Tuesday, December 30, 2014

Hindi Stories written by Class 8 of THE VALLEY SCHOOL using IDIOMS

कक्षा आठ को मैं आई. सी. एस. ई  का पाठ्यक्रम न कराकर उनकी भाषा को परिपक्व करने के लिए भाषा के विभिन्न पहलुओं पर काम करती हूं जैसे कि - व्याकरण के विभिन्न मुद्दों का अभ्यास, औपचारिक और अनौपचारिक पत्र लेखन, चित्र पर निबंध (चित्र वर्णन या कहानी - २० साल से बोर्ड में आए हुए चित्रों पर), कहावतों पर कहानी (२० साल से बोर्ड में आई हुई कहावतों पर), वर्णनात्मक -विवरणात्मक -काल्पनिक निबंध, अपठित गद्यांश आदि । व्याकरण के मुद्दों में बच्चों को मुहावरों का अभ्यास भी दिया जाता है । बच्चे कहानी और निबंध लिखते समय मुहावरों का स्वाभाविक प्रयोग कर पाएं इसके लिए उन्हें कहानी लेखन करने को दिया जाता है जिसमें उन्हें अधिक से अधिक मुहावरों के प्रयोग के लिए उत्साहित किया जाता है । नीचे लिखी हुई कहानियाँ उसी प्रयोग का उदाहरण हैं । इन कहानियों को सुनाने के लिए या अपठित गद्यांश की तरह भी प्रयोग किया जा सकता है । अपठित गद्यांश के लिए अध्यापक या अध्यापिका प्रश्न बनाकर कार्य पत्रिका बच्चों को अभ्यास के लिए दे सकते हैं । आशा है कि आपको यह प्रयास अच्छा लगेगा । 

1. दो चोर  (आरती)

दिल्ली के बड़े शहर में दो चोर रहते थे- राम और मोलू। वे दोनों चोरी बहुत अच्छी तरह से करते थे। कभी भी कोई उनको पकड़ नहीं सका। रामू बहुत बुद्धिमान था और मोलू किताब का कीड़ा था। रामू बहुत मोटा था। हमेशा उसके पेट में चूहे कूदते रहते थे।
एक दिन वे दोनों सड़क पर चल रहे थे। जब दोनों ने एक बड़े घर को देखा। तो वे आश्चर्य चकित होकर उस घर को देखते रह गए। मोलू ने राम से कहा,"चलो रामू, रात में आकर घर के अंदर घुसकर कुछ न कुछ चोरी करेंगे।" रामू ने मोलू से कहा," नहीं, यहाँ घर के बाहर सिक्यूरिटी कैमरा है, हम ज़रूर पकड़े जाएंगे।" मोलू ने शान्ति से कहा," मैं कुछ बाल बाँका नहीं होने दूँगा। हम सिक्यूरिटी कैमरे से छुपकर घर में जा सकते हैं।" राम ने कहा," ठीक है, पर इससे बेहतर है कि हम "आ बैल मुझे मार" वाली बात न करें इसलिए हम पहले योजना बनाएंगे।
रात के १२:०० बजे गए थे। दोनों घर के बाहर छुप गए थे। घर के बाहर एक सिक्यूरिटी गार्ड घोड़े बेचकर सो रहा था। राम ने धीरे से सिक्यूरिटी कैमरे पर एक काला कपड़ा डाला, फिर वह और मोलू घर के अंदर घुस गए।
घर के अन्दर जाकर दोनों ने देखा कि सारे वस्त्र सोने के थे। धीरे-धीरे से दोनों ने कुछ-कुछ चीज़ें अपने थैलों में डाल लीं। राम और मोलू दूसरी-दूसरी जगह अथवा कमरे में चोरी कर रहे थे। राम टी.वी. रूम में था और मोलू रसोईघर में । खाने की चीज़ें देखकर उसे भूख लग रही थी। तो उसने एक बड़ी-सी रोटी खाई। पर यह रोटी ऊँट के मुँह में जीरा जैसे थी। तो जल्दी से उसने चार और रोटियाँ खाईं। इसी वक्त राम रसोईघर के अंदर आया और उसके थैले में बहुत कुछ था। पर खाना देखकर उसके भी मुँह में पानी भर आया। तो उसने खाना खाकर रसोईघर के मूल्यवान चाकू भी चुरा लिए। उसके बाद वह मोलू के साथ धीरे से दरवाज़े के घर से बाहर जाने लगे थे।
मोलू का पेट भर गया था और तभी अचानक उसे डकार आया। डकार की आवाज़ इतनी ज़ोरदार थी कि मालिक झट से बाहर आया। पर वे दोनों अलमारी में छुप गए थे। मालिक ने ज़ोर से पुकारा," कौन है?" रामू और मोलू चुपचाप से अलमारी में बैठे रहे। दोनों का कलेजा दहल रहा था। थोड़ी देर बाद इधर-उधर देखकर घर का मालिक वापिस सोने चला गया। राम और मोलू ने धीरे से अलमारी का दरवाजा खोला और घर के दरवाजे से धीरे से बाहर निकल गए।
उसके बाद तो गेट के बाहर जाना बाँए हाथ का खेल था। दोनों आसानी से सिक्यूरिटी गार्ड के पास से गुज़रे। सब ठीक-ठाक हुआ सिवाए एक बात के कि सिक्यूरिटी कैमरे से उन्होंने अपना कपड़ा नहीं उठाया। वे इस बात को बिल्कुल भूल गए। दोनों ने घर जाकर खुशियाँ मनाईं। तभी राम को कैमरे से कपड़ा न उठाने वाली बात याद आई। मोलू ने समाचार चैनल देखा और सुना कि टाइम्स नौ पर अरूनाभ गोस्वामी उनके बारे में ही बात कर रहा था। उनकी उंगुलियों के निशान कपड़े पर थे। यह सुनकर दोनों फूट-फूट कर रोए। थोड़ी देर बाद पुलिस ने उनके घर आकर दोनों को पकड़ लिया। अन्त में दूध का दूध और पानी का पानी हो गया। सबको पता चल गया कि वे ही दोनों चोर थे।

2. (अचिंतया)

आज स्कूल का पहला दिन है और मेरे पेट में चूहे कूद रहे हैं। साथ में मेरा कलेजा भी दहल रहा है। मुझे नए दोस्त बनाने होंगे और पढ़ाई भी करनी होगी। फिर मन में भी प्रश्न उठ रहे हैं-"क्या वहाँ अध्यापक अच्छा सिखाते हैं? क्या वहाँ फुटबॉल फील्ड होगी?" ऐसे ही ना जाने कितने प्रश्नों की भरमार मेरे दिमाग में थी। स्कूल में मेरा पहला दिन होने के कारण मेरी माँ ने घी के दीये जलाए थे। मेरे लिए अच्छा नाश्ता भी पकाया था।
स्कूल की इमारत तो ऐसे थी जैसे कि ऊँट के मुँह में जीरा क्योंकि स्कूल की इमारत १०० एकड़ ज़मीन पर खड़ी थी। इस प्रकार खुली जगह जहाँ देखो वहाँ नज़र आती थी। मैं तो यह सब देख दाँतों तले उँगुली दबा कर रह गई। अन्दर जाते-जाते मैंने कई बच्चों को देखा- हँसते हुए बच्चे, फूट-फूट कर रोते हुए बच्चे, चिल्लाते हुए बच्चे और माँ-बाप पर क्रोध दिखाते हुए बच्चे आदि।
मैं पूछ-पूछ कर अपनी कक्षा को ढूँढते हुए चलती गई। कुछ देर चलने के बाद, हाँफते, काँपते मैं अपनी कक्षा में पहुँची। अध्यापिका ने मुझे अन्दर बुलाया और एक कुर्सी पर बैठने के लिए कहा। कक्षा में सभी तरह के छात्र दिख रहे थे- किताब के कीड़े, चिकने घड़े जैसे लड़कों के बीच अपनी खिचड़ी अलग पकाती हुई एक लड़की भी दिखाई दी। अध्यापिका गणित पढ़ा रही थीं। मेरे लिए तो अंक काला अक्षर भैस बराबर हैं। गणित में मुझे कुछ समझ नहीं आता। अध्यापिका इतनी अच्छी तरह से पढ़ा रही थीं कि मानो मेरी आँखें खुल गईं। फिर इतिहास के अध्यापक पढ़ाने आए। यह लंच से पहले अथवा चौथा पीरियड था। मेरे पेट में चूहे दौड़ रहे थे इसलिए मेरा ध्यान पढ़ाई में लग नहीं रहा था। जैसे ही घंटी बजी तो मैंने बाहर दौड़कर लंच खाया और तब जाकर मेरी भूख मिटी। लंच के बाद खेल का घंटा था, हम खूब खेले। फिर अंग्रेजी के दो घंटे थे। अंग्रेजी कक्षा में तो मानो मेरा रक्त ही सूख गया। अध्यापिका ने मेरी तरफ देखकर एक के बाद एक प्रश्न पूछे। अच्छा हुआ कि घंटी बजी और मैं दौड़कर बिना साँस लिए हुए घर पहुँची। जब माँ ने पूछा कि स्कूल कैसा था तो मेरे मन में कुछ मीठा तो कुछ कड़वा स्वाद-सा था। खैर, मैंने माँ को पूरे दिन की राम कथा एक साँस में सुना दी।
अंत में माँ ने कहा कि सचमुच ही स्कूल का अनुभव मीठा-कड़वा ही होता है। मैं भी उनकी इस बात से सहमत थी और माँ के हाथों से पका नाशता खाते हुए उसी के स्वाद में डूब गई।

3. (ऐश्वर्या)

महाराष्ट्र में एक गाँव में दो लड़कियाँ रहती थीं। उस गाँव के लोगों की आँखें बहुत जल्दी ही अंगारे उगलने लगती थीं। विशेष रूप से जब भी कोई दूसरे गाँव के लोग अन्दर आते थे तो महाराष्ट्र के गाँव के लोगों को इतना गुस्सा आता था कि वह जल्दी ही धावा बोल देते। गाँव के सभी लोग काला अक्षर भैंस बराबर थे। केवल वे दो लड़कियाँ ही कुछ पढ़ी-लिखी थीं। उन दो लड़कियों के नाम अर्चना और अखिला थे। अर्चना एक सुन्दर और अच्छी लड़की थी पर अखिला उतनी अच्छी नहीं थी। अखिला हर बात का हमेशा राई का पहाड़ बनाती थी।
एक दिन गाँव में सभी लोग इधर-उधर भागने लगे। अर्चना और अखिला दाँत तले उगुँली दबायी। फिर उनको पता चला कि गाँव के लोगों ने एक भूत को देखा था और उनका रक्त सूख गया था। भूत की कहानी सुनकर अखिला का कलेजा दहल गया पर अर्चना को यह बात थोड़ी अज़ीब लगी। अखिला जल्दी ही भीड़ के साथ भाग गई। पर अर्चना भीड़ के आने की विपरीत दिशा की ओर जाने लगी।
बहुत दूर जाने के बाद अर्चना को कोई भूत दिखाई न दिया और उसको और भी अज़ीब लगा कि गाँव के सभी घर खाली थे। वापिस लौटने के लिए जब अर्चना मुड़ी तो पीछे से एक अज़ीब आवाज़ आई। उसने पीछे मुड़कर देखा तो अर्चना हैरान हुई। अर्चना ने एक भूत को देखा। पर उसको यह यकीन नहीं हुआ कि वह भूत असली था या नकली। अचानक अर्चना ने यह देखा कि वह भूत जूते पहने हुए था। फिर उसको यकीन हुआ कि वह भूत नहीं है बल्कि कोई भूत के कपड़े पहल लोगों को डरा रहा है। वह उनको डराकर उनको उनके ही घरों से भगाकर उनके घरों में चोरी करने आया है।
चोर को तो यह लगा था कि गाँव में चोरी करना बाएँ हाथ का खेल है पर अर्चना ने उसे पकड़कर पुलिस के सामने लाकर सबकी आँखें खोल दीं थीं। चोर ने शपथ ली के फिर वह कभी चोरी नहीं करेगा। चोर ने पुलिस के आगे हथियार डाल सब कुछ बता दिया था और वादा किया था कि अपनी ज़िन्दगी अच्छी तरह से और सच्चाई के रास्ते पर चलकर जीएगा ।

4. (धनंजय)

एक दिन रामपुर के गाँव में एक लड़का रहता था। उस लड़के का नाम आदित्य था। उसे फुटबॉल खेलना बहुत अच्छा लगता था। पर वह बहुत गरीब था। उसके पिताजी महीनों में २००० रुपए ही कमाते थे। पर आखिर में कोई उसे फुटबॉल सीखने देना नहीं चाहता था क्योंकि वे उसके लिए रुपए नहीं दे सकते थे।
पर एक दिन एक आदमी ने उसे फुटबॉल सिखाने में मदद की। पर उस आदमी ने कहा कि तुम्हें फुटबॉल सीखने में आकाश-पाताल एक करना पड़ेगा। फिर आदित्य ने कहा कि मैं कुछ भी करूँगा। मैं हर प्रकार हाथ-पैर मारूँगा बस आप मुझे फुटबॉल सिखाइए। इस आदमी का नाम राजू था। तब राजू ने कहा कि कल फुटबॉल फील्ड पर साथ बचे आना। अगले दिन आदित्य सात बजे फुटबॉल फील्ड पर पहुँच गया। आदित्य ने फुटबॉल सीखने में बहुत मेहनत की और एक महीने के बाद आदित्य के पिताजी को मालूम हुआ कि आदित्य फुटबॉल कोचिंग जा रहा है। गुस्से में आकर उन्होंने आदित्य को बहुत ज़ोर से थप्पड़ मारा क्योंकि वे उनकी आज्ञा बगैर फुटबॉल कोंचिग जा रहा था। थप्पड़ खाने से आदित्य फूट-फूट कर रोने लगा।
कई दिनों बाद जब आदित्य के माता-पिता बात कर रहे थे। आदित्य ने सुना कि उनकी माताजी ने पिताजी को कहा कि आदित्य को एक और अवसर दीजिए। तो आदित्य के पिता ने कहा कि कल एक मैच है जो आंध्र प्रदेश के खिलाफ के खेलने वाले हैं। यदि आदित्य की टीम जीत जाएगी तब मैं आदित्य को फुटबॉल अवश्य खेलने दूँगा। पर आदित्य की टीम हार गई तो मैं उसको कॉलेज की पढ़ाई के लिए भेजूँगा।
आखिरकार फुटबॉल मैच का दिन आ गया और आदित्य तो हवाई किले बनाता रहा कि वह एक बहुत बड़ा फुटबॉल खिलाड़ी बनेगा। उसे पूरी रात नींद नहीं आई थी।
वह सुबह समय से पहले ही उठ गया और सब खिलाड़ियों के वहाँ पहुँचने से पहले पहुँच गया। वह बहुत मेहनत से पूरी मैच में खेला इसलिए मैच में आदित्य की टीम जीती और उसे १० लाख रुपए इनाम में मिले। उसके माता-पिता फूले नहीं समाए और भविष्य में मेहनत कर एड़ी चोटी एक कर वह एक बहुत बड़ा फुटबॉल खिलाड़ी बन गया।

5. (अमूल्या)

"और छक्का!" एक आवाज़ ज़ोर से सुनाई दी। "इण्डिया जीत गई माँ" मैं उल्लास भरी आवाज़ में बोली। दस साल हो गए थे और अब यह थी भारत की पहली जीत। मेरे पेट में चूहे कूद रहे थे, मगर मैं सिर्फ भारत की जीत के बारे में सोच रही थी। पर मैं तो भारत की महिलाओं की टीम के बारे में सोच रही थी। उनकी मेहनत के बारे में, कि कैसे हाथ-पैर मारकर वे इस मुकाम तक पहुँच गयी हैं।
भारत की महिलाओं की टीम को जीत प्राप्त होने से मेरी माँ ने मुझे मिठाइयाँ खिलाईं। मैं तो पहले से ही घी के दिए जला रही थी। इसी खुशी से मैं जल्दी से सो गई और मुझे तो कल के आने का इंतज़ार था। अगले दिन, सूरज की पहले किरणें मेरे कमरे पर गिरें इसके पहले ही मैं उठ गई। मैं नहाकर, नए कपड़े पहनकर अपनी सहेली के घर गई। छोटी उम्र से ही मैं और मेरी सहेली जिसकी नाम सिंधु है, क्रिकेटर बनने का सपना देखते थे और आज भी देखते हैं । कल मुझे पता चला कि आज हमारे गाँव में राज्य स्तर पर चयन होने वाला था। मैंने सिन्धु के घर जाकर उसे यह खुशखबरी बताई। मगर सिन्धु तो किताबी कीड़ा है। सिन्धु को जितना प्यार क्रिकेट से है, उतना ही किताबों से भी है। इसलिए सिन्धु ने कहा," थोड़ी देर मेरा इंतज़ार करो, मैं इस पुस्तक को खत्म करके आती हूँ।" मैं लहू का घूँट पीकर रह गई। एक-दो पल के बाद मैं उसके कान खाने लगी और सिन्धु को जल्दी आने के लिए कहने लगी।
आखिरकार सिन्धु किताब रखकर मेरे साथ मैदान पर आयी जब हम बच्चे थे, मैं और सिन्धु स्टेट टीम में चयन होने के बारे में हवाई किले बनाते थे। हम सोच भी नहीं सकते थे कि हमारा सपना हमारे इतने करीब था। सिन्धु की बारी पहले आयी और वह दौड़कर गई। कुछ पल के बाद मैं भी मैदान के अन्दर गई। मेरा कलेजा दहेल रहा था, मगर मैं सिर्फ एक बल्ला लेकर शांति से जाकर खड़ी हो गई। गेंदबाज से चयनकर्ता ने कहा ," शुरु हो जाओ।" उसी क्षण मैंने अपनी सारी ज़िंदगी की मेहनत उस गेंद का सामना करने में लगाई और एक छक्का मारा। हर एक गेंद पर मैंने छक्का या चौका मारा। अंत में लग रहा था कि छक्के मारना मेरे लिए बाएँ हाथ का खेल था। शाम हो गई थी और चयन का परिणाम आना बाकी था। चयनकर्ता ने कहा कि मैं स्टेट टीम के लिए चुनी गई थी। जब बाहर जाकर देखा तो सिन्धु फूट-फूट कर रो रही थी। उसने कहा कि वह स्टेट टीम में नहीं चुनी गई थी। पर मेरे चुने जाने के विषय में जानकर उसने मे लोहा माना और मुझे प्यार से गले लगा लिया। मैं और सिन्धु हाथ मेंरा हाथ डालकर साथ-साथ आगे भविष्य के सपने देखते हुए घर की ओर चल पड़े।

6. हार न मानना (आर्य)

कहते हैं कि हार न मानने वाले लोग कुछ भी नहीं कर सकते हैं। इनके बारे में बहुत सारी कहानियाँ लिखी हुई हैं। ऐसी ही एक कहानी है-इराक में रहने वाले अब्दुल्ला की। अब्दुल्ला एक पंद्रह साल का लड़का था। वह एक गरीब परिवार का था और उसके लिए सब कुछ काला अक्षर भैंस बराबर था क्योंकि वह पढ़ा-लिखा नहीं था। लेकिन वह बहुत मेहनती और ताकतवर था। उसके लिए तो तीस किलोग्राम उठाना बाएँ हाथ का खेल था।
एक दिन जब अबदुल्ला अपने दोस्तों के साथ खेल रहा था। उसने दो हवाई जहाज देखे। उसे पता था कि ये हवाई जहाज गाँव पर बम्ब फेंकेगे। यह सोचकर उसका कलेजा दहेलने लगा। उसने अपने दोस्तों को बताया कि दो हवाई जहाज आ रहे हैं और वे सब छुप गए। उनको पता था कैसे बम्ब से अपनी रक्षा करनी थी। रास्ते में उन्होंने जिसको भी देखा वे उनसे कहने लगे कि दो हवाई जहाज आ रहे हैं। यह सुनकर सभी का रक्त सूख गया
तभी हवाई जहाजों को थोड़ा नीचे आते देखकर मानो अब्दुल्ला की आँखें खुलीं | उसे याद आया कि क्या होने वाला था। उसे याद आया कि वह कैसे भागकर छुप गया और उसने कैसे अपने गाँव के बहुत से लोगों की मृत्यु अपनी आँखों के सामने होती देखी। वह फूट-फूट कर रोने लगा। फिर उसने कुछ आवाज़ें सुनीं, वह फिर से छुप गया। आवाज़ें सुन कर उसे लगा कि वह लोग उर्दू भाषा में नहीं, अंग्रेज़ी भाषा में बोल रहे थे। अब्दुल्ला ने सोचा कि यही वे लोग होंगे जिन्होंने गाँव पर बम्ब फेंके। उसे बहुत क्रोध आया। लेकिन वह लहू का घूँट पीकर रह गया। उसे पता था कि उसे यहाँ से भागना था, पर कैसे? उसके लिए तो आगे कुआँ पीछे खाई थी।
अगली रात किसी तरह से बाल-बाल बचकर वह गाँव से बाहर चला गया। लेकिन अब वह कहाँ जाए? उसके पेट में चूहे कूद रहे थे। उसने कुछ खाने की सोची। परन्तु खाना तो कहीं नहीं था। वह सड़क से नहीं जा सकता था क्योंकि वहाँ तो सेना के लोग खड़े होंगे। उसे तो जंगल से जाना था। किसी भी तरह से उसे शहर पहुँचना था। पर यह तो बहुत मुश्किल लग रहा था।
जंगल में उसने किसी तरह से एक दिन बिताया। अब वह बहुत थक चुका था और हथियार डाल देने के लिए तैयार था पर फिर उसे एक बात याद आई। अपनी माँ की कहानियाँ जिनमें हार न मानने वाले लोग बहुत कुछ करते हैं। उसने सोचा कि अगर वह अब हार मान गया तो वह अपनी माता से कुछ नहीं सीखा, उसके सिर पर भूत सवार हो गया कि किसी भी तरह उसे शहर पहुँचना है।
वह चलता रहा और चलता ही रहा। एक दिन जब अब्दुल्ला ने कुछ सुना तो उसके कान खड़े हो गए। गाड़ी की आवाज़ आ रही थी, उसने भागकर देखा तो वहाँ एक शहर था। अब्दुल्ला फूला न समाया। शहर में उसे एक दम्पत्ति मिला। उन्होंने उसे खाना दिया और उसने उन्हें अपनी कहानी सुनाई। वे उसकी कहानी सुन चौंक गए। उन्होंने इस कहानी पर एक किताब लिख दी। लोगों ने जब अब्दुल्ला से प्रश्न पूछे तो उसने उनके प्रश्नों का मुँह तोड़ जवाब दिया। वह पुस्तक एक बेस्ट सैलर हो गयी और अमरीका में लोगों ने इस किताब को पढ़ा और वे इस किताब का विरोध करने लगे कि इराक में युद्ध न किया जाए।
एक अनपढ़ बच्चे ने हार न मानी और इससे इराक का कितना अच्छा हुआ! इसलिए कहते हैं कि हार न मानने से हम कुछ भी कर सकते हैं।

7. (हनान रौफ)

एक लड़का एक गाँव में रहता था, उसका नाम राम था। वह बहुत मेहनती था। उसके गाँव में एक और लड़का था जो उसकी तरह नहीं था। उसका नाम श्याम था । राम ने श्याम को अपनी पढ़ाई में मदद करने के लिए प्रार्थना की पर श्याम ने हथियार डाल दिए।
राम एक किताबी कीड़ा था। इसलिए सब उसे चिढ़ाते थे। लोगों के चिढ़ने पर वह फूट-फूट कर रोता था पर फिर भी उसने हार नहीं मानी। वह पढ़ाई में हमेशा ही हाथ-पैर मारता क्योंकि वह सिर्फ पढ़ाई में ही होशियार था। खेल-कूद में तो वह बहुत डरपोक था।
श्याम और राम दोस्त थे। उन्होंने फैसला लिया कि अगर श्याम राम को खेलने में मदद करेगा तब राम श्याम को पढ़ाई ऐसा करने में मदद करेगा। इस बार ऐसे करने में कोई भी हार नहीं मानेगा। दोनों एक पंथ दो काज कर रहे थे क्योंकि दोनों एक-दूसरे से अधिक पढ़ाई और खेलों में माहिर होना चाहते थे।
कुछ साल बाद राम यूनिवर्सिटी चला गया और उसने अपनी पढ़ाई में धावा बोला। पर श्याम अपनी पढ़ाई का गल्त इस्तेमाल करके आलसी हो गया और अब सड़क पर ही रहने लगा। हर दिन उसके पेट में चूहे कूदते थे क्योंकि अब श्याम हर दिन शराब पीने लगा। वह अपने मित्रों के साथ बुरी तरह लड़ने लगा। वह उनके साथ बात करते हुए गड़े मुर्दे उखाड़ने लगा। वह लोगों को गुस्सा दिलवाता और इस तरह वह आ बैल मुझे मार का शिकार हो गया।
जब राम को पता चला कि श्याम क्या कर रहा है तो उसका कलेजा दहला । तुरन्त उसने श्याम की मरम्मत करने की सोची क्योंकि उसे पता था कि कर भला तो हो भला क्योंकि उसने उसे वादा किया था कि वह उसे पढ़ाई में मदद करेगा।
राम ने फिर से श्याम की मदद की पर वह तो काला अक्षर भैंस बराबर निकला। राम ने हार न मानी क्योंकि उसे पता था कि श्याम बहुत चतुर आदमी था। कुछ ही दिनों बाद श्याम की भी आँखें खुलीं। वह राम की बात समझ गया। उसकी मदद से फिर से उसने एक बार कोशिश की । उसे कुछ महीनों बाद नौकरी भी मिल गई।
अब वह एक कम्पनी का मैनेजर था और उसने सबको मुँह तोड़ जवाब दिया कि अब वह एक योग्य आदमी है। उसने राम को अपनी कम्पनी में सबसे ऊँचे स्तर पर काम दिया और दोनों प्रसन्नता से अपनी दुनिया जीने लगे।

8. (ईशा गांगुली)

एक बड़ा-सा आदमी एक छोटे-से गाँव में रहता था। उसका नाम गोलू था। वह बड़े-बड़े कपड़े और जूते पहनकर गाँव में घूमता था। गोलू को देखकर गाँव के लोगों का कलेजा दहेल जाता था। गोलू फूट-फूट कर रोता था क्योंकि उसका कोई दोस्त नहीं था। सारे गाँव वाले अपनी खिचड़ी अलग पकाते थे। गोलू तो जंगल में रहता था। वह हर रात चाँद को देखता और कहता था,"काश! मैं इस ज़िन्दगी में कुछ अच्छी काम कर सकूँ। काश! सब लोग मेरे काम को देखकर खुश हो जाए।"
हर रात जंगल में सारे जानवर गोलू के बड़े-बड़े कपड़ों को देखकर हँसते थे। सारे जानवर तरह-तरह की बातें कहकर गोलू के जले पर नमक छिड़कते थे। जब गोलु अपने हवाई किले बनाता रहता था। वह मिठाई पकाने वाला आदमी अथवा हलवाई बनना चाहता था। जब भी वह सबसे अपनी इच्छा कहने की कोशिश करता तो कोई भी उसकी बात नहीं सुनता था। एक दिन गोलू जंगल में सैर कर रहा था । तभी उसके पेट में चूहे कूदने लगे। उसको कुछ खाना था।
वह तीन दिन तक घूमता-फिरता रहा। फिर वह एक बड़े-से गाँव में लौटा। सारे गाँव वाले गोलू को देखकर डर गए क्योंकि पिछले गाँव के लोगों ने पहले से खूब कान भरे थे। गोलू अपनी इच्छा को पूरा होते देखना चाहता था तो उसने एक छोटी जगह पर एक दुकान खोली। उसकी दुकान बड़ी-बड़ी टहनियों से बनी थीं। गोलू ने हाथ-पैर मारकर इस दुकान को बनाया था।
गोलू ने चीनी, घी, दूध, तेल, मैदा आदि खरीदकर खूब सारी मिठाइयाँ बनाईं। सारे गाँव वाले उत्सुक थे। फिर गोलू ने सब मिठाइयाँ दुकान के बाहर रखीं और मिठाइयाँ बेचने लगा। सारे गाँव वालों ने मिठाई खरीदी और खाकर गोलू के बारे में अच्छी-अच्छी बातें कहने लगे। गोलू को लगा कि वे राई का पहाड़ बना रहे थे। फिर दूसरे गाँव के लोग भी उसकी मिठाइयाँ खरीदने आने लगे। गोलू अब और मिठाइयाँ पकाने लगा। अब लोगों को अपने से डरते न देख गोलू ने घी के दिए जलाए। गोलू बहुत खुश था। सभी लोग उसके दोस्त बन गए। इस प्रकार उसने अपनी इच्छा पूरी करने के लिए कभी हथियार नहीं डाले इसलिए आज वह अपना सपना पूरा होते बहुत खुश था।

9. (काश्वी)

एक आदमी जिसका नाम रमेश था, एक गाँव में अपने पूरे परिवार के साथ रहता था। उसकी दो बेटियाँ थीं। एक बेटी-शीला जिसे रमेश ने पढ़ना-लिखना सिखाया था इसलिए वह किताब का कीड़ा बन गई थी। और, दूसरी बेटी राधा बहुत तेज़ भागती थी और उसे क्रिकेट खेलना भी बहुत अच्छा लगता था।
रमेश खेत में काम करता था । वह सारा दिन हाथ-पैर मारकर काम करता था। उसकी पत्नी भी थी । उसके पास अपनी दोनों बेटियों को पाठशाला भेजने के लिए रुपए नहीं थे। इस कारण रमेश को कर्ज़ लेना पड़ा। अपने गाँव के साहूकार से उसने कर्ज लिया और उसने साहूकार को कहा कि वह दस साल में उसका कर्ज चुका देगा। जब शीला को अपने पिता से पता चला कि वह पाठशाला जाएगी तो उसने घी के दिए जलाए। माता-पिता भी उसको खुश देखकर बहुत खुश थे।
अगले हफ्ते से दोनों बेटियाँ शीला और राधा ने पाठशाला जाना शुरु कर दिया। रमेश खेत में काम करने लगा। दस साल के लिए सब वैसा का वैसा ही रहा। स्कूल में शीला को बहुत अच्छे अंक मिलते थे। उसके लिए तो स्कूल में बहुत काम कर रही थी। तब भी अचानक किसी असाध्य बीमारी से रमेश की मृत्यु हो गई।
यह देख रमेश की पत्नी दांतों तले उगुंली दबाकर रह गई। शीला और राधा तो पिता की मृत्यु देख फूट-फूट कर रोने लगी। वे तीनों सोच रही थी कि अब बेटियों के पाठशाला जाने के लिए लिया कर्ज कौन चुकाएगा? अब तो शीला दसवीं कक्षा में थी और कर्ज देने का समय भी आ गया था तो तीनों मिल कर साहूकार से बात करने गईं।
लेकिन साहूकार ने उनकी एक न सुनी और अपना उधार वापिस मांगा। वह कोई बात सुनने को तैयार न था। रमेश की पत्नी को साहूकार की बातें सुनकर बहुत क्रोध आ रहा था पर वह लहू का घूँट पीकर रह गई क्योंकि वह साहूकार का कुछ भी बिगाड़ नहीं सकती थी। वह बस उधार चुकाने के लिए दो साल और चाहती थी। पर साहूकार तो अपनी बातों से मानो उनके जले पर नमक छिड़क रहा था। अंत में उसने उनसे कहा कि अगर वे दो साल में उसके पैसे वापिस नहीं देंगी तो वह उनका घर अपने नाम करा लेगा और उनके सारे सामान की नीलामी करेगा।
यह बात सुनकर शीला ने एकदम कहा कि वह अवश्य आस-पास के शहर में ढूँढेगी और उसका पूरा उधार चुकाएगी। वह राधा के साथ शहर गई और भाग्य से दोनों को एक घर में खाना बनाने और उनके काम में मदद करने का काम मिल गया। इस घर की मालकिन मानो उनके लिए डूबते को तिनके का सहारा थी। दो साल में उन्होंने साहूकार को सारे रुपए वापिस किए और अपना काम करना भी जारी रखा ।

10. (मेघा)

दिल्ली में सीमा नाम की एक लड़की रहती थी। वह हमेशा अपनी खिचड़ी अलग पकाती थी। उसका कोई दोस्त इसलिए नहीं था क्योंकि वह किताब का कीड़ा थी। सब आस-पड़ोस में रहने वाली लड़कियाँ उसके बारे में एक-दूसरे के कान भरती थीं। सीमा के लिए परीक्षा में उत्तम आना, बाँए हाथ का खेल था।
परीक्षा बहुत पास थी और सब लड़कियों का कलेज़ा दहेलने लगा। उन्होंने परीक्षा के लिए कोई पढ़ाई नहीं की थी। अगली परीक्षा भी थोड़े दिनों थी, पहली परीक्षा के परिणाम के बाद। अब ऐसा लग रहा था कि इन लड़कियों के सिर पर पढ़ाई का भूत सवार हो गया है। वे सब लड़कियाँ पढ़ाई में अच्छे अंक लाने के लिए कठोर परिश्रम करने लगीं। सीमा ने इन सबके बारे में जानकर दाँत तले उँगली दबाई। ऐसा लग रहा था कि अभी-अभी इन लड़कियों की आँखें खुली हैं। अभी-अभी ही इन लड़कियों को ध्यान आया है कि परीक्षा पास आ रही है क्योंकि वे लड़कियाँ कभी पढ़ाई करती ही नहीं थी और वे इसलिए पढ़ाई में भी इतनी अच्छी नहीं थी।
जब उन लड़कियों को पता चला कि उनकी परीक्षा तीन घंटे की होगी तब उनका रक्त सूख गया। वे दिन-रात बैठकर पढ रही थी। उन्होंने सोचा कि परीक्षा मेम एक-दूसरे के पेपर में झाँककर परीक्षा पास कर लेंगी। लेकिन जब सीमा ने उनकी बातें सुनीं, तब वह सब लड़कियों से कहने लगीं कि वैसा करने से वे अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारेंगी। यह सुनकर वे लड़कियाँ डर गईं और उनके कान खड़े हो गए। उन लड़कियों ने बहुत हाथ-पैर मारे। परीक्षा का दिन था और सब लड़कियाँ घबराने लगीं। परीक्षा में उन्हें जो समझ आया, बस उन्होंने वही लिखा। किसी के पेपर से नहीं झाँका। सीमा का पेपर बहुत अच्छा लगा।
परीक्षा के थोड़े दिन बाद, सबकी रिपोर्ट आई। सब लड़कियों ने अपनी रिपोर्ट देखी। थोड़ी लड़कियाँ फूट-फूट कर रो रहीं थीं। सीमा ने उन्हें समझाया कि उन्होंने परीक्षा में जैसे भी किया है, अच्छा ही किया है। जैसे कि उम्मीद थी, अगली परीक्षा में सब लड़कियों ने बहुत मेहनत की। इस परीक्षा मे उन्होंने अच्छा किया और अंक भी अच्छे आए। उनके अच्छे दिन आ गए थे। सब लड़कियाँ, सीमा की दोस्त बन गईं। अब किसी ने कभी पढ़ाई के आगे हथियार नहीं डाला। सब खुशी से रहने लगे। अब वे सब चिकने घड़े की तरह नहीं थे। परीक्षा के बाद, सब लड़कियाँ अपनी पढ़ाई के बारे में हवाई किले बनाने लगीं। ऐसे ही साल बीत गया, पता ही नहीं चला!

11. (निखिल)

बहुत समय पहले की बात है। कश्मीर में दो लड़के रहते थे। एक  का नाम रोहन था और दूसरे का राम था। उस समय कश्मीर और पाकिस्तान के बीच युद्ध चल रहा था। राम और रोहन भाई थे। राम का कलेजा अंधेरे में दहेलता था। रोहन छिपकली देखता तो उसका रक्त सूख जाता। एक दिन रोहन और राम के पिता युद्ध लड़ने चले गए। रोहन और राम को अपने पिता पर बहुत गर्व था।
एक बार पाकिस्तान कश्मीर पर धावा बोलने वाला था। कश्मीर के सभी लोगों के कान खड़े हो गए। पर रोहन और राम मज़े से घर के बाहर घूम रहे थे। उन्हें किसी प्रकार की भी चिन्ता नहीं थी। उन्हें यह भी पता था कि उनके पिता किसी भी स्थिति में हथियार डालने की कोशिश नहीं करेंगे क्योंकि वे अपने देश की रक्षा करना चाहते थे।
जब हमला हुआ रोहन और राम को कुछ भी नहीं हुआ। यह उनकी खुशकिस्मती थी कि वे एक दुकान के अंदर खड़े थे। उस रात जब रोहन और राम घर वापिस नहीं लौटे तो उनकी माँ फूट-फूट कर रोई क्योंकि उसे लगा कि रोहन और राम हमले में मर गए थे।
दो-तीन महीने बाद रोहन और राम के परिवार को पता चला कि उनके पिता की मृत्यु हो गई थी। यह बात सुनकर उन्होंने दाँत तले उगुँली दबाई। उनके पड़ोसी ने आकर उनके पिता के बारे में बात करके उनकी माँ के जले पर नमक छिड़का।
रोहन और राम सिर्फ दस साल के थे जब उनके पिता की मृत्यु हुई कि दो साल बाद दु:ख की वजह से उनकी माता ने भी आत्महत्या की। अब रोहन और राम अपनी मौसी के घर में रहते थे । उनकी मौसी उनसे बहुत काम कराती थी। जब वह दोनों १५ साल के हुए तो उन्होंने यह फैसला किया कि वे अपनी खिचड़ी अलग पकाएंगे।
यह सोचकर वे घर छोड़कर चले गए। उनके पास कोई रहने की जगह नहीं थी तो वे पार्क में सोते थे। एक दिन रोहन नौकरी ढूँढने गया तो उसने रास्ते पर चाय की एक दुकान देखी। उसने वहाँ पर देखा कि वहाँ पर कोई काम करने वाला नहीं था। तो उसने चाय की दुकान के मालिक के पास जाकर नौकरी माँगी। मालिक ने "हाँ" कहा।
अगले दिन रोहन और राम चाय की दुकान पर गए। मालिक ने उन्हें चाय की दुकान के बारे में बताया और उन्हें यह भी बताया कि दुकान पर खाने के लिए क्या-क्या बनता है? राम को आर्डर लेना था और रोहन को चाय बनाकर राम को देनी थी। इस काम के लिए रोहन और राम को कुल मिलाकर प्रति महीना ३० रुपए मिलते थे।
रोहन और राम ने ३० रुपए पाकर घी के दिए जलाए। रोहन और राम खुशी-खुशी आज़ादी से रहने लगे।

 12. ( राहेल)

एक सुहानी रात थी । मैं अपने कमरे में सो रही थी। अचानक मैंने एक भयानक आवाज़ सुनी। मेरे माता-पिता मेरे कमरे में आए और कहा कि हमारी वाशिंग मशीन में आग लग गई थी। तो फिर हम नीचे गए और आग बुझाने लगे। पर अचानक एक अज़ीब चीज़ हुई । हमने देखा कि हमारी वाशिंग मशीन बिल्कुल ठीक और नयी लग रही थी। मैं बहुत डर गई। मेरे माता-पिता बाहर गए थे किसी आदमी को बुलाने के लिए। फिर से एक आवाज़ सुनाई दी। यहा एक लड़की की आवाज़ थी । उसने कहा," मैं तुमको मारने के लिए आई हूँ। अगर तुम यह बात किसी को बताओगी तो मैं जो करने वाली हूँ; तुम्हें अच्छा नहीं लगेगा।" मैं फूट-फूट कर रोने लगी। तभी मेरे माता-पिता वापिस आ गए । वे लोग चौंक गए कि वाशिंग मशीन नई लग रही थी।
अगले दिन मैं स्कूल गई। कुछ नहीं हुआ। सब ठीक था और एक महीने बाद तक भी सब कुछ ठीक था। मैंने अपने माता-पिता को यह बात बताई। उसी रात को वही लड़की मानो ईद के चाँद की तरह दिखाई दी।
मैं बहुत दर गई । उस लड़की ने कहा कि उसी वाशिंग मशीन में उसकी माँ ने उसे फैंक दिया था। मैंने उसके दु:ख को सुना तो मैं दु:खी हो गई। मैंने उससे माफी माँगी और उस लड़की ने मुझे माफ कर दिया। फिर मैंने उसे कहा कि हम दोस्त बन सकते हैं।पर मैंने एक शर्त रखी कि वह गड़े मुर्दे उखाड़ेगी नहीं। लड़की ने भी कहा कि मैं उसके खिलाफ किसी के कान न भरूँ। फिर हम दोस्त बन गए। फिर उसने मुझे अपना परिचय दिया और अपनी उम्र बतायी। मैंने भी उसे अपने बारे में बताया। नीना नाम था उसका।
नीना मेरे घर आई थी क्योंकि हमने वही वाशिंग मशीन खरीदी थी जिसमें उसकी माँ ने उसे फेंका था। हम बहुत दिनों तक दोस्त बने रहे। अचानक एक दिन नीना ने हमारा घर छोड़ दिया। उसने कहा कि वह अपनी माँ के पास उसे माफ करने के लिए जा रही है। फिर रात में मुझे यह बताकर नीना चली गई। मेरी माँ नीना को नहीं देख पाई। अन्त में सब कुछ ठीक हो गया। नीना और उसकी माँ मिल गए। मैंने घी के दिए जलाए

13. (शनाया कपूर)

एक गाँव में एक छोटा लड़का रहता था। लड़के का नाम सोहन था। सोहन आठ साल का था और उसके दो भाई थे। वे सब स्कूल जाते थे। सोहन दूसरी कक्षा में था। वह बहुत बुद्धिमान नहीं था लेकिन हर दिन वह हाथ-पैर मारता था। मास्टर को देखकर उसका कलेजा दहेलने लगता था। मास्टर बहुत अच्छा नहीं था और हर वक्त चिल्लाता रहता था। वह सोहन को पसन्द नहीं करता था। हर दिन वह सोहन को क्लास के बाहर भेजता था। उसे सिर्फ क्लास के किताब के कीड़े पसन्द थे। बाहर खड़ा होने पर उसके पेट में तो चूहे कूदते थे। अगर सोहन गृहकार्य नहीं करता था सिर्फ एक दिन के लिए भी, मास्टर हर दिन गड़े मुर्दे उखाड़ते हुए उसे सारी बातें कहता था।
सोहन वैसे भी गरीब था और यूनिफार्म नहीं पहनता था। स्कूल के मास्टर की बातें मानो जले पर नमक छिड़कती थीं। इस वजह से सोहन दिन-भर फूट-फूट कर रोता था। वह तो काला अक्षर भैंस बराबर नहीं रहना चाहता था। पढ़ने-लिखने की बहुत कोशिश करता था।
एक दिन जब वह घर लौटा तो घर में एक औरत सोफे पर बैठी थी। सोहन ने उसको पहचाना नहीं और चुपचाप रसोईघर में चला गया। जब सोहन की माता जी ने उसे बुलाया तो सोहन ने दाँतो तले उँगुली दबाई क्योंकि औरत उसे यह कह रही थी कि पब्लिक स्कूल शहर में एक खुली जगह थी। सोहन इस विषय पर पहले से ही हथियार डाल चुका था इसलिए उसने कुछ नहीं कहा। थोड़े समय के बाद औरत चली गई ," मैं वापिस आऊँगी" यह कहकर।
बहुत दिन बीत गए पर औरत वापिस नहीं आई। इस बात से सोहन दु:खी हो गया और वह क्रोध के आवेश में लहू का घूँट पीकर रह गया। उसका कोई दोस्त नहीं था और वह अकेला जामुन के पेड़ के नीचे बैठता था।
एक दिन जब वह जामुन के पेड़ के नीचे बैठा था तो एक औरत उसके पास आकर बैठ गई। जब सोहन ने अपना सिर उठाकर देखा तो यह वही औरत थी जिसने उसे पब्लिक स्कूल के बारे में बताया था। औरत के बात करने से पहले सोहन के कान खड़े हो गये। उसने औरत को बात करने का मौका दिया। औरत ने सोहन से कहा कि परसों स्कूल खुलेगा और अगर सोहन स्कूल जाना चाहता था शहर में तो उसे औरत के साथ चलना होगा। सोहन ने इसके बारे में सोचा और उसे लगा कि औरत के साथ जाना चाहिए फिर हवाई किले सच करने के लिए एक कदम उसे भी बढ़ाना पड़ेगा।
सोहन ने इस बात पर बहुत सोचा और लगा कि यह मौका ज़िन्दगी में सिर्फ एक बार आता है। वह औरत के साथ जाने की तैयारी करने लगा। सोहन के भाई उसके लिए खुश थे। सोहन की माता जी उसके साथ शहर जाने के लिए तैयार थीं। पूरे परिवार ने घी के दिए जलाए और सोहन को अलविदा कहा ।

14. (शनाया पी)

यह कहानी एक छोटे बच्चे की है। बच्चा एक छोटे-से गाँव में रहता था। यह बच्चा काला अक्षर भैंस बराबर था। उसको पढ़ना-लिखना सीखना था मगर उसका परिवार बहुत गरीब था। जब वह दूसरे बच्चों को पाठशाला जाते हुए देखता था तो उनके नए-नए कपड़े देखकर उसके मुँह में पानी भर आता। जब बच्चे पाठशाला से वापिस आते थे तो वे उसे बहुत चिढ़ाते थे। वे मानो जले पर नमक छिड़कते थे।
एक दिन इस बच्चे की बत्ती जल गई। उसने सोचा कि वह एक पंथ दो काज करेगा। वह ऐसा कोई उपाए करेग कि वह और पैसा कमा पाए और इस पैसे से वह पाठशाला जाएगा। हर दिन वह हाथ-पैर मारता था और थोड़ा-बहुत पैसा कमाता था लेकिन उसके जैसे और बहुत से अनपढ़ बच्चे भी थे जो उससे बड़े भी थे और शक्तिशाली भी। ये बच्चे इस बच्चे के कमाए पैसे चुरा लेते थे। इस कारण उसे हर दम कान खड़े रखकर रहना पड़ता था।
एक दिन उन बड़े बच्चों ने इसके पैसे लूट लिए । उन्होंने वह जगह ढूँढ ली जहाँ उस छोटे बच्चे ने अपने कमाए हुए पैसे जमा करके रखे थे। छोटे बच्चे को जब पता लगा कि उसके कमाए सारे पैसे चुरा लिए गए हैं तो वह फूट-फूट कर रोया। दो घंटे बाद उसने उन बड़े बच्चों को देखा जो उसको धमका रहे थे। उसने उनसे पूछा कि उन्होंने यह कैसे ढूँढा और वे हँसते-हँसते बोले कि यह तो हमारे बाएँ हाथ का खेल है। अंत में उसे अपना पैसा वापिस न मिला। इस बच्चे का कोई पिता नहीं था। माँ दिन-रात काम करती थी और किसी तरह वह थोड़े पैसे कमाती थी। कई बार दोनों को खाली पेट रहना पड़ता था। बेचारे बच्चे के पेट में चूहे दौड़ते थे। मगर जिस दिन उन्हें अच्छा खाना मिलता था तो वे दोनों घी के दिए जलाते थे।
एक दिन इस छोटे बच्चे के चाचा उनके गाँव में रहने की सोच में थे। एक दिन पहले वे रेलगाड़ी से पहुँच गए। वे तो ईद का चाँद जैसे इससे ही मिलने आए थे। उसके चाचा एक अच्छे दफ्तर में काम करते थे और वहाँ अच्छा पैसा कमाते थे। जब वह इस गाँव में रहने आया तो उन्होंने अपने भतीजे को पाठशाला पढ़ने-लिखने भेजा।
हर दिन वह छोटा बच्चा कुछ न कुछ नया सिखाता था। जब उसने पढ़ना-लिखना सीख लिया तो वह तो किताब का कीड़ा बन गया। इस छोटे बच्चे ने अपने चाचा को सारी कहानी जो पाठशाला में जाने से पहले बताई तो चाचा ने दाँतो तले उँगुली दबाई। मगर उसकी कहानी सच्ची थी क्योंकि उसने राई का पहाड़ नहीं बनाया था। उस बच्चे के हवाई किले जो वह हमेशा बनाया करता था, वह सब सच्चे हो गए। चाचा ने उसे सब कुछ भूलकर खुश-खुश रहने को कहा ।

15. (वरुण एस ए)

एक गाँव की पाठशाला में दो लड़के थे। एक लड़के का नाम राम था और दूसरे लड़के का नाम श्याम था। श्याम दो बार परीक्षा में फेल हो गया था इसलिए अब भी वह सातवीं कक्षा में पढ़ता था जब कि श्याम की उम्र चौदह साल की थी। राम भी उसी की उम्र का था। राम श्याम से बहुत अलग था। राम एक किताब का कीड़ा था। सब लोग उसे बुद्धिमान कहते थे। श्याम हाथ-पैर मारकर पढ़ाई करता था पर फिर भी उसको कुछ समझ में नहीं आता था।
एक दिन जब श्याम के पेट में चूहे कूदने लगे तो वह डाइनिंग हॉल में आया। राम तो ईद का चाँद हो गया था क्योंकि वह इतने दिनों से स्कूल नहीं आ रहा था। इसलिए श्याम उसकी मेज़ पर जाकर बैठ गया ताकि वह आज उससे इतने दिनों बाद बातें कर सके। राम और श्याम एक दूसरे को देखकर खुश हो गए और बातें करने लगे। श्याम ने उससे पूछा,"तुम्हारी सफलता का रहस्य क्या है?" राम को श्याम का यह प्रश्न समझ न आया क्योंकि वह नहीं जानता था कि इसका क्या जवाब दे इसलिए उसने उसे इसका कोई जवाब नहीं दिया। श्याम सोचने लगा कि राम इतना बुद्धिमान है पर वह इतने आसान प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाया।
एक महीने के बाद आठवीं और सातवीं कक्षाएँ एक साथ सैर पर जा रहीं थीं। वे उत्तर भारत के किसी गाँव में जा रहे थे। यह गाँव एक नदी के किनारे पर स्थित था। सब लोग उस गाँव में पहुँचे। एक दिन सब लोग घूमते-घूमते एक सरोवर के पास पहुँचे। कुछ लोग तैरने लगे तो कुछ सरोवर के पानी में अपनी टाँगें डालकर बातें करने लगे। राम को तैरना नहीं आता था। इस कारण जब भी वह कोई सरोवर या नदी को देखता तो पानी को देख उसका कलेजा दहल जाता था। एक दिन राम एक सरोवर में गिर गया और वह डूबने लगा। जब श्याम ने राम को डूबते देखा तो उसने दाँतों तले उँगुली दबाई। श्याम ने पलक झपकते ही सरोवर में छलाँग मारी और राम को बचा लिया ऐसे राम बाल-बाल बच गया। अब राम को श्याम के प्रश्न का उत्तर भी मिल गया। उसे समझ में आ गया कि सब लोग अलग-अलग क्षेत्र में बुद्धिमान हैं जैसे कि राम पढ़ाई में बुद्धिमान है पर श्याम तैरने और किसी डूबते को बचाने में साहसी होने के साथ-साथ बुद्धिमान भी है। उसने श्याम के प्रश्न का यही उत्तर  दिया। इस घटना के बाद राम और श्याम बहुत अच्छे दोस्त बन गए और पाठशाला के प्रधानाचार्य ने खुश होकर श्याम को उसकी वीरता और निडरता पर एक इनाम दिया क्योंकि उसने अपनी जान को हथेली पर रखकर अपने दोस्त की जान बचाई थी।


Sunday, December 14, 2014

Paragraphs and stories in Hindi written by middle school and class 8 of the Valley Students 2014

मैं वैली स्कूल  में पढ़ाती हूँ । यहाँ पर मिडिल स्कूल और हाई स्कूल की कक्षाएँ लेती हूँ । मिडिल स्कूल के छात्र-छात्राओं ने कई विषयों पर अवतरण लिखे जो निम्नलिखित हैं । इन अवतरणों को पाठ्य सामग्री की तरह उपयोग कर सकते हैं । या, फिर प्रश्नों की रचना करके अपठित गद्यांश की तरह भी उपयोग कर सकते हैं । या, इन अवतरणों को पढ़कर बच्चों को चित्र के द्वारा इन्हें समझाने को कहा जा सकता है । आशा है कि यह विषय सामग्री उपयोगी सिद्ध होगी । 

       मुहावरों पर कहानी लेखन  (शनाया कपूर,कक्षा 8)

दिल्ली में एक गाँव था । यह गाँव सुंदरता और हरियाली से भरा हुआ था । इस गाँव में एक किसान रहता था। वह अंधेरे घर का उजाला था । इसलिए वह एड़ी चोटी पसीना एक करके काम करता था अपने घर को संभालने के लिए। पूरा दिन, खेत में काम करता-करता वह थक जाता। ऐसा ही दिन था, पर अचानक किसान ने घर लौटने पर देखा कि उसका बैल गायब हो गया था । वह बैल को ढूँढने लगा । कोने-कोने में देखने पर, सब जगह ढूँढने पर भी उसे बैल नहीं मिला । किसान बहुत उदास था ।
दूसरे दिन, किसान घटना भूलकर वापस काम पर गया, खेत में काम करना । घूप में बहुत काम करने से वह थक गया और घर लौटा । घर में उसने देखा कि उसका दूसरा बैल भी गायब हो गया था । यह बैल भी उसने ढूँढा पर वह उसे कहीं भी न मिला । किसान के हाथ-पाँव फूलने लगे, वह डर गया था । एक के बाद एक जानवर जो गायब हो रहे थे । 
अगले हफ्ते, वह अपने पड़ोसी के यहाँ गया । किसान अपने पड़ोसी से इस घटना के बारे में बात करने लगा। पड़ोसी चुपकर बैठा था, और सुन रहा था । वह बोला," परेशान मत होना, दोस्त। फिक्र मत कीजिए, हम इस चोर को ज़रूर पकड़ेंगे।" किसान वापिस घर गया और अपने दोस्त की बात मानकर आराम से सो गया ।
दूसरी रात, किसान ठीक से सो नहीं पा रहा था । बार-बार सोचता रहा," अरे! मुझे तो छठी का दूध याद आ गया, मैंने क्या गलत किया था जो यह सब सहना पड़ रहा हूँ?" अचानक एक ज़ोरदार आवाज़ बाहर, खेत से आई। किसान धीरे-धीरे दरवाज़े की ओर चलने लगा । फिर से आसमान सिर पर उठाने वाली आवाज़ ने किसान को डरा दिया । जल्दी वह बाहर भागा और वहाँ उसके खेत में दो बकरियाँ साथ में लिए उसका, पड़ोसी, उसका दोस्त खड़ा था। पहले किसान को कुछ समझ नहीं आया पर कुछ देर के बाद उसे सब साफ दिखाई दिया । उसका खून खौलने लगा और वह अपने पड़ोसी पर बिना सोचे-समझे चिल्लाने लगा । पड़ोसी अथवा चोर पानी-पानी हो गया।
उसी वक्त, पड़ोसी ने उसे पीठ दिखाई और फिर कभी वापिस नहीं आया । अगले दिन, किसान खेत में गया तो अपने खोए हुए जानवरों को देखकर लट्टू हो गया । पर वह उदास भी था क्योंकि चोर उसका दोस्त था और वह उसकी आँखों से गिर चुका था ।

            मुहावरों पर कहानी (ईशा गांगुली, कक्षा 8)

एक गरीब मोची अपनी पत्नी के साथ सोहनपुर गाँव में रहता था । उसे बच्चों का बहुत शौक था परन्तु कुछ शारीरिक कारणों की वजय से उसकी पत्नी माँ नहीं बन सकती थी । दोनों ने बहुत पूजा पाठ किया व मंदिरों में जाकर भगवान से प्रार्थना की। आखिर एक दिन पत्नी की गोद भरी। दोनों बहुत खुश थे जब उनका पुत्र मोहन इस दुनिया में आ पहुँचा । वह अपने माता-पिता के अंधेरे घर का उजाला था । मोची और उसकी पत्नी ने आकाश-पाताल एक करके मोहन को पाला पोसा ।
उसे अंग्रेजी मीडियम पाठशाला में भरती किया। पाठशाला में दूसरे बच्चों अमीर घरों से थे और मोहन एक साधारण मोची का बेटा था । इस वजह से सभी दूसरे बच्चे मोहन को चिढ़ाते थे और मोहन पानी-पानी हो जाता था । परन्तु मोहन ने इन सब बेकार बातों को भूलकर अपनी पढ़ाई में ध्यान दिया । वह दिन-रात कोल्हू के बैल की तरह अपने काम में डूबा रहता था ।
मोहन की पाठशाला नदी के पार थी । नदी पर एक पुल बहुत पुराना था। एक दिन खूब बरसात हुई और नदी अपनी सीमा से बाहर बहने लगी । जैसे ही मोहन पुल पर चढा, वह फिसला और नदी में गिर गया । मोहन चिल्लाया," मुझे बचाओ ! मुझे बचाओ! कोई मेरी मदद करो ! मैं डूब जाऊंगा ! बचाओ!" एक मछुआरे ने उसकी पुकार सुनी। वह अपनी जान हथेली पर रखकर नदी में कूदा, और मोहन को बचाया। परन्तु मोहन के फेफड़ों में पानी अंदर गया और मोहन बेहोश हो गया था । मछुआरे के हाथ-पाँव फूल गए।
वह मोहन को अपने कंधे पर उठाकर नज़दीकी हस्पताल में ले गया । फिर उसने मोहन के माँ-बाप को संदेशा भेजा । हस्पताल होने के कारण सब नर्स और डॉक्टर व्यस्त थे और किसी ने मछुआरे की मदद नहीं की । मछुआरे का खू खौला । उसने फिर आसमान सिर पर उठाया । तभी एक डॉक्टर की नज़र मछुआरे पर पड़ी और उसने तुरन्त मोहन का इलाज शुरु किया । डॉक्टर ने मोहन के फेफड़ों से पानी निकाला और मोहन की आँखें खुलीं । तब मछुआरा बहुत खुश हुआ और मोहन के माता-पिता को यह बताया ।
मोहन बड़ा होकर, एक अध्यापक बना। उसने जीवन में कभी भी हार न मानी और अपनी छोटी जाति पर विचार न किया ।

            मुहावरों पर कहानी  (अवन्ती, कक्षा 8)

एक सैनिक था जिसका नाम राम था। वह एक निशानेबाज था । अपने क्षेत्र में वह बहुत निपुण था । निपुण बनने के लिए वह आकाश-पाताल एक करके अभ्यास करता । कुछ महीने बाद उसे सरहद से बुलावा आया । पत्र पढ़ने के पश्चात उसने सिर पर कफन बाँधकर सरहद जाने का निर्णय किया । सारे जवान खून-पसीना एक करके भारत की रक्षा करने में लग गए ।
एक रात चौकी की पहरेदारी के वक्त उसकी आँख लग गई और वह सो गया । जब वह उठा तो उसे पता चला कि शत्रु के जवानों ने धावा बोल दिया है। यह देखकर वह पानी-पानी हो गया क्योंकि उसकी लापरवाही की वजह से शत्रुओं ने चोटी पर कब्ज़ा कर लिया था । यह सुनकर सब जवानों का खून खौलने लगा और उन्होंने राम पर अंगारे बरसाए । वह तो पहले ही अपनी आँखों से गिर गया था । इसलिए वह एक शब्द भी न बोला । एक साल बाद उसे युद्ध में शामिल होने का अवसर मिला । उसने यह सोचा कि वह यह साबित कर देगा कि वह भी अन्य सिपाहियों की तरह भारत की अंधे की लकड़ी है। देर रात गए राम ने कुछ दस सैनिकों के साथ शत्रुओं के शिविर पर धावा बोल दिया । काफी रात हो चुकी थी इसलिए कई सैनिक सो रहे थे । इसी का फायदा उठाकर राम ने अपने ही हाथ से बनाए हुए बम्ब को शत्रुओं के शिविर में फैंक दिया और उनकी ईंट से ईंट बजा दी।बम्ब के फटने पर सब जगह आग लग गई और हाहाकर मच गया । सारे शिविर जलकर इधर-उधर गिरने लगे । शत्रुओं को काफी हानि पहुँची । इस जलते हुए शिविर में से एक लोहे का खम्बा राम के दोस्त पर आ गिरा । उसी क्षण एक ज़ोर की आवाज़ सुनाई दी और राम अपने दोस्त पर आ गिरा । उसी क्षण एक ज़ोर की आवाज़ सुनाई दी, और राम ने अपने दोस्त को तो बचा लिया पर खुद जल गया । इस दुर्घटना में ही उसकी जान भी गई और वह शहीद हो गया । इस तरह राम ने अपने भारत का सिर ऊँचा कर दिया ।  
   

                   लकड़हारा (आरती, कक्षा 8)

एक दिन मैंने अपने मित्रों के साथ जंगल जाने की सोची । दूसरे दिन ही हम सब ने मिलकर जंगल जाने की तैयारी की । अपने साथ हमने बहुत कुछ लिया जैसे कि खाने का सामान, पानी, मेरा कैमरा आदि ।सब सामान बाँधकर पास के जंगल की ओर चल पड़े । जब मेरे माता-पिता ने सुना कि हम सब जंगल की ओर चल पड़े । जब मेरे माता-पिता ने सुना कि हम सब जंगल की ओर जा रहे हैं तो वे बहुत आग बबूला हो गए लेकिन हमने उनकी बात को अगर मगर किया और अपनी यात्रा पर चल पड़े ।
जब हम जंगल से गुज़र रहे थे तो हमने वहाँ बहुत ही सुन्दर पेड़-पौधे, चिड़ियाँ, कीड़े-मकोड़े देखे । चारों तरफ हरियाली और घना जंगल देखकर मेरे पाँव धरती पर नहीं पड़ते थे । उसी समय हमें तरह-तरह के जानवरों की आवाज़ें सुनाई दीं । जानवरों की आवाज़ें सुनकर हमारे हाथ पाँव फूल गए । लेकिन हम जंगल में प्रकृति और जानवरों को देखते ही आए थे, इसी लिए जान हथेली पर रखकर हम आगे बढ़ते रहे ।
चलते-चलते हम लोग थक गए थे और थोड़ा आराम चाहते थे क्योंकि हम सब के पेट में चूहे कूद रहे थे । इसलिए हमने एक पेड़ के नीचे अपनी चादर बिछाकर खाने का सामान निकाला और खाना शुरु कर दिया ।
जब हम खाना खा रहे थे कि अचानक बहुत सारे बंदर उसी पेड़ पर आकर बैठ गए और हमारे खाने को देखकर तरह-तरह की आवाज़ें निकालने लगे । इतने सारे बन्दरों को देखकर लगा कि हमारे सिर पर पहाड़ टूट पड़ा है ।
पाद में ही एक लकड़हारा लकड़ी काट रहा था । हमने उससे मदद माँगने के लिए आवाज़ लगाई क्योंकि वह लकड़हारा रोज़ जंगल में आता तो वे सारे बन्दर उसके मित्र बन गए थे । हमारी आवाज़ सुनकर वह तुरन्त मदद के लिए आ गया था और उसने बन्दरों से उनकी भाषा में बात की। उसकी बातचीत सुनकर सारे बन्दर दुम दबाकर भाग गए ।
हमने लकड़हारे का बहुत धन्यवाद किया और उसे अपने साथ खाना भी खिलाया । खाने के दौरान हमने लकड़हारे के बारे में पूछा । तब उसने बताया कि वह एक गरीब लकड़हारा है। वह जंगल से लकड़ियाँ काटकर शहर ले जाकर बेचता है। वह एड़ी चोटी का पसीना एक करके अपना और अपने परिवार का गुज़ारा करता है ।
देर बहुत हो चुकी थी इसलिए लकड़हारा ने हम लोगों से कहा कि हम सबको अब घर वापिस लौटना चाहिए । चलते-चलते हमने फिर से लकड़हारे का बहुत धन्यवाद किया क्योंकि उसने हमें बन्दरों की टोली से बचाया था और हम पर कोई आँच न आने दी थी ।
लकड़हारे और जंगल से विदा लेकर हम सब सुरक्षित घर पहुँचे । हम सब को सुरक्षित देखकर हमारे माता-पिता घोड़े बेचकर सोए

            मुहावरों पर कहानी (अमूल्या, कक्षा 8)

मैं बहुत लाल-पीला हुई जब हुआ कि मेरी पाठशाला हमारे गाँव से दो गाँव दूर जा चुकी थी। बच्चे कैसे इतनी दूर चलकर नदी को पार कर चल सकते थे ? ऐसा लगा जैसे शिक्षकों ने हम सबको चकमा दिया है। गर्मियों की छुट्टियों के बाद यह बड़ा बदलाव हो गया और हमारे शिक्षकों ने आँखें फेरकर हमें पीठ दिखा दिया
बीस साल पहले जब गाँव वाले लड़कियों को स्कूल भेजने के मामले में अगर मगर किया करते थे तब कुछ लोगों ने मिलकर एक छोटा-सा गुप्त स्कूल बनाने के लिए काम किया । पिछले कई सालों से हमारा स्कूल काफी मशहूर हो गया था । धीरे-धीरे जो स्कूल के खिलाफ थे , वे भी स्कूल की प्रगति पर लट्टू हो गए थे ।
हमने स्कूल की उन्नति के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगाया और गाँव के सभी लोगों ने हमारी तारीफ की । पर स्कूल के दूर जाने से हम बच्चों को छठी का दूध याद आ गया । मुख्य अध्यापक एक अच्छे और समझदार आदमी थे। मगर कुछ बातों के लिए आसमान सिर पर उठाते थे।
पुराना स्कूल देखने के लिए मैं निकल पड़ी। मेरे हाथ-पाँव फूल गए क्योंकि मैं अपने स्कूल को बुरी हालत में नहीं देख सकती थी। हमारे अध्यापक नेक इंसान थे । मगर ऐसा लगा जैसे उनकी अक्ल घास चरने गई थी। स्कूल की तरफ कदम बढ़ाते हुए मेरा कलेजा मेरे मुँह में आ गया । इतना आसान काम आज नामुमकिन लग रहा था जैसे तारे तोड़ लाने वाला काम हो । सड़क के मोड़ के बिल्कुल बाद मुझे मेरा स्कूल दिखाई दिया । मगर स्कूल की जगह टूटी हुई इमारत ढेर में पड़ी थी जैसे किसी ने ईंट से ईंट बजाकर उसे गिरा दिया हो ।
मैं घर जाकर फूट-फूट कर रोई क्योंकि मेरी ज़िंदगी, मेरा प्यार, मेरा स्कूल अब सिर्फ ईंट के बिखरे टुकड़े रह गए थे । जब मैं अगले दिन सुबह उठी तो मेरे मन में एक नया विचार उभरकर आया । मैंने अपनी सहेलियों के घर जाकर सबको पाँच बजे नदी के किनारे मिलने के लिए कहा । आखिर में, मैं मेरी सबसे खास सहेली पारुल के घर गई । "मैं तुम सबको क्यों मिलने के लिए आऊँ?" उसने पूछा । जब तुम नदी के किनारे आओगी तो समझ जाओगी, मैंने उत्तर दिया,"ठीक है।" पारुल कुछ समय सोचकर बोली ।
शाम के पाँच बजे हम सब नदी के किनारे इकट्ठा हुए । ठंडी हवा के झोंके चल रहे थे । मैं तो डरी हुई-सी थी, थोड़ी परेशान मगर मैं इस बात में मेरे हथियार नहीं डालने वाली थी। लंबी साँस लेते हुए मैंने कहानी शुरु किया," आप सब तो जानते हैं कि अब हमारा स्कूल दूर जा चुका है।" यह सुनकर सभी लड़कियों ने चिल्लाना शुरु किया । उनकी आँखें अंगारे उगल रहीं थीं । मैंने मेरी बात जारी रखी," मेरा विचार है कि हम सबको मुख्य अध्यापक के घर के सामने जाकर धरना करना चाहिए ।" यह सुनते ही सन्नाटा छा गया । पर कुछ ही क्षण में सभी ने खुशी से चिल्लाना शुरु किया ।
तमाशा अगले दिन शुरु हुआ। हम पहुँचे मुख्याध्यापक के घर । हम सबने शोर मचाकर पूरा आसमान सिर पर उठा लिया । हम अपने निर्णय पर अड़े रहे । कुछ ही हफ्तों में हमारे गाँव में एक नयी इमारत खड़ी हुई, यह था हमारा नया स्कूल!

      जब मैंने पहली बार खाना बनाया (पूज्या, कक्षा 6)

जब मैंने पहली बार खाना बनाया तब मैं करिब छ: साल की थी । मैं अपने मामा और पिता के लिए खाना बना रही थी। जब वे शाम को सो रहे थे । मैं उनको सरप्राइज देने के लिए उनके लिए खाना बना रही थी। मैंने खाने में "इमली की लोली पोप", सलाद और नीम्बू का शरबत बना रही थी। मुझे बहुत मज़ा आया अकेले खाना बनाने में ।
मैंने पहले इमली की लोलीपोप बनाई। मुझे इमली के बीज निकालने में बहुत मुश्किल हुई और देर भी बहुत लगी। फिर मैंने सलाद बनाया । पर मुझे सब्ज़ियाँ ढूँढने में भी मुश्किल हुई । सब्जियाँ काटते वक्त मेरी उंगली भी कट गई । सब्जियों का आकार खराब था, उसे मैंने काटकर ठीक कर दिया । मैंने शलगम काटे, गाजर कद्दूकस की, खीरा अच्छी तरह से छीला और काटा । आखिर में मैंने टमाटर छोटा-छोटा काटा । फिर सबको एक सुंदर-सी प्लेट में काट दिया ।
फिर मैंने नीम्बू का शरबत बनाया । मुझे नीम्बू निचोड़ने वाली चीज़ नहीं मिली पर मैंने नीम्बू हाथ से ही निचोड़ लिया और पानी डाला । फिर ऊपर से नमक, चाटमसाला छिड़क दिया और सब को अच्छी तरह से मिला दिया । ऐसे मेरे सारे पकवान तैयार हो गए।
मेरे माता और पिता को खाना बहुत पसन्द आया ।

               बाल दिवस (जाह्नवी, कक्षा 7)

बाल दिवस को दुनिया में बहुत सारे देश मनाते हैं। इस दिन को हर देश अपने देश के बच्चों को प्रेम व स्नेह देने के लिए इसे मनाते हैं । हर देश के अलग-अलग दिनों पर इसे मनाता है। हम भारत में नवम्बर १४ पर "बाल दिवस" मनाते हैं। नवम्बर १४ को हमारे देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की जन्मदिन था। जवाहरलाल नेहरू जी अचकन पहनते थे और हमेशा गुलाब का फूल भी लगाते थे । वे बच्चों कोकहानियाँ सुनाते थे । जवाहरलाल नेहरू जी ने गांधी जी के साथ भारत के लिए अंग्रेजों से लड़ाई की। जब भारत को मुक्ति मिली तो नेहरू जी हमारे देश के पहले प्रधानमंत्री बने। नेहरू जी बच्चों को बहुत प्यार करते थे। इसी कारण हम उनके जन्मदिन पर "बाल दिवस" मनाते हैं।
पूरे देश में हम बच्चों के लिए मज़ेदार दिन है। पाठशालाओं में अध्यापक/अध्यापिका और स्कूल के सभी लोग उस स्कूल में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिए एक कार्यक्रम रखते हैं ।
हमारे स्कूल में हम बाल दिवस पर बहुत मज़ा करते हैं। पूरे दिन हम केवल खेलते हैं । खाने के समय में हमारे लिए रसोई घर में अच्छे खाने और मिठाइयाँ बनाई जाति हैं। दोपहर में हम एक चलचित्र देखते हैं अथवा हमारे लिए शिक्षक/शिक्षिकाएँ एक मनोरंजक कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं।
मुझे बाल दिवस पसन्द है क्योंकि इस दिन पर हम बच्चे देश पर राज्य करते हैं । हमें सारा संसार बधाई देता है। पर मुझे यह भी पता है कि देश में बहुत से बच्चों को अच्छी तरह से खाना-पीना भी नहीं मिलता है। मैं चाहती हूँ कि इस वर्ष से हम इन बच्चों का पौष्टिक भोजन दें और इनके आने वाले कल में इनकी मदद करें।

                चिड़ियाघर  (अजय, कक्षा 6)

मैं २०१२ में सिंगापुर ज़ू गया था । मैं अपने परिवार के साथ गया था। वहाँ हमने बहुत जानवर देखे। लम्बे-लम्बे ज़िराफ, बड़े शेर, चीता, बहुत बड़ा हाथी, लम्बे साँप, बन्दर, लंगूर, लोमड़ी आदि । हमने बहुत-से पक्षी भी देखे जैसे कि सुन्दर मोर, चिड़ियाँ, बतख, तोते, कबूतर आदि । मुझे यह ज़ू बहुत अच्छा लगा और मुझे वहाँ फिर से जान है। हमको बहुत मज़ा आया क्योंकि वहाँ इतने सारे पक्षी थे । ज़िराफ की लम्बी गर्दन, बड़े-बड़े शेर और इतने सारे साँप सब कुछ बहुत पसन्द आया ।
हम एक साँप घर में भी गए और मुझे बहुत अच्छा लगा क्योंकि वहाँ बहुत सारे अलग तरह के साँप थे और बहुत लम्बे-लम्बे । उस साँप गर में बहुत-से साँप थे जैसे कि पाइथन, कोबरा, चूहा साँप आदि। पर सबसे अच्छा था- तोता। वहाँ एक बड़ा पक्षी भी था, उसका नाम था-ओस्ट्रिच अथवा शुर्तुर्मुग, वह शेर से भी बड़ा था। मैंने उसके साथ बात भी की। मैं फिर से वहाँ जाना चाहता हूँ।

                  मेरा देश (यश, कक्षा 7)

मेरा देश का नाम भारत है। हमारी मातृभूमि भारत है। हिमालय हमारे देश के उत्तर दिशा पर खड़ा है। हमारे देश का दक्षिणी भाग तीन सागरों से घिरा हुआ है। इन तीन सागरों के नाम हैं- बंगाल की खाड़ी, अरब महासागर और हिन्द महासागर। कई वर्षों तक भारत अंग्रेजों का गुलाम रहा । उन्नीस सौ सैंतालीस में हमें आज़ादी मिली। हमारे देश का गणतंत्र दिन "छब्बीस जनवरी" को मनाया जाता है और स्वतंत्रता दिन "पन्द्रह अगस्त" को मनाया जाता है।
हमारे देश में बहुत ज़्यादा भाषाएँ हैं। हमारे देश में एक हज़ार छ: सौ पचास भाषाएँ हैं। उनतीस राज्य हैं जिनमें ये भाषाएँ बोली जाती हैं और इन उनतीस राज्यों में हिन्द, बौद्ध, सिक्ख, जैन, पारसी, मुसलमान, क्रिस्तानी धर्म के लोग रहते हैं। हमारे देश का राष्ट्रीय फूल "कमल", राष्ट्रीय फल "आम", राष्ट्रीय भाषा "हिन्दी", राष्ट्रीय गीत "जन गन मन" और राष्ट्रीय चिह्न "अशोक स्तम्भ" है ।
सालों पहले हम लड़ते थे लेकिन आज हम दोस्त बनकर रहते हैं। हमारे देश में बहुत सारी नदियाँ भी बहती हैं-गंगा, यमुना, नर्मदा और कावेरी । यह सब हमारी पवित्र नदियाँ हैं । हमारे देश में बड़े पर्वत हैं जैसे कि-कुद्रेमुख, कंचनजंघा, हिमालय आदि। बहुत सारे महापुरुषों का जन्म इधर हुआ था जैसे गांधी जी जो अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़े। चाचा नेहरू जो आज़ाद भारत के पहले प्रधानमंत्री बने। हमारे देश के अन्य प्रसिद्ध नेता हैं-जवाहर लाल नेहरू, इन्दिरा गांधी, डॉक्टर मनमोहन सिंह , बाबा साहेब अम्बेडकर आदि। इस साल यानि कि दो हज़ार चौदह के प्रधानमंत्री हैं- नरेन्द्र मोदी।

             भेड़िया और मेमना (पतंजलि, कक्षा 7)

एक दिन एक मेमने का रेवड़ घास चरने जा रहा था । एक मेमने ने कुछ अज़ीब देखा । वह एक जंगल में था। वह उस अज़ीब चीज की ओर चला पर जब वह वहाँ पहुँचा तब उसे पता चला कि वह एक छोटा-सा पेड़ था जो हिल रहा था । उसने पीछे मुड़कर देखा तो उसे पता चला कि वह अपने रेवड़ से बिछुड़ गया था ।
मेमने रेवड़ को ढूँढने लगा पर वह और भी घने जंगल में चला गया । मेमने को कुछ देर बाद पता चला कि वह रेवड़ से पूरी तरह बिछड़ गया । वह रास्ता भूल गया है। मेमना बहुत उदास हुआ। तभी वहाँ एक भेड़िया आया और उसने मेमने को खा जाने की धमकी दी । मेमना ने थोड़ी देर सोचकर उसे कहा," मुझे मारने से पहले आप मेरी एक इच्छा को पूरी करें । मैं चाहता हूँ कि आप गाएँ और मैं नाचूँ।" भेड़िए ने बहुत देर तक सोचा और फैसला लिया कि वह गाएगा।
भेड़िया गाना गाने लगा और मेमना नाचने लगा। कुत्तों का झुंड भेड़िये का गान सुनकर दौड़ा चला आया । वे भेड़िए का पीछा करने लगे और मेमने की जान बच गई। उन कुत्तों में से एक कुत्ते को वह जानता था । मेमने ने उस कुत्ते से पूछा कि क्या वह उसे उसके रेवड़ से मिला सकता है। " उस कुत्ते ने "हाँ" कहकर मेमने को रेवड़ के पास ले गया। वह कुत्ते को धन्यवाद कहते हुए रेवड़ के बीच में चला गया। उसने अपनी पूरी कहानी अपने रेवड़ को सुनाई। वे सब बहुत खुश थे कि वह बच गया । अगले दिन उसे वही कुत्ता मिला और मेमने से बोला कि भेड़िए को जंगल से निकाल दिया है। उसके बाद मेमना भी बहुत उदास था क्योंकि भेड़िए के पास रहने के लिए घर नहीं था।

             मैंने होली कैसे मनाई?  (रिया, कक्षा 7)

होली रंगबिरंगा और मस्ती से भरा एक पर्व है। इस दिन सारे लोग अपने पुराने गिले-शिकवे, भूल कर गले लगते हैं और इक-दूजे को गुलाल लगाते हैं। फाल्गुन मास क पूर्णिमा को यह त्योहार मनाया जाता है। होली वसंत ऋतु में आती है।
होली को "रंगों का त्योहार" भी कहते हैं। होली दक्षिणी एशिया का एक लोकप्रिय त्योहार है। इस लोकप्रिय त्योहार के पीछे एक लोकप्रिय कथा भी है। यह लोकप्रिय कथा ऐसे है- भक्त प्रह्लाद के पिता हरिण्यकश्यप स्वयं को भगवान मनाते थे। वह विष्णु के विरोधी थे जबकि प्रह्लाद विष्णु भक्त था । उन्होंने प्रह्लाद को विष्णु भक्ति करने से रोका। जब वह नहीं माना तो उन्होंने प्रह्लाद को मारने का प्रयास किया। प्रह्लाद के पिता ने आखिर अपनी बहन होलिका से मदद माँगी। होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। होलिका अपने भाई की सहायता करने के लिए तैयार हो गई। होलिका प्रह्लाद को लेकर चिता में जा बैठी परन्तु विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहा और होलिका जल कर भस्म हो गई। यह कथा इस बात का संकेत करती है कि अच्छाई की हमेशा जीत होती है।
होली के दिन सभी एक-दूसरे के गले मिलते हैं। बच्चे और युवा रंगों के साथ होली खेलते हैं और बड़े भी एक-दूसरे को गुलाल लगाते हैं। होली पर बच्चे पानी में रंग मिलाकर सब पर फेंकते हैं। होली पर पिचकारि में रंग भर कर सब को रंगबिरंगा बनाया जाता है। मैं और मेरी सहेलियाँ दूसरे लड़कों और लड़कियों पर रंग डालते हैं । जब हम होली खेलकर घर जाते हैं। हम सब नीले, पीले, गुलाबी आदि रंगों के होते हैं। हम सब बहुत मजे करते हैं। मेरे घर पर होली के दिन गुज़िया, ठंडाई, नमकीन, समोसे आदि बनते हैं और मेरी माँ सब को ये सारी वस्तुएँ देती हैं।
मुझे होली बहुत पसन्द है क्योंकि इतने मज़े करते हैं। जब मैं छोटी थी तब से होली खेलती हूँ और खेलती रहूँगी ।

              महात्मा गांधी  (आदित्य भंसाली, कक्षा 7)

हमारे प्रिय नेता मोहनदास कर्मचंद गांधी प्रमुख राजनैतिक नेता थे। वे सत्य और अहिंसा को मानने वाले थे। उन्हें पूरी दुनिया में "महात्मा गांधी" के नाम से जाना जाता था। महात्मा का मतलब "महान आत्मा"। उनको सम्मान देने के लिए सब उन्हें महात्मा गांधी कहकर पुकारते थे।
उनका जन्म २ अक्टूबर १८६९ में हुआ था। उनका जन्म दिन भारत में "गांधी जयंती" के रूप में और पूरे विश्व में "अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस" के रूप में मनाया जाता है। गांधी जी भारत के सबसे लोकप्रिय नेता थे । उन्होंने भारत को आज़ादी दिलाने के लिए बहुत कार्य किया था । उनकी सोच अलग थी। वे हिंसा को बिल्कुल नहीं मानते थे । गांधी जी सभी परिस्थिति में अहिंसा और सत्य का पालन करते थे और सभी को यही शिक्षा देते थे।
इसी कारण उनका एक कथन सबसे अधिक प्रचलित हुआ। वह था "बुरा मत बोलो, बुरा न सुनो और बुरा न देखो।" इसी के आधार पर ही वे सबको शिक्षा देते थे। हम बचपन से सुनते आए हैं कि गांधी जी के तीन बन्दरों की मूर्ति के बारे में। एक बन्दर ने अपनी आंखों पर, दूसरे ने अपने कानों पर और तीसरे ने अपने मुँह पर हाथ रखा। जिसका मतलब था कि बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत बोलो।
आज भी महात्मा गांधी जी का यह संदेश बहुत महत्त्व रखता है। यदि हम इस पर चले तो कई परेशानियों से बच सकते हैं और जीवन आसान होगा ।

                  दशहरा  (निवेदिता, कक्षा 7)

दशहरे का त्यौहार भारत में बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। इस त्यौहार को "विजयदशमी" के नाम से भी जाना जाता है। यह त्यौहार अश्विन मास में शुक्ला दशमी पर मनाया जाता है। माँ दुर्गा की नौ दिनों तक पूजा करने के पश्चात दशमी के दिन यह त्यौहार मनाया जाता है। यह त्यौहार बुराई पर अच्छाइ की जीत का प्रतीक माना जाता है। इस दिन रावण का पुतला पूरे देश भर में जलाया जाता है।
इस दिन भगवान राम ने राक्षस रावण का वध कर माता सीता को उसकी कैद से छुड़ाया था और सारा समाज भयमुक्त हुआ था । रावण को मरने से पूर्व राम ने दुर्गा की आराधना की थी । माँ दुर्गा ने उनकी पूजा से प्रसन्न होकर उन्हें विजय का वरदान दिया था । रावण दहन आज भी बहुत धूमधाम से किया जाता है। दुर्गा की मूर्ति की स्थापना कर पूजा करने वाले भक्त मूर्ति विसर्जन का कार्यक्रम भी बाजे-गाजे के साथ करते हैं।
भक्तगण दशहरे में माँ दुर्गा की पूजा करते हैं। कुछ लोग व्रत एवं उपवास भी करते हैं। पूजा की समाप्ति पर पुरोहितों को दान-दक्षिणा देकर संतुष्ट किया जाता है। भारत के सभी स्थानों में अलग-अलग रूप में दशहरा मनाया जाता है। कहीं यह "दुर्गा विजय" के प्रतीक स्वरूप मनाया जाता है तो कहीं नवरात्रों के रूप में। बंगाल में दुर्गा पूजा का विशेष आयोजन किया जाता है। इस त्यौहार उत्तर धारा में "रामलीला" स्थान-स्थान पर होती है। इस के द्वारा सब लोगों को "राम" के कार्य के बारे में जानकारी मिलती है। "राम" जैसे "आदर्श महापुरुष" को आज भी सब याद करते हैं। यह त्यौहार हर्ष और उल्लास का प्रतीक है। इस दिन मनुष्य को अपने अंदर व्याप्त पाप, लोभ, मद, क्रोध, आलस्य, चोरी आदि भावनाओं को समाप्त करने की प्रेरणा मिलती है।
यह त्यौहार जीवन में हर्ष और उल्लास भर देता है। साथ ही यह जीवन में कभी अहंकार न करने की प्रेरणा भी देता है।

                   किसान (ईशा, कक्षा 7)

किसान गाँव में रहते हैं। उनके घर मिट्टी और सूखी घास से बने होते हैं। वे अपने घर में कई तरह के जानवर रखते हैं जो उनको सहायता देते हैं। बैल और गाय उनको खेती में मदद करते हैं। गाय-बैल के गोबर से वे उपले बना कर आग जलाते हैं। वे गोबर को घर की ज़मीन पर भी लगाते हैं। गायों से उन्हें दूध भी मिलता है। मुर्गी उनको अंडे देती है और खाने के लिए माँस भी । बकरी से भी दूध और माँस दोनों मिलता है।
किसान खेतों में बहुत मेहनत करते हैं। पहले बैल की सहायता से हल चलाते हैं फिर बीज बोते हैं। इसके बाद खेतों में पानी डालते हैं और बेकार तृण भी निकालते हैं। जब पौधे बड़े होते हैं तो फसल उगाते हैं। बाद में फसल काटकर बाज़ार में बेचते हैं। ये किसान हर मौसम में बाहर काम करते हैं चाहे गर्मी हो या सर्दी। अगर बारिश न आए तो खेत को कुएँ के पानी से जल पूर्ति करनी पड़ती है।
किसान बहुत सीधा-साद जीवन बिताते हैं। बहुत सारे गाँवों में बिजली नहीं होती और होती भी है तो सिर्फ दो-तीन घंटों के लिए। इसले किसान सूरज के उगने के साथ उठते हैं और सोते भी हैं। औरतों को घर में पानी नहीं मिलता इस कारण उन्हें कभी-कभी बहुत दूर से पानी नदी या कुएँ से लाना पड़ता है।
किसान को हम "अन्नदाता" कहते हैं क्योंकि उनकी मेहनत से हमें दाल, चावल, फल, चीनी और सब्ज़ी खाने के लिए मिलते हैं। हमारी सरकार को उन्हें ज्यादा सहायता देनी चाहिए जैसे कि अच्छी सड़कें, स्कूल, पीने का पानी और बिजली आदि। इसके अलावा सरकार उनकी ज़मीन भी ले लेती और उस पर बड़े-बड़े अपार्टमेंट या हाईवे बनाए जाते हैं।

      जब मैंने अपने लिए पहली बार खाना बनाया  

               (अनाभरा, कक्षा 6)

मुझे खाना खाने और बनाने का बहुत शौक है। बचपन से मैं सबको खाना बनाते हुए देखती आई हूँ। मुझे मिठाइयाँ बहुत पसन्द हैं शायद इसलिए मैंने सबसे पहले "चीज़ केक" बनाया। केक बनाने की विधि मेरी मामी से मिली थी। वे मेरी माँ, दादी और मौसी की तरह ही बहुत अच्छा खाना बनाती हैं। मैंने केक ऐसे बनाया-
सामग्री- दो अण्डे, टिन और फेंटने के लिए ।
विधि- मेरे पास केक मिक्सर नहीं था और वैसे भी मेरी दीदी कहती हैं कि पहले केक हमेशा हाथ से बनाना चाहिए । सबसे पहले मैंने एक कटोरी में दो अण्डे तोड़े । मैंने उसको दस मिनट तक फेंटा। फिर मैंने पिसी हुई चीनी डाली । उसके बाद मैं लगातार बीस मिनट फैंटती रही। मैं बहुत थक गई थी, मेरी कलाई बहुत दर्द कर रही थी। पर मैं फिर भी फेंटती गई। मैंने वनीला एसेन्स डाला और हल्का सा हिलाया। फिर मैंने उसमें तेल मिलाया । मैंने दो कागज़ अखबार वाले खोले और एक कागज़ में आटा, बैंकिग पाउडर और कोको पाउडर डाला । ऐसा करते वक्त मेरे चेहरे पर भी आटा लग गया। एक कागज़ से दूसरे कागज़ पर छलनी से यह सब छाना और यह दो-तीन बार किया ताकि सब अच्छी तरह से मिल जाए। फिर मैंने दोनों मिक्सचर को हल्के से मिलाया दूध के साथ । फिर मैंने बैंकिग टिन को मक्खन लगाया ताकि केक टिन में नहीं चिपके। मैंने ओवन को गर्म किया और केक बनने के लिए उसमें रखा ।
आधे घंटे के बाद मैंने ओवन खोला । मेरा दिल ज़ोर से धड़क रहा था । क्या यह केक ठीक बना था? मैंने ज्यादा चीनी तो नहीं डाली ना? हर तरह के सवाल मेरे मन में उठ रहे थे। केक थोड़ा-सा जल गया था पर उसका स्वाद बहुत अच्छा था । मैंने अपने सारे परिवार वालों को खिलाया। सब बोले कि केक बहुत अच्छा बना था पर मुझे लगा कि अच्छा है पर मुझे अभी बहुत कुछ सीखन है। केक अच्छा तो बना था पर पूरी तरह से ठीक नहीं बना था । खैर , यह तो मेरी पहली कोशिश थी।

                कहानी (अनाभरा, कक्षा 6)

एक बेल पर एक रसीला तरबूज लगा था। वह बेसब्री से इन्तेज़ाम कर रहा था कि कोई उसे तोड़ेगा। बहुत देर बाद एक बूढ़ी अम्मा उस रास्ते से गुज़री। उन्होंने उस रसीले और बड़े-से तरबूज को देख लिया। उसे देखकर उन्होंने सोच लिया कि उन्हें वह तरबूज हर हाल में खाना था। पर अपनी उम्र की वजह से वे बेल से उस तरबूज को नहीं छोड़ पाईं। मियाँ कुक्कड़ बूढ़ी अम्मा को परेशान देख उनके पास गए और पूछा,"क्या हुआ बूढ़ी अम्मा? इतनी उदास क्यों लग रही हो?" बूढ़ी अम्मा ने जवाब दिया," अरे भाई, क्या बताऊँ मैं आपको? उस बेल पर लगे रसीले तरबूज को मुझे खाना है लेकिन मैं उसे तोड़ नहीं पा रही हूँ।" मियाँ कुक्कड़ ने बूढ़ी अम्मा से कहा कि उसका दोस्त धोबी का गधा एक बन्दर को जानता है जो उस रसीले तरबूज को बेल से तोड़ सकता है। मियाँ कुक्कड़ ने धोबी के गधे को उलाया और उसे पूरी कहानी उसे समझाई। धोबी के गधे ने कहा कि वह बन्दर को बुलाकर लाता है। पर उसने इसके लिए एक शर्त रख दी कि उसे भी तोड़ा-सा तरबूज खाने को मिलेगा। मियाँ कुक्कड़ ने बूढ़ी अम्मा से पूछा तो अम्मा ने हामी भर दी।
कुछ देर के बाद बन्दर आया। उसने कहा कि वह सिर्फ एक शर्त पर तरबूज लाएगा। मियाँ कुक्कड़ ने सोचा," अरे, फिर से एक शर्त।" शर्त यह थी कि उसे रसीले तरबूज के अन्दर जो मखमली जूती होगी वह उसकी होगी। मियाँ कुक्कड़ ने बूढ़ी अम्मा से पूछकर "हाँ" कहा। बन्दर जल्दी से बेल पर चढ़कर तरबूज तोड़कर नीचे आया। बूढ़ी अम्मा ने कहा,"आओ, तुम सब मेरे घर आओ । मैं तुम सबको तरबूज काटकर दूँगी और मखमली जूती भी।" वे सब बूढ़ी अम्मा के घर गए और मेज़ के आस-पास बैठकर बूढ़ी अम्म के इन्तज़ार में बैठे रहे। बूढ़ी अम्मा एक थाली में कटा हुआ तरबूज और दूसरी थाली में मखमली जूती लेकर आईं। उन्होंने गधे, मियाँ कुक्कड़ को तरबूज खिलाया और खुद भी जी भरकर तरबूज खाया। बन्दर को उन्होंने मखमली जूती दी। बन्दर ने उस मखमली जूती को महाराज को बेच दिया और बदले में बहुत-सा धन कमाया। बूढी अम्मा मियाँ कुक्कड़ की अच्छी दोस्त बन गईं क्योंकि दोनों को ही तरबूज़ खाना अच्छा लगता है। 

दीपावली (गजल यादव, अम्बरा समूह)

भारत में बहुत सारे त्यौहार मनाए जाते हैं जैसे की होली, दीपावली, ईद, क्रिसमस आदि। दीपावली पूरे भारत में मनाया जाता है। मुझे दीपावली सबसे अच्छा लगता है क्योंकि इस दिन मैं घर में रंगोली बनाती हूं और सबके घर जाकर मिठाई देती हूं । दीपावली को बोलचाल की भाषा में दीवाली कहा जाता है । यह त्यौहार कार्तिक महीने की अमावस्या को मनाया जाता है । दीपावली का पहला दिन धन तेरस होता है । धनतेरस को सोना या चाँदी खरीदना शुभ माना जाता है । दीपावली को दुकाने दीये और फूलों से सजी रहती हैं । बच्चे नए कपडे और पटाखे खरीदते हैं । लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा के साथ -साथ सरस्वती जी की भी पूजा करते हैं । मुझे दीपावली में बहुत मज़ा आता है । 
टेलीविजन  (गजल यादव, अम्बरा समूह)
मेरा टेलीविजन बहुत बड़ा और चौकोर है। इसका रंग काला है । मेरा टेलीविजन रिमोट कंट्रोल पर चलता है। इसमे बहुत सारे चैनल हैं जो छ: -सात भाषाओं में होते हैं। ये कई प्रकार के होते हैं जैसे की मनोरंजन, खेल, बच्चों के कार्यक्रम, समाचार , गाने, सीख देने वाले कार्यक्रम, भगवान के कार्यक्रम आदि । मेरा मनपसंद कार्यक्रम है - ड्युअल सरवाइवल जो डिस्कवरी पर आता है । इससे मुझे जंगल के बारे में सीख मिलती है । टेलीविजन पर एनीमल प्लनेट, डिस्कवरी , नेशनल ज्योग्रफिक आदि चैनलों से हमें सीख मिलती है । 
टेलीविजन के आविष्कार के कारण अधिकतर सब लोग बच्चे से बूढ़े पुरे दिन खेल -कूद और घूमने आदि को छोड़कर इस बक्से के सामने बैठे रहते हैं । लेकिन टेलीविजन को देखकर हम घर बैठे-बैठे दुनिया के समाचार जान सकते हैं ।