Monday, March 31, 2014

Story on proverb- Aa bail mujhe maar/ आ बैल मुझे मार


मैं वैली स्कूल में आई. सी. एस. ई  में भी हिंदी पढ़ाती हूँ । इस बोर्ड के हिंदी पेपर में कहावत के ऊपर एक निबंध पूछा जाता है । बच्चों से कई सारी  कहावतों पर निबंध लिखाना मुश्किल है इसलिए हर छात्र-छात्रा को अलग-अलग कहावत दी जाती है जिस पर वे निबंध लिखते हैं और फिर कक्षा में सब छात्र-छात्राएँ अपने लिखे निबंध पढ़ते हैं जिससे सबको कहावतें भी समझ आ जाएँ और परीक्षा में उन्हें कोई मुश्किल न हो । इन कहावतों पर लिखे निबंधों को छात्र-छात्रों को सुनाया जा सकता है या उन्हें पढ़ने के लिए दिया जा सकता है जिससे उन्हें कहावतों का अर्थ अच्छी तरह से समझ आ सके । हर कहावत के आगे वर्ष लिखा गया है , इसका मतलब है कि यह कहावत बोर्ड में उस वर्ष में पूछी गई है । आशा है कि यह सामग्री अध्यापकों और अध्यापिकाओं के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के लिए भी उपयोगी होगी । 

आ बैल मुझे मार  (मृगांक) 2006
"आ बैल मुझे मार " एक ऐसा मुहावरा है जिसे सुनकर मेरी दादी की एक सुनाई गई कहानी की बहुत याद आती है । यह मेरे पिता के चचेरे भाई के बारे में है । मेरी दादी कहती है कि जब वह छोटे थे तब वह बहुत शरारती थे । उन्हें संभालना नामुमकिन के बराबर था । सब लोग कहते थे कि उन्हें घर बुलाना मुसीबत मोल लेना है । वह मेरे पिता से चार साल बड़े हैं और उनका नाम शरत है।ये कहानियाँ चालीस साल पुरानी हैं ।
एक बार शरत गर्मियों की छुट्टियों में मेरी दादी के घर एक महीने के लिए आए । इस दौरान उन्होंने इतनी बदमाशियाँ कीं कि मेरी दादी ने सोचा कि उन्हें बुलाना "आ बैल मुझे मार" कहने के बराबर है । वह घर की दूसरी मंज़िल की खिड़की पर चढ़ कर खड़े हो जाते थे । खिड़की पर सलाखें नहीं थीं और गिरना आसान था । जब दादी को यह पता चला तो शरत को खूब डाँट कर उसे वहाँ चढ़ने से मना कर दिया ।
उसी महीने एक और घटना घटी । दादी सारे बच्चों को चिड़ियाघर लेकर गई थी । जब वे बंदर के पिंजड़े के पास गए तब शरत ने अपना हाथ बन्दर के पिंजड़े में डाल दिया । शरत बंदर को चिढ़ा रहा था । इससे बंदर भड़क गया । बंदर ने गुस्से में शरत को ज़ोरदार थप्पड़ मारा । आस-पास खड़े बच्चे रोने लगे । दादी घबराकर सोचने लगी कि अब शरत को क्या हो गया ? चिड़ियाघर के अफसर आए । शरत और दादी को डाँट लगाई और वहाँ से निकल जाने को कह । दादी और बच्चों को शर्मिन्दगी महसूस हुआ । जब वे घर लौटे तब शरत को दादी से और डाँट पड़ी ।
इसी महीने एक और हादसा हुआ । मेरी दादी के घर के बगीचे में एक बड़ा-सा आम का पेड़ था । एक दिन शरत उसी पेड़ पर चढ़कर बैठ गया । वह कई घण्टे उधर बैठा रहा । घर में सब लोग उसे ढूँढने की कोशिश कर रहे थे । दादी, दादा और अन्य लोग परेशान हो गए । पड़ोसियों के कहने पर पुलिस ने रपट लिखाई । तीन घण्टे के तमाशे के बाद शरत ने पेड़ के ऊपर से आवाज़ लगाई । सब लोग हक्काबक्का रह गए । दादी और दादा क्रोध से पेड़ की तरफ देखने लगे । पुलिस भी चकित हो गई । अगली मुसीबत यह थी कि शरत नीचे नहीं आ पा रहा था । हर दिशा में गिरने की संभावना थी । अंत में घर के लोगों को "फायर ब्रिगेड" को बुलाना पड़ा । उनकी लंबी सीढ़ी का इस्तेमाल करके कुछ पुलिस वालों ने शरत को किसी तरह नीचे उतारा । जब वह नीचे आया, तब सबके सामने शरत को दादी और दादा ने जोर से डाँटा ।
किसी तरह एक महीना गुज़रा । कुछ न कुछ मुसीबतें आती ही रहीं । दादी शरत को बहुत प्यार करती थीं परन्तु जब वह लौट रहा था तब दादी ने चैन की साँस ली । उन्होंने सोचा कि अब मुझे उसकी शरारतें नहीं झेलनी पड़ेंगी । जब शरत लौट गया । दादी सोच रही थीं कि उसे घर में बुलाना " आ बैल मुझे मार" कहने के बराबर है ।

आ बैल मुझे मार (राहिल)
विशाल एक बारह वर्ष का लड़का था । वह पढ़ाई में उस्ताद था, पर वह कभी भी किसी भी स्कूल में एक वर्ष से ज़्यादा नहीं रहा क्योंकि उसके पिता "भारत टाटा टेलीकोम" के लिए काम करते थे । विशाल के पिता का काम बहुत अच्छा था । जब भी "भारत टाटा टेलीकोम" एक नया दफ्तर खोले तो विशाल के पिता को नए दफ्तर में जाकर यह देखना था कि वहाँ का मैनेजर अच्छा काम कर रहा है या नहीं । विशाल के पिता को यह नौकरी प्यारी थी । पर विशाल को यह नौकरी बिल्कुल पसन्द नहीं थी क्योंकि जब वह एक नए स्कूल जाता, उसे नए दोस्त बनाने पड़ते । विशाल के लिए यह बहुत कठिन कार्य था ।
जब विशाल पाँचवी कक्षा में था, उसके पिता को बेंगलूरू में नौकरी मिली । उसे बिशप काटंस बोएज स्कूल में प्रवेश मिला । यह बेंगलूरू का सबसे पुराना स्कूल है । विशाल को स्कूल पहले दिन से ही बहुत पसन्द आया क्योंकि इस स्कूल में अध्यापक बहुत अच्छे थे । स्कूल में उसे आए छ: हफ्ते हो गए थे पर अब तक उसने एक भी दोस्त नहीं बनाया था ।
कोई भी दोस्त न होने के कारण विशाल बहुत दु:खी था । फिर उसने सोचा कि अगर वह शरारती बन जाए तो उसकी कक्षा के सभी बच्चे उसे जानने लगेंगे । स्कूल के अगले दिन विशाल स्कूल में इधर-उधर चल रहा था और अचानक उसने सभी बच्चों के सामने आग लगने की घण्टी बजा दी जिसके कारण सभी बच्चों को स्कूल के बड़े मैदान में ले जाया गया । जब सब बच्चे कक्षा से बाहर जा रहे थे तो विशाल ने मन में सोचा-"आ बैल मुझे मार ।" उसे एहसास हो गया था कि आग की घण्टी बिना वजह बजाना बुरी बात है और गल्त है । फिर भी उसके मन में कहीं न कहीं एक बात थी कि इस शरारत के कारण उसके नए दोस्त बनेंगे ।

अगले दिन सब बच्चे उसे बुरी नज़रों से देख रहे थे क्योंकि जो उसने किया वह बहुत ही गल्त था और एक अपराध था । भोजन के बाद उसे प्रधानाचार्य के दफ्तर में बुलाया गया । ज विशाल दफ्तर के अन्दर गया तो उसने देखा कि उसके माता-पिता भी वहाँ बैठे हैं । वह अपनी माता की बगल में जा बैठा और तभी प्रधानाचार्य जी ने कहा कि "विशाल  जैसे बच्चों के लिए यहाँ जगह नहीं है ।" अतएव आग लगने की घण्टी रूपी बैल ने विशाल को सचमुच मार दिया था ।











3 comments:

  1. The stories posted here are okay for children. A real example of "Aa Bail Mujhe Maar" is Donald Trump's criticism of the press and news media as "the Fake News Media."

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