मैं
वैली स्कूल में आई. सी. एस. ई में
भी हिंदी पढ़ाती हूँ । इस बोर्ड
के हिंदी पेपर में कहावत के ऊपर एक
निबंध पूछा जाता है । बच्चों
से कई सारी कहावतों पर निबंध लिखाना
मुश्किल है इसलिए हर
छात्र-छात्रा को अलग-अलग
कहावत दी जाती है
जिस पर वे निबंध
लिखते हैं और फिर कक्षा
में सब छात्र-छात्राएँ
अपने लिखे निबंध पढ़ते हैं जिससे सबको कहावतें भी समझ आ
जाएँ और परीक्षा में
उन्हें कोई मुश्किल न हो ।
इन कहावतों पर लिखे निबंधों
को छात्र-छात्रों को सुनाया जा
सकता है या उन्हें
पढ़ने के लिए दिया
जा सकता है जिससे उन्हें
कहावतों का अर्थ अच्छी
तरह से समझ आ
सके । हर कहावत
के आगे वर्ष लिखा गया है , इसका मतलब है कि यह
कहावत बोर्ड में उस वर्ष में
पूछी गई है ।
आशा है कि यह
सामग्री अध्यापकों और अध्यापिकाओं के
साथ-साथ छात्र-छात्राओं के लिए भी
उपयोगी होगी ।
बिना विचारे जो करै सो पीछे पछताए (तानिया)
हरीश एक बहुत प्रसिद्ध
व नामी इन्सान का बेटा था। जब उसके माता-पिता की मृत्यु हो गयी तो उसके नाम करोड़ों
रुपए जमा थे परन्तु वह अभी तो बहुत छोटा था। वह सिर्फ बीस साल का था । अतएव उसे पैसा
संभालने के बारे में कुछ नहीं पता था। उसके पिताजी का व्यवसाय था-वे सदियों पुरानी
चीज़ें बेचते थे। वहाँ उस दुकान में एक मेज भी पाँच लाख की थी।
ऐसी मुसीबत के समय
में हरीश के चचेरे भाई जिसे हरीश ने अपने जीवन में केवल दो बार ही देखा था, वे विदेश से ही हरीश की मदद करने
लगे। परन्तु यह तरकीब भी बेकार हुई क्योंकि विदेश से वह हर दिन मदद नहीं कर पाते थे।
चचेरे भाई अच्छे इन्सान थे परन्तु उन्हें व्यवसाय के बारे में कुछ नहीं पता था। अतएव
कोई और चारा नहीं बचा था। हरीश अपने ममेरे भाई के पास गया। ममेरे भाई का नाम लोकेश
था। लोकेश व्यवसाय के बारे में बहुत कुछ जानता था। परन्तु वह बहुत बुरा इन्सान था।
बाहर से वह भोला-भाला
था पर अंदर से चतुर था। जब हरीश ने लोकेश का भोला-भाला स्वभाव देखा तो बहुत खुश हुआ।
बिना सोचे-समझे अपने किसी चचेरे भाई या किसी रिश्तेदार की सलाह न मानकर उसने लोकेश
को ही अपना व्यवसाय चलाने की ज़िम्मेदारी दे दी। उसने चचेरे भाई को भी यह बात एक मास
के बाद बतायी। वह गुस्सा हो गया परन्तु अब तो कुछ नहीं हो सकता था।
चचेरे भाई ने सोचा
कि वे दो मास बाद भारत आ ही रहे थे तब वह सब कुछ ठीक करने की कोशिश करेंगे। ममेरे भाई
के काम से हरीश बहुत खुश हुआ और लोकेश भी।
पहले मास तो वह अच्छा काम करता रहा परन्तु दूसरे मास में उसे हरीश के बैंक के
बारे में सब कुछ पता चल गया। धीरे-धीरे वह बैंक से सारा पैसा निकालने लगा।
इतना ही नहीं, धीरे-धीरे दुकान की सारी चीज़ें
भी चुराने लगा । वह हरीश से कहता कि चीज़ें बेची हैं परन्तु असलियत में वह अपने विदेश
के घर में वे चीज़ें भेजता था। गमलों के बारे में पूछने पर उसने बोला कि नए नौकर ने
तोड़ दिये।, तभी चचेरा भाई वहाँ आ गया परन्तु तब तक सारी चीज़ें
बेच दी गईं थीं और पूरा नुकसान हो गया था। इस कारण चचेरा भाई कुछ न कर पाया।
सही बात तब होती जब
हरीश सोचता-समझता और अपने करीबी लोगों से पूचता तो उसकी इतनी हानि नहीं होती। इसलिए
ही कहते हैं कि बिना विचारे
जो करै, सो
पीछे पछताए।
No comments:
Post a Comment