Monday, March 31, 2014

Story on proverb- Jaisi karni vaisi bharni/जैसी करनी वैसी भरनी


मैं वैली स्कूल में आई. सी. एस. ई  में भी हिंदी पढ़ाती हूँ । इस बोर्ड के हिंदी पेपर में कहावत के ऊपर एक निबंध पूछा जाता है । बच्चों से कई सारी  कहावतों पर निबंध लिखाना मुश्किल है इसलिए हर छात्र-छात्रा को अलग-अलग कहावत दी जाती है जिस पर वे निबंध लिखते हैं और फिर कक्षा में सब छात्र-छात्राएँ अपने लिखे निबंध पढ़ते हैं जिससे सबको कहावतें भी समझ आ जाएँ और परीक्षा में उन्हें कोई मुश्किल न हो । इन कहावतों पर लिखे निबंधों को छात्र-छात्रों को सुनाया जा सकता है या उन्हें पढ़ने के लिए दिया जा सकता है जिससे उन्हें कहावतों का अर्थ अच्छी तरह से समझ आ सके । हर कहावत के आगे वर्ष लिखा गया है , इसका मतलब है कि यह कहावत बोर्ड में उस वर्ष में पूछी गई है । आशा है कि यह सामग्री अध्यापकों और अध्यापिकाओं के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के लिए भी उपयोगी होगी । 





 जैसी करनी वैसी भरनी  (अजित) 2008
बहुत वर्षों पहले की बात है , एक लड़का एक छोटे से गाँव में रहता था । यह लड़का बहुत समझदार और अच्छा व्यवहार करता था । यह लड़का गुरुकुल जाता था और अच्छी तरह से पढ़ता था । यह लड़का गुरुकुल के अध्यापक का सबसे प्रिय विद्यार्थी था । घर में उसके माता-पिता उससे बहुत खुश थे । उसके माता-पिता उस के बड़े आदमी बनने का सपना देखा करते थे । ऐसे ही बहुत वर्ष बीत गए ।
एक दिन जब वह गुरुकुल में था तो उसने वहाँ शरारत की । जब गुरुकुल के अध्यापक ने यह देखा तो उनको बहुत गुस्सा आ गया और यह बात पूरे गाँव को सुननी पड़ी । जब वह वापिस घर गया तो वहाँ उसके माता-पिता ने भी बहुत गुस्सा किया । वह बार-बार गाँव वालों से बोला कि उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया लेकिन गाँव वालों और उसके अध्यापक ने उस पर विश्वास नहीं किया । अगले दिन वह लड़का गाँव छोड़कर चला गया। बहुत वर्षों तक उस लड़के के बारे में कुछ भी नहीं पता चला । उसके माँ-बाप बहुत दु:खी थे । उस गाँव से व्यापार का एक रास्ता जाता था । उस रास्ते में बहुत लोग व्यापार करने के लिए जाते थे । अब बहुत वर्ष हो गए थे, उस लड़के के गाँव से जाने के बाद उस व्यापार के रास्ते पर एक जगह थी जहाँ से वो रास्ता एक जंगल के सामने जाता था । उसी जंगल में वो लड़का रह रहा था । उसके सारे गाँव वालों पर बहुत गुस्सा था और उसके मन में एक विचार आया, कैसे वो अपना गुस्सा दिखाए ?
एक दिन गाँव में व्यापार करने वाले लोग दो दिन के बाद भी वापिस नहीं आए । उन लोगों का परिवार बहुत चिंतित हो गया । अगले दिन दो-तीन आदमी उन लोगों को ढूँढ़ने के लिए गए । लेकिन एक आदमी भी वापिस नहीं आया, तो गाँव के सारे लोग चिंतित हो गए । जब उन व्यापार करने वाले लोगों का समूह जंगल के पास आया तो वह लड़का जो गाँव छोड़कर चला गया था, उसी ने सारे लोगों को काटकर उनकी उँगुलियाँ काटकर माला बनाई । एक आदमी किसी तरह वहाँ से बच निकला और उसने अपने महाराज से यह सब गाथा बताई । अब महाराज भी चिंतित हो गए ।
गाँव में सारे लोगों ने यह सुना तो उसका नाम "अँगुलीमाल" रखा । दो-तीन दिनों बाद महाराज ने अँगुलीमाल को खत्म करने के लिए बहुत सारे सिपाही भेजे । जब सिपाही जंगल के पास आए तो अँगुलीमाल ने उन्हें भी मार डाला और उनकी उँगुलियाँ भी अपनी माला में डालीं । ऐसे अँगुलीमाल की माला और भी लंबी हो गई । जब सिपाहियों की मृत्यु गाँव वालों ने सुनी तो वे और भी ज़्यादा चिंतित हो गए और डर भी गए । अब वे सब कैसे शहर जाएंगे? कैसे व्यापार करेंगे? शहर से आने वाले लोग भी सुरक्षित नहीं थे । ये सब बातें महाराज के मन में भी चल रही थीं । महाराज ने अपने मंत्री से इस समस्या पर विचार-विमर्श किया ।
एक महीने बाद महाराज और उनके मंत्री को एक उपाय सूझा । उपाय था - महाराज को गाँव से शहर तक एक नया व्यापार रास्ता बनवाना होगा । जब नया रास्ता खत्म हुआ , सारे लोग व्यापार करने के लिए आने-जाने लगे । अब अँगुलीमाल की समस्या किसी के सामने नहीं आई क्योंकि उसको नहीं पता था कि व्यापार का नया रास्ता शुरु हो गया है । वह व्यापार करने वाले लोगों को इन्तज़ार करता रहा लेकिन कोई उस तरफ नहीं आया । अँगुलीमाल कुछ समझ नहीं पाया । तभी उसने एक ऋषि को वन में से गुजरते हुए देखा और वह उनका पीछा करने लगा । वह उनके पीछे करीब-करीब एक घंटा चला पर वह उन्हें पकड़ नहीं पाया । वह ज़ोर से चिल्लाया- अरे ऋषि, रुको ! मैं कब से तुम्हारा पीछा कर रहा हूँ पर तुम्हें क्यों नहीं पकड़ पाया ?" ऋषि ने उत्तर दिया," मैं तो सारा समय वर्तमान में हूँ पर तुम भविष्य के बारे में सोच रहे हो ।" अँगुलीमाल बोला," मुझे तुम्हारी अँगुलियाँ चाहिए ।" ऋषि ने अपना हाथ उसके सामने किया और कहा," तुम्हें जो चाहिए, वो मेरे शरीर से ले लो।" अँगुलीमाल यह सुनकर हैरान हो गया और बोला," भगवन ! आप कौन हैं? मैं आपका शिष्य बनना चाहता हूँ।" यह ऋषि और कोई नहीं स्वयं गौतम बुद्ध थे , उन्होंने अँगुलीमाल को अपना शिष्य बना लिया ।
अँगुलीमाल बुद्ध के साथ उनके आश्रम में गया और शिष्य बनकर उनके साथ रहने लगा । वह कई वर्षों तक उनसे शिक्षा लेता रहा । अब समय आ गया था जब वह भिक्षा लेने के लिए आश्रम से बाहर अन्य शिष्यों के साथ जा सकता था । वह भिक्षा माँगते हुए अपने गाँव पहुँचा । वह एक छोटे बच्चे से चावल ले रहा था कि गाँव वालों ने उसे पहचान लिया । सब लोगों ने आव देखा न ताव, उसे पीटना शुरु किया पर अँगुलीमाल ने अपना बचाव नहीं किया । गाँववालों ने अधमरा करके उसे छोड़ दिया , जैसे-तैसे वह गुरु के आश्रम में पहुँचा । वह बुरी तरह से घायल था । वह आश्रम पहुँचते ही बुद्ध के चरणों में गिर गया । आज अँगुलीमाल को समझ आ गया था- "जैसी करनी, वैसी भरनी" । अन्त में यही शब्द उसके मुख से निकले और उसने अपने प्राण त्याग दिए ।

जैसी करनी वैसी भरनी (आनवी)
मनुष्य का अपने कर्म पर अधिकार है । वह कर्म के अनुसार फल प्राप्त करता है । अच्छे कर्म करने पर उसे फल भी अच्छा मिलता है । बुरे कर्म का परिणाम बुरा होता है । कर्म करना बीज बोने के समान है । जैसा बीज होता है, वैसा ही पेड़ और वैसे ही फल होता है । एक कहावत है- बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से आए? इसलिए बड़े से बड़े अपराधी अंत में बुरी मौत मरते हैं । जो बेईमानी से धन कमाते हैं , उनके बच्चे बेईमान और दुष्ट चरित्र बनते हैं । उनकी बुराई का परिणाम उन्हें मिल ही जाता है । एक छात्र परिश्रम की राह पर चलता है तो उसे सफलता तथा संतुष्टि का फल प्राप्त होता है । दूसरा छात्र नकल और प्रवंचना का जीवन जीता है। उसे जीवन-भर चोरों, ठगों और धोखेबाजों के बीच रहना पड़ता है । दुष्ट लोगों के बीज जीना भी तो एक दण्ड है । अत: मनुष्य को अच्छे कर्म करने चाहिए । इसी से मन में सच्चा सुख जागता है और शक्ति व शान्ति मिलती है ।
कुछ साल पहले, दिल्ली की छोटी-छोटी गलियों में एक दर्जी रहता था । यह दर्जी कपड़े सिलकर अपना गुज़ारा करता था । वह अपनी छोटी-सी दुकान में सिलाई का काम करता था । एक हफ्ते में उसे तीन-चार ग्राहक मिलते थे । धीरे-धीरे उसको ज़्यादा कपड़े मिलने लगे, और ज़्यादा पैसा भी । वह अपनी छोटी दुकान को और बड़ा कर पाया । जिस गली पर इस दर्जी की दुकान थी, उसी गली के अंत में जाने पर एक नदी बहती थी । इस नदी को पार करके शहर के दूसरी तरफ जा सकते थे ।
दर्जी की दुकान के सामने प्रतिदिन एक हाथी अपने महावत के साथ नदी में नहाने के लिए जाता था । महावत हाथी को अपनी सूँड से नमस्ते करना सिखाता था । इसी कारण हाथी हर दिन दर्जी को प्रणाम करके फिर नहाने के लिए जाता था । दर्जी हाथी को केला या कभी सेब खिलाता था । हाथी भी यह सब पाकर खुश होता था ।
दीवाली का महीना था । अचानक दर्जी को बहुत सारा काम मिला । लंहगे, साड़ी के ब्लाउज़, सलवार-कमीज़, कई तरह के कपड़े सिलाने के लिए दर्जी को दिए गए । दर्जी काम करते-करते थक गया और तंग भी आ गया । उसी हफ्ते में एक दिन जब हाथी दर्जी को प्रणाम करने आया तो दर्जी ने गुस्सा होकर हाथी की सूँड में सुई चुभो दी इससे हाथी को बहुत दर्द हुआ ।

नहाने के बाद जब हाथी ने दर्जी की दुकान पार की तो दर्जी की दुकान में उसने अपनी सूँड में भरा पानी और कीचड़ डाल दी । दर्जी के सारे कपड़े खराब हो गये और उसका काम और भी बढ़ गया । सच ही है कि अच्छे काम का अच्छा फल होता है और बुरे काम का बुरा फल होता है यानि कि "जैसी करनी वैसी भरनी ।"

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