Monday, March 31, 2014

Story on proverb - Moorkh mitra se samajhdaar shatru bahtar hai/ मूर्ख मित्र से समझदार शत्रु बेहतर है


मैं वैली स्कूल में आई. सी. एस. ई  में भी हिंदी पढ़ाती हूँ । इस बोर्ड के हिंदी पेपर में कहावत के ऊपर एक निबंध पूछा जाता है । बच्चों से कई सारी  कहावतों पर निबंध लिखाना मुश्किल है इसलिए हर छात्र-छात्रा को अलग-अलग कहावत दी जाती है जिस पर वे निबंध लिखते हैं और फिर कक्षा में सब छात्र-छात्राएँ अपने लिखे निबंध पढ़ते हैं जिससे सबको कहावतें भी समझ आ जाएँ और परीक्षा में उन्हें कोई मुश्किल न हो । इन कहावतों पर लिखे निबंधों को छात्र-छात्रों को सुनाया जा सकता है या उन्हें पढ़ने के लिए दिया जा सकता है जिससे उन्हें कहावतों का अर्थ अच्छी तरह से समझ आ सके । हर कहावत के आगे वर्ष लिखा गया है , इसका मतलब है कि यह कहावत बोर्ड में उस वर्ष में पूछी गई है । आशा है कि यह सामग्री अध्यापकों और अध्यापिकाओं के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के लिए भी उपयोगी होगी । 

मूर्ख मित्र से समझदार शत्रु बेहतर है  (अदिति) 2001

एक समझदार शत्रु मूर्ख मित्र से कहीं ज्याद अच्छा होता है । समझदार शत्रु हमें जान-बूझकर नुकसान पहुँचाता है जबकि एक मूर्ख मित्र अनजाने में ही हमें बहुत कष्ट पहुँचा सकता है । इसलिए बहुत सोच-समझकर दूसरे को परख कर दोस्ती का हाथ बढ़ाना चाहिए । नहीं तो अनगिनत कष्टोम का सामना करना पड़ सकता है ।
एक राजा था । वह बहुत दयालू था । उसे पशु-पक्षी से लगाव था । राजा एक पालतू बंदर को बहुत पसंद करता था । जिसे वह अपने साथ लेकर घूमता था । महल के सब लोग बन्दर को इज़्ज़त और प्यार देते थे । अच्छा खाना खा बन्दर मोटा और घमंडी हो गया था । एक दिन राजा अपने बन्दर को लेकर बगीचे में सैर के लिए चल पड़ा । बीच में थकने के बाद राजा आराम करने पेड़ के नीचे लेटा और उसने बन्दर्को कहा कि कोई उसे उठाए नहीं ,वे सोना चाहते हैं । वह राजा के सिरहाने बैठकर पंखा झलने लगा । तभी उसने देखा कि एक मक्खी कभी राजा के माथे पर बैठती तो कभी कान पर ऐसे वह राजा को तंग कर रही थी । बन्दर को राजा का आदेश याद आया और उसने मक्खी को मारने के इधर-उधर देखा तो उसके हाथ राजा की तलवार आ गई । उसने आव देखा न ताव तलवार के एक वार से उस मक्खी को मार दिया । जब तक उसे समझ में आता कि उसने क्या किया है, उसने देखा कि राजा का सिर धड़ से अलग हो गया था । इस प्रकार मूर्ख मित्र के कारण राजा को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा । मूर्ख मित्र हमें गलत सुझाव देकर अनजाने में गलत रास्ते की ओर ले जा सकता है । एक समझदार शत्रु से हम फिर भी चौकन्ने रहते हैं । इसलिए वह हमें इतनी हानि नहीं पहुँचा सकते हैं , मूर्ख मित्र की बातों में आकर हम गलत सलाह को भी सही मानकर बड़ी गलती कर सकते हैं जिसका पछतावा हमें जीवन भर रह सकता है ।
ऐसे ही एक और कहानी भी यही कहावत सिद्ध करती है । एक गाँव में एक लकड़हारा रहता था । उसका बारह साल का एक बेटा था । एक दिन वह लकड़हारा शाम को घर आकर थक कर लेट गया । खूब काम करने के कारण वह बहुत थका हुआ था । थकावट के कारण उसे नींद आ रही थी । तभी एक मच्छर उसकी नाक पर आ बैठा और उसे तंग करने लगा । लकड़हारे ने जोर से आवाज लगाकर अपने बेटे से उस मच्छर को मारने को कहा । बेटा मूर्ख था। अंदर जाकर कुल्हाड़ी ले आया । जैसे ही मच्छर दोबारा लकड़हारे की नाक पर बैठा, तो बेटे ने जोर से कुल्हाड़ी उठाकर मच्छर पर दे मारी । मच्छर तो उड़ गया पर लकड़हारा जो गहरी नींद में सो रहा था, उसका मुँह शरीर से अलग हो गया । बेटा यह देखकर फूट-फूट कर रोने लगा । पर अब क्या हो सकता था ? इसलिए कहा गया है कि मूर्ख मित्र से समझदार शत्रु ज़्यादा अच्छा होता है ।

मूर्ख मित्र से समझदार शत्रु अच्छा है  (एशना)
शीतल मेरी सबसे अच्छी सहेली थी । तब थी, अब है और हमेशा रहेगी । मैं उस पर बहुत विश्वास करती हूँ । मैं उसकी सारी बातों को मानती और वह मेरी । कालेज में संजना नाम की एक लड़की थी । मैं उससे बहुत नफरत करती थी और वह मुझसे ।  हम दोनों कभी भी एक बात पर सहमत नहीं हो पाते थे । वह मुझ पर भरोसा नहीं करती थी , ना मैं उस पर । हम दुश्मन थे और सब लोग यही मानते थे कि हमारे रिश्ते में सिर्फ दुश्मनी थी ।
शनिवार था मगर फिर भी हमें कालेज जाना था । किसी का भी कालेज जाने का मन नहीं था । क्लास के बीच के ब्रेक में हम चार-पाँच लोग कक्षा में थे- शीतल, रवि, राहुल, मैं और कोने में बैठी हुई संजना । "क्यों न हम आज कालेज छोड़कर फिल्म देखने जाएं ?" रवि ने कहा । मैंने तुरन्त मना किया । मगर शीतल ने कहा," हमें मज़ा आएगा । कुछ नहीं होगा । चलो!" मैं मान गई । हम सबके दु:खी और चिड़चिड़े चेहरों पर मुस्कान फैल गई । सब लोग राज़ी हो गए । हम सब ने अपने-अपने बस्ते लिए और दरवाजे की तरफ चलने लगे । मैं सबसे पीछे चल रही थी । मेरे निकलने के समय ही संजना ने कहा," तुम पकड़ी जाओगी । तुम्हें जाना नहीं चाहिए।" मैं अपना मुँह फेरकर चली गई ।
हम आज़ादी महसूस कर रहे थे । हम लोग कालेज से भागने में सफल हुए । माल के अंदर जाकर हम चकित हो गए । हमारे मुख्याध्यापक और उनका परिवार वहाँ फिल्म देखने आए थे । उन्हें देखकर मैं उधर ही मानो बर्फ की तरह जम गई । इसी बीच उन्होंने हमें देख लिया । वह हमारी तरफ गंभीर मुद्रा में आने लगे । मैं क्या करूँ ? मुझे समझ में नहीं आ रहा था । मेरा मन अस्थिर-सा हो गया । तभी "तुम लोग इधर क्या कर रहे हो? तुम लोगों को कालेज में होना चाहिए था ।" किसी के मुँह से कोई आवाज़ नहीं निकली । सब के चेहरों पर सन्नाटा छा गया । "अब मैं कुछ कर नहीं पाऊँगा । कल जब तुम लोग कालेज आओगे तो पहले मुझसे मिलोगे ।" मुख्याध्यापक ने अपनी बात पूरी की ।

अगले दिन हमें उन्होंने अपने दफ्तर बुलाया । उन्होंने कुछ भी न पूछा । केवल सज़ा सुनाई और हमें तीन दिन के लिए स्कूल आने से मना कर दिया । यह सज़ा आज से शुरु होनी थी । हमें घर वापिस भेज दिया गया । घर में सिर्फ मैं थी । मम्मी-पापा दोनों काम के लिए गए हुए थे । मैं सोचने ल्गई कि मैं मम्मी-पापा से यह कैसे कहूँगी कि मुझे स्कूल में तीन दिन के लिए न आने की सज़ा दी गई थी । तब मुझे संजना की वही बात याद आ गई," तुम पकड़े जाओगे । तुम्हें जाना नहीं चाहिए ।" सच में, संजना की बात मुझे सुननी चाहिए थी । सच ही है-  "एक मूर्ख दोस्त से समझदार शत्रु अच्छा है।"











1 comment:

  1. एक समझदार शत्रु मूर्ख मित्र से कहीं ज्याद अच्छा होता है । समझदार शत्रु हमें जान-बूझकर नुकसान पहुँचाता है जबकि एक मूर्ख मित्र अनजाने में ही हमें बहुत कष्ट पहुँचा सकता है । इसलिए बहुत सोच-समझकर दूसरे को परख कर दोस्ती का हाथ बढ़ाना चाहिए । नहीं तो अनगिनत कष्टोम का सामना करना पड़ सकता है ।

    एक राजा था । वह बहुत दयालू था । उसे पशु-पक्षी से लगाव था । राजा एक पालतू बंदर को बहुत पसंद करता था । जिसे वह अपने साथ लेकर घूमता था । महल के सब लोग बन्दर को इज़्ज़त और प्यार देते थे । अच्छा खाना खा बन्दर मोटा और घमंडी हो गया था । एक दिन राजा अपने बन्दर को लेकर बगीचे में सैर के लिए चल पड़ा । बीच में थकने के बाद राजा आराम करने पेड़ के नीचे लेटा और उसने बन्दर्को कहा कि कोई उसे उठाए नहीं ,वे सोना चाहते हैं । वह राजा के सिरहाने बैठकर पंखा झलने लगा । तभी उसने देखा कि एक मक्खी कभी राजा के माथे पर बैठती तो कभी कान पर ऐसे वह राजा को तंग कर रही थी । बन्दर को राजा का आदेश याद आया और उसने मक्खी को मारने के इधर-उधर देखा तो उसके हाथ राजा की तलवार आ गई । उसने आव देखा न ताव तलवार के एक वार से उस मक्खी को मार दिया । जब तक उसे समझ में आता कि उसने क्या किया है, उसने देखा कि राजा का सिर धड़ से अलग हो गया था । इस प्रकार मूर्ख मित्र के कारण राजा को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा । मूर्ख मित्र हमें गलत सुझाव देकर अनजाने में गलत रास्ते की ओर ले जा सकता है । एक समझदार शत्रु से हम फिर भी चौकन्ने रहते हैं । इसलिए वह हमें इतनी हानि नहीं पहुँचा सकते हैं , मूर्ख मित्र की बातों में आकर हम गलत सलाह को भी सही मानकर बड़ी गलती कर सकते हैं जिसका पछतावा हमें जीवन भर रह सकता है ।

    ऐसे ही एक और कहानी भी यही कहावत सिद्ध करती है । एक गाँव में एक लकड़हारा रहता था । उसका बारह साल का एक बेटा था । एक दिन वह लकड़हारा शाम को घर आकर थक कर लेट गया । खूब काम करने के कारण वह बहुत थका हुआ था । थकावट के कारण उसे नींद आ रही थी । तभी एक मच्छर उसकी नाक पर आ बैठा और उसे तंग करने लगा । लकड़हारे ने जोर से आवाज लगाकर अपने बेटे से उस मच्छर को मारने को कहा । बेटा मूर्ख था। अंदर जाकर कुल्हाड़ी ले आया । जैसे ही मच्छर दोबारा लकड़हारे की नाक पर बैठा, तो बेटे ने जोर से कुल्हाड़ी उठाकर मच्छर पर दे मारी । मच्छर तो उड़ गया पर लकड़हारा जो गहरी नींद में सो रहा था, उसका मुँह शरीर से अलग हो गया । बेटा यह देखकर फूट-फूट कर रोने लगा । पर अब क्या हो सकता था ? इसलिए कहा गया है कि मूर्ख मित्र से समझदार शत्रु ज़्यादा अच्छा होता है ।

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