Sunday, November 30, 2014

Story on Proverb- Seva kar mewa milega/ सेवा कर मेवा मिलेगा अथवा किसी की सेवा करने से अच्छा फल मिलेगा

मैं वैली स्कूल में आई. सी. एस.   में भी हिंदी पढ़ाती हूँ इस बोर्ड के हिंदी पेपर में कहावत के ऊपर एक निबंध पूछा जाता है बच्चों से कई सारी  कहावतों पर निबंध लिखाना मुश्किल है इसलिए हर छात्र-छात्रा को अलग-अलग कहावत दी जाती है जिस पर वे निबंध लिखते हैं और फिर कक्षा में सब छात्र-छात्राएँ अपने लिखे निबंध पढ़ते हैं जिससे सबको कहावतें भी समझ जाएँ और परीक्षा में उन्हें कोई मुश्किल हो इन कहावतों पर लिखे निबंधों को छात्र-छात्रों को सुनाया जा सकता है या उन्हें पढ़ने के लिए दिया जा सकता है जिससे उन्हें कहावतों का अर्थ अच्छी तरह से समझ सके हर कहावत के आगे वर्ष लिखा गया है , इसका मतलब है कि यह कहावत बोर्ड में उस वर्ष में पूछी गई है आशा है कि यह सामग्री अध्यापकों और अध्यापिकाओं के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के लिए भी उपयोगी होगी


 
A. सेवा कर मेवा मिलेगा अथवा किसी की सेवा करने से अच्छा फल मिलेगा (वैष्णवी)

रवीना एक चौदह साल की लड़की थी और वह वैली स्कूल में पढ़ती थी। रोज वह स्कूल बस में जाती थी। उसका बस स्टॉप उसके घर के पास ही था। उसके पिता उसे रोज बस स्टॉप पर छोड़ते थे। वह बस स्टॉप आम जनता के लिए भी था।
हर रोज उस बस स्टॉप पर एक अंधा आदमी जयनगर से बस में आता था। उसकी पत्नी रोज उसे जयनगर बस स्टॉप पर छोड़ती थी। पर यहाँ रवीना के बस स्टॉप पर उसकी कोई मदद नहीं करता था। रवीना हर रोज उसे देखती थी और उसे यह बात बहुत बुरी लगती थी कि कोई उसकी मदद नहीं करता था। रवीना उसकी मदद करना चाहती थी पर कुछ दिन के लिए उसने उसकी मदद नहीं की क्योंकि वह चाहती थी कि बस में से कोई उसकी मदद करे।
कई रोज रवीना यह सब देखती रही । आखिरकार एक दिन तंग आकर रवीना स्वयं उसे मदद करने गई। वह व्यक्ति उस बस स्टॉप के पास वाले आश्रम में काम करता था क्योंकि उसके पास अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए पैसा नहीं था। यह बात सुनकर रवीना को बहुत दु:ख हुआ । उस दिन से हर रोज वह बस स्टॉप पर जल्दी आकर उसे आश्रम तक छोड़ आती थी।
इसी तरह वह करती रही। एक दिन रवीना के पिता भी उसकी मदद करने के लिए तैयार हो गए। वे उसे प्रति माह पाँच हज़ार रुपए देने लगे ताकि वह काम पर नहीं जाए और घर पर ही रहे। यह पाँच हज़ार रुपए उसके बेटे की पढ़ाई के लिए थे। उसकी पत्नी भी कमाती थी और उसकी कमाई उन सबके खाने-पीने पर खर्च हो जाती थी।
इस तरह से रवीना और उसके पिता ने उस अंधे आदमी अथवा सूरदास की मदद की। रवीना के पिता ने यह काम नि:स्वार्थ भाव से किया था। पर आश्चर्य की बात थी कि उस साल रवीना को पढ़ाई में पारितोषिक मिला और उसके पिता के काम में भी बड़ी तरक्की हुई। इससे वे दोनों और उनका परिवार बहुत खुश थे। इससे स्पष्ट होता है कि जो किसी की मदद करता है कि उसे अवश्य अच्छा फल मिलता है अथवा सेवा कर मेवा मिलेगा । ऐसे ही हमें सब लोगों की मदद करनी चाहिए और यह भी याद रखना चाहिए कि किसी की मदद करने से अच्छा फल ही मिलता है।
B.सेवा कर मेवा मिलेगा अथवा किसी की सेवा करने से अच्छा फल मिलता है  (वरुण, कक्षा आठ)
एक गाँव में एक लड़का रहता था। इस लड़के का नाम रवि था। रवि के पिता एक किसान थे और उनके पास एक बड़ा खेत था। जब रवि छोटा था तो वह घर में बहुत खुशी से खेलता-कूदता था। जब रवि सात साल का हुआ तो वह पाठशाला जाने लगा। अब वह कम खेलता-कूदता था और वह उदास भी रहने लगा था। अध्यापक ने भी रवि के माता-पिता को बताया कि रवि पढ़ाई में अच्छा नहीं है और यह भी कहा कि वह मंद बुद्धि है।
रवि के पिता ने अध्यापक की बात सुनकर रवि को पाठशाला जाने से मना कर दिया। रवि की खुशी का ठिकाना नहीं रहा क्योंकि वह भी यही चाहता था । रवि को इतना खुश देखकर उसके पिता को अच्छा लगा। पर उन्होंने उससे कहा कि स्कूल न जाने के बदले उसे एक सेवा करनी होगी। यह सेवा थी कि रवि को सुबह से शाम तक उनके साथ खेतों में काम करना पड़ेगा। यह सुनकर रवि एक बार फिर से उदास हो गया क्योंकि रवि बहुत आलसी था। उसे पता था कि इस सेवा को करने से उसे कुछ न मिलेगा । उसके पिता जो पैसा कमाते थे , वह उसका रत्ती भर भी हिस्सा रवि को नहीं देते थे और न ही उसकी सेवा के बदले उसे कुछ देंगे।
अगले दिन रवि अपनी माँ के पास गया और उनसे पूछने लगा कि खेत में काम करके वह सेवा क्यों करे? तो माँ ने जवाब दिया कि पिता जी अकेले खेतों में काम नहीं कर सकते और इसलिए तुम्हें उनके साथ खेतों में काम करके यह सेवा करनी चाहिए। नए साल पर जब हम सारी फसल बेचेंगे तो हम धनी हो जाएंगे। तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि शहर वाले हमारे फल, चावल और सब्ज़ियाँ खरीदकर और खाकर बहुत खुश रहते हैं। इसलिए हम भी उनकी खुशी देखकर खुश होते हैं। हमको पता है कि हम किसान यदि दुनिया में न हों तो लोग एक दिन भी जीवित न रह पाएंगे । हम किसान सब लोगों की सेवा करने के लिए हैं। बुर्जुगों ने भी तो कहा है कि "कर सेवा, मिलेगा मेवा"।
नए साल पर रवि और उसके पिता ने अपनी मेहनत से जो फसल उगाई थी । पकने पर उसे काटा और बेच दिया। उन्हें बहुत धन मिला और वह धनवान हो गए। सभी लोग उनके द्वारा उगाए फल, सब्ज़ियाँ, अन्न आदि खरीदकर मुस्कुराते हुए वापिस खुशी-खुशी जा रहे थे। रवि के पिता ने उसके लिए बहुत सारे नए कपड़े, जूते आदि खरीदे। माँ ने भी उस दिन घर पर रवि और उसके पिता के लिए स्वादिष्ट पकवान बनाए। सब कुछ पाकर और स्वादिष्ट खाना खाकर रवि बहुत खुश था। अब वह खुशी-खुशी पिता के साथ खेत पर जाता और काम करता।
ऐसे ही दिन बीतते जा रहे थे। एक दिन रवि एक आम के पेड़ के नीचे सो रहा था। उसने ही इस पेड़ को अपने हाथों से लगाया था और उसे आज तक पाला-पोसा था। वह उस पेड़ पर चढ़ा और एक आम तोड़ा और खाने लगा। आम का स्वाद बहुत मीठा था। रवि सोचने लगा कि इस पेड़ को पालने-पोसने में उसने बहुत मेहनत की थी। आज आम खाते हुए उसे सारी मेहनत याद आ रही थी। उसे अचानक ही अपनी माँ की कही बात याद आ गई कि सेवा करो, मेवा मिलेगा। आज वह अपनी माँ की कही बात का अर्थ समझ पाया था। सच ही है कि चाहे कोई भी प्राणी हो या पेड़-पौधे यदि हम माँ से किसी की सेवा करते हैं तो हमें बदले में अवश्य मेवा मिलता है।



Story on Proverb- Bina vichaare jo kare so piche pachataye/ बिना विचारे जो करै सो पीछे पछताए



मैं वैली स्कूल में आई. सी. एस.   में भी हिंदी पढ़ाती हूँ इस बोर्ड के हिंदी पेपर में कहावत के ऊपर एक निबंध पूछा जाता है बच्चों से कई सारी  कहावतों पर निबंध लिखाना मुश्किल है इसलिए हर छात्र-छात्रा को अलग-अलग कहावत दी जाती है जिस पर वे निबंध लिखते हैं और फिर कक्षा में सब छात्र-छात्राएँ अपने लिखे निबंध पढ़ते हैं जिससे सबको कहावतें भी समझ जाएँ और परीक्षा में उन्हें कोई मुश्किल हो इन कहावतों पर लिखे निबंधों को छात्र-छात्रों को सुनाया जा सकता है या उन्हें पढ़ने के लिए दिया जा सकता है जिससे उन्हें कहावतों का अर्थ अच्छी तरह से समझ सके हर कहावत के आगे वर्ष लिखा गया है , इसका मतलब है कि यह कहावत बोर्ड में उस वर्ष में पूछी गई है आशा है कि यह सामग्री अध्यापकों और अध्यापिकाओं के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के लिए भी उपयोगी होगी
 


बिना विचारे जो करै सो पीछे पछताए  (तानिया)
हरीश एक बहुत प्रसिद्ध व नामी इन्सान का बेटा था। जब उसके माता-पिता की मृत्यु हो गयी तो उसके नाम करोड़ों रुपए जमा थे परन्तु वह अभी तो बहुत छोटा था। वह सिर्फ बीस साल का था । अतएव उसे पैसा संभालने के बारे में कुछ नहीं पता था। उसके पिताजी का व्यवसाय था-वे सदियों पुरानी चीज़ें बेचते थे। वहाँ उस दुकान में एक मेज भी पाँच लाख की थी।
ऐसी मुसीबत के समय में हरीश के चचेरे भाई जिसे हरीश ने अपने जीवन में केवल दो बार ही देखा था, वे विदेश से ही हरीश की मदद करने लगे। परन्तु यह तरकीब भी बेकार हुई क्योंकि विदेश से वह हर दिन मदद नहीं कर पाते थे। चचेरे भाई अच्छे इन्सान थे परन्तु उन्हें व्यवसाय के बारे में कुछ नहीं पता था। अतएव कोई और चारा नहीं बचा था। हरीश अपने ममेरे भाई के पास गया। ममेरे भाई का नाम लोकेश था। लोकेश व्यवसाय के बारे में बहुत कुछ जानता था। परन्तु वह बहुत बुरा इन्सान था।
बाहर से वह भोला-भाला था पर अंदर से चतुर था। जब हरीश ने लोकेश का भोला-भाला स्वभाव देखा तो बहुत खुश हुआ। बिना सोचे-समझे अपने किसी चचेरे भाई या किसी रिश्तेदार की सलाह न मानकर उसने लोकेश को ही अपना व्यवसाय चलाने की ज़िम्मेदारी दे दी। उसने चचेरे भाई को भी यह बात एक मास के बाद बतायी। वह गुस्सा हो गया परन्तु अब तो कुछ नहीं हो सकता था।
चचेरे भाई ने सोचा कि वे दो मास बाद भारत आ ही रहे थे तब वह सब कुछ ठीक करने की कोशिश करेंगे। ममेरे भाई के काम से हरीश बहुत खुश हुआ और लोकेश भी।  पहले मास तो वह अच्छा काम करता रहा परन्तु दूसरे मास में उसे हरीश के बैंक के बारे में सब कुछ पता चल गया। धीरे-धीरे वह बैंक से सारा पैसा निकालने लगा।
इतना ही नहीं, धीरे-धीरे दुकान की सारी चीज़ें भी चुराने लगा । वह हरीश से कहता कि चीज़ें बेची हैं परन्तु असलियत में वह अपने विदेश के घर में वे चीज़ें भेजता था। गमलों के बारे में पूछने पर उसने बोला कि नए नौकर ने तोड़ दिये।, तभी चचेरा भाई वहाँ आ गया परन्तु तब तक सारी चीज़ें बेच दी गईं थीं और पूरा नुकसान हो गया था। इस कारण चचेरा भाई कुछ न कर पाया।
सही बात तब होती जब हरीश सोचता-समझता और अपने करीबी लोगों से पूचता तो उसकी इतनी हानि नहीं होती। इसलिए ही कहते हैं कि बिना विचारे जो करै, सो पीछे पछताए।


Story on Proverb-Nehle par dehla/ नहले पर दहला अथवा ईंट का जवाब पत्थर से देना



मैं वैली स्कूल में आई. सी. एस.   में भी हिंदी पढ़ाती हूँ इस बोर्ड के हिंदी पेपर में कहावत के ऊपर एक निबंध पूछा जाता है बच्चों से कई सारी  कहावतों पर निबंध लिखाना मुश्किल है इसलिए हर छात्र-छात्रा को अलग-अलग कहावत दी जाती है जिस पर वे निबंध लिखते हैं और फिर कक्षा में सब छात्र-छात्राएँ अपने लिखे निबंध पढ़ते हैं जिससे सबको कहावतें भी समझ जाएँ और परीक्षा में उन्हें कोई मुश्किल हो इन कहावतों पर लिखे निबंधों को छात्र-छात्रों को सुनाया जा सकता है या उन्हें पढ़ने के लिए दिया जा सकता है जिससे उन्हें कहावतों का अर्थ अच्छी तरह से समझ सके हर कहावत के आगे वर्ष लिखा गया है , इसका मतलब है कि यह कहावत बोर्ड में उस वर्ष में पूछी गई है आशा है कि यह सामग्री अध्यापकों और अध्यापिकाओं के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के लिए भी उपयोगी होगी

 नहले पर दहला अथवा ईंट का जवाब पत्थर से देना  (समीर)
एक दिन मैं और मेरा मित्र राम स्कूल जाने के लिए सुबह मेरे घर पर ही तैयार हो रहे थे। उसके माता-पिता दिल्ली गए थे क्योंकि उसके पिता और माता को वहाँ दो दिन के लिए काम था। इसलिए उन्होंने राम को मेरी माता से पूछकर दो दिन के लिए मेरे घर में भेजा था ।
सुबह के सात थे। हमें अपनी स्कूल बस जहाँ रुकती है, वहाँ साढ़े सात बजे पहुँचना था। परन्तु उस दिन मेरे भाई को तैयार होने के लिए बहुत समय लग रहा था। मेरे पिताजी टेनिस खेलने के लिए गए थे और मेरी माँ अस्पताल में अपने मित्र से मिलने गईं थीं। वे सवा सात बजे तक भी घर नहीं लौटीं थीं। मेरी माँ ही मुझे हमेशा अपनी गाड़ी में बस स्टॉप पर पहुँचाती हैं। इसलिए हम अपने तीनों बस स्टॉप पहुँचने के लिए दौड़ने लगे। परन्तु वहाँ कोई नहीं था और बस भी वहाँ रुकी नहीं थी। हम सोच ही रहे थे कि क्या करें? तभी मेरे मन में विचार आया इसलिए मैंने कहा कि हम क्यों ना अगले बस स्टॉप तक दौड़ें। मेरे भाई और राम दोनों ने  सोचा और फिर मुझे "हाँ" कहकर मेरे साथ दौड़ना शुरु किया।
जब हम अगले बस स्टॉप पर पहुँचे तो वहाँ कोई नहीं था और बस भी वहाँ नहीं रुकी हुई थी। फिर राम ने बस को मैन रोड की अगली रोड पर देखा तो उसने मेरे भाई का हाथ पकड़ कर कहा,"वहाँ देखो, बस वहाँ है। समीर के बिना हम बस पर चढ़ेंगे।" परन्तु राम मेरे बिना नहीं दौड़ा। मेरे भाई ने दौड़ना शुरु किया परन्तु वह दो-तीन कदम आगे लेकर रुक गया। उसने देखा कि वहाँ कोई बस नहीं थी। मेरे भाई को बहुत गुस्सा आया परन्तु उसने अपना गुस्सा नहीं दिखाया । जब हम मैन रोड को क्रोस कर रहे थे, उसने राम को धकेल दिया तब तक गाड़ी आ रही थी परन्तु उसने राम के बैग को पकड़ा क्योंकि उसे सिर्फ राम के गिरने का भय था परन्तु इस सब में राम का बैग टूट गया और वह रोड पर गिरा। परन्तु गाड़ी जल्दी से उसके सामने आकर रुक गई।
मैं और मेरे भाई ने उसे जल्दी से सड़क से उठाया और अपने साथ उठाकर लाये। वह होश में नहीं था। इसलिए उस गाड़ी के लोगों ने हमें हमारे घर थक पहुँचा दिया । अब तक भी मेरे माता-पिता घर नहीं लौटे थे। जब वे घर आए तो राम को होश आया और जब उन्होंने उससे पूछा कि उसे क्या हुआ था तो उसने बताया कि वह रोड पर अपने आप गिर गया था। कार को देखकर डर के कारण वह बेहोश हो गया।

अगले दिन मैंने उसे बताया कि यह एक "नहले पर दहला" वाली बात थी। परन्तु उसने उसकी परवाह नहीं की । मेरे भाई ने उससे माफी माँगी और राम ने भी उसे माफ कर दिया इसलिए हम तीनों आज अच्छे मित्र हैं।

Story on Proverb-Kaaua hans nahi ban sakta/ कौवा हंस नहीं बन सकता अथवा जन्म से ही अयोग्य व्यक्ति योग्य नहीं बन सकता

मैं वैली स्कूल में आई. सी. एस.   में भी हिंदी पढ़ाती हूँ इस बोर्ड के हिंदी पेपर में कहावत के ऊपर एक निबंध पूछा जाता है बच्चों से कई सारी  कहावतों पर निबंध लिखाना मुश्किल है इसलिए हर छात्र-छात्रा को अलग-अलग कहावत दी जाती है जिस पर वे निबंध लिखते हैं और फिर कक्षा में सब छात्र-छात्राएँ अपने लिखे निबंध पढ़ते हैं जिससे सबको कहावतें भी समझ जाएँ और परीक्षा में उन्हें कोई मुश्किल हो इन कहावतों पर लिखे निबंधों को छात्र-छात्रों को सुनाया जा सकता है या उन्हें पढ़ने के लिए दिया जा सकता है जिससे उन्हें कहावतों का अर्थ अच्छी तरह से समझ सके हर कहावत के आगे वर्ष लिखा गया है , इसका मतलब है कि यह कहावत बोर्ड में उस वर्ष में पूछी गई है आशा है कि यह सामग्री अध्यापकों और अध्यापिकाओं के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के लिए भी उपयोगी होगी


A. कौवा हंस नहीं बन सकता अथवा जन्म से ही अयोग्य व्यक्ति योग्य नहीं बन सकता (संजीव)
दिलीप नाम का एक आदमी था और वह बहुत ही लापरवाह किस्म का आदमी था। उसको क्रिकेट खेलने की इच्छा थी पर वह उसके लिए कुछ भी तैयारी नहीं करता था। उसके मन में क्रिकेट खेलने के प्रति इच्छा जागी क्योंकि उसको बारहवीं कक्षा में अच्छे अंक नहीं प्राप्त हुए थे और उसको पता चला कि वह पढ़ने में अयोग्य है। उसके बाद उसने तीन खेलों के लिए "स्टेट टीम" को दरख्वास्तें लिखीं। पहले खेल के लिए "स्टेट टीम" ने उसे बुलाया, वह खेल था- फुटबॉल। वह फुटबॉल खेलते समय दौड़ा ही नहीं जिस कारण से चयनकर्त्ताओं ने उसे स्टेट टीम से निकाल दिया। दूसरा खेल बॉस्केट बॉल था । इसे खेलते समय भी दिलीप को कूदने के लिए कहा गया पर लापरवाह दिलीप ने तब भी कुछ नहीं किया इसलिए चयनकर्त्ताओं ने इस खेल से भी उसे निकाल दिया। अंत में वह क्रिकेट खेल के चयन के लिए गया। उसमें वह भाग्यशाली रहा क्योंकि क्षेत्ररक्षण के समय उसके पास गेंद ही नहीं आयी और चयनकर्त्ताओं ने उसका चुनाव कर लिया । इस कारण उसे भी गल्तफहमी हो गई कि वह क्रिकेट में अच्छा है। चयनकर्त्ता भी उसके खेलने की योग्यता को ही आँक नहीं सके थे इसलिए वह क्रिकेट स्टेट टीम में चुन लिया गया।
दिलीप को स्टेट टीम की तैयारी करने के लिए रोज सात बजे अभ्यास के लिए आने को बोला गया पर वह अभ्यास के लिए गया ही नहीं। और तो और उसने झूठ भी बोला कि वह घर पर ही क्रिकेट खेलने का अभ्यास रोजाना कर रहा है। इस तरह पूरे महीने एक दिन भी वह अभ्यास के लिए नहीं गया। टूर्नामेंट नज़दीक आ रहा था पर दिलीप ने तो अभी तक कुछ भी तैयारी नहीं की थी । टूर्नामेंट तक वह घर पर ही बैठा रहा और आखिरकार टूर्नामेंट का दिन आ ही गया।
टूर्नामेंट में १६ टीम आई थीं। दिलीप की टीम का नाम "कर्नाटक वारियर्स" था। उसका पहला खेल दिल्ली से होने वाला था और वह खेल "कर्नाटक वारियर्स" जीत गए क्योंकि उस मैच के लिए दिलीप टीम में उपस्थित नहीं था। दिलीप टूर्नामेंट के लिए देर से पहुँचा था और उसकी टीम तब तक आखिरी दौर के खेल पर पहुँच गई थी । अगले खेल में दिलीप टीम का सदस्य था पर इस मैच में दिलीप कोई भी गेंद पकड़ नहीं पया। उसने बहुत से छक्के और चौके गेंदबाजी करते हुए दिए। इसके साथ ही बल्लेबाजी के समय भी दिलीप ने कई गेंदें छोड़ीं। अंतिम ओवर चल रहा था और यह ओवर दिलीप ही खेल रहा था। उस समय दो रन एक गेंद पर लेने थे और वह बल्लेबाजी कर रहा था। वह उसी गेंद पर आउट हुआ और इससे स्टेट टीम हार गई। इस हार के लिए दिलीप का ज़िम्मेदार था। उसके कोच ने उसे टीम से बाहर निकाल दिया और वह वापिस घर आया। अब वह कुछ भी नहीं काम नहीं कर रहा था क्योंकि उसने तीन अवसर गँवा दिए।
यदि दिलीप ने खेल की तैयारी की होती तो वह अच्छा खेलता और उसकी टीम जीत जाती पर उसकी लापरवाही से ही वे मैच हार गए। यदि वह कुछ भी काम अच्छी तरह से और बिना लापरवाही से करता तो वह अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकता था इसलिए यह कहावत सही है कि "कौवा हंस नहीं बन सकता" अथवा अयोग्य आदमी योग्य नहीं बन सकता चाहे कितने भी उसे अवसर दिए जाएं।

B.कौवा हंस नहीं बन सकता अथवा जन्म से ही अयोग्य व्यक्ति योग्य नहीं बन सकता (आरती मुखेड़कर, कक्षा ८)

एक छोटे गाँव में एक छोटा लड़का रहता था। उसका नाम समुर था। वह हर किसी के बारे में झूठ बोलता था, चाहे वह विद्यालय में दिया गृहकार्य हो या क्रिकेट के बारे में। वह अपने माता-पिता से भी बहुत झूठ बोलता था , पर उसके माता-पिता इसके बारे में परेशान नहीं थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि हर बच्चा "छोटे-छोटे" झूठ बोलता है। मज़े की बात थी कि वह इतनी आसानी से झूठ बोलता था कि किसी को उसके झूठ के बारे में पता नहीं चलता था।
एक दिन उसने एक घर से दो सौ रुपए चोरी किए। जब मालिक ने सबसे पूछा कि "किसने चोरी की?" उसने आसानी से एक कहानी सुनाकर अपने शत्रु रामू पर इल्जाम लगाया। वह यह सब इतनी आसानी से बोला कि घर के मालिक ने उस पर विश्वास किया और बेचारे रामू को सज़ा मिली। बुरी बात यह थी कि समुर को अच्छा लगा जब राम को सज़ा मिल रही थी।
रामू इसी तरह के "छोटे-छोटे" झूठ बोलता था। एक दिन उसके चाचा उसके घर में दो दिन रहने आए। समुर ने चाचा को मूर्ख नहीं बनाया क्योंकि उसे पता था कि चाचा सब कुछ देख सकते थे। समुर को इसीलिए चाचा से डर लगा पर चाचा ने समुर को कुछ "सजा" नहीं दी। लेकिन चाचा ने उसको उनकी फैक्ट्ररी में काम करने के लिए उत्साहित किया। समुर के माता-पिता मान गए और समुर ने एक हफ्ते बाद अपने चाचा की फैक्ट्ररी में काम करना शुरु किया। कुछ दिनों तक सब ठीक-ठाक चलता रहा । चाचा हर रोज़ आते और देखते कि समुर कुछ मस्ती नहीं कर रहा था। एक दिन चाचा काम पर नहीं आए। समुर ने सोचा कि यदि वह आज कुछ चुरा लेता है तो कोई नहीं जानेगा। तो उसने छोटी-छोटी चीज़ें अपनी जेब में डाली और चुपचाप घर गया ।समुर को विश्वास था कि उसके चाचा को कुछ पता नहीं लगेगा। पर उसके चाचा उम्र में ही उससे बड़े नहीं थे। वे अनुभवी थे और उन्होंने दुनिया देखी थी। उन्हें पता था कि समुर इतनी जल्दी अपनी बुरी आदत छोड़ने वाला नहीं था। इसलिए उन्होंने अगले दिन आते ही फैक्ट्री की हर जगहा को जाँचा-परखा। उनकी अनुभवी आँखों से कुछ छिपा न रहा।वे पूरे दिन चुप रहे। शाम होते ही उन्होंने समुर को कहा कि वे उसे घर छोड़ देंगे। इसलिए बहाने से वे उसके घर गए और उन्होंने समुर को बाज़ार से मिठाई लाने भेजा यह कहते हुए कि वे उसको फैक्ट्री में तरक्की दे रहे हैं । इसलिए वह अपने माता-पिता का मुँह मीठा कराए। फिर उन्होंने उसके घर की दो-तीन जगहों पर फैक्ट्री का सामान देख लिया। तभी समुर भी वापिस आ गया। तब उसे देखकर चाचा ने कहा कि सच में कौवा हंस नहीं बन सकता अथवा जन्म से अयोग्य व्यक्ति योग्य नहीं बन सकता।    


Story on Proverb- Naam bade aur darshan chote/ नाम बड़े और दर्शन छोटे अथवा बड़ी-बड़ी बातें करना पर असलियत में कुछ न होना




मैं वैली स्कूल में आई. सी. एस.   में भी हिंदी पढ़ाती हूँ इस बोर्ड के हिंदी पेपर में कहावत के ऊपर एक निबंध पूछा जाता है बच्चों से कई सारी  कहावतों पर निबंध लिखाना मुश्किल है इसलिए हर छात्र-छात्रा को अलग-अलग कहावत दी जाती है जिस पर वे निबंध लिखते हैं और फिर कक्षा में सब छात्र-छात्राएँ अपने लिखे निबंध पढ़ते हैं जिससे सबको कहावतें भी समझ जाएँ और परीक्षा में उन्हें कोई मुश्किल हो इन कहावतों पर लिखे निबंधों को छात्र-छात्रों को सुनाया जा सकता है या उन्हें पढ़ने के लिए दिया जा सकता है जिससे उन्हें कहावतों का अर्थ अच्छी तरह से समझ सके हर कहावत के आगे वर्ष लिखा गया है , इसका मतलब है कि यह कहावत बोर्ड में उस वर्ष में पूछी गई है आशा है कि यह सामग्री अध्यापकों और अध्यापिकाओं के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के लिए भी उपयोगी होगी




नाम बड़े और दर्शन छोटे अथवा बड़ी-बड़ी बातें करना पर असलियत में कुछ न होना (पार्थ)
बिहार में एक आदमी राजनीति में शामिल होना चाहता था पर उसके पास राजनीति में शामिल होने की एक भी विशेषता नहीं थी। उसे राजनीति में जाना था क्योंकि उसमें बहुत सारे पैसे कमा सकते हैं। यह व्यक्ति शामनाथ था।
शामनाथ राजनीति में शामिल होने के लिए फार्म भरने गया। उसने फार्म भरा । पर एक अज़ीब बात हुई कि एक हफ्ते के बाद उसे लिफाफा मिला। उस लिफाफे में लिखा था "शामनाथ तुम्हारे पास राजनीति में आने के लिए कोई भी विशेषता अथवा गुण नहीं है इसलिए अगली बार आप फिर से कोशिश करें।" शामनाथ को बहुत बुरा लगा कि उसे राजनीति में प्रवेश नहीं करने दिया गया।
शामनाथ के पास थोड़े पैसे थे और उसने फिर से अगली बार राजनीति में जाने के लिए फार्म भरा पर इस बार उसने सारी जानकारी गल्त लिखकर फार्म भरा था। उसे ने फार्म लेने वाले आदमी को रिश्वत देकर गल्त जानकारी से भरा अपना फार्म पास करवा लिया। वह और बड़ा आदमी बनने के लिए लोगों को बताने लगा कि वह एक ईमानदार आदमी है। उसने अच्छी पाठशाला और कॉलेज से प्रथम श्रेणी में स्नातक की डिग्री हासिल की है। उसने न जाने और भी कितनी बातें ऐसी कहीं जो उसे एक प्रतिष्ठित और बड़ा आदमी सिद्ध कर सकती थीं। उसकी इन बातों को सुनकर उसका अनुकरण करने वाले लोग बढ़ने लगे जिसे देखकर उसकी खुशी का ठिकाना न रहा ।
एक दिन उसे बहुत सारे लोग और उसके अनुकरण करने वाले ही पूछने लगे कि वह बिहार में क्या-क्या अच्छे काम करेगा? उसने सबको बताया कि वह बिहार को और सुन्दर बनाएगा, बिहार के सभी बच्चों को पढ़ने के लिए पाठशाला उपलब्ध कराएगा, वह यहाँ के सभी रास्तों को नए बनाएगा, गरीबों को खाना-पीना भी सस्ते में दिलाएगा और उनकी ज़रूरतें भी पूरी कराएगा आदि। इस कारण उसका अनुकरण करने वाले लोग भी उसे पसन्द करने लगे।
पर वहाँ एक समझदार आदमी मौजूद था । उसने शामनाथ को पूछा कि वह यह सब बिहार में कैसे प्राप्त करवाएगा? यह सब कराने के लिए उसके पास रुपए कहाँ से आएंगे? अब इस प्रश्न का उत्तर शामनाथ उस आदमी को नहीं दे पाया। यह सुनकर सभा में बैठे सब दर्शकों का भरोसा उस पर से फौरन ही उठ गया। उन्हें बहुत ही बुरा लगा कि उन्हें शामनाथ ने झूठी व गल्त बातें कह फंसाया था और धोखा भी दिया था। वे सब लोग जो शामनाथ को हमेशा घेरे रहते थे फौरन ही वहाँ से उठकर चले गए। शामनाथ को धोखाधड़ी के कारण जेल में डाल दिया गया क्योंकि वह गुनाहगार सिद्ध हो गया था । यह कहानी "नाम बड़े और दर्शन छोटे" वाली कहावत को पूरी तरह से सिद्ध करती है। शामनाथ ने अपना नाम बड़ा दिखाने की कोशिश की पर वास्तव में उसका छोटापन सबके सामने आ ही गया।

मुझे लगता है कि किसी भी आदमी को अपना काम पैसों से नहीं चुनना चाहिए बल्कि अपने काम को करने की खुशी से चुनना चाहिए । किसी भी आदमी को अपने को बड़ा बनाना है तो उसे मेहनत करके वह विशेषता पाने की कोशिश करनी चाहिए।