मैं वैली स्कूल में आई. सी. एस. ई में भी हिंदी पढ़ाती हूँ । इस बोर्ड के हिंदी पेपर में कहावत के ऊपर एक निबंध पूछा जाता है । बच्चों से कई सारी कहावतों पर निबंध लिखाना मुश्किल है इसलिए हर छात्र-छात्रा को अलग-अलग कहावत दी जाती है जिस पर वे निबंध लिखते हैं और फिर कक्षा में सब छात्र-छात्राएँ अपने लिखे निबंध पढ़ते हैं जिससे सबको कहावतें भी समझ आ जाएँ और परीक्षा में उन्हें कोई मुश्किल न हो । इन कहावतों पर लिखे निबंधों को छात्र-छात्रों को सुनाया जा सकता है या उन्हें पढ़ने के लिए दिया जा सकता है जिससे उन्हें कहावतों का अर्थ अच्छी तरह से समझ आ सके । हर कहावत के आगे वर्ष लिखा गया है , इसका मतलब है कि यह कहावत बोर्ड में उस वर्ष में पूछी गई है । आशा है कि यह सामग्री अध्यापकों और अध्यापिकाओं के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के लिए भी उपयोगी होगी ।
साँच को आँच क्या अथवा सच्चाई को किसी प्रमाण या सबूत की ज़रूरत नहीं होती (मेघा)
"साँच को आँच
क्या" मुहावरे का अर्थ है कि सच्चाई को किसी सबूत की आवश्यकता नहीं होती, वह तो वक्त के साथ सामने आ जाती
है। इस दुनिया में लोग अनेक कारणों के लिए झूठ के पथ को चुनने का फैसला करते हैं। वे
इस बात से बेखबर होते हैं कि एक झूठ को छिपाने के लिए सैंकड़ों झूठ बोलने पड़ते हैं ।
जो लोग सच्चाई के पथ को चुनते हैं , वे ज़िंदगी में खुश रहते हैं।
अगर सच को ठुकरा दिया जाए तो वह बिना सबूत के किसी समय भी बाहर आ ही जाएगा । मनोज के
साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ था ।
आज कम्पनी में बोर्ड
के साथ उसकी मीटिंग थी । इस मीटिंग में सब लोग अपने सोच-विचार और सुझाव को पेश करने
वाले थे और बाद में रिपोर्ट बनाकर बड़े बॉस को दी जाएगी। मनोज, मानव और मिहिर कॉन्फ्रेन्स रूम
में पहुँचे और सब बॉस का इंतज़ार करने लगे। पर बॉस के न आने पर मीटिंग शुरु हो गई। मीटिंग
की शुरुआत नए यंत्र के प्रस्ताव से हुई। पहले मानव ने अपनी सोच और विचार बताए कि उन्हें
किस तरह का यंत्र बनाना चाहिए और उसके लिए कम्पनी कितनी रुपए लगाएगी। फिर मिहिर ने
एक यंत्र बनाने का सुझाव दिया परन्तु अन्य सदस्यों को यह यंत्र ज्यादा लाभकारी नहीं
लगा । इसलिए उन्होंने मनोज की ओर देखा। मनोज के सुझाव व यंत्र का डिजाइन देखकर बोर्ड
के सभी सदस्यों के चेहरे पर मुस्कान आई और अंत में उन्होंने रिपोर्ट तैयार कर बॉस के
पास जाने का फैसला किया ।
मनोज, मिहिर और मानव इस बात से बेखबर
थे कि कॉन्फ्रेन्स रूम के बाहर कम्पनी के एक सदस्य राम ने उनकी सारी बातें सुन ली थीं
। मीटिंग समाप्त होने के तुरन्त बाद राम कॉन्फ्रेन्स रूम में गया । उसने सारे सुझाव
और यंत्र के बारे में सभी जानकारी एक बड़े से कागज़ पर लिखी। वह उस कागज़ को लेकर सीधा
बड़े बॉस के पास गया । उसे पता था कि मनोज और उसके साथी तो बॉस को यंत्र के बारे में
कल बताएंगे इसलिए उसने पहले जाकर बताने की सोची ताकि बॉस को लगे कि यह उसकी सोच है।
राम के सुझाव जानकर बॉस खुश हो गए और उन्हें लगा कि यह राम की सोच है।
अगले दिन जब मनोज
और उसके साथियों ने यंत्र का सुझाव बॉस को बताया तो उन्होंने कहा कि यह तो राम ने कल
ही उन्हें बताया था । यह सुनकर मनोज और सारे उसके साथी हैरान हो गए। बॉस ने जब उनकी
सारी बात सुनी तो वे काफी उलझन में पड़ गए कि यह सुझाव वास्तव में किसका है? आखिरकार उन्होंने राम को बुलवाया
और उन्होंने राम से उस यंत्र की उपयोगिता और उसमें लगने वाली लागत के बारे में कई सवाल-जवाब
किये। राम इन सवाल-जवाबों के चक्कर में फँस गया और उससे कुछ कहते न बना । फिर बॉस ने
वही सवाल-जवाब मनोज और उसके साथियों से किये तो उन्होंने पाया कि उन्होंने न केवल उनके
सवालों के जवाब देकर उन्हें संतुष्ट किया बल्कि और भी अधिक जानकारी उन्हें दी जिससे
सच्चाई बॉस के सामने आ गई। सच ही है कि “साँच को आँच नहीं” यानि कि सच्चाई को प्रमाण की आवश्यकता नहीं ।
nice writing very useful for me
ReplyDeletenice writing very useful for me
ReplyDeleteThanks a lot ma'am for your help
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