Monday, March 31, 2014

Story on proverb- Ishear teri maya, kahin dooph kahin chaya/ ईश्वर तेरी माया , कहीं धूप कहीं छाया


मैं वैली स्कूल में आई. सी. एस. ई  में भी हिंदी पढ़ाती हूँ । इस बोर्ड के हिंदी पेपर में कहावत के ऊपर एक निबंध पूछा जाता है । बच्चों से कई सारी  कहावतों पर निबंध लिखाना मुश्किल है इसलिए हर छात्र-छात्रा को अलग-अलग कहावत दी जाती है जिस पर वे निबंध लिखते हैं और फिर कक्षा में सब छात्र-छात्राएँ अपने लिखे निबंध पढ़ते हैं जिससे सबको कहावतें भी समझ आ जाएँ और परीक्षा में उन्हें कोई मुश्किल न हो । इन कहावतों पर लिखे निबंधों को छात्र-छात्रों को सुनाया जा सकता है या उन्हें पढ़ने के लिए दिया जा सकता है जिससे उन्हें कहावतों का अर्थ अच्छी तरह से समझ आ सके । हर कहावत के आगे वर्ष लिखा गया है , इसका मतलब है कि यह कहावत बोर्ड में उस वर्ष में पूछी गई है । आशा है कि यह सामग्री अध्यापकों और अध्यापिकाओं के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के लिए भी उपयोगी होगी । 

ईश्वर तेरी माया , कहीं धूप कहीं छाया (पृथ्वी) 2004
यह बात कुछ सालों पहले की है । जुलाई का महीना था और हम अपनी नई कक्षा में आए थे । नई किताबें , नया बस्ता, कुछ सहपाठी और रिमझिम बरसात सब कुछ हमारे लिए खुशी का कारण बने हुए थे । चंद दिनों मेम हमारी खुशियाँ चिन्ता का कारण बन गईं क्योंकि बारिश थी कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी । मानो आसमान फट पड़ा हो और वर्षा रानी अपना तांडव नृत्य कर रही हो । दो-चार दिनों में हालात इतने बिगड़े कि शहर की सभी शालाएँ बन्द कर दी गईं । हम लोगों ने प्रकृति का वो कहर देखा जो कभी भुलाया नहीं जा सकता । हर तरफ पानी ही पानी, शहर की सड़कों पर पानी का सैलाब था ।
टी.वी. पर जो नज़ारा हमने देखा वो दिल दहला देने वाला था । तटीय क्षेत्रों मेम समुद्र का पानी मानो धरती को अपने से मिलाने आ गया था । लोगों के घर-बार, खेत-खलिहान सब बह चुके थे । जो लोग अपनी जान बचा पाए, वह पक्की इमारतों की छतों पर बैठे राहत की प्रतीक्षा कर रहे थे । चारों ओर पानी और चंद लोग जो कुछ पेड़ों पर चढ़कर अपनी जान बचा पाए, वे मदद के लिए पुकार रहे थे । पानी में तैरते मृत लोगों और जानवरों के शव बहुत ही भयानक लग रहे थे । राहत कार्य में नावों और हेलीकाप्टरों के द्वारा लोगों तक मदद पहुँचायी जा रही थी ।
जहाँ समाचारों में तटीय इलाकों में बाढ़ की त्रासदी को दिखाया जा रहा था , वहीं महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान में पड़े सूखे पर भी विस्तार से बताया जा रहा था । जहाँ जून के महीने में बारिश होनी चाहिए थी , वहाँ जुलाई के अंत तक एक बूँद वर्षा के लिए लोग तरस गए थे । मवेशी पानी के लिए तरस कर अपने प्राण गँवा रहे थे । यही हाल लोगों का भी था जो पानी की तलाश में इधर-उधर भटक रहे थे । यहाँ भी मौत की अज़ब कहानी थी, भूख और प्यास से मरे जानवरों के शव जगह-जगह पड़े हुए थे । शासन की तरफ से राहत कार्य जोरों से चल रहा था । इन दृश्यों को देखकर ऊपरवाले से बस यही प्रार्थना थी कि बाढ़ में फँसे लोगों को बारिश से मुक्ति दो और सूखे से पीड़ितों को बारिश के अमृत से नहला दो । यह भी क्या पहेली है, कहीं बाढ़ की मार तो कहीं सूखे का वार । इस परिस्थिति को और क्या कह सकते हैं और बस यही ," ईश्वर तेरी माया, कहीं धूप , कहीं छाया ।"

ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया  (दिया)
गोपीनाथ अपने दो पुत्र लालू और रामू के साथ मुम्बई में रहते थे । गोपीनाथ का स्वास्थ्य अच्छा नहीं था । वह लगभग ६५ वर्ष के थे और उन्हें अपनी नौकरी छोड़कर पाँच साल ही हुए थे । उन्होंने बहुत पैसा कमाया था और उन्हें विश्वास था कि उनके दोनों पुत्र उनकी देखभाल करेंगे । रामू एक अच्छा आदमी था और वह अपनी नौकरी पर भी जाता था और अपने पिता को भी जब भी ज़रूरत पड़ती , अस्पताल ले जाता था । लालू बड़ा लापरवाह था, उसकी पढ़ाई खत्म हुए दो वर्ष ही हुए थे और अभी तक उसने नौकरी ढूँढने का प्रयत्न भी नहीं किया था । वह अपने पिता जी पैसे लेकर पूरे शहर में घूमता फिरता था और मौज-मस्ती करता था । इस तरह गोपीनाथ के पैसे कम होते जा रहे थे, तो रामू ने अपने कमाए हुए पैसे से उनकी देखभाल की ।
एक दिन गोपीनाथ की मृत्यु हो गई । अपनी मृत्यु से पहले गोपीनाथ ने अपने दोनों पुत्रों के बीच धन-दौलत समान रूप से बाँट दी । अपना धन लेकर रामू ने बैंक में जमा कर दिया और लालू अपने पैसे पार्टियों में उड़ाने लगा । अपने पिता की मौत के बाद रामू ने लालू को समझाया कि उसे नौकरी ढूँढनी पड़ेगी क्योंकि पैसा ज़्यादा देर तक नहीं चलेगा पर लालू ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया और लापरवाह हो घर में बैठा रहा । एक ओर रामू परिश्रमी होने के नाते रोज नौकरी पर जाता और दूसरी ओर लालू पिता के दिए पैसे उड़ाता ही रहा । रामू ने अपने छोटे भाई को समझाया कि उसे ही घर का किराया देना होगा, परन्तु लालू के पैसे खत्म हो गए।अब रामू को ही किराया देना पड़ा ।
एक दिन रामू दफ्तर गया तो उसके चीफ ने उसे उन्नति दी । इस उन्नति के अनुसार उन्हें अमरीका जाना था । रामू तो बहुत ही प्रसन्न था । जब वह घर गया तो उन्होंने अपने छोटे भाई को यह अच्छी खबर बताई । लालू ने समझा कि वह अपने भाई के साथ जा रहा था, परन्तु सिर्फ रामू जा रहा था । एक हफ्ते में रामू निकलने वाला था और जब वह अपने पिता के दिए पैसे को लेने के लिए बैंक गया, तो उसे पता चला कि लालू ने सब पैसे ले लिए हैं । क्रोधित होकर रामू घर गया और वहाँ उसने देखा कि लालू अपने कपड़ों को सूटकेस में डाल रहा था । रामू हैरान हो गया । उसने फिर लालू से कहा कि वह ही सिर्फ अमरीका जा रहा था और वह लालू को एक पैसा भी नहीं देगा क्योंकि उसने उनका पूरा पैसा लूट लिया था ।
एक हफ्ते बाद रामू अमरीका गया । अमरीका में रामू बहुत ज़्यादा पैसा कमा रहा था । मेहनती होने के कारण ईश्वर उसे उसका परिणाम दे रहा था । रामू जो कार्य करता था, उसे वह मन लगाकर करता था । एक-दो हफ्ते में वह एक बड़े बंगले में रहने लगा और उनके दफ्तर की एक लड़की से ही उनकी शादी हो गई । वह खुशी से अपना जीवन जी रहा था । यहाँ लालू भाई के सारे पैसों को मौज-मस्ती में उड़ाने के बाद फिर से पैसों का मोहताज हो गया और वह सड़क पर भीख माँगने लगा ।

इसलिए कहते हैं - ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया ।   






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