती है और पूरे शरीर
पर काली धारियाँ होती हैं ।
इसके बड़े तेज़ और नुकीले दाँत
होते हैं और नाखून भी तेज़
होते हैं जिसकी सहायता से यह
माँस खाता है। बाघ माँसाहारी
है। यह चुपके से अचानाक अपने
शिकार पर कूदता है और अपने
नाखूनों से माँस फाड़ता है ।
इसके पंजे और पैर इसे दौड़ने
और भागने में मदद करते हैं ।
धारियों के साथ वह आसानी से
छुप सकता है और आक्रमण कर सकता
है। वह आस-पास
के पेड़ -पौधों
, धारियों
और पत्तों के जैसे लगता है और
धीरे-धीरे
चुपके से आक्रमण करता है । वह
खरगोश,
गाय,
हिरण
जैसे जानवरों को खाता है।
बहुत
सारे शिकारी बाघ को मारना
चाहते हैं क्योंकि वे इसकी
खाल, दांत
, नाखून
आदि को बेचकर बहुत सारा धन कमा
सकते हैं । बाघों के मरने का
एक और कारण है -
आजकल
आदमी जंगल से पेड़ों को काटता
जा रहा है ,
इससे
बाघों के घर खत्म हो रहे हैं
और बाघ गाँवों और शहरों की तरफ
खाना ढूँढने के लिए आते हैं।
जब लोग इन्हें देखते हैं तो
डर के कारण मार देते हैं। वन
के कटने और शिकार के कारण आज
भारत में सिर्फ १४११ बाघ बचे
हैं । बाघ भारत का राष्ट्रीय
जानवर है। बाघ लुप्त होने से
"फूड
चेन" पर
भी तो बहुत प्रभाव पड़ेगा ।
जाति लुप्त होने का अर्थ है
कि धरती पर कोई बाघ नहीं रहेगा
और यह मनुष्य के लिए हानिकारक
होगा ।डायनासोर जाति के लुप्त
होने के बारे में तो हम सब
परिचित हैं ही।
भारत
का राष्ट्रीय जानवर बचाने के
लिए भारत ने नेशनल पार्क खोले
हैं जैसे कि-
राना,
जिम
कोरबैट,
काज़ीरंगा,
रणथंबोर
आदि । अब कम बाघ बचने के कारण
इनके लुप्त होने की स्थिति आ
गई है । इन्हें बचाने के लिए
हमें शिकारियों को बाघों को
मारने से रोकना चाहिए । हमें
जंगलों को काटना नहीं चाहिए
। हमें बाघ की खाल से बनी कोई
भी चीज नहीं खरीदनी चाहिए ।
ऐसे ही हम अपने राष्ट्रीय
जानवर बाघ को बचाने में अपना
योगदान दे सकते हैं ।
-
अदिति,
कक्षा
आठ
एक
शादी
हम
बहुत दिनों से प्रोग्राम बना
रहे थे और मन ही मन खुश थे ।
असीम चाचा की शादी दिल्ली में
होने वाली थी । हमने रेलयात्रा
की टिकटें खरीदीं थीं और नए
कपड़े भी बनवाए थे । असीम चाचा
मेरे पिता के चाचा के बेटे हैं
। अमरीका से अपनी शादी के लिए
ही दिल्ली आए थे । चूँकि सारे
रिश्तेदार दिल्ली में रहते
हैं इसलिए सारे कार्यक्रम
दिल्ली में ही आयोजित किए गए
थे । मैं अपने माता-पिता
और बहन के साथ शादी में शामिल
होने के लिए बेंगलूरू से दिल्ली
जा रहा था । दिल्ली की गर्मी
बहुत भीषण होती है । इसलिए
शादी नवंबर महीने में रखी गई
थी ।
दिल्ली
में शादी के दिन हम बहुत उत्सुकता
से सुबह उठे । हम सब अपनी दादी
के घर ठहरे थे । सुबह की पूजा
में शामिल होने के लिए हम सब
जल्दी-जल्दी
तैयार हो रहे थे । पूजा मेरी
दादी के घर में ही थी। इसमें
परिवार के करीबी रिश्तेदार
आए थे । घर में कई पकवान तैयार
किए गए थे । पूजा का कार्यक्रम
चार बजे खत्म हुआ और सब शादी
के लिए तैयार होने के लिए
अपने-अपने
घर चले गए । समय कम था और हम
जल्दी-जल्दी
शादी के कपड़े पहन कर तैयार हुए
। इसके बाद हम सब दो-तीन
गाड़ियों में भरके शादी के
स्थान पर पहुँचे । वहाँ पर वर
पक्ष की तरफ से सौ लोग पहले से
ही मौजूद थे । असीम चाचा ने
सुनहरे रंग की शेरवानी और पगड़ी
पहनी थी । उनका स्वागत आरती
से किया गया । थोड़ी देर में
अंजली चाची आईं । उन्होंने
लाल साड़ी पहनी हुई थी । साथ ही
वे बहुत-से
जेवर, फूल,
बिंदी
आदि भी पहने थीं । दोनों ने
एक-दूसरे
को माला पहनाई । इसके बाद एक
गोल-मटोल
पण्डित ने विवाह सम्पन्न किया
। शादी में खाने की कई तरह की
चीज़ें थीं जैसे-चाट,
कुल्फी,
मिठाई
आदि । मुझे गुलाब जामुन खाने
का मन हो रहा था और मैंने जी
भर कर गुलाब जामुनों पर हाथ
साफ किया। उपहार के तौर पर
खरीदी हुई घड़ियाँ वर-वधू
को देकर हम खाने की तरफ बढ़े।
माहौल में शहनाई की आवाज़ गूँज
रही थी । मण्डप होटल के बगीचे
में था और ठण्ड बढ़ने लगी थी ।
मैंने अपनी घड़ी देखी तो अचंभे
में रह गया कि रात के ग्यारह
बज चुके थे । मैं खाना खत्म
करके कुल्फी लेकर एक कुर्सी
पर बैठ गया । इधर-उधर
की बातें सुनने लगा । कोई
चुटकुला सुना रहा था तो कोई
वर-वधू
की प्रशंसा कर रहा था । मुझे
बड़ा मज़ा आ रहा था । मैं बैठे-बैठे
मण्डप की सज़ावट देख रहा था ।
उस पर केवल फूल ही फूल लगे थे
।
मेरे
विचार में असीम चाचा की शादी
में फालतू पैसे खर्च हुए । मज़ा
बहुत आया परन्तु वही मज़ा हम
कम खर्च करके भी पा लेते । मुझे
यह लगता है कि हम सब लोग साथ
थे और इसी में मजा था ।
- मृंगाक,
कक्षा
आठ