मैं
वैली स्कूल में आई. सी. एस. ई में
भी हिंदी पढ़ाती हूँ । इस बोर्ड
के हिंदी पेपर में कहावत के ऊपर एक
निबंध पूछा जाता है । बच्चों
से कई सारी कहावतों पर निबंध लिखाना
मुश्किल है इसलिए हर
छात्र-छात्रा को अलग-अलग
कहावत दी जाती है
जिस पर वे निबंध
लिखते हैं और फिर कक्षा
में सब छात्र-छात्राएँ
अपने लिखे निबंध पढ़ते हैं जिससे सबको कहावतें भी समझ आ
जाएँ और परीक्षा में
उन्हें कोई मुश्किल न हो ।
इन कहावतों पर लिखे निबंधों
को छात्र-छात्रों को सुनाया जा
सकता है या उन्हें
पढ़ने के लिए दिया
जा सकता है जिससे उन्हें
कहावतों का अर्थ अच्छी
तरह से समझ आ
सके । हर कहावत
के आगे वर्ष लिखा गया है , इसका मतलब है कि यह
कहावत बोर्ड में उस वर्ष में
पूछी गई है ।
आशा है कि यह
सामग्री अध्यापकों और अध्यापिकाओं के
साथ-साथ छात्र-छात्राओं के लिए भी
उपयोगी होगी ।
A. जो कार्य साहस और उत्साह से शुरु नहीं होता, उसकी सफलता संदिग्ध अथवा संदेहपूर्ण होती है (अमेय,कक्षा नौ)
"पर मुझे नहीं जाना है!" ऋषभ ज़ोर से चिल्लाया ।
आज वह एक नए स्कूल में जा रहा था । उसके पुराने स्कूल में उसके खूब सारे दोस्त थे
। माँ के काम से ऋषभ और माँ को बेंगलूरू जाना पड़ा । आज पहला दिन था और वह जाना
नहीं चाहता था ।
ऋषभ बस में बैठकर सोचने लगा - "मैं इस स्कूल में कुछ
नहीं करूँगा। यहाँ तो मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगेगा । कक्षा में पहुँचते ही एक
लड़की ऋषभ के पास आकर बैठी। "नमस्ते! मेरा नाम इशिका है। यहाँ मेरी पहला दिन है।
यहाँ बहुत अच्छा लग रहा है ना?" "मुझे आपसे बात नहीं करनी है । मुझे यह
स्कूल भी पसन्द नहीं है।" इशिका दु:खी होकर वहाँ से चली गई।
ऋषभ के लिए अब पढ़ाई बहुत कठिन हो गई थी। पढ़ाई का दवाब अब
उसको महसूस हो रहा था । स्कूल में तो उसका कोई दोस्त नहीं था । वह किसी से भी बात
नहीं करता था । फिर , एक हफ्ते में ही परीक्षा आ रही थी ।
हर दिन ऋषभ पढ़ाई में प्रयत्न कर रहा था लेकिन उसे कुछ भी
समझ नहीं आ रहा था । इस स्कूल में आना उसकी सबसे बड़ी गल्ती है । एक घंटा वह स्कूल
की बुरी बातें अपनी नोटबुक में लिखता रहा जैसे कि अध्यापक मुझे कुछ नहीं सिखाते
हैं , कोई भी मुझसे बात नहीं करता, इस स्कूल की वजह से ही मुझे पढ़ाई में भी कुछ
समझ में नहीं आ रहा है , इस स्कूल की वजह से ही मैं बहुत दु:खी हूँ आदि। फिर
परीक्षा का हफ्ता भी आ पहुँचा । हर परीक्षा में बैठकर प्रश्नपत्र पढ़कर ऋषभ को कुछ
भी समझ नहीं आता था और इस तरह उसने उत्तर पुस्तिका में कुछ भी नहीं लिखा ।
परीक्षा के बाद ऋषभ स्कूल के एक कोने में बैठकर रोने लगा ।
तब उसे उदास और रोते देखकर इशिका उसके साथ आकर
बैठी । "मुझे पता है कि क्या हुआ है? अगर तुमने पहले दिन से ही खुशी
से सब कुछ किया होता और इस स्कूल को स्वीकार कर लिया होता तो ऐसा कुछ भी कभी नहीं
होता । मैं भी यहाँ एक नई विद्यार्थिनी थी लेकिन मैंने पहले ही दिन से अपने आप को
कहा कि - देखो, यह एक नया स्कूल है और यह मेरे लिए आसान नहीं होगा। लेकिन यहाँ
मुझे खूब सारे दोस्त मिलेंगे और मेरे लिए पढ़ाई भी अच्छी होगी , मुझे इसी कारण सब
कुछ पसंद आ गया । अब देखो! सब मेरे लिए ठीक हो रहा है। अगर तुम भी ऐसे करोगे तो
तुम्हें भी खुशी महसूस होगी।"
यह सुनकर ऋषभ ने सोचा कि हाँ! मुझे भी यही करना चाहिए ।
अगले महीने से ऋषभ और इशिका कक्षा के सबसे अच्छे विद्यार्थी बन चुके थे। इशिका और
ऋषभ बहुत अच्छे मित्र भी बन गए । ऋषभ को अब स्कूल जाना बहुत पसंद था । इसी से पता
चलता है कि "जो कार्य साहस और उत्साह से शुरू नहीं होता, उसकी सफलता संदिग्ध
अथवा संदेहपूर्ण होती है।"
B. जो कार्य साहस और उत्साह से शुरु नहीं होता, उसकी सफलता संदिग्ध अथवा संदेहपूर्ण होती है (शनाया पी, कक्षा आठ)
दो भाई थे। एक बड़ा
आल्सी था और दूसरा मन लगाकर काम करता था। दोनों भाई एक छोटे-से गाँव में रहते थे। उनकी
माँ उनको रोज़ पाठशाला भेजती थी। अपनी मेहनत से छोटे भाई को पढ़ाई में अच्छे अंक मिलते
थे। सब लोग गाँव में छोटे भाई के अच्छे अंकों के बारे में बात करते थे। बड़ा भाई ईर्ष्या
से छोटे भाई से चिढ़ता था।
एक दिन छोटा भाई घर
आकर अपनी माँ को अपने अच्छे अंकों के बारे में बता रहा था। माँ ने खुशी में उसे बहुत
सारी मिठाई खिलाई और यह देखकर बड़े भाई को गुस्सा आ गया। गुस्से में उसने छोटे भाई की
सब किताबें आग में जला दीं। जब छोटा भाई अपने कमरे में गया तो उसकी सब किताबें जल गई
थीं। सब अधजली किताबें बिस्तर के नीचे पड़ीं थीं। छोटे भाई की आँखों में आँसू भर आए।
वह यह सब सहन न कर पाया और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। बड़े भाई को पता था कि माँ यह सब जानकर
उसकी बहुत पिटाई करेगी। उसने अपनी माँ से अपने छोटे भाई के बारे में शिकायत करते हुए
कहा कि उसका भाई झूठ बोल रहा था और यह भी कहा कि उसने खुद ही अपनी किताबों को जलाया
था। माँ को अपने बड़े बेटे की बात पर विश्वास न हुआ और उन्होंने अपने छोटे बेटे से पूछा
तो उसने सारी बात सच-सच बता दी । माँ को अपने छोटे बेटे की बातों में सच नज़र आया इसलिए
वह अपने बड़े बेटे की इस गल्त करतूत से बेहद उदास हो गईं।
माँ ने बड़े बेटे को
कुछ न कहा और अगले दिन माँ ने अपने बड़े बेटे को कुएँ से पानी लाने को कहा। पर वह तो
आलसी था, उसने माँ से तो कुछ न कहा
पर छोटे भाई से यह काम करा लिया। हर दिन जब भी माँ बड़े को कुछ काम देती तो वह अपने
छोटे भाई से करवाता।
एक दिन ऐसा भी आया
कि जब माँ ने उसे यह सब करते हुए पकड़ लिया। उसका आलसी स्वभाव सबके सामन पकड़ा गया। माँ
ने फिर भी उसे माफ कर दिया और उसे गायें चराने के लिए भेजा। उसने इस बार भी यही सोचा
कि माँ तो देख नहीं रही इसलिए उसने अपने छोटे भाई को गायें चराने के लिए भेजा। छोटे
भाई के जाते ही माँ ने बड़े भाई से पूछा कि क्यों नहीं वह अपना काम खुद करता और क्यों
छोटे भाई से सारे काम कराता है? बड़े बेटे के पास अपनी माँ के प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं था। फिर माँ ने प्यार
से उससे किताबों को जलाने वाली घटना के बारे में पूछा । उसे अपनी गल्ती पर पछतावा था,
उसने शर्माते हुए कहा कि उससे गल्ती हो गई थी। उसने अपनी माँ से माफी
माँगी। उसने यह भी कहा कि जब सभी उसके छोटे भाई की प्रशंसा कर रहे थे तो उससे यह सब
सहा न गया और उसने ईर्ष्या में आकर अपने छोटे भाई की किताबों को जला दिया। उसने फिर
से अपनी माँ से माफी माँगी। तब माँ ने उसे समझाया कि जो काम साहस और उत्साह से शुरु
नहीं होता तो उसकी सफलता संदिग्ध अथवा संदेहपूर्ण होती है यानि कि हमें अपना काम चाहे
वह छोटा हो या बड़ा , उसे मन लगाकर करना चाहिए तभी हमें सफलता
मिलेगी।
उस दिन से बड़ा भाई
मन लगाकर काम करता था और अपनी कक्षा में भी अच्छे अंक लाने लगा। कुछ ही महीनों में
पूरा गाँव अब केवल छोटे भाई की ही नहीं, बड़े भाई के बारे में भी बातें करना लगा । अब जाकर बड़े भाई को समझ
आया कि उत्साह और साहस से शुरु किए गये काम में हमेशा सफलता मिलती है और इसके साथ
ही वाहवाही भी मिलती है।
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