Monday, March 31, 2014

Story on proverb- Mazhab nahi sikhata aapas mein bair rakhna/ मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना


मैं वैली स्कूल में आई. सी. एस. ई  में भी हिंदी पढ़ाती हूँ । इस बोर्ड के हिंदी पेपर में कहावत के ऊपर एक निबंध पूछा जाता है । बच्चों से कई सारी  कहावतों पर निबंध लिखाना मुश्किल है इसलिए हर छात्र-छात्रा को अलग-अलग कहावत दी जाती है जिस पर वे निबंध लिखते हैं और फिर कक्षा में सब छात्र-छात्राएँ अपने लिखे निबंध पढ़ते हैं जिससे सबको कहावतें भी समझ आ जाएँ और परीक्षा में उन्हें कोई मुश्किल न हो । इन कहावतों पर लिखे निबंधों को छात्र-छात्रों को सुनाया जा सकता है या उन्हें पढ़ने के लिए दिया जा सकता है जिससे उन्हें कहावतों का अर्थ अच्छी तरह से समझ आ सके । हर कहावत के आगे वर्ष लिखा गया है , इसका मतलब है कि यह कहावत बोर्ड में उस वर्ष में पूछी गई है । आशा है कि यह सामग्री अध्यापकों और अध्यापिकाओं के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के लिए भी उपयोगी होगी । 

मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना (पृथ्वी) 1999, 2000
राम और रहीम अच्छे दोस्त थे । वे दोनों एक ही मोहल्ले में रहते थे । हर दिन वे बाग में खेलते थे । उन दोनों की मित्रता जीवन भर के लिए चली ।
एक दिन जब बहुत बारिश हो रही थी , बाग में कोई नहीं खेल रहा था और बहुत अंधेरा था । राम और रहीम अपने-अपने घरों में थे । खिड़की से राम देख रहा था और बारिश को कोस रहा था क्योंकि वह रहीम से न मिल सका । राम अपनी माँ से शिकायत कर रहा था कि ,"माँ, बारिश को रोको, यह सही नहीं है।" राम की माँ को राम की हठ बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगी । राम की माँ को लगा कि  उसमेम यह शैतानी और बुरी आदतें उस मुसलमान बच्चे, रहीम से ही आ रही थीं ।
बारिश खत्म हो गई थी और सब बच्चे वहाँ खुशी से इधर-उथर खेल रहे थे । राम भी आया और सब के साथ क्रिकेट खेल रहा था । राम और रहीम दोनों अलग-अलग टीं में थे । खेल अच्छी तरह से चला और किसी को चोट नहीं लगी ।
कुछ दिनों बाद हिन्दुओं और मुसलमानों में दंगा हुआ । यह दंगा तीन हफ्ते तक चलता रहा । हर दिन बहुत से आदमी बुरी तरह से पीटे गए । यह दंगा इतना गंभीर था कि लोगों को अपने घर में रहने की सलाह दी गई थी । पुलिस दंगे की जगहों पर पहरा दे रही थी । जब दंगा चल रहा था, उसी समय दगई राम और रहीम के मोहल्ले में भी दंगा करने आए । सब लोग जो वहाँ रहते थे, वे हिन्दू थे सिवा रहीम के परिवार और दंगई मुसलमान थे । उस वक्त राम, रहीम के घर में था । राम के माँ-बाप परेशान थे क्योंकि वे बाहर नहीं जा सकते थे ।
एकाएक राम की माँ को याद आया कि राम, रहीम के घर है और उसके माता-पिता गैरज़िम्मेदार हैं । राम की ठीक से देखभाल नहीं करेंगे । पर राम की माँ के पास कोई और चारा भी नहीं था । मन मसोसकर वह दंगईयों के जाने का इंतज़ार करने लगी ।
रात को रहीम के माँ-बाप ने राम को सही सलामत घर वापिस पहुँचा दिया । राम की माँ ने  उन्हें गलत समझा था । वह पछताई और उसकी आँखों में आँसू आ गए । बरबस ही उसके मुँह से निकला-"मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना ।"

मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना  (त्रिशा)

धर्म हमें पारस्परिक भेदभाव की शिक्षा नहीं देता अर्थात धार्मिक रीतियाँ कभी भी क्लेश को जन्म नहीं देतीं । अपितु हमारी संकीर्ण मानसिकता के कारण कुछ स्वयंभू धर्मगुरु हमें धर्मान्ध कर इन पापों का मूल बनते हैं ।
हिमाचल प्रदेश के एक छोटे गाँव में एक बीस वर्ष की लड़की रहती थी । उसका नाम खुशबू था । वह अपनी माँ और अपने पिता के साथ रहती थी । खुशबू का परिवार मुस्लिम धर्म में विश्वास रखता था । हर शुक्रवार पर खुशबू और उसकी माँ मसजिद जाते थे । खुशबू का कोई छोटा भाई-बहन नहीं था, वह अपने परिवार का एकमात्र सहारा थी । खुशबू का मकान छोटा-सा था मगर बहुत ही सुन्दर था । उसके गा~म्व में उसके ढेर-से दोस्त थे । उसके मकाने के पीछे ही एक लड़का रहता था । उस लड़के का नाम मोहन था । मोहन की आयु २२ वर्ष थी । वह खुशबू से सिर्फ दो साल ही बड़ा था । खुशबू और मोहन एक-दूसरे को बचपन से जानते थे । वे १८ सालों साथ-साथ पढ़ रहे थे ।
मोहन का परिवार हिन्दू धर्म का था । वे हर गुरुवार और शनिवार पर साईं बाबा और गणेश जी के मन्दिर जाता था । मोहन और खुशबू के गाँव में हिन्दू धर्म के लोग मुस्लिम धर्म के लोगों से बात नहीं करते थे । वे सिर्फ एक-दूसरे के साथ लड़ते थे । मगर खुशबू और मोहन ऐसे नहीं थे । वे दोनों बचपन से ही खास दोस्त थे और वे प्रतिदिन मिलते भी थे । खुशबू के माता और पिता चाहते थे कि खुशबू मोहन से बात न करे और उनके घर के पास न जाए । मोहन के माता और पिता भी कुछ ऐसे ही थे ।
बीस वर्ष के बाद खुशबू का परिवार चाहता था कि वह अब कुछ काम नहीं करे और पढ़ाई भी नहीं । वे सिर्फ चाहाता था कि खुशबू अपनी माँ के साथ घर में रहे और घर के कामों में हाथ बँटाए । मोहन का परिवार चाहता था कि मोहन कुछ काम शुरु करे । वह चाहता था कि मोहन किसी बड़े शहर में जाकर किसी बड़े दफ्तर में नौकरी करे । मगर मोहन यह नहीं चाहता था क्योंकि वह खुशबू से बहुत प्यार करता था । पाँच सालों से मोहन यह बात छुपा रहा था और खुशबू को अपने प्यार के बारे में बताने से डरता था । मोहन चाहता था कि वह खुशबू से शादी करे और उसके साथ अपना परिवार बसाए । मगर उसे पता था कि उसके गाँव के लोग यह शादी नहीं होने देंगे । अच्छी बात यह थी कि खुशबू भी मोहन से प्यार करती थी और उसकी भी यही इच्छा थी कि वह मोहन से शादी करे । आज के समय में हम सोचते हैं कि यह तो बड़ी आसान बात है । दोनों एक-दूसरे को प्यार करते हैं और वे शादी कर सकते हैं । पर यह घटना तो आज से दस साल पहले की है तब हिन्दू और मुसलमान एक-दूसरे के यहाँ रिश्ता नहीं करते थे ।
बहुत सोचने के बाद मोहन ने फैसला किया कि वह खुशबू के पास जाकर उसे बताएगा कि वह उससे शादी करना चाहता है । इसलिए एक दिन सायंकाल मनोहर खुशबू के घर गया और अच्छी बात यह हुई कि उस समय वह घर पर अकेली थी । उसने दरवाजे पर मोहन को देखा तो बहुत खुश हो गई । मोहन ने उसको अपने दिल की बात बताई । यह सुनकर खुशबू इतनी खुश हुई कि वह खुशी संभाल न सकी और रोने लगी । दोनों को पता था कि उनके परिवार वाले यह शादी नहीं होने देंगे । इसलिए दोनों ने सोचा कि क्यों न वे दिल्ली जाकर शादी करें और एक दूसरे के साथ वहीं ही अपनी ज़िंदगी खुशी से जीएं ।उसी समय ही खुशबू अपना सारा सामान लेकर मोहन के साथ दिल्ली रवाना हुई । उसे दु:ख था कि वह अपने परिवार को छोड़ रही है पर खुश भी थी कि वह अपनी ज़िंदगी मोहन के साथ जी सकती है ।

दिल्ली पहुँचने पर एक हफ्ते में खुशबू और मोहन ने घर ढूँढा और शादी की । उनके परिवार वालों को नहीं पता था कि वे कहाँ गए हैं और वे सब बहुत परेशान और गुस्सा थे क्योंकि उन्हें पता था कि वे दोनों एक-दूसरे को प्यार करते हैं । एक साल बाद दोनों अपने परिवार वालों से मिलने गाँव आए । किसी ने उनसे पहले तो बात नहीं की । पर थोड़े समय के बाद दोनों को इतना खुश देखते हुए उनके परिवार वालों ने उन्हें क्षमा कर दिया और उनसे बात की । फिर मोहन और खुशबू दिल्ली वापिस आ गए और आज उनकी दो बहुत ही खूबसूरत बेटियाँ  हैं । सच ही है कि मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, हम इंसान ही आपस में भेदभाव रखते हैं ।












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