कक्षा आठ को मैं आई. सी. एस. ई का पाठ्यक्रम न कराकर उनकी भाषा को परिपक्व करने के लिए भाषा के विभिन्न पहलुओं पर काम करती हूं जैसे कि - व्याकरण के विभिन्न मुद्दों का अभ्यास, औपचारिक और अनौपचारिक पत्र लेखन, चित्र पर निबंध (चित्र वर्णन या कहानी - २० साल से बोर्ड में आए हुए चित्रों पर), कहावतों पर कहानी (२० साल से बोर्ड में आई हुई कहावतों पर), वर्णनात्मक -विवरणात्मक -काल्पनिक निबंध, अपठित गद्यांश आदि । व्याकरण के मुद्दों में बच्चों को मुहावरों का अभ्यास भी दिया जाता है । बच्चे कहानी और निबंध लिखते समय मुहावरों का स्वाभाविक प्रयोग कर पाएं इसके लिए उन्हें कहानी लेखन करने को दिया जाता है जिसमें उन्हें अधिक से अधिक मुहावरों के प्रयोग के लिए उत्साहित किया जाता है । नीचे लिखी हुई कहानियाँ उसी प्रयोग का उदाहरण हैं । इन कहानियों को सुनाने के लिए या अपठित गद्यांश की तरह भी प्रयोग किया जा सकता है । अपठित गद्यांश के लिए अध्यापक या अध्यापिका प्रश्न बनाकर कार्य पत्रिका बच्चों को अभ्यास के लिए दे सकते हैं । आशा है कि आपको यह प्रयास अच्छा लगेगा ।
1. दो चोर (आरती)
दिल्ली के बड़े शहर
में दो चोर रहते थे- राम और मोलू। वे दोनों चोरी बहुत अच्छी तरह से करते थे। कभी भी
कोई उनको पकड़ नहीं सका। रामू बहुत बुद्धिमान था और मोलू किताब का कीड़ा था। रामू बहुत
मोटा था। हमेशा उसके पेट में चूहे कूदते रहते थे।
एक दिन वे दोनों सड़क
पर चल रहे थे। जब दोनों ने एक बड़े घर को देखा। तो वे आश्चर्य चकित होकर उस घर को देखते
रह गए। मोलू ने राम से कहा,"चलो रामू, रात में आकर घर के अंदर घुसकर कुछ न कुछ चोरी
करेंगे।" रामू ने मोलू से कहा," नहीं, यहाँ घर के बाहर सिक्यूरिटी कैमरा है, हम ज़रूर पकड़े जाएंगे।"
मोलू ने शान्ति से कहा," मैं कुछ बाल बाँका नहीं होने दूँगा।
हम सिक्यूरिटी कैमरे से छुपकर घर में जा सकते हैं।" राम ने कहा,"
ठीक है, पर इससे बेहतर है कि हम "आ
बैल मुझे मार" वाली बात न करें इसलिए हम पहले योजना बनाएंगे।
रात के १२:०० बजे
गए थे। दोनों घर के बाहर छुप गए थे। घर के बाहर एक सिक्यूरिटी गार्ड घोड़े बेचकर
सो रहा था। राम ने धीरे से सिक्यूरिटी कैमरे पर एक काला कपड़ा डाला, फिर वह और मोलू घर के अंदर घुस
गए।
घर के अन्दर जाकर
दोनों ने देखा कि सारे वस्त्र सोने के थे। धीरे-धीरे से दोनों ने कुछ-कुछ चीज़ें अपने
थैलों में डाल लीं। राम और मोलू दूसरी-दूसरी जगह अथवा कमरे में चोरी कर रहे थे। राम
टी.वी. रूम में था और मोलू रसोईघर में । खाने की चीज़ें देखकर उसे भूख लग रही थी। तो
उसने एक बड़ी-सी रोटी खाई। पर यह रोटी ऊँट के मुँह में जीरा जैसे थी।
तो जल्दी से उसने चार और रोटियाँ खाईं। इसी वक्त राम रसोईघर के अंदर आया और उसके थैले
में बहुत कुछ था। पर खाना देखकर उसके भी मुँह में पानी भर आया। तो उसने
खाना खाकर रसोईघर के मूल्यवान चाकू भी चुरा लिए। उसके बाद वह मोलू के साथ धीरे से दरवाज़े
के घर से बाहर जाने लगे थे।
मोलू का पेट भर गया
था और तभी अचानक उसे डकार आया। डकार की आवाज़ इतनी ज़ोरदार थी कि मालिक झट से बाहर आया।
पर वे दोनों अलमारी में छुप गए थे। मालिक ने ज़ोर से पुकारा," कौन है?" रामू और मोलू चुपचाप से अलमारी में बैठे रहे। दोनों का कलेजा दहल
रहा था। थोड़ी देर बाद इधर-उधर देखकर घर का मालिक वापिस सोने चला गया। राम और मोलू ने
धीरे से अलमारी का दरवाजा खोला और घर के दरवाजे से धीरे से बाहर निकल गए।
उसके बाद तो गेट के
बाहर जाना बाँए हाथ का खेल था। दोनों आसानी से सिक्यूरिटी गार्ड के पास
से गुज़रे। सब ठीक-ठाक हुआ सिवाए एक बात के कि सिक्यूरिटी कैमरे से उन्होंने अपना कपड़ा
नहीं उठाया। वे इस बात को बिल्कुल भूल गए। दोनों ने घर जाकर खुशियाँ मनाईं। तभी राम
को कैमरे से कपड़ा न उठाने वाली बात याद आई। मोलू ने समाचार चैनल देखा और सुना कि टाइम्स
नौ पर अरूनाभ गोस्वामी उनके बारे में ही बात कर रहा था। उनकी उंगुलियों के निशान कपड़े
पर थे। यह सुनकर दोनों फूट-फूट कर रोए। थोड़ी देर बाद पुलिस ने उनके घर
आकर दोनों को पकड़ लिया। अन्त में दूध का दूध और पानी का पानी हो गया।
सबको पता चल गया कि वे ही दोनों चोर थे।
2. (अचिंतया)
आज स्कूल का पहला
दिन है और मेरे पेट में चूहे कूद रहे हैं। साथ में मेरा कलेजा भी दहल
रहा है। मुझे नए दोस्त बनाने होंगे और पढ़ाई भी करनी होगी। फिर मन में भी प्रश्न उठ
रहे हैं-"क्या वहाँ अध्यापक अच्छा सिखाते हैं? क्या वहाँ फुटबॉल फील्ड होगी?" ऐसे
ही ना जाने कितने प्रश्नों की भरमार मेरे दिमाग में थी। स्कूल में मेरा पहला दिन होने
के कारण मेरी माँ ने घी के दीये जलाए थे। मेरे लिए अच्छा नाश्ता भी पकाया
था।
स्कूल की इमारत तो
ऐसे थी जैसे कि ऊँट के मुँह में जीरा क्योंकि स्कूल की इमारत १०० एकड़
ज़मीन पर खड़ी थी। इस प्रकार खुली जगह जहाँ देखो वहाँ नज़र आती थी। मैं तो यह सब देख दाँतों
तले उँगुली दबा कर रह गई। अन्दर जाते-जाते मैंने कई बच्चों को देखा- हँसते
हुए बच्चे, फूट-फूट कर रोते हुए बच्चे, चिल्लाते हुए बच्चे और माँ-बाप पर क्रोध दिखाते
हुए बच्चे आदि।
मैं पूछ-पूछ कर अपनी
कक्षा को ढूँढते हुए चलती गई। कुछ देर चलने के बाद, हाँफते, काँपते मैं अपनी कक्षा में पहुँची।
अध्यापिका ने मुझे अन्दर बुलाया और एक कुर्सी पर बैठने के लिए कहा। कक्षा में सभी तरह
के छात्र दिख रहे थे- किताब के कीड़े, चिकने घड़े जैसे लड़कों के बीच अपनी खिचड़ी
अलग पकाती हुई एक लड़की भी दिखाई दी। अध्यापिका गणित पढ़ा रही थीं। मेरे लिए
तो अंक काला अक्षर भैस बराबर हैं। गणित में मुझे कुछ समझ नहीं आता। अध्यापिका
इतनी अच्छी तरह से पढ़ा रही थीं कि मानो मेरी आँखें खुल गईं। फिर इतिहास
के अध्यापक पढ़ाने आए। यह लंच से पहले अथवा चौथा पीरियड था। मेरे पेट में चूहे
दौड़ रहे थे इसलिए मेरा ध्यान पढ़ाई में लग नहीं रहा था। जैसे ही घंटी बजी तो
मैंने बाहर दौड़कर लंच खाया और तब जाकर मेरी भूख मिटी। लंच के बाद खेल का घंटा था,
हम खूब खेले। फिर अंग्रेजी के दो घंटे थे। अंग्रेजी कक्षा में तो मानो
मेरा रक्त ही सूख गया। अध्यापिका ने मेरी तरफ देखकर एक के बाद एक प्रश्न पूछे। अच्छा
हुआ कि घंटी बजी और मैं दौड़कर बिना साँस लिए हुए घर पहुँची। जब माँ ने पूछा कि स्कूल
कैसा था तो मेरे मन में कुछ मीठा तो कुछ कड़वा स्वाद-सा था। खैर, मैंने माँ को पूरे दिन की राम कथा एक साँस में सुना दी।
अंत में माँ ने कहा
कि सचमुच ही स्कूल का अनुभव मीठा-कड़वा ही होता है। मैं भी उनकी इस बात से सहमत थी और
माँ के हाथों से पका नाशता खाते हुए उसी के स्वाद में डूब गई।
3. (ऐश्वर्या)
महाराष्ट्र में एक
गाँव में दो लड़कियाँ रहती थीं। उस गाँव के लोगों की आँखें बहुत जल्दी ही अंगारे
उगलने लगती थीं। विशेष रूप से जब भी कोई दूसरे गाँव के लोग अन्दर आते थे तो
महाराष्ट्र के गाँव के लोगों को इतना गुस्सा आता था कि वह जल्दी ही धावा बोल
देते। गाँव के सभी लोग काला अक्षर भैंस बराबर थे। केवल वे दो लड़कियाँ
ही कुछ पढ़ी-लिखी थीं। उन दो लड़कियों के नाम अर्चना और अखिला थे। अर्चना एक सुन्दर और
अच्छी लड़की थी पर अखिला उतनी अच्छी नहीं थी। अखिला हर बात का हमेशा राई का पहाड़
बनाती थी।
एक दिन गाँव में सभी
लोग इधर-उधर भागने लगे। अर्चना और अखिला दाँत तले उगुँली दबायी। फिर
उनको पता चला कि गाँव के लोगों ने एक भूत को देखा था और उनका रक्त सूख
गया था। भूत की कहानी सुनकर अखिला का कलेजा दहल गया पर अर्चना को यह
बात थोड़ी अज़ीब लगी। अखिला जल्दी ही भीड़ के साथ भाग गई। पर अर्चना भीड़ के आने की विपरीत
दिशा की ओर जाने लगी।
बहुत दूर जाने के
बाद अर्चना को कोई भूत दिखाई न दिया और उसको और भी अज़ीब लगा कि गाँव के सभी घर खाली
थे। वापिस लौटने के लिए जब अर्चना मुड़ी तो पीछे से एक अज़ीब आवाज़ आई। उसने पीछे मुड़कर
देखा तो अर्चना हैरान हुई। अर्चना ने एक भूत को देखा। पर उसको यह यकीन नहीं हुआ कि
वह भूत असली था या नकली। अचानक अर्चना ने यह देखा कि वह भूत जूते पहने हुए था। फिर
उसको यकीन हुआ कि वह भूत नहीं है बल्कि कोई भूत के कपड़े पहल लोगों को डरा रहा है। वह
उनको डराकर उनको उनके ही घरों से भगाकर उनके घरों में चोरी करने आया है।
चोर को तो यह लगा
था कि गाँव में चोरी करना बाएँ हाथ का खेल है पर अर्चना ने उसे पकड़कर
पुलिस के सामने लाकर सबकी आँखें खोल दीं थीं। चोर ने शपथ ली के फिर वह
कभी चोरी नहीं करेगा। चोर ने पुलिस के आगे हथियार डाल सब कुछ बता दिया
था और वादा किया था कि अपनी ज़िन्दगी अच्छी तरह से और सच्चाई के रास्ते पर चलकर जीएगा
।
4. (धनंजय)
एक दिन रामपुर के
गाँव में एक लड़का रहता था। उस लड़के का नाम आदित्य था। उसे फुटबॉल खेलना बहुत अच्छा
लगता था। पर वह बहुत गरीब था। उसके पिताजी महीनों में २००० रुपए ही कमाते थे। पर आखिर
में कोई उसे फुटबॉल सीखने देना नहीं चाहता था क्योंकि वे उसके लिए रुपए नहीं दे सकते
थे।
पर एक दिन एक आदमी
ने उसे फुटबॉल सिखाने में मदद की। पर उस आदमी ने कहा कि तुम्हें फुटबॉल सीखने में आकाश-पाताल
एक करना पड़ेगा। फिर आदित्य ने कहा कि मैं कुछ भी करूँगा। मैं हर प्रकार हाथ-पैर
मारूँगा बस आप मुझे फुटबॉल सिखाइए। इस आदमी का नाम राजू था। तब राजू ने कहा कि कल फुटबॉल
फील्ड पर साथ बचे आना। अगले दिन आदित्य सात बजे फुटबॉल फील्ड पर पहुँच गया। आदित्य
ने फुटबॉल सीखने में बहुत मेहनत की और एक महीने के बाद आदित्य के पिताजी को मालूम हुआ
कि आदित्य फुटबॉल कोचिंग जा रहा है। गुस्से में आकर उन्होंने आदित्य को बहुत ज़ोर से
थप्पड़ मारा क्योंकि वे उनकी आज्ञा बगैर फुटबॉल कोंचिग जा रहा था। थप्पड़ खाने से आदित्य
फूट-फूट कर रोने लगा।
कई दिनों बाद जब आदित्य
के माता-पिता बात कर रहे थे। आदित्य ने सुना कि उनकी माताजी ने पिताजी को कहा कि आदित्य
को एक और अवसर दीजिए। तो आदित्य के पिता ने कहा कि कल एक मैच है जो आंध्र प्रदेश के
खिलाफ के खेलने वाले हैं। यदि आदित्य की टीम जीत जाएगी तब मैं आदित्य को फुटबॉल अवश्य
खेलने दूँगा। पर आदित्य की टीम हार गई तो मैं उसको कॉलेज की पढ़ाई के लिए भेजूँगा।
आखिरकार फुटबॉल मैच
का दिन आ गया और आदित्य तो हवाई किले बनाता रहा कि वह एक बहुत बड़ा फुटबॉल
खिलाड़ी बनेगा। उसे पूरी रात नींद नहीं आई थी।
वह सुबह समय से पहले
ही उठ गया और सब खिलाड़ियों के वहाँ पहुँचने से पहले पहुँच गया। वह बहुत मेहनत से पूरी
मैच में खेला इसलिए मैच में आदित्य की टीम जीती और उसे १० लाख रुपए इनाम में मिले।
उसके माता-पिता फूले नहीं समाए और भविष्य में मेहनत कर एड़ी चोटी
एक कर वह एक बहुत बड़ा फुटबॉल खिलाड़ी बन गया।
5. (अमूल्या)
"और छक्का!"
एक आवाज़ ज़ोर से सुनाई दी। "इण्डिया जीत गई माँ" मैं उल्लास भरी आवाज़ में
बोली। दस साल हो गए थे और अब यह थी भारत की पहली जीत। मेरे पेट में चूहे कूद
रहे थे, मगर मैं सिर्फ भारत की जीत
के बारे में सोच रही थी। पर मैं तो भारत की महिलाओं की टीम के बारे में सोच रही थी।
उनकी मेहनत के बारे में, कि कैसे हाथ-पैर मारकर
वे इस मुकाम तक पहुँच गयी हैं।
भारत की महिलाओं की
टीम को जीत प्राप्त होने से मेरी माँ ने मुझे मिठाइयाँ खिलाईं। मैं तो पहले से ही घी
के दिए जला रही थी। इसी खुशी से मैं जल्दी से सो गई और मुझे तो कल के आने का
इंतज़ार था। अगले दिन, सूरज
की पहले किरणें मेरे कमरे पर गिरें इसके पहले ही मैं उठ गई। मैं नहाकर, नए कपड़े पहनकर अपनी सहेली के घर गई। छोटी उम्र से ही मैं और मेरी सहेली जिसकी
नाम सिंधु है, क्रिकेटर बनने का सपना देखते थे और आज भी देखते
हैं । कल मुझे पता चला कि आज हमारे गाँव में राज्य स्तर पर चयन होने वाला था। मैंने
सिन्धु के घर जाकर उसे यह खुशखबरी बताई। मगर सिन्धु तो किताबी कीड़ा है।
सिन्धु को जितना प्यार क्रिकेट से है, उतना ही किताबों से भी
है। इसलिए सिन्धु ने कहा," थोड़ी देर मेरा इंतज़ार करो,
मैं इस पुस्तक को खत्म करके आती हूँ।" मैं लहू का घूँट पीकर
रह गई। एक-दो पल के बाद मैं उसके कान खाने लगी और सिन्धु को
जल्दी आने के लिए कहने लगी।
आखिरकार सिन्धु किताब रखकर मेरे साथ मैदान पर आयी
जब हम बच्चे थे, मैं
और सिन्धु स्टेट टीम में चयन होने के बारे में हवाई किले बनाते थे। हम
सोच भी नहीं सकते थे कि हमारा सपना हमारे इतने करीब था। सिन्धु की बारी पहले आयी और
वह दौड़कर गई। कुछ पल के बाद मैं भी मैदान के अन्दर गई। मेरा कलेजा दहेल
रहा था, मगर मैं सिर्फ एक बल्ला लेकर शांति से जाकर खड़ी हो गई।
गेंदबाज से चयनकर्ता ने कहा ," शुरु हो जाओ।" उसी क्षण
मैंने अपनी सारी ज़िंदगी की मेहनत उस गेंद का सामना करने में लगाई और एक छक्का मारा।
हर एक गेंद पर मैंने छक्का या चौका मारा। अंत में लग रहा था कि छक्के मारना मेरे लिए
बाएँ हाथ का खेल था। शाम हो गई थी और चयन का परिणाम आना बाकी था। चयनकर्ता ने कहा कि मैं स्टेट टीम के लिए चुनी गई थी। जब बाहर जाकर देखा तो सिन्धु
फूट-फूट कर रो रही थी। उसने कहा कि वह स्टेट टीम में नहीं चुनी गई थी।
पर मेरे चुने जाने के विषय में जानकर उसने मे लोहा माना और मुझे प्यार
से गले लगा लिया। मैं और सिन्धु हाथ मेंरा हाथ डालकर साथ-साथ आगे भविष्य के सपने देखते
हुए घर की ओर चल पड़े।
6. हार न मानना (आर्य)
कहते हैं कि हार न
मानने वाले लोग कुछ भी नहीं कर सकते हैं। इनके बारे में बहुत सारी कहानियाँ लिखी हुई
हैं। ऐसी ही एक कहानी है-इराक में रहने वाले अब्दुल्ला की। अब्दुल्ला एक पंद्रह साल
का लड़का था। वह एक गरीब परिवार का था और उसके लिए सब कुछ काला अक्षर भैंस बराबर
था क्योंकि वह पढ़ा-लिखा नहीं था। लेकिन वह बहुत मेहनती और ताकतवर था। उसके लिए तो तीस
किलोग्राम उठाना बाएँ हाथ का खेल था।
एक दिन जब अबदुल्ला
अपने दोस्तों के साथ खेल रहा था। उसने दो हवाई जहाज देखे। उसे पता था कि ये हवाई जहाज
गाँव पर बम्ब फेंकेगे। यह सोचकर उसका कलेजा दहेलने लगा। उसने अपने दोस्तों
को बताया कि दो हवाई जहाज आ रहे हैं और वे सब छुप गए। उनको पता था कैसे बम्ब से अपनी
रक्षा करनी थी। रास्ते में उन्होंने जिसको भी देखा वे उनसे कहने लगे कि दो हवाई जहाज
आ रहे हैं। यह सुनकर सभी का रक्त सूख गया।
तभी हवाई जहाजों को
थोड़ा नीचे आते देखकर मानो अब्दुल्ला की आँखें खुलीं | उसे याद आया कि क्या होने वाला
था। उसे याद आया कि वह कैसे भागकर छुप गया और उसने कैसे अपने गाँव के बहुत से लोगों
की मृत्यु अपनी आँखों के सामने होती देखी। वह फूट-फूट कर रोने लगा। फिर
उसने कुछ आवाज़ें सुनीं, वह फिर से छुप गया। आवाज़ें सुन कर उसे
लगा कि वह लोग उर्दू भाषा में नहीं, अंग्रेज़ी भाषा में बोल रहे
थे। अब्दुल्ला ने सोचा कि यही वे लोग होंगे जिन्होंने गाँव पर बम्ब फेंके। उसे बहुत
क्रोध आया। लेकिन वह लहू का घूँट पीकर रह गया। उसे पता था कि उसे यहाँ
से भागना था, पर कैसे? उसके लिए तो आगे
कुआँ पीछे खाई थी।
अगली रात किसी तरह
से बाल-बाल बचकर वह गाँव से बाहर चला गया। लेकिन अब वह कहाँ जाए? उसके पेट में चूहे कूद
रहे थे। उसने कुछ खाने की सोची। परन्तु खाना तो कहीं नहीं था। वह सड़क से नहीं जा सकता
था क्योंकि वहाँ तो सेना के लोग खड़े होंगे। उसे तो जंगल से जाना था। किसी भी तरह से
उसे शहर पहुँचना था। पर यह तो बहुत मुश्किल लग रहा था।
जंगल में उसने किसी
तरह से एक दिन बिताया। अब वह बहुत थक चुका था और हथियार डाल देने के
लिए तैयार था पर फिर उसे एक बात याद आई। अपनी माँ की कहानियाँ जिनमें हार न मानने वाले
लोग बहुत कुछ करते हैं। उसने सोचा कि अगर वह अब हार मान गया तो वह अपनी माता से कुछ
नहीं सीखा, उसके सिर पर भूत सवार
हो गया कि किसी भी तरह उसे शहर पहुँचना है।
वह चलता रहा और चलता
ही रहा। एक दिन जब अब्दुल्ला ने कुछ सुना तो उसके कान खड़े हो गए। गाड़ी की आवाज़ आ रही
थी, उसने भागकर देखा तो वहाँ
एक शहर था। अब्दुल्ला फूला न समाया। शहर में उसे एक दम्पत्ति मिला। उन्होंने
उसे खाना दिया और उसने उन्हें अपनी कहानी सुनाई। वे उसकी कहानी सुन चौंक गए। उन्होंने
इस कहानी पर एक किताब लिख दी। लोगों ने जब अब्दुल्ला से प्रश्न पूछे तो उसने उनके प्रश्नों
का मुँह तोड़ जवाब दिया। वह पुस्तक एक बेस्ट सैलर हो गयी और अमरीका में
लोगों ने इस किताब को पढ़ा और वे इस किताब का विरोध करने लगे कि इराक में युद्ध न किया
जाए।
एक अनपढ़ बच्चे ने
हार न मानी और इससे इराक का कितना अच्छा हुआ! इसलिए कहते हैं कि हार न मानने से हम
कुछ भी कर सकते हैं।
7. (हनान रौफ)
एक लड़का एक गाँव में
रहता था, उसका नाम राम था। वह बहुत
मेहनती था। उसके गाँव में एक और लड़का था जो उसकी तरह नहीं था। उसका नाम श्याम था ।
राम ने श्याम को अपनी पढ़ाई में मदद करने के लिए प्रार्थना की पर श्याम ने हथियार
डाल दिए।
राम एक किताबी
कीड़ा था। इसलिए सब उसे चिढ़ाते थे। लोगों के चिढ़ने पर वह फूट-फूट कर रोता
था पर फिर भी उसने हार नहीं मानी। वह पढ़ाई में हमेशा ही हाथ-पैर मारता
क्योंकि वह सिर्फ पढ़ाई में ही होशियार था। खेल-कूद में तो वह बहुत डरपोक था।
श्याम और राम दोस्त
थे। उन्होंने फैसला लिया कि अगर श्याम राम को खेलने में मदद करेगा तब राम श्याम को
पढ़ाई ऐसा करने में मदद करेगा। इस बार ऐसे करने में कोई भी हार नहीं मानेगा। दोनों एक
पंथ दो काज कर रहे थे क्योंकि दोनों एक-दूसरे से अधिक पढ़ाई और खेलों में माहिर
होना चाहते थे।
कुछ साल बाद राम यूनिवर्सिटी
चला गया और उसने अपनी पढ़ाई में धावा बोला। पर श्याम अपनी पढ़ाई का गल्त इस्तेमाल करके
आलसी हो गया और अब सड़क पर ही रहने लगा। हर दिन उसके पेट में चूहे कूदते
थे क्योंकि अब श्याम हर दिन शराब पीने लगा। वह अपने मित्रों के साथ बुरी तरह लड़ने लगा।
वह उनके साथ बात करते हुए गड़े मुर्दे उखाड़ने लगा। वह लोगों को गुस्सा
दिलवाता और इस तरह वह आ बैल मुझे मार का शिकार हो गया।
जब राम को पता चला
कि श्याम क्या कर रहा है तो उसका कलेजा दहला । तुरन्त उसने श्याम की
मरम्मत करने की सोची क्योंकि उसे पता था कि कर भला तो हो भला क्योंकि उसने उसे वादा
किया था कि वह उसे पढ़ाई में मदद करेगा।
राम ने फिर से श्याम
की मदद की पर वह तो काला अक्षर भैंस बराबर निकला। राम ने हार न मानी
क्योंकि उसे पता था कि श्याम बहुत चतुर आदमी था। कुछ ही दिनों बाद श्याम की भी आँखें
खुलीं। वह राम की बात समझ गया। उसकी मदद से फिर से उसने एक बार कोशिश की ।
उसे कुछ महीनों बाद नौकरी भी मिल गई।
अब वह एक कम्पनी का
मैनेजर था और उसने सबको मुँह तोड़ जवाब दिया कि अब वह एक योग्य आदमी है।
उसने राम को अपनी कम्पनी में सबसे ऊँचे स्तर पर काम दिया और दोनों प्रसन्नता से अपनी
दुनिया जीने लगे।
8. (ईशा गांगुली)
एक बड़ा-सा आदमी एक
छोटे-से गाँव में रहता था। उसका नाम गोलू था। वह बड़े-बड़े कपड़े और जूते पहनकर गाँव में
घूमता था। गोलू को देखकर गाँव के लोगों का कलेजा दहेल जाता था। गोलू
फूट-फूट कर रोता था क्योंकि उसका कोई दोस्त नहीं था। सारे गाँव वाले
अपनी खिचड़ी अलग पकाते थे। गोलू तो जंगल में रहता था। वह हर रात चाँद
को देखता और कहता था,"काश! मैं इस ज़िन्दगी में कुछ अच्छी काम कर सकूँ। काश! सब लोग मेरे काम को देखकर
खुश हो जाए।"
हर रात जंगल में सारे
जानवर गोलू के बड़े-बड़े कपड़ों को देखकर हँसते थे। सारे जानवर तरह-तरह की बातें कहकर
गोलू के जले पर नमक छिड़कते थे। जब गोलु अपने हवाई किले बनाता रहता था।
वह मिठाई पकाने वाला आदमी अथवा हलवाई बनना चाहता था। जब भी वह सबसे अपनी इच्छा कहने
की कोशिश करता तो कोई भी उसकी बात नहीं सुनता था। एक दिन गोलू जंगल में सैर कर रहा
था । तभी उसके पेट में चूहे कूदने लगे। उसको कुछ खाना था।
वह तीन दिन तक घूमता-फिरता
रहा। फिर वह एक बड़े-से गाँव में लौटा। सारे गाँव वाले गोलू को देखकर डर गए क्योंकि
पिछले गाँव के लोगों ने पहले से खूब कान भरे थे। गोलू अपनी इच्छा को
पूरा होते देखना चाहता था तो उसने एक छोटी जगह पर एक दुकान खोली। उसकी दुकान बड़ी-बड़ी
टहनियों से बनी थीं। गोलू ने हाथ-पैर मारकर इस दुकान को बनाया था।
गोलू ने चीनी, घी, दूध,
तेल, मैदा आदि खरीदकर खूब सारी मिठाइयाँ बनाईं।
सारे गाँव वाले उत्सुक थे। फिर गोलू ने सब मिठाइयाँ दुकान के बाहर रखीं और मिठाइयाँ
बेचने लगा। सारे गाँव वालों ने मिठाई खरीदी और खाकर गोलू के बारे में अच्छी-अच्छी बातें
कहने लगे। गोलू को लगा कि वे राई का पहाड़ बना रहे थे। फिर दूसरे गाँव के लोग भी उसकी
मिठाइयाँ खरीदने आने लगे। गोलू अब और मिठाइयाँ पकाने लगा। अब लोगों को अपने से डरते
न देख गोलू ने घी के दिए जलाए। गोलू बहुत खुश था। सभी लोग उसके दोस्त
बन गए। इस प्रकार उसने अपनी इच्छा पूरी करने के लिए कभी हथियार नहीं डाले इसलिए आज
वह अपना सपना पूरा होते बहुत खुश था।
9. (काश्वी)
एक आदमी जिसका नाम
रमेश था, एक गाँव में अपने पूरे परिवार
के साथ रहता था। उसकी दो बेटियाँ थीं। एक बेटी-शीला जिसे रमेश ने पढ़ना-लिखना सिखाया
था इसलिए वह किताब का कीड़ा बन गई थी। और, दूसरी
बेटी राधा बहुत तेज़ भागती थी और उसे क्रिकेट खेलना भी बहुत अच्छा लगता था।
रमेश खेत में काम
करता था । वह सारा दिन हाथ-पैर मारकर काम करता था। उसकी पत्नी भी थी
। उसके पास अपनी दोनों बेटियों को पाठशाला भेजने के लिए रुपए नहीं थे। इस कारण रमेश
को कर्ज़ लेना पड़ा। अपने गाँव के साहूकार से उसने कर्ज लिया और उसने साहूकार को कहा
कि वह दस साल में उसका कर्ज चुका देगा। जब शीला को अपने पिता से पता चला कि वह पाठशाला
जाएगी तो उसने घी के दिए जलाए। माता-पिता भी उसको खुश देखकर बहुत खुश
थे।
अगले हफ्ते से दोनों
बेटियाँ शीला और राधा ने पाठशाला जाना शुरु कर दिया। रमेश खेत में काम करने लगा। दस
साल के लिए सब वैसा का वैसा ही रहा। स्कूल में शीला को बहुत अच्छे अंक मिलते थे। उसके
लिए तो स्कूल में बहुत काम कर रही थी। तब भी अचानक किसी असाध्य बीमारी से रमेश की मृत्यु
हो गई।
यह देख रमेश की पत्नी
दांतों तले उगुंली दबाकर रह गई। शीला और राधा तो पिता की मृत्यु देख
फूट-फूट कर रोने लगी। वे तीनों सोच रही थी कि अब बेटियों के पाठशाला
जाने के लिए लिया कर्ज कौन चुकाएगा? अब तो शीला दसवीं कक्षा में थी और कर्ज देने का समय भी आ गया था
तो तीनों मिल कर साहूकार से बात करने गईं।
लेकिन साहूकार ने
उनकी एक न सुनी और अपना उधार वापिस मांगा। वह कोई बात सुनने को तैयार न था। रमेश की
पत्नी को साहूकार की बातें सुनकर बहुत क्रोध आ रहा था पर वह लहू का घूँट पीकर
रह गई क्योंकि वह साहूकार का कुछ भी बिगाड़ नहीं सकती थी। वह बस उधार चुकाने के लिए
दो साल और चाहती थी। पर साहूकार तो अपनी बातों से मानो उनके जले पर नमक छिड़क
रहा था। अंत में उसने उनसे कहा कि अगर वे दो साल में उसके पैसे वापिस नहीं देंगी तो
वह उनका घर अपने नाम करा लेगा और उनके सारे सामान की नीलामी करेगा।
यह बात सुनकर शीला
ने एकदम कहा कि वह अवश्य आस-पास के शहर में ढूँढेगी और उसका पूरा उधार चुकाएगी। वह
राधा के साथ शहर गई और भाग्य से दोनों को एक घर में खाना बनाने और उनके काम में मदद
करने का काम मिल गया। इस घर की मालकिन मानो उनके लिए डूबते को तिनके का सहारा
थी। दो साल में उन्होंने साहूकार को सारे रुपए वापिस किए और अपना काम करना
भी जारी रखा ।
10. (मेघा)
दिल्ली में सीमा नाम
की एक लड़की रहती थी। वह हमेशा अपनी खिचड़ी अलग पकाती थी। उसका कोई दोस्त
इसलिए नहीं था क्योंकि वह किताब का कीड़ा थी। सब आस-पड़ोस में रहने वाली
लड़कियाँ उसके बारे में एक-दूसरे के कान भरती थीं। सीमा के लिए परीक्षा
में उत्तम आना, बाँए हाथ का खेल था।
परीक्षा बहुत पास
थी और सब लड़कियों का कलेज़ा दहेलने लगा। उन्होंने परीक्षा के लिए कोई
पढ़ाई नहीं की थी। अगली परीक्षा भी थोड़े दिनों थी, पहली परीक्षा के परिणाम के बाद। अब ऐसा लग रहा था कि इन लड़कियों
के सिर पर पढ़ाई का भूत सवार हो गया है। वे सब लड़कियाँ पढ़ाई में अच्छे
अंक लाने के लिए कठोर परिश्रम करने लगीं। सीमा ने इन सबके बारे में जानकर दाँत
तले उँगली दबाई। ऐसा लग रहा था कि अभी-अभी इन लड़कियों की आँखें खुली
हैं। अभी-अभी ही इन लड़कियों को ध्यान आया है कि परीक्षा पास आ रही है क्योंकि वे लड़कियाँ
कभी पढ़ाई करती ही नहीं थी और वे इसलिए पढ़ाई में भी इतनी अच्छी नहीं थी।
जब उन लड़कियों को
पता चला कि उनकी परीक्षा तीन घंटे की होगी तब उनका रक्त सूख गया। वे दिन-रात बैठकर
पढ रही थी। उन्होंने सोचा कि परीक्षा मेम एक-दूसरे के पेपर में झाँककर परीक्षा पास
कर लेंगी। लेकिन जब सीमा ने उनकी बातें सुनीं, तब वह सब लड़कियों से कहने लगीं कि वैसा करने से वे अपने पैरों
पर कुल्हाड़ी मारेंगी। यह सुनकर वे लड़कियाँ डर गईं और उनके कान खड़े
हो गए। उन लड़कियों ने बहुत हाथ-पैर मारे। परीक्षा का दिन था और सब लड़कियाँ
घबराने लगीं। परीक्षा में उन्हें जो समझ आया, बस उन्होंने वही
लिखा। किसी के पेपर से नहीं झाँका। सीमा का पेपर बहुत अच्छा लगा।
परीक्षा के थोड़े दिन
बाद, सबकी रिपोर्ट आई। सब लड़कियों
ने अपनी रिपोर्ट देखी। थोड़ी लड़कियाँ फूट-फूट कर रो रहीं थीं। सीमा ने
उन्हें समझाया कि उन्होंने परीक्षा में जैसे भी किया है, अच्छा
ही किया है। जैसे कि उम्मीद थी, अगली परीक्षा में सब लड़कियों
ने बहुत मेहनत की। इस परीक्षा मे उन्होंने अच्छा किया और अंक भी अच्छे आए। उनके अच्छे
दिन आ गए थे। सब लड़कियाँ, सीमा की दोस्त बन गईं। अब किसी ने कभी
पढ़ाई के आगे हथियार नहीं डाला। सब खुशी से रहने लगे। अब वे सब चिकने घड़े
की तरह नहीं थे। परीक्षा के बाद, सब लड़कियाँ अपनी पढ़ाई के बारे
में हवाई किले बनाने लगीं। ऐसे ही साल बीत गया, पता ही नहीं चला!
11. (निखिल)
बहुत समय पहले की
बात है। कश्मीर में दो लड़के रहते थे। एक का
नाम रोहन था और दूसरे का राम था। उस समय कश्मीर और पाकिस्तान के बीच युद्ध चल रहा था।
राम और रोहन भाई थे। राम का कलेजा अंधेरे में दहेलता था। रोहन छिपकली
देखता तो उसका रक्त सूख जाता। एक दिन रोहन और राम के पिता युद्ध लड़ने
चले गए। रोहन और राम को अपने पिता पर बहुत गर्व था।
एक बार पाकिस्तान
कश्मीर पर धावा बोलने वाला था। कश्मीर के सभी लोगों के कान खड़े
हो गए। पर रोहन और राम मज़े से घर के बाहर घूम रहे थे। उन्हें किसी प्रकार की
भी चिन्ता नहीं थी। उन्हें यह भी पता था कि उनके पिता किसी भी स्थिति में हथियार
डालने की कोशिश नहीं करेंगे क्योंकि वे अपने देश की रक्षा करना चाहते थे।
जब हमला हुआ रोहन
और राम को कुछ भी नहीं हुआ। यह उनकी खुशकिस्मती थी कि वे एक दुकान के अंदर खड़े थे।
उस रात जब रोहन और राम घर वापिस नहीं लौटे तो उनकी माँ फूट-फूट कर रोई
क्योंकि उसे लगा कि रोहन और राम हमले में मर गए थे।
दो-तीन महीने बाद
रोहन और राम के परिवार को पता चला कि उनके पिता की मृत्यु हो गई थी। यह बात सुनकर उन्होंने
दाँत तले उगुँली दबाई। उनके पड़ोसी ने आकर उनके पिता के बारे में बात
करके उनकी माँ के जले पर नमक छिड़का।
रोहन और राम सिर्फ
दस साल के थे जब उनके पिता की मृत्यु हुई कि दो साल बाद दु:ख की वजह से उनकी माता ने
भी आत्महत्या की। अब रोहन और राम अपनी मौसी के घर में रहते थे । उनकी मौसी उनसे बहुत
काम कराती थी। जब वह दोनों १५ साल के हुए तो उन्होंने यह फैसला किया कि वे अपनी
खिचड़ी अलग पकाएंगे।
यह सोचकर वे घर छोड़कर
चले गए। उनके पास कोई रहने की जगह नहीं थी तो वे पार्क में सोते थे। एक दिन रोहन नौकरी
ढूँढने गया तो उसने रास्ते पर चाय की एक दुकान देखी। उसने वहाँ पर देखा कि वहाँ पर
कोई काम करने वाला नहीं था। तो उसने चाय की दुकान के मालिक के पास जाकर नौकरी माँगी।
मालिक ने "हाँ" कहा।
अगले दिन रोहन और
राम चाय की दुकान पर गए। मालिक ने उन्हें चाय की दुकान के बारे में बताया और उन्हें
यह भी बताया कि दुकान पर खाने के लिए क्या-क्या बनता है? राम को आर्डर लेना था और रोहन को
चाय बनाकर राम को देनी थी। इस काम के लिए रोहन और राम को कुल मिलाकर प्रति महीना ३०
रुपए मिलते थे।
रोहन और राम ने ३०
रुपए पाकर घी के दिए जलाए। रोहन और राम खुशी-खुशी आज़ादी से रहने लगे।
12. ( राहेल)
एक सुहानी रात थी
। मैं अपने कमरे में सो रही थी। अचानक मैंने एक भयानक आवाज़ सुनी। मेरे माता-पिता मेरे
कमरे में आए और कहा कि हमारी वाशिंग मशीन में आग लग गई थी। तो फिर हम नीचे गए और आग
बुझाने लगे। पर अचानक एक अज़ीब चीज़ हुई । हमने देखा कि हमारी वाशिंग मशीन बिल्कुल ठीक
और नयी लग रही थी। मैं बहुत डर गई। मेरे माता-पिता बाहर गए थे किसी आदमी को बुलाने
के लिए। फिर से एक आवाज़ सुनाई दी। यहा एक लड़की की आवाज़ थी । उसने कहा," मैं तुमको मारने के लिए आई
हूँ। अगर तुम यह बात किसी को बताओगी तो मैं जो करने वाली हूँ; तुम्हें अच्छा नहीं लगेगा।" मैं फूट-फूट कर रोने लगी। तभी
मेरे माता-पिता वापिस आ गए । वे लोग चौंक गए कि वाशिंग मशीन नई लग रही थी।
अगले दिन मैं स्कूल
गई। कुछ नहीं हुआ। सब ठीक था और एक महीने बाद तक भी सब कुछ ठीक था। मैंने अपने माता-पिता
को यह बात बताई। उसी रात को वही लड़की मानो ईद के चाँद की तरह दिखाई दी।
मैं बहुत दर गई ।
उस लड़की ने कहा कि उसी वाशिंग मशीन में उसकी माँ ने उसे फैंक दिया था। मैंने उसके दु:ख
को सुना तो मैं दु:खी हो गई। मैंने उससे माफी माँगी और उस लड़की ने मुझे माफ कर दिया।
फिर मैंने उसे कहा कि हम दोस्त बन सकते हैं।पर मैंने एक शर्त रखी कि वह गड़े मुर्दे
उखाड़ेगी नहीं। लड़की ने भी कहा कि मैं उसके खिलाफ किसी के कान न भरूँ।
फिर हम दोस्त बन गए। फिर उसने मुझे अपना परिचय दिया और अपनी उम्र बतायी। मैंने भी उसे
अपने बारे में बताया। नीना नाम था उसका।
नीना मेरे घर आई थी
क्योंकि हमने वही वाशिंग मशीन खरीदी थी जिसमें उसकी माँ ने उसे फेंका था। हम बहुत दिनों
तक दोस्त बने रहे। अचानक एक दिन नीना ने हमारा घर छोड़ दिया। उसने कहा कि वह अपनी माँ
के पास उसे माफ करने के लिए जा रही है। फिर रात में मुझे यह बताकर नीना चली गई। मेरी
माँ नीना को नहीं देख पाई। अन्त में सब कुछ ठीक हो गया। नीना और उसकी माँ मिल गए। मैंने
घी के दिए जलाए।
13. (शनाया कपूर)
एक गाँव में एक छोटा
लड़का रहता था। लड़के का नाम सोहन था। सोहन आठ साल का था और उसके दो भाई थे। वे सब स्कूल
जाते थे। सोहन दूसरी कक्षा में था। वह बहुत बुद्धिमान नहीं था लेकिन हर दिन वह हाथ-पैर
मारता था। मास्टर को देखकर उसका कलेजा दहेलने लगता था। मास्टर
बहुत अच्छा नहीं था और हर वक्त चिल्लाता रहता था। वह सोहन को पसन्द नहीं करता था। हर
दिन वह सोहन को क्लास के बाहर भेजता था। उसे सिर्फ क्लास के किताब के कीड़े
पसन्द थे। बाहर खड़ा होने पर उसके पेट में तो चूहे कूदते थे। अगर सोहन
गृहकार्य नहीं करता था सिर्फ एक दिन के लिए भी, मास्टर हर दिन गड़े मुर्दे उखाड़ते हुए उसे सारी बातें
कहता था।
सोहन वैसे भी गरीब
था और यूनिफार्म नहीं पहनता था। स्कूल के मास्टर की बातें मानो जले पर नमक छिड़कती
थीं। इस वजह से सोहन दिन-भर फूट-फूट कर रोता था। वह तो काला अक्षर
भैंस बराबर नहीं रहना चाहता था। पढ़ने-लिखने की बहुत कोशिश करता था।
एक दिन जब वह घर लौटा
तो घर में एक औरत सोफे पर बैठी थी। सोहन ने उसको पहचाना नहीं और चुपचाप रसोईघर में
चला गया। जब सोहन की माता जी ने उसे बुलाया तो सोहन ने दाँतो तले उँगुली
दबाई क्योंकि औरत उसे यह कह रही थी कि पब्लिक स्कूल शहर में एक खुली जगह थी। सोहन इस
विषय पर पहले से ही हथियार डाल चुका था इसलिए उसने कुछ नहीं कहा। थोड़े समय के बाद औरत
चली गई ," मैं वापिस आऊँगी"
यह कहकर।
बहुत दिन बीत गए पर
औरत वापिस नहीं आई। इस बात से सोहन दु:खी हो गया और वह क्रोध के आवेश
में लहू का घूँट पीकर रह गया। उसका कोई दोस्त नहीं था और वह अकेला जामुन
के पेड़ के नीचे बैठता था।
एक दिन जब वह जामुन
के पेड़ के नीचे बैठा था तो एक औरत उसके पास आकर बैठ गई। जब सोहन ने अपना सिर उठाकर
देखा तो यह वही औरत थी जिसने उसे पब्लिक स्कूल के बारे में बताया था। औरत के बात करने
से पहले सोहन के कान खड़े हो गये। उसने औरत को बात करने का मौका दिया।
औरत ने सोहन से कहा कि परसों स्कूल खुलेगा और अगर सोहन स्कूल जाना चाहता था शहर में
तो उसे औरत के साथ चलना होगा। सोहन ने इसके बारे में सोचा और उसे लगा कि औरत के साथ
जाना चाहिए फिर हवाई किले सच करने के लिए एक कदम उसे भी बढ़ाना पड़ेगा।
सोहन ने इस बात पर
बहुत सोचा और लगा कि यह मौका ज़िन्दगी में सिर्फ एक बार आता है। वह औरत के साथ जाने
की तैयारी करने लगा। सोहन के भाई उसके लिए खुश थे। सोहन की माता जी उसके साथ शहर जाने
के लिए तैयार थीं। पूरे परिवार ने घी के दिए जलाए और सोहन को अलविदा
कहा ।
14. (शनाया पी)
यह कहानी एक छोटे
बच्चे की है। बच्चा एक छोटे-से गाँव में रहता था। यह बच्चा काला अक्षर भैंस बराबर
था। उसको पढ़ना-लिखना सीखना था मगर उसका परिवार बहुत गरीब था। जब वह दूसरे बच्चों को
पाठशाला जाते हुए देखता था तो उनके नए-नए कपड़े देखकर उसके मुँह में पानी भर आता।
जब बच्चे पाठशाला से वापिस आते थे तो वे उसे बहुत चिढ़ाते थे। वे मानो जले पर
नमक छिड़कते थे।
एक दिन इस बच्चे की
बत्ती जल गई। उसने सोचा कि वह एक पंथ दो काज करेगा। वह ऐसा कोई उपाए
करेग कि वह और पैसा कमा पाए और इस पैसे से वह पाठशाला जाएगा। हर दिन वह हाथ-पैर
मारता था और थोड़ा-बहुत पैसा कमाता था लेकिन उसके जैसे और बहुत से अनपढ़ बच्चे
भी थे जो उससे बड़े भी थे और शक्तिशाली भी। ये बच्चे इस बच्चे के कमाए पैसे चुरा लेते
थे। इस कारण उसे हर दम कान खड़े रखकर रहना पड़ता था।
एक दिन उन बड़े बच्चों
ने इसके पैसे लूट लिए । उन्होंने वह जगह ढूँढ ली जहाँ उस छोटे बच्चे ने अपने कमाए हुए
पैसे जमा करके रखे थे। छोटे बच्चे को जब पता लगा कि उसके कमाए सारे पैसे चुरा लिए गए
हैं तो वह फूट-फूट कर रोया। दो घंटे बाद उसने उन बड़े बच्चों को देखा
जो उसको धमका रहे थे। उसने उनसे पूछा कि उन्होंने यह कैसे ढूँढा और वे हँसते-हँसते
बोले कि यह तो हमारे बाएँ हाथ का खेल है। अंत में उसे अपना पैसा वापिस
न मिला। इस बच्चे का कोई पिता नहीं था। माँ दिन-रात काम करती थी और किसी तरह वह थोड़े
पैसे कमाती थी। कई बार दोनों को खाली पेट रहना पड़ता था। बेचारे बच्चे के पेट
में चूहे दौड़ते थे। मगर जिस दिन उन्हें अच्छा खाना मिलता था तो वे दोनों घी
के दिए जलाते थे।
एक दिन इस छोटे बच्चे
के चाचा उनके गाँव में रहने की सोच में थे। एक दिन पहले वे रेलगाड़ी से पहुँच गए। वे
तो ईद का चाँद जैसे इससे ही मिलने आए थे। उसके चाचा एक अच्छे दफ्तर में
काम करते थे और वहाँ अच्छा पैसा कमाते थे। जब वह इस गाँव में रहने आया तो उन्होंने
अपने भतीजे को पाठशाला पढ़ने-लिखने भेजा।
हर दिन वह छोटा बच्चा
कुछ न कुछ नया सिखाता था। जब उसने पढ़ना-लिखना सीख लिया तो वह तो किताब का कीड़ा
बन गया। इस छोटे बच्चे ने अपने चाचा को सारी कहानी जो पाठशाला में जाने से पहले बताई
तो चाचा ने दाँतो तले उँगुली दबाई। मगर उसकी कहानी सच्ची थी क्योंकि
उसने राई का पहाड़ नहीं बनाया था। उस बच्चे के हवाई किले जो वह हमेशा
बनाया करता था, वह
सब सच्चे हो गए। चाचा ने उसे सब कुछ भूलकर खुश-खुश रहने को कहा ।
15. (वरुण एस ए)
एक गाँव की पाठशाला
में दो लड़के थे। एक लड़के का नाम राम था और दूसरे लड़के का नाम श्याम था। श्याम दो बार
परीक्षा में फेल हो गया था इसलिए अब भी वह सातवीं कक्षा में पढ़ता था जब कि श्याम की
उम्र चौदह साल की थी। राम भी उसी की उम्र का था। राम श्याम से बहुत अलग था। राम एक
किताब का कीड़ा था। सब लोग उसे बुद्धिमान कहते थे। श्याम हाथ-पैर
मारकर पढ़ाई करता था पर फिर भी उसको कुछ समझ में नहीं आता था।
एक दिन जब श्याम के
पेट में चूहे कूदने लगे तो वह डाइनिंग हॉल में आया। राम तो ईद
का चाँद हो गया था क्योंकि वह इतने दिनों से स्कूल नहीं आ रहा था। इसलिए श्याम
उसकी मेज़ पर जाकर बैठ गया ताकि वह आज उससे इतने दिनों बाद बातें कर सके। राम और श्याम
एक दूसरे को देखकर खुश हो गए और बातें करने लगे। श्याम ने उससे पूछा,"तुम्हारी सफलता का रहस्य क्या
है?" राम को श्याम का यह प्रश्न समझ न आया क्योंकि वह नहीं
जानता था कि इसका क्या जवाब दे इसलिए उसने उसे इसका कोई जवाब नहीं दिया। श्याम सोचने
लगा कि राम इतना बुद्धिमान है पर वह इतने आसान प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाया।
एक महीने के बाद आठवीं
और सातवीं कक्षाएँ एक साथ सैर पर जा रहीं थीं। वे उत्तर भारत के किसी गाँव में जा रहे
थे। यह गाँव एक नदी के किनारे पर स्थित था। सब लोग उस गाँव में पहुँचे। एक दिन सब लोग
घूमते-घूमते एक सरोवर के पास पहुँचे। कुछ लोग तैरने लगे तो कुछ सरोवर के पानी में अपनी
टाँगें डालकर बातें करने लगे। राम को तैरना नहीं आता था। इस कारण जब भी वह कोई सरोवर
या नदी को देखता तो पानी को देख उसका कलेजा दहल जाता था। एक दिन राम
एक सरोवर में गिर गया और वह डूबने लगा। जब श्याम ने राम को डूबते देखा तो उसने दाँतों
तले उँगुली दबाई। श्याम ने पलक झपकते ही सरोवर में छलाँग मारी और राम को बचा
लिया ऐसे राम बाल-बाल बच गया। अब राम को श्याम के प्रश्न का उत्तर भी
मिल गया। उसे समझ में आ गया कि सब लोग अलग-अलग क्षेत्र में बुद्धिमान हैं जैसे कि राम
पढ़ाई में बुद्धिमान है पर श्याम तैरने और किसी डूबते को बचाने में साहसी होने के साथ-साथ
बुद्धिमान भी है। उसने श्याम के प्रश्न का यही उत्तर दिया। इस घटना के बाद राम और श्याम बहुत अच्छे दोस्त
बन गए और पाठशाला के प्रधानाचार्य ने खुश होकर श्याम को उसकी वीरता और निडरता पर एक
इनाम दिया क्योंकि उसने अपनी जान को हथेली पर रखकर अपने दोस्त की जान
बचाई थी।