मैं वैली स्कूल में पढ़ाती हूँ । यहाँ पर मिडिल स्कूल और हाई स्कूल की कक्षाएँ लेती हूँ । मिडिल स्कूल के छात्र-छात्राओं ने कई विषयों पर अवतरण लिखे जो निम्नलिखित हैं । इन अवतरणों को पाठ्य सामग्री की तरह उपयोग कर सकते हैं । या, फिर प्रश्नों की रचना करके अपठित गद्यांश की तरह भी उपयोग कर सकते हैं । या, इन अवतरणों को पढ़कर बच्चों को चित्र के द्वारा इन्हें समझाने को कहा जा सकता है । आशा है कि यह विषय सामग्री उपयोगी सिद्ध होगी ।
मुहावरों पर कहानी
लेखन (शनाया कपूर,कक्षा 8)
दिल्ली में एक गाँव
था । यह गाँव सुंदरता और हरियाली से भरा हुआ था । इस गाँव में एक किसान रहता था। वह
अंधेरे घर का उजाला था । इसलिए वह एड़ी चोटी पसीना एक करके काम करता था अपने घर को संभालने
के लिए। पूरा दिन, खेत
में काम करता-करता वह थक जाता। ऐसा ही दिन था, पर अचानक किसान
ने घर लौटने पर देखा कि उसका बैल गायब हो गया था । वह बैल को ढूँढने लगा । कोने-कोने
में देखने पर, सब जगह ढूँढने पर भी उसे बैल नहीं मिला । किसान
बहुत उदास था ।
दूसरे दिन, किसान घटना भूलकर वापस काम पर गया,
खेत में काम करना । घूप में बहुत काम करने से वह थक गया और घर लौटा ।
घर में उसने देखा कि उसका दूसरा बैल भी गायब हो गया था । यह बैल भी उसने ढूँढा पर वह
उसे कहीं भी न मिला । किसान के हाथ-पाँव फूलने लगे, वह डर गया
था । एक के बाद एक जानवर जो गायब हो रहे थे ।
अगले हफ्ते, वह अपने पड़ोसी के यहाँ गया । किसान
अपने पड़ोसी से इस घटना के बारे में बात करने लगा। पड़ोसी चुपकर बैठा था, और सुन रहा था । वह बोला," परेशान मत होना,
दोस्त। फिक्र मत कीजिए, हम इस चोर को ज़रूर पकड़ेंगे।"
किसान वापिस घर गया और अपने दोस्त की बात मानकर आराम से सो गया ।
दूसरी रात, किसान ठीक से सो नहीं पा रहा था
। बार-बार सोचता रहा," अरे! मुझे तो छठी का दूध याद आ गया,
मैंने क्या गलत किया था जो यह सब सहना पड़ रहा हूँ?" अचानक एक ज़ोरदार आवाज़ बाहर, खेत से आई। किसान धीरे-धीरे
दरवाज़े की ओर चलने लगा । फिर से आसमान सिर पर उठाने वाली आवाज़ ने किसान को डरा दिया
। जल्दी वह बाहर भागा और वहाँ उसके खेत में दो बकरियाँ साथ में लिए उसका, पड़ोसी, उसका दोस्त खड़ा था। पहले किसान को कुछ समझ नहीं
आया पर कुछ देर के बाद उसे सब साफ दिखाई दिया । उसका खून खौलने लगा और वह अपने पड़ोसी
पर बिना सोचे-समझे चिल्लाने लगा । पड़ोसी अथवा चोर पानी-पानी हो गया।
उसी वक्त, पड़ोसी ने उसे पीठ दिखाई और फिर
कभी वापिस नहीं आया । अगले दिन, किसान खेत में गया तो अपने खोए
हुए जानवरों को देखकर लट्टू हो गया । पर वह उदास भी था क्योंकि चोर उसका दोस्त था और
वह उसकी आँखों से गिर चुका था ।
मुहावरों पर कहानी
(ईशा गांगुली, कक्षा 8)
एक गरीब मोची अपनी
पत्नी के साथ सोहनपुर गाँव में रहता था । उसे बच्चों का बहुत शौक था परन्तु कुछ शारीरिक
कारणों की वजय से उसकी पत्नी माँ नहीं बन सकती थी । दोनों ने बहुत पूजा पाठ किया व
मंदिरों में जाकर भगवान से प्रार्थना की। आखिर एक दिन पत्नी की गोद भरी। दोनों बहुत
खुश थे जब उनका पुत्र मोहन इस दुनिया में आ पहुँचा । वह अपने माता-पिता के अंधेरे घर
का उजाला था । मोची और उसकी पत्नी ने आकाश-पाताल एक करके मोहन को पाला पोसा ।
उसे अंग्रेजी मीडियम
पाठशाला में भरती किया। पाठशाला में दूसरे बच्चों अमीर घरों से थे और मोहन एक साधारण
मोची का बेटा था । इस वजह से सभी दूसरे बच्चे मोहन को चिढ़ाते थे और मोहन पानी-पानी
हो जाता था । परन्तु मोहन ने इन सब बेकार बातों को भूलकर अपनी पढ़ाई में ध्यान दिया
। वह दिन-रात कोल्हू के बैल की तरह अपने काम में डूबा रहता था ।
मोहन की पाठशाला नदी
के पार थी । नदी पर एक पुल बहुत पुराना था। एक दिन खूब बरसात हुई और नदी अपनी सीमा
से बाहर बहने लगी । जैसे ही मोहन पुल पर चढा, वह फिसला और नदी में गिर गया । मोहन चिल्लाया," मुझे बचाओ ! मुझे बचाओ! कोई मेरी मदद करो ! मैं डूब जाऊंगा ! बचाओ!" एक
मछुआरे ने उसकी पुकार सुनी। वह अपनी जान हथेली पर रखकर नदी में कूदा, और मोहन को बचाया। परन्तु मोहन के फेफड़ों में पानी अंदर गया और मोहन बेहोश
हो गया था । मछुआरे के हाथ-पाँव फूल गए।
वह मोहन को अपने कंधे
पर उठाकर नज़दीकी हस्पताल में ले गया । फिर उसने मोहन के माँ-बाप को संदेशा भेजा । हस्पताल
होने के कारण सब नर्स और डॉक्टर व्यस्त थे और किसी ने मछुआरे की मदद नहीं की । मछुआरे
का खून खौला । उसने फिर आसमान सिर पर उठाया । तभी एक डॉक्टर की नज़र मछुआरे पर पड़ी और
उसने तुरन्त मोहन का इलाज शुरु किया । डॉक्टर ने मोहन के फेफड़ों से पानी निकाला और
मोहन की आँखें खुलीं । तब मछुआरा बहुत खुश हुआ और मोहन के माता-पिता को यह बताया ।
मोहन बड़ा होकर, एक अध्यापक बना। उसने जीवन में
कभी भी हार न मानी और अपनी छोटी जाति पर विचार न किया ।
मुहावरों पर कहानी (अवन्ती, कक्षा 8)
एक सैनिक था जिसका
नाम राम था। वह एक निशानेबाज था । अपने क्षेत्र में वह बहुत निपुण था । निपुण बनने
के लिए वह आकाश-पाताल एक करके अभ्यास करता । कुछ महीने बाद उसे सरहद से बुलावा आया
। पत्र पढ़ने के पश्चात उसने सिर पर कफन बाँधकर सरहद जाने का निर्णय किया । सारे जवान
खून-पसीना एक करके भारत की रक्षा करने में लग गए ।
एक रात चौकी की पहरेदारी
के वक्त उसकी आँख लग गई और वह सो गया । जब वह उठा तो उसे पता चला कि शत्रु के जवानों
ने धावा बोल दिया है। यह देखकर वह पानी-पानी हो गया क्योंकि उसकी लापरवाही की वजह से
शत्रुओं ने चोटी पर कब्ज़ा कर लिया था । यह सुनकर सब जवानों का खून खौलने लगा और उन्होंने
राम पर अंगारे बरसाए । वह तो पहले ही अपनी आँखों से गिर गया था । इसलिए वह एक शब्द
भी न बोला । एक साल बाद उसे युद्ध में शामिल होने का अवसर मिला । उसने यह सोचा कि वह
यह साबित कर देगा कि वह भी अन्य सिपाहियों की तरह भारत की अंधे की लकड़ी है। देर रात
गए राम ने कुछ दस सैनिकों के साथ शत्रुओं के शिविर पर धावा बोल दिया । काफी रात हो
चुकी थी इसलिए कई सैनिक सो रहे थे । इसी का फायदा उठाकर राम ने अपने ही हाथ से बनाए
हुए बम्ब को शत्रुओं के शिविर में फैंक दिया और उनकी ईंट से ईंट बजा दी।बम्ब के फटने
पर सब जगह आग लग गई और हाहाकर मच गया । सारे शिविर जलकर इधर-उधर गिरने लगे । शत्रुओं
को काफी हानि पहुँची । इस जलते हुए शिविर में से एक लोहे का खम्बा राम के दोस्त पर
आ गिरा । उसी क्षण एक ज़ोर की आवाज़ सुनाई दी और राम अपने दोस्त पर आ गिरा । उसी क्षण
एक ज़ोर की आवाज़ सुनाई दी, और
राम ने अपने दोस्त को तो बचा लिया पर खुद जल गया । इस दुर्घटना में ही उसकी जान भी
गई और वह शहीद हो गया । इस तरह राम ने अपने भारत का सिर ऊँचा कर दिया ।
लकड़हारा (आरती, कक्षा 8)
एक दिन मैंने अपने
मित्रों के साथ जंगल जाने की सोची । दूसरे दिन ही हम सब ने मिलकर जंगल जाने की तैयारी
की । अपने साथ हमने बहुत कुछ लिया जैसे कि खाने का सामान, पानी, मेरा
कैमरा आदि ।सब सामान बाँधकर पास के जंगल की ओर चल पड़े । जब मेरे माता-पिता ने सुना
कि हम सब जंगल की ओर चल पड़े । जब मेरे माता-पिता ने सुना कि हम सब जंगल की ओर जा रहे
हैं तो वे बहुत आग बबूला हो गए लेकिन हमने उनकी बात को अगर मगर किया और अपनी यात्रा
पर चल पड़े ।
जब हम जंगल से गुज़र
रहे थे तो हमने वहाँ बहुत ही सुन्दर पेड़-पौधे, चिड़ियाँ, कीड़े-मकोड़े देखे । चारों तरफ हरियाली
और घना जंगल देखकर मेरे पाँव धरती पर नहीं पड़ते थे । उसी समय हमें तरह-तरह के जानवरों
की आवाज़ें सुनाई दीं । जानवरों की आवाज़ें सुनकर हमारे हाथ पाँव फूल गए । लेकिन हम जंगल
में प्रकृति और जानवरों को देखते ही आए थे, इसी लिए जान हथेली
पर रखकर हम आगे बढ़ते रहे ।
चलते-चलते हम लोग
थक गए थे और थोड़ा आराम चाहते थे क्योंकि हम सब के पेट में चूहे कूद रहे थे । इसलिए
हमने एक पेड़ के नीचे अपनी चादर बिछाकर खाने का सामान निकाला और खाना शुरु कर दिया ।
जब हम खाना खा रहे
थे कि अचानक बहुत सारे बंदर उसी पेड़ पर आकर बैठ गए और हमारे खाने को देखकर तरह-तरह
की आवाज़ें निकालने लगे । इतने सारे बन्दरों को देखकर लगा कि हमारे सिर पर पहाड़ टूट
पड़ा है ।
पाद में ही एक लकड़हारा
लकड़ी काट रहा था । हमने उससे मदद माँगने के लिए आवाज़ लगाई क्योंकि वह लकड़हारा रोज़ जंगल
में आता तो वे सारे बन्दर उसके मित्र बन गए थे । हमारी आवाज़ सुनकर वह तुरन्त मदद के
लिए आ गया था और उसने बन्दरों से उनकी भाषा में बात की। उसकी बातचीत सुनकर सारे बन्दर
दुम दबाकर भाग गए ।
हमने लकड़हारे का बहुत
धन्यवाद किया और उसे अपने साथ खाना भी खिलाया । खाने के दौरान हमने लकड़हारे के बारे
में पूछा । तब उसने बताया कि वह एक गरीब लकड़हारा है। वह जंगल से लकड़ियाँ काटकर शहर
ले जाकर बेचता है। वह एड़ी चोटी का पसीना एक करके अपना और अपने परिवार का गुज़ारा करता
है ।
देर बहुत हो चुकी
थी इसलिए लकड़हारा ने हम लोगों से कहा कि हम सबको अब घर वापिस लौटना चाहिए । चलते-चलते
हमने फिर से लकड़हारे का बहुत धन्यवाद किया क्योंकि उसने हमें बन्दरों की टोली से बचाया
था और हम पर कोई आँच न आने दी थी ।
लकड़हारे और जंगल से
विदा लेकर हम सब सुरक्षित घर पहुँचे । हम सब को सुरक्षित देखकर हमारे माता-पिता घोड़े
बेचकर सोए ।
मुहावरों पर कहानी
(अमूल्या, कक्षा 8)
मैं बहुत लाल-पीला
हुई जब हुआ कि मेरी पाठशाला हमारे गाँव से दो गाँव दूर जा चुकी थी। बच्चे कैसे इतनी
दूर चलकर नदी को पार कर चल सकते थे ? ऐसा लगा जैसे शिक्षकों ने हम सबको चकमा दिया है। गर्मियों की
छुट्टियों के बाद यह बड़ा बदलाव हो गया और हमारे शिक्षकों ने आँखें फेरकर हमें पीठ दिखा
दिया ।
बीस साल पहले जब गाँव
वाले लड़कियों को स्कूल भेजने के मामले में अगर मगर किया करते थे तब कुछ लोगों ने मिलकर
एक छोटा-सा गुप्त स्कूल बनाने के लिए काम किया । पिछले कई सालों से हमारा स्कूल काफी
मशहूर हो गया था । धीरे-धीरे जो स्कूल के खिलाफ थे , वे भी स्कूल की प्रगति पर लट्टू हो गए थे ।
हमने स्कूल की उन्नति
के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगाया और गाँव के सभी लोगों ने हमारी तारीफ की । पर स्कूल के
दूर जाने से हम बच्चों को छठी का दूध याद आ गया । मुख्य अध्यापक एक अच्छे और समझदार
आदमी थे। मगर कुछ बातों के लिए आसमान सिर पर उठाते थे।
पुराना स्कूल देखने
के लिए मैं निकल पड़ी। मेरे हाथ-पाँव फूल गए क्योंकि मैं अपने स्कूल को बुरी हालत में
नहीं देख सकती थी। हमारे अध्यापक नेक इंसान थे । मगर ऐसा लगा जैसे उनकी अक्ल घास चरने
गई थी। स्कूल की तरफ कदम बढ़ाते हुए मेरा कलेजा मेरे मुँह में आ गया । इतना आसान काम
आज नामुमकिन लग रहा था जैसे तारे तोड़ लाने वाला काम हो । सड़क के मोड़ के बिल्कुल बाद
मुझे मेरा स्कूल दिखाई दिया । मगर स्कूल की जगह टूटी हुई इमारत ढेर में पड़ी थी जैसे
किसी ने ईंट से ईंट बजाकर उसे गिरा दिया हो ।
मैं घर जाकर फूट-फूट
कर रोई क्योंकि मेरी ज़िंदगी, मेरा प्यार, मेरा स्कूल अब सिर्फ ईंट के बिखरे टुकड़े
रह गए थे । जब मैं अगले दिन सुबह उठी तो मेरे मन में एक नया विचार उभरकर आया । मैंने
अपनी सहेलियों के घर जाकर सबको पाँच बजे नदी के किनारे मिलने के लिए कहा । आखिर में,
मैं मेरी सबसे खास सहेली पारुल के घर गई । "मैं तुम सबको क्यों
मिलने के लिए आऊँ?" उसने पूछा । जब तुम नदी के किनारे आओगी
तो समझ जाओगी, मैंने उत्तर दिया,"ठीक
है।" पारुल कुछ समय सोचकर बोली ।
शाम के पाँच बजे हम
सब नदी के किनारे इकट्ठा हुए । ठंडी हवा के झोंके चल रहे थे । मैं तो डरी हुई-सी थी, थोड़ी परेशान मगर मैं इस बात में
मेरे हथियार नहीं डालने वाली थी। लंबी साँस लेते हुए मैंने कहानी शुरु किया,"
आप सब तो जानते हैं कि अब हमारा स्कूल दूर जा चुका है।" यह सुनकर
सभी लड़कियों ने चिल्लाना शुरु किया । उनकी आँखें अंगारे उगल रहीं थीं । मैंने मेरी
बात जारी रखी," मेरा विचार है कि हम सबको मुख्य अध्यापक
के घर के सामने जाकर धरना करना चाहिए ।" यह सुनते ही सन्नाटा छा गया । पर कुछ
ही क्षण में सभी ने खुशी से चिल्लाना शुरु किया ।
तमाशा अगले दिन शुरु
हुआ। हम पहुँचे मुख्याध्यापक के घर । हम सबने शोर मचाकर पूरा आसमान सिर पर उठा लिया
। हम अपने निर्णय पर अड़े रहे । कुछ ही हफ्तों में हमारे गाँव में एक नयी इमारत खड़ी
हुई, यह था हमारा नया स्कूल!
जब मैंने पहली बार खाना बनाया (पूज्या, कक्षा 6)
जब मैंने पहली बार
खाना बनाया तब मैं करिब छ: साल की थी । मैं अपने मामा और पिता के लिए खाना बना रही
थी। जब वे शाम को सो रहे थे । मैं उनको सरप्राइज देने के लिए उनके
लिए खाना बना रही थी। मैंने खाने में "इमली की लोली पोप", सलाद और नीम्बू का शरबत बना रही
थी। मुझे बहुत मज़ा आया अकेले खाना बनाने में ।
मैंने पहले इमली की
लोलीपोप बनाई। मुझे इमली के बीज निकालने में बहुत मुश्किल हुई और देर भी बहुत लगी।
फिर मैंने सलाद बनाया । पर मुझे सब्ज़ियाँ ढूँढने में भी मुश्किल हुई । सब्जियाँ काटते
वक्त मेरी उंगली भी कट गई । सब्जियों का आकार खराब था, उसे मैंने काटकर ठीक कर दिया ।
मैंने शलगम काटे, गाजर कद्दूकस की, खीरा
अच्छी तरह से छीला और काटा । आखिर में मैंने टमाटर छोटा-छोटा काटा । फिर सबको एक सुंदर-सी
प्लेट में काट दिया ।
फिर मैंने नीम्बू
का शरबत बनाया । मुझे नीम्बू निचोड़ने वाली चीज़ नहीं मिली पर मैंने नीम्बू हाथ से ही
निचोड़ लिया और पानी डाला । फिर ऊपर से नमक, चाटमसाला छिड़क दिया और सब को अच्छी तरह से मिला दिया । ऐसे मेरे
सारे पकवान तैयार हो गए।
मेरे माता और पिता
को खाना बहुत पसन्द आया ।
बाल दिवस (जाह्नवी, कक्षा 7)
बाल दिवस को दुनिया
में बहुत सारे देश मनाते हैं। इस दिन को हर देश अपने देश के बच्चों को प्रेम व स्नेह
देने के लिए इसे मनाते हैं । हर देश के अलग-अलग दिनों पर इसे मनाता है। हम भारत में
नवम्बर १४ पर "बाल दिवस" मनाते हैं। नवम्बर १४ को हमारे देश के पहले प्रधानमंत्री
जवाहरलाल नेहरू की जन्मदिन था। जवाहरलाल नेहरू जी अचकन पहनते थे और हमेशा गुलाब का
फूल भी लगाते थे । वे बच्चों कोकहानियाँ सुनाते थे । जवाहरलाल नेहरू जी ने गांधी जी
के साथ भारत के लिए अंग्रेजों से लड़ाई की। जब भारत को मुक्ति मिली तो नेहरू जी हमारे
देश के पहले प्रधानमंत्री बने। नेहरू जी बच्चों को बहुत प्यार करते थे। इसी कारण हम
उनके जन्मदिन पर "बाल दिवस" मनाते हैं।
पूरे देश में हम बच्चों
के लिए मज़ेदार दिन है। पाठशालाओं में अध्यापक/अध्यापिका और स्कूल के सभी लोग उस स्कूल
में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिए एक कार्यक्रम रखते हैं ।
हमारे स्कूल में हम
बाल दिवस पर बहुत मज़ा करते हैं। पूरे दिन हम केवल खेलते हैं । खाने के समय में हमारे
लिए रसोई घर में अच्छे खाने और मिठाइयाँ बनाई जाति हैं। दोपहर में हम एक चलचित्र देखते
हैं अथवा हमारे लिए शिक्षक/शिक्षिकाएँ एक मनोरंजक कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं।
मुझे बाल दिवस पसन्द
है क्योंकि इस दिन पर हम बच्चे देश पर राज्य करते हैं । हमें सारा संसार बधाई देता
है। पर मुझे यह भी पता है कि देश में बहुत से बच्चों को अच्छी तरह से खाना-पीना भी
नहीं मिलता है। मैं चाहती हूँ कि इस वर्ष से हम इन बच्चों का पौष्टिक भोजन दें और इनके
आने वाले कल में इनकी मदद करें।
चिड़ियाघर (अजय, कक्षा 6)
मैं २०१२ में सिंगापुर
ज़ू गया था । मैं अपने परिवार के साथ गया था। वहाँ हमने बहुत जानवर देखे। लम्बे-लम्बे
ज़िराफ, बड़े शेर, चीता, बहुत बड़ा हाथी, लम्बे साँप,
बन्दर, लंगूर, लोमड़ी आदि
। हमने बहुत-से पक्षी भी देखे जैसे कि सुन्दर मोर, चिड़ियाँ,
बतख, तोते, कबूतर आदि । मुझे
यह ज़ू बहुत अच्छा लगा और मुझे वहाँ फिर से जान है। हमको बहुत मज़ा आया क्योंकि वहाँ
इतने सारे पक्षी थे । ज़िराफ की लम्बी गर्दन, बड़े-बड़े शेर और इतने
सारे साँप सब कुछ बहुत पसन्द आया ।
हम एक साँप घर में
भी गए और मुझे बहुत अच्छा लगा क्योंकि वहाँ बहुत सारे अलग तरह के साँप थे और बहुत लम्बे-लम्बे
। उस साँप गर में बहुत-से साँप थे जैसे कि पाइथन, कोबरा, चूहा साँप आदि। पर सबसे अच्छा था-
तोता। वहाँ एक बड़ा पक्षी भी था, उसका नाम था-ओस्ट्रिच अथवा शुर्तुर्मुग,
वह शेर से भी बड़ा था। मैंने उसके साथ बात भी की। मैं फिर से वहाँ जाना
चाहता हूँ।
मेरा देश (यश, कक्षा 7)
मेरा देश का नाम भारत
है। हमारी मातृभूमि भारत है। हिमालय हमारे देश के उत्तर दिशा पर खड़ा है। हमारे देश
का दक्षिणी भाग तीन सागरों से घिरा हुआ है। इन तीन सागरों के नाम हैं- बंगाल की खाड़ी, अरब महासागर और हिन्द महासागर।
कई वर्षों तक भारत अंग्रेजों का गुलाम रहा । उन्नीस सौ सैंतालीस में हमें आज़ादी मिली।
हमारे देश का गणतंत्र दिन "छब्बीस जनवरी" को मनाया जाता है और स्वतंत्रता
दिन "पन्द्रह अगस्त" को मनाया जाता है।
हमारे देश में बहुत
ज़्यादा भाषाएँ हैं। हमारे देश में एक हज़ार छ: सौ पचास भाषाएँ हैं। उनतीस राज्य हैं
जिनमें ये भाषाएँ बोली जाती हैं और इन उनतीस राज्यों में हिन्द, बौद्ध, सिक्ख,
जैन, पारसी, मुसलमान,
क्रिस्तानी धर्म के लोग रहते हैं। हमारे देश का राष्ट्रीय फूल
"कमल", राष्ट्रीय फल "आम", राष्ट्रीय भाषा "हिन्दी", राष्ट्रीय गीत
"जन गन मन" और राष्ट्रीय चिह्न "अशोक स्तम्भ" है ।
सालों पहले हम लड़ते
थे लेकिन आज हम दोस्त बनकर रहते हैं। हमारे देश में बहुत सारी नदियाँ भी बहती हैं-गंगा, यमुना, नर्मदा
और कावेरी । यह सब हमारी पवित्र नदियाँ हैं । हमारे देश में बड़े पर्वत हैं जैसे कि-कुद्रेमुख,
कंचनजंघा, हिमालय आदि। बहुत सारे महापुरुषों का
जन्म इधर हुआ था जैसे गांधी जी जो अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़े। चाचा नेहरू जो आज़ाद भारत
के पहले प्रधानमंत्री बने। हमारे देश के अन्य प्रसिद्ध नेता हैं-जवाहर लाल नेहरू,
इन्दिरा गांधी, डॉक्टर मनमोहन सिंह , बाबा साहेब अम्बेडकर आदि। इस साल यानि कि दो हज़ार चौदह के प्रधानमंत्री हैं-
नरेन्द्र मोदी।
भेड़िया और मेमना (पतंजलि, कक्षा 7)
एक दिन एक मेमने का
रेवड़ घास चरने जा रहा था । एक मेमने ने कुछ अज़ीब देखा । वह एक जंगल में था। वह उस अज़ीब
चीज की ओर चला पर जब वह वहाँ पहुँचा तब उसे पता चला कि वह एक छोटा-सा पेड़ था जो हिल
रहा था । उसने पीछे मुड़कर देखा तो उसे पता चला कि वह अपने रेवड़ से बिछुड़ गया था ।
मेमने रेवड़ को ढूँढने
लगा पर वह और भी घने जंगल में चला गया । मेमने को कुछ देर बाद पता चला कि वह रेवड़ से
पूरी तरह बिछड़ गया । वह रास्ता भूल गया है। मेमना बहुत उदास हुआ। तभी वहाँ एक भेड़िया
आया और उसने मेमने को खा जाने की धमकी दी । मेमना ने थोड़ी देर सोचकर उसे कहा," मुझे मारने से पहले आप मेरी
एक इच्छा को पूरी करें । मैं चाहता हूँ कि आप गाएँ और मैं नाचूँ।" भेड़िए ने बहुत
देर तक सोचा और फैसला लिया कि वह गाएगा।
भेड़िया गाना गाने
लगा और मेमना नाचने लगा। कुत्तों का झुंड भेड़िये का गान सुनकर दौड़ा चला आया । वे भेड़िए
का पीछा करने लगे और मेमने की जान बच गई। उन कुत्तों में से एक कुत्ते को वह जानता
था । मेमने ने उस कुत्ते से पूछा कि क्या वह उसे उसके रेवड़ से मिला सकता है।
" उस कुत्ते ने "हाँ" कहकर मेमने को रेवड़ के पास ले गया। वह कुत्ते
को धन्यवाद कहते हुए रेवड़ के बीच में चला गया। उसने अपनी पूरी कहानी अपने रेवड़ को सुनाई।
वे सब बहुत खुश थे कि वह बच गया । अगले दिन उसे वही कुत्ता मिला और मेमने से बोला कि
भेड़िए को जंगल से निकाल दिया है। उसके बाद मेमना भी बहुत उदास था क्योंकि भेड़िए के
पास रहने के लिए घर नहीं था।
मैंने होली कैसे मनाई? (रिया, कक्षा 7)
होली रंगबिरंगा और
मस्ती से भरा एक पर्व है। इस दिन सारे लोग अपने पुराने गिले-शिकवे, भूल कर गले लगते हैं और इक-दूजे
को गुलाल लगाते हैं। फाल्गुन मास क पूर्णिमा को यह त्योहार मनाया जाता है। होली वसंत
ऋतु में आती है।
होली को "रंगों
का त्योहार" भी कहते हैं। होली दक्षिणी एशिया का एक लोकप्रिय त्योहार है। इस लोकप्रिय
त्योहार के पीछे एक लोकप्रिय कथा भी है। यह लोकप्रिय कथा ऐसे है- भक्त प्रह्लाद के
पिता हरिण्यकश्यप स्वयं को भगवान मनाते थे। वह विष्णु के विरोधी थे जबकि प्रह्लाद विष्णु
भक्त था । उन्होंने प्रह्लाद को विष्णु भक्ति करने से रोका। जब वह नहीं माना तो उन्होंने
प्रह्लाद को मारने का प्रयास किया। प्रह्लाद के पिता ने आखिर अपनी बहन होलिका से मदद
माँगी। होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। होलिका अपने भाई की सहायता करने
के लिए तैयार हो गई। होलिका प्रह्लाद को लेकर चिता में जा बैठी परन्तु विष्णु की कृपा
से प्रह्लाद सुरक्षित रहा और होलिका जल कर भस्म हो गई। यह कथा इस बात का संकेत करती
है कि अच्छाई की हमेशा जीत होती है।
होली के दिन सभी एक-दूसरे
के गले मिलते हैं। बच्चे और युवा रंगों के साथ होली खेलते हैं और बड़े भी एक-दूसरे को
गुलाल लगाते हैं। होली पर बच्चे पानी में रंग मिलाकर सब पर फेंकते हैं। होली पर पिचकारि
में रंग भर कर सब को रंगबिरंगा बनाया जाता है। मैं और मेरी सहेलियाँ दूसरे लड़कों और
लड़कियों पर रंग डालते हैं । जब हम होली खेलकर घर जाते हैं। हम सब नीले, पीले, गुलाबी
आदि रंगों के होते हैं। हम सब बहुत मजे करते हैं। मेरे घर पर होली के दिन गुज़िया,
ठंडाई, नमकीन, समोसे आदि
बनते हैं और मेरी माँ सब को ये सारी वस्तुएँ देती हैं।
मुझे होली बहुत पसन्द
है क्योंकि इतने मज़े करते हैं। जब मैं छोटी थी तब से होली खेलती हूँ और खेलती रहूँगी
।
महात्मा गांधी
(आदित्य भंसाली, कक्षा 7)
हमारे प्रिय नेता
मोहनदास कर्मचंद गांधी प्रमुख राजनैतिक नेता थे। वे सत्य और अहिंसा को मानने वाले थे।
उन्हें पूरी दुनिया में "महात्मा गांधी" के नाम से जाना जाता था। महात्मा
का मतलब "महान आत्मा"। उनको सम्मान देने के लिए सब उन्हें महात्मा गांधी
कहकर पुकारते थे।
उनका जन्म २ अक्टूबर
१८६९ में हुआ था। उनका जन्म दिन भारत में "गांधी जयंती" के रूप में और पूरे
विश्व में "अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस" के रूप में मनाया जाता है। गांधी
जी भारत के सबसे लोकप्रिय नेता थे । उन्होंने भारत को आज़ादी दिलाने के लिए बहुत कार्य
किया था । उनकी सोच अलग थी। वे हिंसा को बिल्कुल नहीं मानते थे । गांधी जी सभी परिस्थिति
में अहिंसा और सत्य का पालन करते थे और सभी को यही शिक्षा देते थे।
इसी कारण उनका एक
कथन सबसे अधिक प्रचलित हुआ। वह था "बुरा मत बोलो, बुरा न सुनो और बुरा न देखो।"
इसी के आधार पर ही वे सबको शिक्षा देते थे। हम बचपन से सुनते आए हैं कि गांधी जी के
तीन बन्दरों की मूर्ति के बारे में। एक बन्दर ने अपनी आंखों पर, दूसरे ने अपने कानों पर और तीसरे ने अपने मुँह पर हाथ रखा। जिसका मतलब था कि
बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत बोलो।
आज भी महात्मा गांधी
जी का यह संदेश बहुत महत्त्व रखता है। यदि हम इस पर चले तो कई परेशानियों से बच सकते
हैं और जीवन आसान होगा ।
दशहरा (निवेदिता, कक्षा 7)
दशहरे का त्यौहार
भारत में बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। इस त्यौहार को "विजयदशमी" के नाम से भी
जाना जाता है। यह त्यौहार अश्विन मास में शुक्ला दशमी पर मनाया जाता है। माँ दुर्गा
की नौ दिनों तक पूजा करने के पश्चात दशमी के दिन यह त्यौहार मनाया जाता है। यह त्यौहार
बुराई पर अच्छाइ की जीत का प्रतीक माना जाता है। इस दिन रावण का पुतला पूरे देश भर
में जलाया जाता है।
इस दिन भगवान राम
ने राक्षस रावण का वध कर माता सीता को उसकी कैद से छुड़ाया था और सारा समाज भयमुक्त
हुआ था । रावण को मरने से पूर्व राम ने दुर्गा की आराधना की थी । माँ दुर्गा ने उनकी
पूजा से प्रसन्न होकर उन्हें विजय का वरदान दिया था । रावण दहन आज भी बहुत धूमधाम से
किया जाता है। दुर्गा की मूर्ति की स्थापना कर पूजा करने वाले भक्त मूर्ति विसर्जन
का कार्यक्रम भी बाजे-गाजे के साथ करते हैं।
भक्तगण दशहरे में
माँ दुर्गा की पूजा करते हैं। कुछ लोग व्रत एवं उपवास भी करते हैं। पूजा की समाप्ति
पर पुरोहितों को दान-दक्षिणा देकर संतुष्ट किया जाता है। भारत के सभी स्थानों में अलग-अलग
रूप में दशहरा मनाया जाता है। कहीं यह "दुर्गा विजय" के प्रतीक स्वरूप मनाया
जाता है तो कहीं नवरात्रों के रूप में। बंगाल में दुर्गा पूजा का विशेष आयोजन किया
जाता है। इस त्यौहार उत्तर धारा में "रामलीला" स्थान-स्थान पर होती है। इस
के द्वारा सब लोगों को "राम" के कार्य के बारे में जानकारी मिलती है।
"राम" जैसे "आदर्श महापुरुष" को आज भी सब याद करते हैं। यह त्यौहार
हर्ष और उल्लास का प्रतीक है। इस दिन मनुष्य को अपने अंदर व्याप्त पाप, लोभ, मद,
क्रोध, आलस्य, चोरी आदि भावनाओं
को समाप्त करने की प्रेरणा मिलती है।
यह त्यौहार जीवन में
हर्ष और उल्लास भर देता है। साथ ही यह जीवन में कभी अहंकार न करने की प्रेरणा भी देता
है।
किसान (ईशा, कक्षा 7)
किसान गाँव में रहते
हैं। उनके घर मिट्टी और सूखी घास से बने होते हैं। वे अपने घर में कई तरह के जानवर
रखते हैं जो उनको सहायता देते हैं। बैल और गाय उनको खेती में मदद करते हैं। गाय-बैल
के गोबर से वे उपले बना कर आग जलाते हैं। वे गोबर को घर की ज़मीन पर भी लगाते हैं। गायों
से उन्हें दूध भी मिलता है। मुर्गी उनको अंडे देती है और खाने के लिए माँस भी । बकरी
से भी दूध और माँस दोनों मिलता है।
किसान खेतों में बहुत
मेहनत करते हैं। पहले बैल की सहायता से हल चलाते हैं फिर बीज बोते हैं। इसके बाद खेतों
में पानी डालते हैं और बेकार तृण भी निकालते हैं। जब पौधे बड़े होते हैं तो फसल उगाते
हैं। बाद में फसल काटकर बाज़ार में बेचते हैं। ये किसान हर मौसम में बाहर काम करते हैं
चाहे गर्मी हो या सर्दी। अगर बारिश न आए तो खेत को कुएँ के पानी से जल पूर्ति करनी
पड़ती है।
किसान बहुत सीधा-साद
जीवन बिताते हैं। बहुत सारे गाँवों में बिजली नहीं होती और होती भी है तो सिर्फ दो-तीन
घंटों के लिए। इसले किसान सूरज के उगने के साथ उठते हैं और सोते भी हैं। औरतों को घर
में पानी नहीं मिलता इस कारण उन्हें कभी-कभी बहुत दूर से पानी नदी या कुएँ से लाना
पड़ता है।
किसान को हम
"अन्नदाता" कहते हैं क्योंकि उनकी मेहनत से हमें दाल, चावल, फल,
चीनी और सब्ज़ी खाने के लिए मिलते हैं। हमारी सरकार को उन्हें ज्यादा
सहायता देनी चाहिए जैसे कि अच्छी सड़कें, स्कूल, पीने का पानी और बिजली आदि। इसके अलावा सरकार उनकी ज़मीन भी ले लेती और उस पर
बड़े-बड़े अपार्टमेंट या हाईवे बनाए जाते हैं।
जब मैंने अपने लिए पहली बार खाना बनाया
(अनाभरा, कक्षा 6)
मुझे खाना खाने और
बनाने का बहुत शौक है। बचपन से मैं सबको खाना बनाते हुए देखती आई हूँ। मुझे मिठाइयाँ
बहुत पसन्द हैं शायद इसलिए मैंने सबसे पहले "चीज़ केक" बनाया। केक बनाने की
विधि मेरी मामी से मिली थी। वे मेरी माँ, दादी और मौसी की तरह ही बहुत अच्छा खाना बनाती हैं। मैंने केक
ऐसे बनाया-
सामग्री- दो अण्डे, टिन और फेंटने के लिए ।
विधि- मेरे पास केक
मिक्सर नहीं था और वैसे भी मेरी दीदी कहती हैं कि पहले केक हमेशा हाथ से बनाना चाहिए
। सबसे पहले मैंने एक कटोरी में दो अण्डे तोड़े । मैंने उसको दस मिनट तक फेंटा। फिर
मैंने पिसी हुई चीनी डाली । उसके बाद मैं लगातार बीस मिनट फैंटती रही। मैं बहुत थक
गई थी, मेरी कलाई बहुत दर्द कर
रही थी। पर मैं फिर भी फेंटती गई। मैंने वनीला एसेन्स डाला और हल्का सा हिलाया। फिर
मैंने उसमें तेल मिलाया । मैंने दो कागज़ अखबार वाले खोले और एक कागज़ में आटा,
बैंकिग पाउडर और कोको पाउडर डाला । ऐसा करते वक्त मेरे चेहरे पर भी आटा
लग गया। एक कागज़ से दूसरे कागज़ पर छलनी से यह सब छाना और यह दो-तीन बार किया ताकि सब
अच्छी तरह से मिल जाए। फिर मैंने दोनों मिक्सचर को हल्के से मिलाया दूध के साथ । फिर
मैंने बैंकिग टिन को मक्खन लगाया ताकि केक टिन में नहीं चिपके। मैंने ओवन को गर्म किया
और केक बनने के लिए उसमें रखा ।
आधे घंटे के बाद मैंने
ओवन खोला । मेरा दिल ज़ोर से धड़क रहा था । क्या यह केक ठीक बना था? मैंने ज्यादा चीनी तो नहीं डाली
ना? हर तरह के सवाल मेरे मन में उठ रहे थे। केक थोड़ा-सा जल गया
था पर उसका स्वाद बहुत अच्छा था । मैंने अपने सारे परिवार वालों को खिलाया। सब बोले
कि केक बहुत अच्छा बना था पर मुझे लगा कि अच्छा है पर मुझे अभी बहुत कुछ सीखन है। केक
अच्छा तो बना था पर पूरी तरह से ठीक नहीं बना था । खैर , यह तो
मेरी पहली कोशिश थी।
कहानी (अनाभरा, कक्षा 6)
एक बेल पर एक रसीला
तरबूज लगा था। वह बेसब्री से इन्तेज़ाम कर रहा था कि कोई उसे तोड़ेगा। बहुत देर बाद एक
बूढ़ी अम्मा उस रास्ते से गुज़री। उन्होंने उस रसीले और बड़े-से तरबूज को देख लिया। उसे
देखकर उन्होंने सोच लिया कि उन्हें वह तरबूज हर हाल में खाना था। पर अपनी उम्र की वजह
से वे बेल से उस तरबूज को नहीं छोड़ पाईं। मियाँ कुक्कड़ बूढ़ी अम्मा को परेशान देख उनके
पास गए और पूछा,"क्या हुआ बूढ़ी अम्मा? इतनी उदास क्यों लग रही हो?"
बूढ़ी अम्मा ने जवाब दिया," अरे भाई,
क्या बताऊँ मैं आपको? उस बेल पर लगे रसीले तरबूज
को मुझे खाना है लेकिन मैं उसे तोड़ नहीं पा रही हूँ।" मियाँ कुक्कड़ ने बूढ़ी अम्मा
से कहा कि उसका दोस्त धोबी का गधा एक बन्दर को जानता है जो उस रसीले तरबूज को बेल से
तोड़ सकता है। मियाँ कुक्कड़ ने धोबी के गधे को उलाया और उसे पूरी कहानी उसे समझाई। धोबी
के गधे ने कहा कि वह बन्दर को बुलाकर लाता है। पर उसने इसके लिए एक शर्त रख दी कि उसे
भी तोड़ा-सा तरबूज खाने को मिलेगा। मियाँ कुक्कड़ ने बूढ़ी अम्मा से पूछा तो अम्मा ने
हामी भर दी।
कुछ देर के बाद बन्दर
आया। उसने कहा कि वह सिर्फ एक शर्त पर तरबूज लाएगा। मियाँ कुक्कड़ ने सोचा," अरे, फिर से एक शर्त।" शर्त यह थी कि उसे रसीले तरबूज के अन्दर जो मखमली जूती
होगी वह उसकी होगी। मियाँ कुक्कड़ ने बूढ़ी अम्मा से पूछकर "हाँ" कहा। बन्दर
जल्दी से बेल पर चढ़कर तरबूज तोड़कर नीचे आया। बूढ़ी अम्मा ने कहा,"आओ, तुम सब मेरे घर आओ । मैं तुम सबको तरबूज काटकर दूँगी
और मखमली जूती भी।" वे सब बूढ़ी अम्मा के घर गए और मेज़ के आस-पास बैठकर बूढ़ी अम्म
के इन्तज़ार में बैठे रहे। बूढ़ी अम्मा एक थाली में कटा हुआ तरबूज और दूसरी थाली में
मखमली जूती लेकर आईं। उन्होंने गधे, मियाँ कुक्कड़ को तरबूज खिलाया
और खुद भी जी भरकर तरबूज खाया। बन्दर को उन्होंने मखमली जूती दी। बन्दर ने उस मखमली
जूती को महाराज को बेच दिया और बदले में बहुत-सा धन कमाया। बूढी अम्मा मियाँ कुक्कड़
की अच्छी दोस्त बन गईं क्योंकि दोनों को ही तरबूज़ खाना अच्छा लगता है।
दीपावली (गजल यादव, अम्बरा समूह)
भारत में बहुत सारे त्यौहार मनाए जाते हैं जैसे की होली, दीपावली, ईद, क्रिसमस आदि। दीपावली पूरे भारत में मनाया जाता है। मुझे दीपावली सबसे अच्छा लगता है क्योंकि इस दिन मैं घर में रंगोली बनाती हूं और सबके घर जाकर मिठाई देती हूं । दीपावली को बोलचाल की भाषा में दीवाली कहा जाता है । यह त्यौहार कार्तिक महीने की अमावस्या को मनाया जाता है । दीपावली का पहला दिन धन तेरस होता है । धनतेरस को सोना या चाँदी खरीदना शुभ माना जाता है । दीपावली को दुकाने दीये और फूलों से सजी रहती हैं । बच्चे नए कपडे और पटाखे खरीदते हैं । लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा के साथ -साथ सरस्वती जी की भी पूजा करते हैं । मुझे दीपावली में बहुत मज़ा आता है ।
टेलीविजन (गजल यादव, अम्बरा समूह)
मेरा टेलीविजन बहुत बड़ा और चौकोर है। इसका रंग काला है । मेरा टेलीविजन रिमोट कंट्रोल पर चलता है। इसमे बहुत सारे चैनल हैं जो छ: -सात भाषाओं में होते हैं। ये कई प्रकार के होते हैं जैसे की मनोरंजन, खेल, बच्चों के कार्यक्रम, समाचार , गाने, सीख देने वाले कार्यक्रम, भगवान के कार्यक्रम आदि । मेरा मनपसंद कार्यक्रम है - ड्युअल सरवाइवल जो डिस्कवरी पर आता है । इससे मुझे जंगल के बारे में सीख मिलती है । टेलीविजन पर एनीमल प्लनेट, डिस्कवरी , नेशनल ज्योग्रफिक आदि चैनलों से हमें सीख मिलती है ।
टेलीविजन के आविष्कार के कारण अधिकतर सब लोग बच्चे से बूढ़े पुरे दिन खेल -कूद और घूमने आदि को छोड़कर इस बक्से के सामने बैठे रहते हैं । लेकिन टेलीविजन को देखकर हम घर बैठे-बैठे दुनिया के समाचार जान सकते हैं ।
No comments:
Post a Comment