मैं वैली स्कूल में आई. सी. एस. ई में भी हिंदी पढ़ाती हूँ । इस बोर्ड के हिंदी पेपर में कहावत के ऊपर एक निबंध पूछा जाता है । बच्चों से कई सारी कहावतों पर निबंध लिखाना मुश्किल है इसलिए हर छात्र-छात्रा को अलग-अलग कहावत दी जाती है जिस पर वे निबंध लिखते हैं और फिर कक्षा में सब छात्र-छात्राएँ अपने लिखे निबंध पढ़ते हैं जिससे सबको कहावतें भी समझ आ जाएँ और परीक्षा में उन्हें कोई मुश्किल न हो । इन कहावतों पर लिखे निबंधों को छात्र-छात्रों को सुनाया जा सकता है या उन्हें पढ़ने के लिए दिया जा सकता है जिससे उन्हें कहावतों का अर्थ अच्छी तरह से समझ आ सके । हर कहावत के आगे वर्ष लिखा गया है , इसका मतलब है कि यह कहावत बोर्ड में उस वर्ष में पूछी गई है । आशा है कि यह सामग्री अध्यापकों और अध्यापिकाओं के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के लिए भी उपयोगी होगी ।
A. अक्सर और अच्छे की चाह में अच्छे को भी हाथ से गंवाना (समीर, कक्षा नौ)
कुछ दस साल पहले की यह बात है । बंबई में उन दिनों में एक
साधारण दुकान में काम करने वाला एक आदमी था जिसका नाम नितिन पारेख था । वह एक
सामान्य परिवार में रहता था । वह हर रोज अमीर बनने के सपने देखता था । महीने का
खर्चा कमाने के लिए दिन-रात उसे मेहनत करनी पड़ती थी ।
एक दिन उसके दोस्त ने पैसा दुगुना करने का एक उपाय उसे
बताया । वह पैसा बचाकर शेयर मार्केट में कम्पनियों के शेयर में अपने दोस्त की तरह
पैसा लगाने लगा । एक साल के अंदर उसने बहुत कमाई की। उसकी खुशी की कोई सीमा न थी ।
उसका परिवार भी खुश था । नितिन ने सब घर वालों के लिए सामान खरीदा । अपने लिए भी
एक कार, नए कपड़े आदि खरीदे ।
नितिन अभी भी खुश नहीं था । अब उसे एक नए और बहुत बड़े घर की
चाह थी। उसे और अधिक पैसे कमाने का लालच हुआ । बिना सोचे समझे अपने परिवार की
परवाह न करते हुए उसने बैंक से सारे पैसे निकाल शेयर मार्केट में लगा दिए ।
कुछ महीनों के बाद उसका पैसा बढ़ा लेकिन थोड़े दिनों में ही
सरकार बदलने के कारण पूरे देश में शेयर की कीमतें गिर गईं। इस तरह बहुत-से लोगों
के पैसे डूब गए ।एक दिन में नितिन का भी सारा पैसा डूब गया । उसने अपना पुराना घर
भी अपने परिवार वालों को बताए बिना गिरवी रख दिया । अब तो वह सब कुछ खो बैठा था
सब कुछ खो देने के बाद वह पागलों की तरह व्यवहार करने लगा ।
उसे समझ में नहीं आया कि उसके खोए हुए पैसे कैसे वापिस मिलेंगे? उसका तो सब कुछ
लुट गया था । जहाँ तक कि वह घर भी नीलाम हो गया जिस घर में वह अपने परिवार के साथ
रहता था । इस तरह वह और उसका परिवार बेघर हो गए ।
नितिन ने अच्छे की चाह में अपना सब कुछ गंवा दिया । यह बात
सही है कि व्यक्ति के पास जो कुछ है , उसे उसी में संतुष्ट व सुखी रहना चाहिए
क्योंकि अक्सर व्यक्ति के अपने पास जो है, उससे संतुष्ट न होने पर वह और अधिक
कमाना चाहता है जिसका परिणाम कई बार ऐसा ही होता है कि वह अपना सब कुछ लुटा बैठता
है।
B. अक्सर और अच्छे की
चाह में अच्छे को भी हाथ से गंवाना (ऐश्वर्या, कक्षा आठ)
अक्सर कई लोग अपनी
चीज़ों को भाव अथवा महत्त्व नहीं देते बल्कि दूसरों की चीज़ों पर हमेशा नज़र लगाए रहते
हैं।
राम एक बड़े शहर का
लड़का था। वह हमेशा अपने माँ-बाप का खरीदा खिलौना कूड़े में डाल दिया करता था क्योंकि
राम के माता-पिता उसे उसकी पसन्द का खिलौना खरीदकर नहीं देते थे। राम और उसके माता-पिता
बड़े शहर में रहते तो थे परन्तु वे अमिर नहीं थे। जो खिलौना राम उनसे माँगता था, वह बहुत कीमती होता था । इस कारण
उसके पिता उसे वह खिलौना खरीद कर नहीं दे सकते थे। राम के दोस्त उसे अपने कीमती खिलौने
दिखाकर बहुत छेड़ते और चिढ़ाते थे। इस कारण राम को बहुत क्रोध आता था। अक्सर राम की माँ
राम को उपदेश देती रहती थी कि "बाहर से सुन्दर लगने वाली चीज़ें ज़रूरी नहीं है
कि अन्दर से भी सुन्दर हों।
एक दिन राम ने निर्णय
लिया कि वह अपने सारे खिलौने कचरे के डिब्बे से बाहर निकाल कर उन्हें बेचेगा और पैसे
कमाएगा। फिर वह अपना मनपसन्द खिलौना खुद खरीदेगा। राम ने अपने सभी खिलौने कूड़े के डिब्बे
से बाहर निकाले और उन्हें बेचने एक दुकान पर ले गया। सभी खिलौने तो नए के नए ही थे
क्योंकि वह उनसे कभी खेला ही नहीं था। उन सबको बेचकर उसने अपना पसन्दीदा खिलौना खरीद
लिया और अपना मनपसन्द खिलौना खरीदकर उसने अपनी इच्छा पूरी कर ली। वह बहुत खुश था कि
आखिर में उसने अपना मनचाहा खिलौना पा ही लिया। परन्तु दु:ख की बात यह हुई कि वह खिलौना
दो दिन भी उसके पास ही नहीं रहा क्योंकि वह कीमती तो था परन्तु बहुत ही नाज़ुक भी था।
दूसरे दिन ही खेलते वक्त वह उसके हाथों से गिरकर टूट गया। जितने भी उसके अच्छे-अच्छे
खिलौने थे उन सब को तो राम ने पहले से ही अपनी मूर्खता और ज़िद में खो दिया था।
यह सब देखकर राम की
माता ने राम से कहा कि राम अब तो तुम समझ जाओ कि अक्सर और अच्छे की चाह में हम अच्छी
चीज़ों को गंवा देते हैं इसलिए अपने पास जो भी है उससे संतुष्ट रहना चाहिए।
No comments:
Post a Comment