Monday, March 31, 2014

Story on proverb - Ab pachtaye hot kyaa jab chidiya chug gai kheth/ अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गईं खेत


मैं वैली स्कूल में आई. सी. एस. ई  में भी हिंदी पढ़ाती हूँ । इस बोर्ड के हिंदी पेपर में कहावत के ऊपर एक निबंध पूछा जाता है । बच्चों से कई सारी  कहावतों पर निबंध लिखाना मुश्किल है इसलिए हर छात्र-छात्रा को अलग-अलग कहावत दी जाती है जिस पर वे निबंध लिखते हैं और फिर कक्षा में सब छात्र-छात्राएँ अपने लिखे निबंध पढ़ते हैं जिससे सबको कहावतें भी समझ आ जाएँ और परीक्षा में उन्हें कोई मुश्किल न हो । इन कहावतों पर लिखे निबंधों को छात्र-छात्रों को सुनाया जा सकता है या उन्हें पढ़ने के लिए दिया जा सकता है जिससे उन्हें कहावतों का अर्थ अच्छी तरह से समझ आ सके । हर कहावत के आगे वर्ष लिखा गया है , इसका मतलब है कि यह कहावत बोर्ड में उस वर्ष में पूछी गई है । आशा है कि यह सामग्री अध्यापकों और अध्यापिकाओं के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के लिए भी उपयोगी होगी । 

अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गईं खेत (आयुष कुंडु)
मेरा नाम मयंक है । मैं एक कालेज में पढ़ता हूँ । मेरा दोस्त मेरी कक्षा में है और हम दोनों हमारे कालेज से बहुत दूर रहते हैं । मेरा दोस्त इमरान एक गरीब परिवार से है और वे हर दिन घर से कालेज बिना गाड़ी या साइकिल के जाता था ।
जब मैं स्कूल जाता था तब मेरे पिता उसे अपनी गाड़ी में छोड़ देते थे । एक दिन मैंने एक नयी साइकिल खरीद ली , वह साइकिल १०,००० रुपए की थी। तो उसी दिन से मैं साइकिल से कालेज जाता था। एक दिन मेरा दोस्त आता है और पूछता है कि क्या वह मेरी साइकिल चला सकता है । मैं बहुत डरता था क्योंकि अगर वे मेरी साइकिल को क्षति पहुँचाएगा तो मेरे पिता बहुत गुस्सा हो जाएंगे और इमरान के पास पैसे नहीं हैं तो मुझे मरम्मत के लिए पैसे देने पड़ेंगे । इसलिए मैं ने उससे कहा कि वह मेरी साइकिल नहीं चला सकता ।
उस दिन के बाद दो हफ्ते बीत गए, पर वह बार-बार मुझसे मेरी साइकिल चलाने के लिए  पूछता । वह मुझसे कहता कि वह इस जीवन में कभी भी अपने लिए मंहगी साइकिल नहीं खरीद पाएगा । यह सुनकर मुझे बड़ा दु:ख होता और बार-बार उसे दु:खी देखकर आखिरकार एक दिन मैंने उसे अपनी साइकिल चलाने के लिए दे दी । इमरान की खुशी का ठिकाना नहीं था । वह मेरी साइकिल पूरे गाँव में चलाता फिरा क्योंकि उसे पता था कि उसे ऐसी साइकिल चलाने का फिर कभी मौका नहीं मिलेगा । मैं भी उसे खुश देखकर बहुत खुश था । मुझे खुशी थी कि मैंने अपने दोस्त की इच्छा पूरी कर दी ।
थोड़ी देर के बाद मैंने सुना कि इमरान के साथ दुर्घटना हो गई और वह उसमें घायल हो गया । वह संकटपूर्ण हाल में था । मैं जल्दी से उसके पास गया और मैंने देखा कि मेरी १०,००० रुपए वाली साइकिल पूरी तरह से नष्ट हो गई थी । मुझे बहुत गुस्सा आया पर अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत । मैं तो सिर्फ इमरान के स्वास्थ्य के लिए चिंतित था । दो दिन के बाद उसने साइकिल की पूरी रकम मेरे हाथ पर रख दी । हम दोनों ने पहले जैसे ही अपनी दोस्ती जारी रखी और अपने जीवन के अंत तक हम दोस्त बने रहे । 









                        

Story on proverb- Aap bhala to jag bhala/ आप भला तो जग भला


मैं वैली स्कूल में आई. सी. एस. ई  में भी हिंदी पढ़ाती हूँ । इस बोर्ड के हिंदी पेपर में कहावत के ऊपर एक निबंध पूछा जाता है । बच्चों से कई सारी  कहावतों पर निबंध लिखाना मुश्किल है इसलिए हर छात्र-छात्रा को अलग-अलग कहावत दी जाती है जिस पर वे निबंध लिखते हैं और फिर कक्षा में सब छात्र-छात्राएँ अपने लिखे निबंध पढ़ते हैं जिससे सबको कहावतें भी समझ आ जाएँ और परीक्षा में उन्हें कोई मुश्किल न हो । इन कहावतों पर लिखे निबंधों को छात्र-छात्रों को सुनाया जा सकता है या उन्हें पढ़ने के लिए दिया जा सकता है जिससे उन्हें कहावतों का अर्थ अच्छी तरह से समझ आ सके । हर कहावत के आगे वर्ष लिखा गया है , इसका मतलब है कि यह कहावत बोर्ड में उस वर्ष में पूछी गई है । आशा है कि यह सामग्री अध्यापकों और अध्यापिकाओं के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के लिए भी उपयोगी होगी । 

आप भला तो जग भला (आयुष कुंडु)

२६ जनवरी १९८७ में एक छोटे से बच्चे का जन्म हुआ । उस लड़के का नाम राघव था । वह एक अमीर परिवार में पैदा हुआ था । जब वह छोटा था तब सारे गाँव के लोग उससे बुरी बाते करते थे क्योंकि उसका परिवार गरीब लोगों के लिए कुछ नहीं करता था ।
राघव एक प्रसिद्ध पाठशाला में पढ़ाई करता था और वहाँ सारे छात्र बहुत मंहगे कपड़े पहनते थे और विदेशी गाड़ियाँ चलाते थे । एक दिन जब राघव स्कूल से वापिस आ रहा था तो उसने देखा कि एक बच्चा बारिश में बैठा था क्योंकि उसके पास कोई घर नहीं था । वह सिर्फ एक गंजी पहनकर और एक प्लास्टिक की थैली अपने सिर के ऊपर लेकर बैठा था । राघव ने अपने पिता से पूछा कि क्या वे उसके लिए पैसा दे सकते हैं । पर उसके पिताजी ने निराश भरा मुख बनाकर कहा कि हमें उन लोगों से दूर रहना चाहिए क्योंकि वे लोग हम पर बुरा प्रभाव डालते हैं । यह सुनकर राघव बहुत दु:खी हो गया क्योंकि वह उस लड़के की मदद नहीं कर सकता था ।

उस दिन राघव ने अपने से एक वादा किया कि जब वह बड़ा हो जाएगा तब वह अपने सारे पैसे गरीब लोगों को देगा ताकि वे अच्छी ज़िंदगी बिता सकें । दस साल के बाद जब राघव के पिताजी की मौत हो गयी तब उसे विरासत में बहुत कुछ मिला तब उसने यहूदी बस्ती जाकर अपने सारे पैसे गरीब लोगों को दिये । वे लोग बहुत हैरान थे पर कृतज्ञ थे और लोगों ने उसके इस दयालुता भरे कार्य को देखकर एक सबक सीखा । उस दिन से जब भी वे देखते कि किसी के पास कुछ नहीं है तो वे लोग हमेशा उसकी मदद करते । सच ही है कि आप भला तो जग भला । हम अगर किसी का भला अथवा अच्छा करते हैं तो संसार भी अच्छा ही करता है ।




Story on proverb - Jo garajte hain baraste nahi/ जो गरजते हैं वो बरसते नहीं


मैं वैली स्कूल में आई. सी. एस. ई  में भी हिंदी पढ़ाती हूँ । इस बोर्ड के हिंदी पेपर में कहावत के ऊपर एक निबंध पूछा जाता है । बच्चों से कई सारी  कहावतों पर निबंध लिखाना मुश्किल है इसलिए हर छात्र-छात्रा को अलग-अलग कहावत दी जाती है जिस पर वे निबंध लिखते हैं और फिर कक्षा में सब छात्र-छात्राएँ अपने लिखे निबंध पढ़ते हैं जिससे सबको कहावतें भी समझ आ जाएँ और परीक्षा में उन्हें कोई मुश्किल न हो । इन कहावतों पर लिखे निबंधों को छात्र-छात्रों को सुनाया जा सकता है या उन्हें पढ़ने के लिए दिया जा सकता है जिससे उन्हें कहावतों का अर्थ अच्छी तरह से समझ आ सके । हर कहावत के आगे वर्ष लिखा गया है , इसका मतलब है कि यह कहावत बोर्ड में उस वर्ष में पूछी गई है । आशा है कि यह सामग्री अध्यापकों और अध्यापिकाओं के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के लिए भी उपयोगी होगी । 




जो गरजते हैं वो बरसते नहीं  (दिया) 1988

डाँडेली नामक गाँव में एक हज़ार लोग रहते थे । वे खुशी से अपना जीवन जी रहे थे, जब एक डाकू ने उनके गाँव में आकर सभी को हैरान कर दिया । अब लोग जीने से भयभीत हो गए और उस डर से जी रहे थे । एक महीने तक यह डाकू गाँव के लोगों को डराता रहा । गाँव के प्रधान भी उनसे डरे हुए थे । इन दिनों में सड़क पर सिर्फ एक-दो लोग घूमते-फिरते थे और शाम पाँच बजे के बाद सब लोग अपने घर में ताला लगाकर बैठ जाते थे । इस समय डाकू सड़क पर अपने दो-तीन दोस्तों के साथ घूमता था । जब डाकू को भूख लगती थी, वह पास के घर में जाकर ज़ोर से कहता,"दरवाजा खोलो ! मुझे खाना दो...... नहीं तो मैं तुम्हारे बच्चों को जंगल में फेंक दूँगा ।" फिर धीरे से दरवाजा खुलता और घर की माँ उन्हें सब खाना दे देती । अक्सर डाकू खाना खाकर वहाँ दो-तीन घंटों के लिए सो जाता । इसी तरह वह इन गरीब लोगों को निरन्तर डराता रहता ।
एक दिन डाकू बहुत-ही क्रोधित था क्योंकि जब वह शिकार पर गया था, उन्हें हिरण नहीं मिला और जब उन्हें कुछ चाहिए था वे उसे लेकर ही चुप रहते हैं । डाकू सड़क पर घूम रहा था जहाँ बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे । बच्चे अपने खेल में मज़े ले रहे थे और इतने डूबे हुए थे कि उन्होंने डाकू की आवाज़ नहीं सुनी । जब डाकू ने उनके पास आकर देखा तो वे डर गए । डाकू ने उन्हें डरे हुए देखा और हँसने लगा । इसी समय उनके मन में एक उपाय आया । उन्होंने तय किया कि वे बच्चों को लेकर जंगल में जाएंगे और उन बच्चों के माता-पिता से कहेंगे कि जब तक वे उन्हें एक हिरण लाकर नहीं देंगे तब तक बच्चे उसके साथ खतरनाक जंगल में रहेंगे ।
डाकू ने सब बच्चों को घेरा और जंगल की ओर चलने लगा । इसी समय बच्चे काँपते हुए चिल्लाने लगे । सब घरों से लोग निकलने लगे । उन बच्चों के माता-पिता भी बाहर खड़े थे, जब डाकू ने कहा," मैं इन बच्चों को जंगल में रखने वाला हूँ, तब तक तुम लोग मेरे लिए एक हिरण लाओ । अगर मेरे लिए हिरण नहीं लाए तो मैं इन मासूम चेहरों को पेड़ पर बाधूँगा ।"
यह कहकर वह जंगल की ओर चलने लगा । उन बच्चों के माता-पिता चिल्लाने लगे परन्तु डाकू ने किसी की बात नहीं सुनी । इस हलचल में एक आदमी था कि यह डाकू बस बोलता है वह कुछ करता नहीं । जब हलचल थोड़ी कम हो गई , उसने उन माता-पिता से जाकर कहा कि वे डाकू को जानते हैं और उनके अनुसार डाकू सिर्फ भौंकता है, वह काटेगा नहीं । यह सुनकर लोग क्रोधित होकर पूछने लगे कि यह आदमी तो अभी-अभी इस गाँव में आया है, उसे कैसे पता कि यह डाकू क्या करेगा? फिर उस आदमी ने उन्हें पूछा कि क्या पहले इस डाकू गालियाँ देने के अलावा कुछ खतरनाक कदम उटाया है? यह प्रश्न सुनकर सब लोग चुप हो गए । वे सोचने लगे और उन्होंने कहा कि उसने आज तक सिर्फ गालियाँ दीं पर कुछ नहीं किया है ।
गाँव के सब लोग और यह आदमी जंगल गए और बच्चों को वापिस लाए । उन्होंने डाकू से कहा कि एक शर्त पर वे उन्हें  गाँव में रहने देंगे । उन्हें दादागिरी बन्द करनी पड़ेगी । इससे सब खुशी में रह सकते हैं । अंत में उस आदमी ने डाकू से कहा कि जो गरजते हैं, वे बरसते नहीं ।


जो गरजते हैं ,बरसते नहीं हैं (नवनीत)
उसका नाम राहुल था , वह मेरा सबसे प्यारा दोस्त था । राहुल खुशी से भरपूर लड़का था । उसको खेलना-कूदना बहुत पसन्द था । पर एक दिन अजय आया । अजय एक मोटा-सा लड़का था जो किसी के साथ दोस्ती न रखता था । वह सबको तंग करता था । वह छोटे-छोटे बच्चों से उनके खाने के पैसे छीन लेता था और उन पर हँसता था । कोई उसको कुछ नहीं कहता था । लोग समझते थे कि वह बहुत भला था और वह हमें चोट और दर्द न पहुँचाएगा ।
अजय हमारे स्कूल में नया था पर फिर भी वह सोचता था कि सब लोग उसकी ही बात सुनेंगे । अजय के बारे में एक बात यह भी थी कि अध्यापिका के सामने वह कुछ नुकसान नहीं पहुँचाता था । उसके माता-पिता भी सोचते थे कि वह अच्छा लड़का है और वह बुरा काम नहीं करेगा । वह पढ़ने में भी अच्छा था । पर गल्त बात यह थी कि वह किसी भी बच्चे को पकड़कर कहता था कि "तुम मेरा काम करो, नहीं तो मैं तुम को ज़ोर से मारुँगा ।" मुझे यह बात पता थी क्योंकि अजय ने मेर साथ भी ऐसे किया था जो मुझे बिल्कुल पसन्द नहीं आया था । कई बार बच्चों ने उसको कहा कि वे अध्यापिका को कह देंगे कि वह ऐसे कर रहा है । पर वह इस पर कहता था कि "अगर तुम अध्यापिका को कहोगे तो तुम्हें और भी मारूँगा ।" यह सुनकर बच्चे चुप हो जाते थे ।
मैं यह सब किसी बड़े आदमी से कहना चाहता था । पर मुझे भी डर था कि वह मेरे साथ कुछ करेगा इसलिए मैं चुप हो गया । कुछ महीनों के बाद एक बात हुई जिससे मुझ को बहुत गुस्सा आया । एक दिन जब मैं फुटबाल खेल रहा था, मैंने देखा कि अजय राहुल को गुस्से से कुछ कह रहा था । मुझे पता नहीं था कि अजय क्यों गुस्सा कर रहा था? पर मुझे एक बात पता थी कि राहुल किसी के साथ झगड़ा नहीं करता था । वह सोचता था कि झगड़ा करने से कुछ नहीं मिलता है । तो क्यों झगड़ा करें ? खेलने के बाद मैं राहुल को ढूँढने लगा और वह स्कूल के गेट के पास एक कोने में बैठा था और छोटे-छोटे पत्थरों से खेल रहा था । मैं उसके पास जाकर बैठ गया । मैंने उससे पूछा , "अजय, तुम से क्या कह रहा था ?" राहुल ने कहा,"कुछ खास नहीं । अजय ने मुझसे कहा है कि मुझे उसका गृहकार्य करना पड़ेगा । मैंने उसे कह दिया है कि मैं नहीं करुँगा । इस बात पर वह मुझ पर गुस्सा कर रहा था ।" यह सुनकर मैं खुश हो गया पर दु:खी भी । मैं खुश था क्योंकि राहुल पहला लड़का था जिसने अजय से साफ-साफ शब्दों में गृहकार्य करने से मना कर दिया था । पर मैं दु:खी था क्योंकि मुझे डर था कि अजय, राहुल को दर्द पहुँचाएगा ।
अगले दिन मैंने राहुल से जाकर कहा कि हम दोनों मिल कर अजय के माता-पिता को दिखा सकते हैं कि वह क्या-क्या कर रहा है ? राहुल ने पूछा,"यह हम कैसे कर सकते हैं ?" मैंने कहा," हम एक कैमरा लेकर आएंगे और अजय के बुरे व गल्त कामों की तस्वीरें ले सकते हैं । अगर कोई अध्यापिका पूछेगी कि हम कैमरे के साथ क्या कर रहे हैं ? तो हम कहेंगे कि हमें कक्षा की तस्वीरें लेनी हैं ।"

अगले दिन राहुल एक कैमरा लेकर आया । भोजन के बाद हमने कैमरा निकाला । जल्दी से एक अध्यापिका को यह सब दिखाया । अध्यापिका ने कैमरे के बारे में पूछा और हमने कहा कि हम कक्षा की तस्वीरें ले रहे थे । यह सब हमने देखा और हमने तस्वीरें लीं । हमने झूठ कहा पर यह झूठ अच्छे काम के लिए था । सब कुछ सुनने के बाद अध्यापिका ने अगले दिन अजय के माता-पिता को स्कूल बुलाया । उन्हें वे सब तस्वीरें दिखाईं और सब बता दिया । जब यह हुआ तो अजय रोने लगा और कहने लगा कि उसने किसी को मारा नहीं है और न ही वो किसी को मारता है । यह बात सच थी कि वह केवल धमकी देता था । उसने आज तक किसी को मारा नहीं था । तब अध्यापिका ने कहा कि तुम गरजते क्यों हो जब बरसना नहीं है । सच ही है जो गरजते हैं ,वे बरसते नहीं हैं । 

Story on proverb- Aa bail mujhe maar/ आ बैल मुझे मार


मैं वैली स्कूल में आई. सी. एस. ई  में भी हिंदी पढ़ाती हूँ । इस बोर्ड के हिंदी पेपर में कहावत के ऊपर एक निबंध पूछा जाता है । बच्चों से कई सारी  कहावतों पर निबंध लिखाना मुश्किल है इसलिए हर छात्र-छात्रा को अलग-अलग कहावत दी जाती है जिस पर वे निबंध लिखते हैं और फिर कक्षा में सब छात्र-छात्राएँ अपने लिखे निबंध पढ़ते हैं जिससे सबको कहावतें भी समझ आ जाएँ और परीक्षा में उन्हें कोई मुश्किल न हो । इन कहावतों पर लिखे निबंधों को छात्र-छात्रों को सुनाया जा सकता है या उन्हें पढ़ने के लिए दिया जा सकता है जिससे उन्हें कहावतों का अर्थ अच्छी तरह से समझ आ सके । हर कहावत के आगे वर्ष लिखा गया है , इसका मतलब है कि यह कहावत बोर्ड में उस वर्ष में पूछी गई है । आशा है कि यह सामग्री अध्यापकों और अध्यापिकाओं के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के लिए भी उपयोगी होगी । 

आ बैल मुझे मार  (मृगांक) 2006
"आ बैल मुझे मार " एक ऐसा मुहावरा है जिसे सुनकर मेरी दादी की एक सुनाई गई कहानी की बहुत याद आती है । यह मेरे पिता के चचेरे भाई के बारे में है । मेरी दादी कहती है कि जब वह छोटे थे तब वह बहुत शरारती थे । उन्हें संभालना नामुमकिन के बराबर था । सब लोग कहते थे कि उन्हें घर बुलाना मुसीबत मोल लेना है । वह मेरे पिता से चार साल बड़े हैं और उनका नाम शरत है।ये कहानियाँ चालीस साल पुरानी हैं ।
एक बार शरत गर्मियों की छुट्टियों में मेरी दादी के घर एक महीने के लिए आए । इस दौरान उन्होंने इतनी बदमाशियाँ कीं कि मेरी दादी ने सोचा कि उन्हें बुलाना "आ बैल मुझे मार" कहने के बराबर है । वह घर की दूसरी मंज़िल की खिड़की पर चढ़ कर खड़े हो जाते थे । खिड़की पर सलाखें नहीं थीं और गिरना आसान था । जब दादी को यह पता चला तो शरत को खूब डाँट कर उसे वहाँ चढ़ने से मना कर दिया ।
उसी महीने एक और घटना घटी । दादी सारे बच्चों को चिड़ियाघर लेकर गई थी । जब वे बंदर के पिंजड़े के पास गए तब शरत ने अपना हाथ बन्दर के पिंजड़े में डाल दिया । शरत बंदर को चिढ़ा रहा था । इससे बंदर भड़क गया । बंदर ने गुस्से में शरत को ज़ोरदार थप्पड़ मारा । आस-पास खड़े बच्चे रोने लगे । दादी घबराकर सोचने लगी कि अब शरत को क्या हो गया ? चिड़ियाघर के अफसर आए । शरत और दादी को डाँट लगाई और वहाँ से निकल जाने को कह । दादी और बच्चों को शर्मिन्दगी महसूस हुआ । जब वे घर लौटे तब शरत को दादी से और डाँट पड़ी ।
इसी महीने एक और हादसा हुआ । मेरी दादी के घर के बगीचे में एक बड़ा-सा आम का पेड़ था । एक दिन शरत उसी पेड़ पर चढ़कर बैठ गया । वह कई घण्टे उधर बैठा रहा । घर में सब लोग उसे ढूँढने की कोशिश कर रहे थे । दादी, दादा और अन्य लोग परेशान हो गए । पड़ोसियों के कहने पर पुलिस ने रपट लिखाई । तीन घण्टे के तमाशे के बाद शरत ने पेड़ के ऊपर से आवाज़ लगाई । सब लोग हक्काबक्का रह गए । दादी और दादा क्रोध से पेड़ की तरफ देखने लगे । पुलिस भी चकित हो गई । अगली मुसीबत यह थी कि शरत नीचे नहीं आ पा रहा था । हर दिशा में गिरने की संभावना थी । अंत में घर के लोगों को "फायर ब्रिगेड" को बुलाना पड़ा । उनकी लंबी सीढ़ी का इस्तेमाल करके कुछ पुलिस वालों ने शरत को किसी तरह नीचे उतारा । जब वह नीचे आया, तब सबके सामने शरत को दादी और दादा ने जोर से डाँटा ।
किसी तरह एक महीना गुज़रा । कुछ न कुछ मुसीबतें आती ही रहीं । दादी शरत को बहुत प्यार करती थीं परन्तु जब वह लौट रहा था तब दादी ने चैन की साँस ली । उन्होंने सोचा कि अब मुझे उसकी शरारतें नहीं झेलनी पड़ेंगी । जब शरत लौट गया । दादी सोच रही थीं कि उसे घर में बुलाना " आ बैल मुझे मार" कहने के बराबर है ।

आ बैल मुझे मार (राहिल)
विशाल एक बारह वर्ष का लड़का था । वह पढ़ाई में उस्ताद था, पर वह कभी भी किसी भी स्कूल में एक वर्ष से ज़्यादा नहीं रहा क्योंकि उसके पिता "भारत टाटा टेलीकोम" के लिए काम करते थे । विशाल के पिता का काम बहुत अच्छा था । जब भी "भारत टाटा टेलीकोम" एक नया दफ्तर खोले तो विशाल के पिता को नए दफ्तर में जाकर यह देखना था कि वहाँ का मैनेजर अच्छा काम कर रहा है या नहीं । विशाल के पिता को यह नौकरी प्यारी थी । पर विशाल को यह नौकरी बिल्कुल पसन्द नहीं थी क्योंकि जब वह एक नए स्कूल जाता, उसे नए दोस्त बनाने पड़ते । विशाल के लिए यह बहुत कठिन कार्य था ।
जब विशाल पाँचवी कक्षा में था, उसके पिता को बेंगलूरू में नौकरी मिली । उसे बिशप काटंस बोएज स्कूल में प्रवेश मिला । यह बेंगलूरू का सबसे पुराना स्कूल है । विशाल को स्कूल पहले दिन से ही बहुत पसन्द आया क्योंकि इस स्कूल में अध्यापक बहुत अच्छे थे । स्कूल में उसे आए छ: हफ्ते हो गए थे पर अब तक उसने एक भी दोस्त नहीं बनाया था ।
कोई भी दोस्त न होने के कारण विशाल बहुत दु:खी था । फिर उसने सोचा कि अगर वह शरारती बन जाए तो उसकी कक्षा के सभी बच्चे उसे जानने लगेंगे । स्कूल के अगले दिन विशाल स्कूल में इधर-उधर चल रहा था और अचानक उसने सभी बच्चों के सामने आग लगने की घण्टी बजा दी जिसके कारण सभी बच्चों को स्कूल के बड़े मैदान में ले जाया गया । जब सब बच्चे कक्षा से बाहर जा रहे थे तो विशाल ने मन में सोचा-"आ बैल मुझे मार ।" उसे एहसास हो गया था कि आग की घण्टी बिना वजह बजाना बुरी बात है और गल्त है । फिर भी उसके मन में कहीं न कहीं एक बात थी कि इस शरारत के कारण उसके नए दोस्त बनेंगे ।

अगले दिन सब बच्चे उसे बुरी नज़रों से देख रहे थे क्योंकि जो उसने किया वह बहुत ही गल्त था और एक अपराध था । भोजन के बाद उसे प्रधानाचार्य के दफ्तर में बुलाया गया । ज विशाल दफ्तर के अन्दर गया तो उसने देखा कि उसके माता-पिता भी वहाँ बैठे हैं । वह अपनी माता की बगल में जा बैठा और तभी प्रधानाचार्य जी ने कहा कि "विशाल  जैसे बच्चों के लिए यहाँ जगह नहीं है ।" अतएव आग लगने की घण्टी रूपी बैल ने विशाल को सचमुच मार दिया था ।











Story on proverb - Kure ke din bhu phirte hain/ कूड़े के दिन भी फिरते हैं


मैं वैली स्कूल में आई. सी. एस. ई  में भी हिंदी पढ़ाती हूँ । इस बोर्ड के हिंदी पेपर में कहावत के ऊपर एक निबंध पूछा जाता है । बच्चों से कई सारी  कहावतों पर निबंध लिखाना मुश्किल है इसलिए हर छात्र-छात्रा को अलग-अलग कहावत दी जाती है जिस पर वे निबंध लिखते हैं और फिर कक्षा में सब छात्र-छात्राएँ अपने लिखे निबंध पढ़ते हैं जिससे सबको कहावतें भी समझ आ जाएँ और परीक्षा में उन्हें कोई मुश्किल न हो । इन कहावतों पर लिखे निबंधों को छात्र-छात्रों को सुनाया जा सकता है या उन्हें पढ़ने के लिए दिया जा सकता है जिससे उन्हें कहावतों का अर्थ अच्छी तरह से समझ आ सके । हर कहावत के आगे वर्ष लिखा गया है , इसका मतलब है कि यह कहावत बोर्ड में उस वर्ष में पूछी गई है । आशा है कि यह सामग्री अध्यापकों और अध्यापिकाओं के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के लिए भी उपयोगी होगी । 



कूड़े के दिन भी फिरते हैं   (मेघा) 1993

राजस्थान के एक छोटे से गाँव में एक लड़का अशोक रहता था । वह अपने माता-पिता के साथ एक छोटे-से घर में रहता था । उसका परिवार गरीब था , मगर सब खुश थे । वे समझते थे कि प्यार और सुख पैसे से बेहतर है । इस आनन्दित वातावरण में अशोक बड़ा हुआ । जब वह दस साल का था, उसके पिता बीमार पड़ गए । घर की खुशी मानो खत्म हो गई । उसकी माँ रानी हर रात रोते-रोते बिताती थी । जब वह ग्यारह साल का था, उसके पिताजी को देहांत हो गया । कुछ महीने बाद उसकी माँ की भी दु:ख से मृत्यु हो गई । अशोक इस दुनिया में अकेले  रह गया । अपनी माँ की अन्त्येष्टि के बाद वह अपने चाचा के घर जयपुर में रहने के लिए चला गया ।
उसे चाचा के घर में हर दिन काम करना पड़ा । वह स्कूल नहीं जा सकता था । उसके चाचा राम उसको हर दिन चाय की दुकान पर काम करने के लिए भेजते थे । हर रोज सुबह पाँच बजे उठकर, वह दुकान साफ करते, बर्तन साफ करता और चाय बनना शुरु करता । उसके चाचा काम को सात बजे आराम से आते थे । दुकान खुलते ही ग्राहक आना शुरु हो जाते । पूरा दिन काम करने के बाद, उसे खाने को सूखी रोटी ही मिलती थी और कभी-कभी साथ में बासी सब्ज़ी ।
अशोक की ज़िंदगी में एक ही अच्छी चीज़ थी जिससे उसे खुशी मिलती थी , वह थी उसका चचेरा भाई श्याम जो राम चाचा का बेटा था । श्याम उसको अपने हिस्से का थोड़ा खाना देता और उसको अपने स्कूल के बारे में भी बताता था । श्याम से अशोक हर दिन कुछ न कुछ नया सीखता था । जब अशोक बहुत दु:खी होता था, तो श्याम उसे खुश करता था ।
ज़िंदगी के दो साल ऐसे ही बीत गए । एक दिन जब अशोक तेरह साल का था, एक आदमी उसके चाचा की दुकान में आया । अशोक को वहाँ देखकर वह बहुत दु:खी हुआ । उन्होंने अशोक को बताया कि इस छोटी-सी उम्र में काम करना ठीक नहीं है । अशोक को स्कूल जाना चाहिए । वह अभी बच्चा है , उसे ठीक से खाना भी खाना चाहिए । हर दिन यह अमीर आदमी आता और अशोक से बातें करता था ।

एक हफ्ते बाद उसने अशोक को बताया कि वह उसे एक अच्छे स्कूल में डाल रहा था, जहाँ उसे ठीक से खाना-पीना भी मिलेगा । अशोक बहुत खुश हो गया । जाने से पहले, उसने श्याम से वादा किया कि वह उसको कभी नहीं भूलेगा और हर हफ्ते चिट्ठी लिखेगा ।




Story on proverb- Jaan bachi to lakhon paie/ जान बची तो लाखों पाए


मैं वैली स्कूल में आई. सी. एस. ई  में भी हिंदी पढ़ाती हूँ । इस बोर्ड के हिंदी पेपर में कहावत के ऊपर एक निबंध पूछा जाता है । बच्चों से कई सारी  कहावतों पर निबंध लिखाना मुश्किल है इसलिए हर छात्र-छात्रा को अलग-अलग कहावत दी जाती है जिस पर वे निबंध लिखते हैं और फिर कक्षा में सब छात्र-छात्राएँ अपने लिखे निबंध पढ़ते हैं जिससे सबको कहावतें भी समझ आ जाएँ और परीक्षा में उन्हें कोई मुश्किल न हो । इन कहावतों पर लिखे निबंधों को छात्र-छात्रों को सुनाया जा सकता है या उन्हें पढ़ने के लिए दिया जा सकता है जिससे उन्हें कहावतों का अर्थ अच्छी तरह से समझ आ सके । हर कहावत के आगे वर्ष लिखा गया है , इसका मतलब है कि यह कहावत बोर्ड में उस वर्ष में पूछी गई है । आशा है कि यह सामग्री अध्यापकों और अध्यापिकाओं के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के लिए भी उपयोगी होगी । 





 जान बची तो लाखों पाए (शमीर) 2012

आज हमें स्कूल में बहुत सारा गृहकार्य मिला था । हर विषय पर मिला था - हिन्दी ,गणित, अंग्रेजी, जीवविज्ञान और छठा विषय । घर आने पर मैंने मुँह-हाथ धोया, खाना खाया और फिर बाहर खेलने चला गया । मुझे बहुत मज़ा आ रहा था फिर मुझे याद आया कि घर पर मेरा गृहकार्य मेरा इंतज़ार कर रहा है ।
भागा-भागा में घर पहुँचा । भागने की वजह से में थक गया था । इस कारण मैं पानि पीने और पसीना सुखाने पंखे के नीचे बैठ गया । ठंडी हवा से मुझे बहुत आराम मिला । इस से मुझे नीन्द आ गई । मुझे सोते-सोते एक सपना आया कि मीनल आँटी मुझे डाँट रही हैं , यह देख कर मैं चौंक कर उठा और मुझे याद आया कि मेरी किताबें मेरा इंतज़ार कर रही हैं ।
मैं तुरन्त अपने कमरे में गया और पढ़ने बैठ गया पर जैसे ही मैंने काम करना शुरु किया वैसे ही माँ ने मुझे खाने के लिए बुला लिया । खाना बहुत अच्छा था पर डर के मारे मैं उसे निगल नहीं पा रहा था । मैंने जल्दी से खाना खत्म किया और अपने कमरे में गया जैसे ही मैंने काम शुरु किया वैसे ही मेहमान आ गए । मैं सबसे अच्छी तरह से मिला । मुझे बहुत सारे तोहफे भी मिले । ऊपर से तो मैं हँस रहा था पर अंदर से मुझे पछतावा हो रहा था । मुझे पछतावा इस बात का था कि मैंने अपना काम पूरा नहीं किया था । मेहमानों के जाने के बाद में देर रात तक काम करता रहा । रात के बारह बजे मुझे बहुत ज़ोर की नींद आने लगी पर मैं अपनी नींद से लड़ते हुए काम करता रहा । पर मेरी आँखें बंद हो गईं और नींद ने मुझे मेरे लक्ष्य से हटा दिया ।
जब मैं सुबह उठा तो मैं डर के मारे स्कूल  नहीं जाना चाहता था । माँ भी सो रही थीं । फिर मुझे एक कहावत याद आयीं कि हमें अपनी गल्ती से भागना नहीं चाहिए, हमें उसका सामना करना चाहिए । मैं अपनी हिम्मत जुटा कर बस्ता बाँधा और स्कूल गया ।
स्कूल पहुँचते ही मुझे पता चला कि आज स्कूल नहीं है । तब मुझे यह कहावत याद आई, "जान बची तो लाखों पाए ।" 

जान बची तो लाखों पाए (स्नेहा)
चार साल पहले की बात है । मैं और मेरे दोस्त नेहा, हर्षल, शीतल, राम, वेद एक साथ एक यात्रा पर जाने की सोच रहे थे पर हर वक्त किसी न किसी वजय से हम सब न जा सके । फिर एक दिन जब हम सब मिले तो हमने फिर से इसके बारे में सोचा । अंत में हमने निर्णय लिया कि हम दस दिन के बाद यहाँ से तिब्बत जाएंगे और वहाँ से एक गाँव में ।
जैसे-जैसे हमारा जाने का दिन पास आने लगा, मैं खुशी से फूली न समाने लगी । मैंने सुना था कि वो जगह बहुत सुंदर है और वहाँ के लोग बहुत अच्छे थे । मैंने यह जगह पहले कभी नहीं देखी थी , न ही इस जगह के बारे में ज़्यादा कुछ सुना था । हम सोमवार सुबह अपने-अपने घरों से निकल गए और दो दिन के बाद तिब्बत पहुँच गए थे । यह बहुत ही सुन्दर जगह थी और यहाँ का मौसम ठंडा और अच्छा था कि बाहर रहने को ही मन करता था ।
पहले दिन मह वहीं थे । हमने आस-पास की जगहों पर कुछ खरीदा, खाया-पिया और अगले दिन बहुत घूमे । हमन वहाँ बहुत मज़ा किया था । तीसरे दिन हम कारें लेकर एक जगह गए थे जो दो-तीन घंटे दूर थीं । वहाँ हम एक होटल में रुके । वह जगह इतनी सुन्दर थी कि वहाँ से जाने का मन ही नहीं करता था । देखते-देखते पूरा दिन बीत गया । अगले दिन हम चार बजे उठे और वहाँ से ट्रेक के लिए चल पड़े ।
हम दो समूह में बँट गए थे और मैं पहले समूह में थी । हमारी टीम आगे निकल गई थी और वे काफी पीछे थे । यह ट्रेक काफी लंबा था, यह ट्रेक पूरा करने में हमें थोड़े दिन लगने वाले थे । हम चलते गए पर हम थोड़ा गुम गए थे और यह बात हमें पता नहीं चली । पर जब शाम होने को थी, हम तो अब तक तो अपने कैम्प पहुँच जाना चाहिए था । यह बात हमारे मन में आई तो अब हमें पता चला कि हम गुम गए हैं । यहाँ आस-पास लोग भी नज़र नहीं आ रहे थे । हम सब परेशान हो गए और घबराने लगे । हमारे पीछे जो समूह था वह समझ रहा होगा कि हम अब तक अपने कैम्प पहुँच गए हैं । उन्हें क्या पता था कि हम यहाँ फँसे हैं ।

अब तक रात हो गई थी , हमारे पास ज़्यादा खाना भी नहीं था । अगले दिन्ल हम सुबह-सुबह फिर से चल पड़े । हम सिर्फ चलते रहे पर काफी चलने के बाद भी हमें कोई भी व्यक्ति नहीं दिखाई दिया । मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं अपने घर वापिस कभी नहीं जा सकूँगी । अगले दिन हमें एक घर दिखाई दिया । हमें उनसे पता चला कि हमारा कैम्प सात-आठ किलोमीटर आगे है । आखिरकार शाम तक हम कैम्प पहुँच ही गए । हम बहुत नसीब वाले थे कि हम वहाँ सुरक्षित पहुँच गए । हम जिस हालत में थे, मुझे लगा कि हम नहीं पहुँच पाएँगे । घर पहुँचकर मुझे लगाकि जान बची तो लाखों पाए ।




Story on proverb - Sath sadhurahin satsangti pain/ सठ सुधरहिं सत्संगति पाईं


मैं वैली स्कूल में आई. सी. एस. ई  में भी हिंदी पढ़ाती हूँ । इस बोर्ड के हिंदी पेपर में कहावत के ऊपर एक निबंध पूछा जाता है । बच्चों से कई सारी  कहावतों पर निबंध लिखाना मुश्किल है इसलिए हर छात्र-छात्रा को अलग-अलग कहावत दी जाती है जिस पर वे निबंध लिखते हैं और फिर कक्षा में सब छात्र-छात्राएँ अपने लिखे निबंध पढ़ते हैं जिससे सबको कहावतें भी समझ आ जाएँ और परीक्षा में उन्हें कोई मुश्किल न हो । इन कहावतों पर लिखे निबंधों को छात्र-छात्रों को सुनाया जा सकता है या उन्हें पढ़ने के लिए दिया जा सकता है जिससे उन्हें कहावतों का अर्थ अच्छी तरह से समझ आ सके । हर कहावत के आगे वर्ष लिखा गया है , इसका मतलब है कि यह कहावत बोर्ड में उस वर्ष में पूछी गई है । आशा है कि यह सामग्री अध्यापकों और अध्यापिकाओं के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के लिए भी उपयोगी होगी । 

सठ सुधरहिं सत्संगति पाईं (मित्रन) 2003
सुनील नामक एक मनुष्य था । वह मूर्ख ही था और आलसी भी । परंतु उसे सही शिक्षा मिली थी । वह एक अभियांत्रिक था । उसकी मुसीबत यह थी कि वह अपना सब धन बहुत जल्दी खर्च कर देता था और उसे अपने दोस्तों और संबंधियों से उधार लेना पड़ता था । उसे अभियांत्रिक की कई नौकरियाँ मिलीं परन्तु अपने आलस्य के कारण वह ज़्यादा काम नहीं करता था और उसके मालिक उसे बार-बार निकाल देते थे ।
इस समय सुनील बेरोजगार था । नौकरी मिलना मुश्किल दिख रहा था । सुनील को अभियांत्रिक की नौकरी मिल नहीं सकती थी । उसने किसी दूसरे प्रकार की नौकरी के बारे में सोचा परन्तु उसे कुछ भी नहीं मिल सका । सुनील का यूसफ नामक एक दोस्त था जो एक विद्यालय में अध्यापक नियुक्त था । एक दिन उसने सुनील को प्रस्ताव दिया कि वह अध्यापक की नौकरी कर ले । उसके विद्यालय में भौतिकी विषय के अध्यापक पद के लिए जगह थी । सुनील का कहना था कि वह अध्यापक का काम कैसे कर सकता है ? उसके पास अध्यापक बनने की व्यावसायिक डिग्री भी नहीं है । युसुफ ने कहा कि भौतिकी में उसकी समझ गहरी है और उसने स्नातक तक भौतिकी पढ़ी भी है । विद्यालय में पढ़ाने के लिए इतनी शिक्षा और योग्यता काफी है और वह भी उसकी सिफारिश कर देगा ।
इस प्रकार सुनील अध्यापक की नौकरी के लिए स्कूल के प्रधानाचार्य से मिला। उसने उन्हे अपनी अभियांत्रिक की डिग्री दिखाई पर यह भी कहा कि उसे भौतिकी में रुचि थी और उसे इस विषय में गहरी समझ भी थी । उसने अपनी आलसी स्वभाव के बारे में भी बताया । प्रधानाचार्य ने कहा कि वह उसे नौकरी देंगे पर एक मास के लिए यह नौकरी अस्थायी होगी यदि वह पढ़ाने में सफल रहा तो उसे एक वर्ष के लिए नौकरी करने के लिए मौका दिया जाएगा । सुनील छठी, सातवीं और आठवीं कक्षाओं को भौतिकी सिखाने लगा । उसे अध्यापन कार्य में बड़ा मज़ा आया । उसके शिष्य अनुशासित और शिष्ट थे और हर कक्षा में दिलचस्प चर्चाएँ होती थीं । सुनील के शिष्य उसके समझाने के ढ़ंग से बेहद खुश थे । सुनील दूसरे अध्यापकों की संगति से बहुत कुछ सीखने लगा और उन सबने उसकी समय-समय पर सहायता की । वे सब उसे पूरा सहयोग देते और आपस में अच्छी और स्वस्थ चर्चाएँ करते ।

एक मास के बाद प्रधानाचार्य ने सुनील से कहा कि वह अध्यापक के कार्य में पूर्ण रूप से सफल हुआ । उसके शिष्य भी उसकी कक्षाओं में अनुशासन में रहते थे और उसकी कक्षाओं में आनन्द लेते थे । उन्हें खुशी थी कि सुनील एक अच्छा अध्यापक है । सुनील को भी नई नौकरी बेहद पसन्द आई थी और वह खुश था कि उसे एक साल के लिए नौकरी मिली थी । सुनील ने गौर किया कि वह अब आलसी अनुभव नहीं करता था और अपने धन के बारे में भी वह काफी ज़िम्मेदार बन गया था क्योंकि पिछले एक महीने से उसने किसी से भी उधार नहीं लिया था । विद्यालय में अन्य अध्यापकों की सत्संगति से सुनील एक परिश्रमी और ज़िम्मेदार मनुष्य बन गया था । सच ही है कि शठ सुधरहिं सत्संगति पाई अथवा मूर्ख व्यक्ति भी अच्छी संगति से सुधर सकता है । 










Story on proverb - Puratan hi shresth hai/ पुरातन ही श्रेष्ठ है


मैं वैली स्कूल में आई. सी. एस. ई  में भी हिंदी पढ़ाती हूँ । इस बोर्ड के हिंदी पेपर में कहावत के ऊपर एक निबंध पूछा जाता है । बच्चों से कई सारी  कहावतों पर निबंध लिखाना मुश्किल है इसलिए हर छात्र-छात्रा को अलग-अलग कहावत दी जाती है जिस पर वे निबंध लिखते हैं और फिर कक्षा में सब छात्र-छात्राएँ अपने लिखे निबंध पढ़ते हैं जिससे सबको कहावतें भी समझ आ जाएँ और परीक्षा में उन्हें कोई मुश्किल न हो । इन कहावतों पर लिखे निबंधों को छात्र-छात्रों को सुनाया जा सकता है या उन्हें पढ़ने के लिए दिया जा सकता है जिससे उन्हें कहावतों का अर्थ अच्छी तरह से समझ आ सके । हर कहावत के आगे वर्ष लिखा गया है , इसका मतलब है कि यह कहावत बोर्ड में उस वर्ष में पूछी गई है । आशा है कि यह सामग्री अध्यापकों और अध्यापिकाओं के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के लिए भी उपयोगी होगी । 



पुरातन ही श्रेष्ठ है  (शमीर) 1988
सालाना नाव/जहाज चलाने और बनाने की प्रतियोगिता में मैंने भाग लिया । हर साल मैं और मेरे बाबा इस साल में भाग लेते थे पर इस साल मैं अपने दोस्तों के साथ इस प्रतियोगिता में भाग लेना चाहता था ।
जब मैंने यह बात बाबा को बताई तो वह काफी मायूस थे । यह देखकर मैंने उससे पूछा "क्यों?" तब उन्होंने बताया कि सालों पुरानी परंपरा है कि बाप बेटा मिल कर खानदानी गुप्त जहाज बनाएं और उसे चला कर प्रतियोगिता जीते । मैंने उनकी बातों को सुनकर भी टाल दिया और सब भूलकर अपने दोस्त के घर चला गया ।
वहाँ पर हमने दिन-रात एक करके काम किया और एक आधुनिक और अनोखा जहाज बनाया । जहाज बहुत तेज़ चलत था । जहाज काफी छोटा भी था जिसके कारण वह कहीं से भी निकल सकता था । उसमें एक छोटा-सा कम्पयूटर भी लगा था जिससे वह अपने-आप को खतरनाक जहाज़ोम से भी बचा सकता था । हम लोग हमारे आधुनिक और अनोखे जहाज को बनाने के बाद हम बहुत खुश थे । पर मुझे पता थ कि बाबा मुझसे थोड़े रूठे थे । इस कारण मैं उनके पास माफी माँगने गया ।
उन्होंने मुझे हँसते हुए गले लगाकर माफ कर दिया । उन्होंने मुझे बताया कि वह भी अकेले प्रतियोगिता में भाग ले रहे हैं । जब उन्होंने मुझे अपना जहाज़ दिखाया तो मैं मन ही मन हँसने लगा । उनके द्वारा बना जहाज़ लकड़ी का था । वह बहुत भारी-भरकम था और उसमें मोटर भी नहीं लगी थी । मैं कल की प्रतियोगिता की तैयारी करने में लग गया ।
तालाब में सबने अपने जहाज़ उतार दिए । हमारा जहाज़ काफी छोटा था । बाकी जहाज काफी बड़े थे । जैसे ही प्रतियोगिता शुरु हुई वैसे ही हमारा जहाज़ आगे बढ़ गया पर दूसरे बड़े जहाज़ों ने हमारे जहाज़ को मार दिया । बाबा का जहाज़ भारी-भरकम था , इस कारण बच गया और प्रतियोगिता भी जीत गया । यह देख मुझे बहुत पछतावा हुआ । मेरी समझ में आया कि अनुभव से इन्सान सीख सकता है । शायद इसलिए ही बड़े बुजुर्ग हमारे द्वारा गलती करने पर यह कहते हैं कि हमारी बात सुन लिया करो क्योंकि हमने अपने बाल धूप में सफेद नहीं किये हैं । अपनी नादानी को समझने के बाद मैं घर पहुँचा और मैंने बाबा से माफी माँगी । उन्होंने मुझे माफ कर दिया ।
 इस प्रतियोगिता से मुझे यह ज्ञात हुआ कि "पुरातन ही श्रेष्ठ है ।"

पुरातन ही सर्वश्रेष्ठ है  (श्रृंगी)
झाँसी के हलिदा नामक गाँव में दो भाई कमल और जमन रहते थे । बचपन में दोनों ने साथ ही सब कुछ किया । दोनों ने अपने पिता के साथ खेत में काम किया, दोनों साथ-साथ खेले-कूदे और खाया-पिया । दोनों ने माँ से कथाएँ भी एक साथ सुनीं । उनके दोस्त भी एक जैसे थे और दोनों ने हलिदा गाँव पाठशाला में मिडिल भी पास कर लिया । इनके पिता चाहते थे कि लड़के पूरा दिन खेत में काम करना शुरु करे । कमल इससे खुश था, उसे सूझा तक नहीं था कि ज़िंदगी में कुछ और हो भी सकता था । परन्तु जमन इस सलाह से क्रोधित था । जन्म से ही वह पूरी दुनिया देखना चाहता था । जमन की इस अभिलाषा के कारण परिवार में झगड़ा हो गया और जमन दिल्ली में फूफा के साथ रहने चला गया जहाँ वह पढ़ाई करना चाहता था ।
कमल ने कुछ समय अकेले खेत संभाला । फिर एक दिन दो साल बाद जमन वापिस आ गया । जमन में जमीन-आसमान का परिवर्तन आ गया था । पूरा परिवार जमन के बदलाव से आश्चर्यचकित रह गया । अब जमन नए विचारों में विश्वास करता था । वह अपने परिवार की जीवन-शैली पर मज़ाक करता था और अपने माता-पिता और भाई पर भी हँसता था । जमन रोज़ अपने भाई को दिल्ली के बारे में बताता था । नए विचार वाले लोग, बड़ी-बड़ी इमारतें, गाड़ियाँ और उसके नए तौर तरीके वाले मार्डन दोस्त । कमल इन सबसे प्रभावित नहीं हुआ पर जमन को तो रोकना नामुमकिन था । एक दिन जमन ने परिवार को बताया कि वह फिर से दिल्ली जा रहा था पैसा कमाने । जब उसे पैसे मिल जाएंगे तो वह वापिस आएगा और अपना पुराना घर तुड़वाकर नया व बड़ा घर अपने परिवार के लिए बनाएगा । जमन ने यह भी कहा कि परिवार में किसी को काम भी नहीं करना पड़ेगा । इस पर पिताजी को क्रोधित हुए और कहा कि अभी तक उनका स्वास्थ्य ठीक है और हाथ-पैर काम कर रहे हैं । उनको अपना यह पुराना घर ही प्रिय है क्योंकि पुरातन ही श्रेष्ठ है । फिर से परिवार में झगड़ा-फसाद हुआ और जमन घर छोड़कर चला गया ।

इस बार जब जमन पाँच साल बाद घर वापिस लौटा । दिल्ली में वह बड़ा आदमी हो गया था । जमन ने हलिदा पहुँचते ही अपने पुश्तैनी मकान को तुड़वाने का काम शुरु किया । तीन महीनों में ही उसने नया घर खड़ा कर दिया । जमन ने नौकर भी रखे-घर साफ करने, खाना पकाने आदि के लिए । उसके पास इतना पैसा था कि परिवार में किसी को काम करने की ज़रूरत नहीं थी । थोड़े दिन तक तो परिवार में खुशी रही पर धीरे-धीरे जमन ने परिवार के दूसरे पुराने विचारों को भी टुकड़े-टुकड़े कर दिया । कुछ काम न करने के कारण माता-पिता और कमल उदासीन और दु:खी रहने लगे । जमन तो अपने काम और पढ़ाई में ही मस्त रहता था फिर भी घर का उदास वातावरण उसे भी प्रभावित करने लगा । एक साल के अंदर ही घर में खुशी का नामोनिशान था , केवल उदासी व दु:ख का वातावरण था । जमन के मन में यह देखकर विचार आया कि यदि वह दिल्ली जाकर नए विचारों से प्रभावित न होता तो उसकी व उसके परिवार की ज़िंदगी पहले जैसे ही रहती और घर में उदासी भरा और दु:ख भरा वातावरण न होता । कमल और पिता खेत में काम करते और माँ भी घर के कामों में व्यस्त रहती । अपने परिवार को इस तरह उसे दु:खी न देखना पड़ता । उसने अपने माता-पिता और कमल से जाकर माफी माँगी और यह मान लिया कि पुरातन ही श्रेष्ठ है ।












Story on proverb- Ek machli saare taalab ko ganda karti hai/ एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है


मैं वैली स्कूल में आई. सी. एस. ई  में भी हिंदी पढ़ाती हूँ । इस बोर्ड के हिंदी पेपर में कहावत के ऊपर एक निबंध पूछा जाता है । बच्चों से कई सारी  कहावतों पर निबंध लिखाना मुश्किल है इसलिए हर छात्र-छात्रा को अलग-अलग कहावत दी जाती है जिस पर वे निबंध लिखते हैं और फिर कक्षा में सब छात्र-छात्राएँ अपने लिखे निबंध पढ़ते हैं जिससे सबको कहावतें भी समझ आ जाएँ और परीक्षा में उन्हें कोई मुश्किल न हो । इन कहावतों पर लिखे निबंधों को छात्र-छात्रों को सुनाया जा सकता है या उन्हें पढ़ने के लिए दिया जा सकता है जिससे उन्हें कहावतों का अर्थ अच्छी तरह से समझ आ सके । हर कहावत के आगे वर्ष लिखा गया है , इसका मतलब है कि यह कहावत बोर्ड में उस वर्ष में पूछी गई है । आशा है कि यह सामग्री अध्यापकों और अध्यापिकाओं के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के लिए भी उपयोगी होगी । 




 एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है  (त्रिशा)

पिछले साल हमारे स्कूल की एक हाकी टीम थी । उस टीम में कक्षा नौ और ग्यारह के चुने हुए अच्छे हाकी खिलाड़ी शामिल थे । टीम के सब बच्चे हफ्ते में दो बार हाकी खेलते थे । टीम का नाम "वैली स्कूल चैम्पियन्स" था । कई बार यह टीम दूसरी पाठशालाओं की हाकी टीम के साथ खेली थी । ऐसे ही एक दिन टीम के मास्टर ने बताया कि कुमारन स्कूल के हाकी खिलाड़ी वैली स्कूल के हाकी खिलाड़ियों के साथ खेलना चाहते थे । टीम के सब खिलाड़ियों ने अपने मास्टर की बात मानी और उस मैच की तैयारी करने लगे ।
हर सुबह छ: बजे टीम के मास्टर सब खिलाड़ियों को स्कूल के अन्दर ही बीस कि.मी भगाते थे । फिर दौड़ने के बाद हाकी कोर्ट में सब खिलाड़ी मैच खेलना शुरु करते थे । "वैली स्कूल चैम्पियन्स" और कुमारन स्कूल की हाकी टीम के मैच का दिन धीरे-धीरे पास आने लगा और फिर एक महीने तक हाकी खेलने का अभ्यास करने के बाद मैच का दिन भी आया और वैली स्कूल चैम्पियनस बिल्कुल तैयार थे ।
हाकी मैच शुरु हुआ और वैली स्कूल के सब खिलाड़ी बहुत अच्छे तरीके से खेल रहे थे । उनको दस अंक शुरुआत के पाँच मिनट में ही मिल गए और कुमारन की टीम को सिर्फ पाँच अंक मिले थे । फिर अचानक कुमारन टीम बहुत अच्छी तरह से खेलने लगी और दो मिनट में वैली स्कूल की टीम से ज़्यादा अंक उन्हें मिले । कुमारन के खिलाड़ियों को जल्दी से अंक बनाते देखकर वैली स्कूल के सब खिलाड़ी डर गए । वे आत्मविश्वास खो बैठे और वे अब ज्यादा बुरा खेलने लगे और कुमारन की टीम ज़्यादा अंक बनाती रही । कुमारन के खिलाड़ियों को अच्छी तरह खेलते हुए देखकर वैली स्कूल के एक खिलाड़ी को बहुत गुस्सा आया । वह कुमारन की टीम को हराना चाहता था । इसलिए उसने फैसला किया कि वह कुमारन के अच्छे खिलाड़ी को खेल में गिराकर घायल करेगा । उसने तेज़ी से भागते हुए कुमारन के खिलाड़ी को ज़ोर से धक्का दिया और उसे लात मारने लगा । वह खिलाड़ी बेहोश हो गया और सब अध्यापक कोर्ट की तरफ भागे । टीम के मास्टर ने राहुल के पास जाकर उसको ज़ोर से पकड़ा और एक कोने में लेकर ज़ोर से थप्पड़ मारा । मास्टर ने उसको ढेर सारी गालियाँ दीं और कहा कि वह टीम से बाहर निकल जाए । फिर मास्टर साहब दूसरी टीम के घायल हुए खिलाड़ी के पास गए । उन्हें पता चला कि उस खिलाड़ी की बाँह टूट गई थी और उसे अस्पताल में दो-तीन दिन रहना पड़ेगा ।
राहुल को सब अध्यापकों की डाँट और फटकार सुननी पड़ी । उसकी टीम के सब खिलाड़ी भी राहुल से गुस्सा थे । अगले दिन कुमारन की हाकी टीम के मास्टर ने आकर वैली स्कूल के प्रधानाचार्य से बात की और कहा कि यह उचित व्यवहार नहीं है । उसी दिन वैली स्कूल के प्रधानाचार्य ने सारी पाठशाला को कहा कि उस दिन के बाद वैली स्कूल में कोई हाकी टीम नहीं होगी क्योंकि राहुल ने जो किया , उसके लिए उसे क्षमा नहीं किया जा सकता । राहुल की वजह से ही टीम के बाकी खिलाड़ी दूसरे स्कूल के साथ हाकी नहीं खेल पाए और उस दिन से स्कूल में राहुल का कोई दोस्त नहीं रहा । सच ही है कि एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है । किसी एक की गल्ती का फल सभी को भुगतना पड़ता है ।

एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है (जश)

एक दिन सुबह मैं अखबार पढ़ रहा था जब मैंने एक बड़ी खबर पढ़ी । वह बड़ी खबर थी कि एक टीम क्रिकेट में हार रही थी और अंत में बहुत बुरी तरह से दूसरी टीम से हार गई । यह हुआ क्योंकि एक खिलाड़ी बहुत बुरी तरह से खेल रहा था । यह ऐसे हुआ क्योंकि वह खिलाड़ी पैसों के लिए लालच में जान-बूझकर खेला नहीं । अखबार में लिखा था कि वह खिलाड़ी बहुत मशहूर था और महान बल्लेबाज था पर उसको एक दिन एक आदमी ने पैसे दिए खेल में हार जाने  के लिए । वह पैसों के लालच में खेला ही नहीं । इस घटना से दूसरे खिलाड़ियों पर भी प्रभाव पड़ा और उन पर भी संदेह और शक किया गया कि कुछ तो गड़बड़ है, दाल में कुछ काला ज़रूर है । एक खिलाड़ी ने बताया कि हार के एक दिन बाद वह खिलाड़ी जो पैसों के लालच में था , उसने एक बहुत शानदार और नई गाड़ी ली और अपने खिलाड़ी मित्र को बताया । फिर उसने एक बहुत मँहगा और विलासितापूर्ण भवन लिया ।
सब खिलाड़ी चौंक गए कि ऐसे कैसे हो सकता है ? हारने के बाद उसे इतना धन कैसे मिला? कई खिलाड़ियों ने पूछा और उसके बाद उस खिलाड़ी ने बता भी दिया और फिर तीन-चार खिलाड़ी भी पैसों के लालच में जानबूझकर बुरी तरह से खेले । कुछ ही दिनों में एक खिलाड़ि ही नहीं, कुछ और खिलाड़ी भी बहुत अमीर और धनी बन गए ।अब तो कई मीडिया वाले और पुलिस वालों को शक हुआ कि ऐसे कैसे हो सकता है । दूसरे जो खिलाड़ी थे, वे ईर्ष्यालु थे पर इसे उन्होंने गैरकानूनी माना । बात यहीं तक ही रुकी नहीं, सभी खिलाड़ियों ने दूसरे खिलाड़ियों का अनुकरण किया । सब टीम के खिलाड़ी पैसे लेकर यह काम करने लगे ।
फिर कई दिनों के बाद मीडिया के एक आदमी ने पता लगाया कि कोई इन सब लोगों को पैसे दे रहा है हारने के लिए । फिर न्यायालय में उन सब खिलाड़ियों पर केस हुआ और आखिर में उनको सज़ा मिली कि वे सब दस साल के लिए क्रिकेट नहीं खेल सकते और उनको जो धन मिला है, उसे भी वापिस लिया जाएगा । अखबार लेखक ने यह भी लिखा कि जिसने पैसे दिए वो आदमी अभी कहीं भाग गया और उसे ढूँढने की तलाश अभी भी चल रही है। उस आदमी को ढूँढने के बाद, उसे भी दंड मिलेगा न्यायालय से । फिर पुलिस सब खिलाड़ियों से जो क्रिकेट खेलते हैं पूछताछ करेगी । अगर उनका भी संबंध उस आदमी से होगा जो पैसा देता है हारने के लिए तो उन्हें भी सज़ा मिलेगी।

निष्कर्षस्वरूप , जिस खिलाड़ी ने यह बुरा किया , उसकी वजह से पूरी टीम को अपमान सहना पड़ा। सही कहा गया है कि एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है ।