मैं वैली स्कूल में आई. सी. एस. ई में भी हिंदी पढ़ाती हूँ । इस बोर्ड के हिंदी पेपर में कहावत के ऊपर एक निबंध पूछा जाता है । बच्चों से कई सारी कहावतों पर निबंध लिखाना मुश्किल है इसलिए हर छात्र-छात्रा को अलग-अलग कहावत दी जाती है जिस पर वे निबंध लिखते हैं और फिर कक्षा में सब छात्र-छात्राएँ अपने लिखे निबंध पढ़ते हैं जिससे सबको कहावतें भी समझ आ जाएँ और परीक्षा में उन्हें कोई मुश्किल न हो । इन कहावतों पर लिखे निबंधों को छात्र-छात्रों को सुनाया जा सकता है या उन्हें पढ़ने के लिए दिया जा सकता है जिससे उन्हें कहावतों का अर्थ अच्छी तरह से समझ आ सके । हर कहावत के आगे वर्ष लिखा गया है , इसका मतलब है कि यह कहावत बोर्ड में उस वर्ष में पूछी गई है । आशा है कि यह सामग्री अध्यापकों और अध्यापिकाओं के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के लिए भी उपयोगी होगी ।
"जहाँ चाह , वहाँ राह" काफी लोगों को लगता है कि
इस मुहावरे का अर्थ है कि हम जो सपने देखते हैं वो सब साकार हो जाते हैं । असल में
, हम जो सच्चे दिल से चाहते हैं, उसके लिए कड़ी मेहनत और परिश्रम करते हैं ,ऐसे
हमें ज़िंदगि में सब कुछ मिलता है । अगर उसे प्राप्त करने में कठिनाइयाँ हों तो राह
खुद ब खुद हमारे सामने आ जाती है। इसका सबूत २०१४ के मतदान के रूप में हम सब के
सामने आया ।
भारतीय जनता पार्टी के नेता नरेन्द्र मोदी की कहानी सबसे
बड़ा सबूत है । उन्होंने अपने जीवन में कार्य एक चाय की दुकान से शुरु किया । शुरु
में ही उन्होंने अपना जीवन देश की सेवा में लगाने का निर्णय लिया । उन्होंने इस
पार्टी मेम एक कार्यकर्त्ता बनकर काम करना शुरु किया । यह उनके लिए बहुत कठिन था क्योंकि
उनका कोई राजनैतिक सगा-संबंधी उनको बढ़ावा देने के लिए नहीं था । उनकी कड़ी मेहनत से
ही लोगों ने उन्हें पहचानना शुरु किया ।
जब गुजरात में उनकी पार्टी को कठिनाई का सामना करना पड़ा ।
उस व्यवस्था को ठीक करने के लिए सारा कार्य नरेन्द्र मोदी को सौंपा गया । उन्होंने
गुजरात को उन्नति के पथ पर पहुँचाया । उनकी सफलता को देखकर बहुत लोगों को उनसे
ईर्ष्या हुई । लेकिन उन्होंने किसी भी कठिनाई में हार नहीं मानी । तीन बार गुजरात
का मुख्यमंत्री पद जीता । उन्होंने गुजरात के हर गाँव में बिजली और पानी का प्रबंध
किया । नई सड़कें बनवाईं और शिक्षा को बहुत बढ़ावा दिया । धीरे-धीरे देशवासियों के
दिल में उनके लिए इज़्ज़त बढ़ने लगी ।
दो साल पहले, जब चुनाव आने वाला था तब नरेन्द्र मोदी का नाम
प्रधानमंत्री के रूप में उभरकर सबके सामने आया । लेकिन पार्टी के अंदर बहुत विरोध
हुआ । दूसरी पार्टियों ने भी उन पर तरह-तरह के आरोप लगाए और उन्हें केस में फँसाने
की कोशिश भी की । दंगों का समर्थन और फोन में वार्तालाप करके जासूसी करना आदि आरोप
भी उन पर लगाए गए । उनकी निंदा सब बड़े-बड़े नेताओं ने की । ऐसा लगा कि सब लोग उनके
पीछे हाथ धोकर पड़े हैं ।
पर समय के साथ एक-एक मुसीबत और अदालत के मामले सुलझते चले
गए। जितना उनके विरोधी उन पर हमला करते, उतना ही देशवासियों का प्यार उनके लिए
बढ़ता गया । उन्होंने अपना ध्यान देश की प्रगति और विकास से नहीं हटाया । इस उम्मीद
से देशवासियों का उत्साह बढ़ता गया और यह बात वोट में बदलने लगी । मोदी ने अपनी
पार्टी को स्पष्ट बहुमत दिलाकर असंभव को संभव कर दिखाया ।
आज राष्ट्रपति ने उन्हें प्रधानमंत्री बनने का निमंत्रण
दिया है। मई महीने की छब्बीस तारीख को शपथ लेकर यह परिपूर्ण होगा । देखा जाए तो
अगर एक चाय वाला देश का प्रधानमंत्री बन सकता है तो "जहाँ चाह,वहाँ राह"
का इससे अच्छा उदाहरण क्या हो सकता है। इसीलिए सपने देखिए, मेहनत कीजिए और अपने
सपनों को साकार कीजिए ।
B.जहाँ चाह, वहाँ राह अथवा जो मन पाना चाहता
है तो रास्ता अपने आप बन जाता है (शनाया कपूर, कक्षा ८)
एक बड़े-से वन में
एक छोटा-सा सरोवर था। उस सरोवर में बहुत सारे जानवर रहते थे जैसे कि बतख, हंस, मेढ़क
और बड़े-बड़े मगरमच्छ भी। हर दोपहर जानवर जैसे बन्दर, चिड़िया,
हिरन और कभी-कभी हाथी भी सरोवर पर जाकर पानी पीते थे। वे दिन भर घूमते
और फिर रात में भी सरोवर के पास जाकर पानी पीते थे और उधर ही सो जाते थे। सब जानवर
खुशी से रहते थे।
एक दिन सरोवर में
एक नया मगरमच्छ आया। वह बहुत बड़ा था और उसके दाँत लम्बे थे। वह बड़ा खतरनाक दिख रहा
था। यह मगरमच्छ समुद्र में तैरने लगा और किसी से कुछ नहीं कहा। दोपहर हुई और जानवर
पानी पीने के लिए सरोवर गए। सब जानवर डर गए जब उन्होंने नए मगरमच्छ को देखा। किसी ने
भी मगरमच्छ से कुछ नहीं कहा, बस पानी पीकर चला गया। रात में भी यही हुआ। उस रात कोई भी जानवर सरोवर के पास
नहीं सोया।
अगले दिन दोपहर का
समय था। जानवर सरोवर का पानी लगे, तो बड़े मगरमच्छ ने ज़ोर से उन्हें रोकने को कहा। सब जानवर उसी वक्त मूर्ति की
तरह रुक गए और चुपचाप मगरमच्छ की ओर देखने लगे । "मेरा नाम है डॉन और यह सरोवर
मेरा है। यह पानी मेरा है। आप सब मेहरबानी करके कहीं और जाकर पानी पीएँ-" उसने
कहा । बतख, मेंढ़क, हंस और दूसरे मगरमच्छ
भी एक-दूसरे की ओर देखने लगे। "ड....ड....डॉन साहब यह सरोवर जंगल का है......
हम सब इस सरोवर से पानी पीते हैं।" एक बंदर ने कहा।"कहाँ , हाँ, यह सरोवर जंगल का है।" सब बन्दर कहने लगे ।
" हमने उड़कर देखा है कि दूसरा सरोवर बहुत दूर है।" चिड़ियों ने कहा।
"हमारे बच्चे बहुत छोटे हैं, वे इतना दूर नहीं चल सकते हैं
।" हिरनों ने कोमलता से कहा।
"चुप!"
डॉन चिल्लाया। "यहाँ से चले जाओ।" सब जानवर बहुत परेशान थे। "पर....."
बंदरिया कहने लगी। "पर......कुछ नहीं," डॉन ने ज़ोर से कहा," आप सब यहाँ
से चले जाओ। अगर आप में से किसी एक ने भी सरोवर के पानी को अपने हाथों या मुँह से छुआ
तो मैं सब जानवरों को खाऊँगा, एक के बाद एक!"
जानवर फुसफुसाने लगे।
धीरे-धीरे सब जानवर वहाँ से चुपचाप निकलने लगे। वे बहुत उदास थे। "रुको"
एक छोटी-सी आवाज़ भीड़ के पीछे से आई। एक बंदरिया थी। बंदरिया जल्दी से सरोवर की ओर भागने
लगी। उसने एक पेड़ पर चढ़कर काफी डालें तोड़ीं और फिर नीचे उतरी। धीरे-धीरे उसने एक डाल
दूसरी डाल से जोड़ दी। सब डालें एक "बेम्बू प्लाण्ट" से थीं इसलिए हर डाल
के बीच में एक छेद था। उसने फिर उस लंबी लकड़ी को पानी में रख लिया। फिर वह डाल के एक
तरफ से पानी पीने लगी। सब जानवर खुश थे। डॉन को कुछ पता न चला, वह वापिस सरोवर में तैरने लगा।
इसलिए कहते हैं- जहाँ चाह, वहाँ राह अथवा यदि हम कुछ
करना चाहते हैं तो रास्ता अपने आप बन जाता है।
Thanks mam keep giving such essays... But the second on iS just story you please add some more points to it...
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