मैं
वैली स्कूल में आई. सी. एस. ई में
भी हिंदी पढ़ाती हूँ । इस बोर्ड
के हिंदी पेपर में कहावत के ऊपर एक
निबंध पूछा जाता है । बच्चों
से कई सारी कहावतों पर निबंध लिखाना
मुश्किल है इसलिए हर
छात्र-छात्रा को अलग-अलग
कहावत दी जाती है
जिस पर वे निबंध
लिखते हैं और फिर कक्षा
में सब छात्र-छात्राएँ
अपने लिखे निबंध पढ़ते हैं जिससे सबको कहावतें भी समझ आ
जाएँ और परीक्षा में
उन्हें कोई मुश्किल न हो ।
इन कहावतों पर लिखे निबंधों
को छात्र-छात्रों को सुनाया जा
सकता है या उन्हें
पढ़ने के लिए दिया
जा सकता है जिससे उन्हें
कहावतों का अर्थ अच्छी
तरह से समझ आ
सके । हर कहावत
के आगे वर्ष लिखा गया है , इसका मतलब है कि यह
कहावत बोर्ड में उस वर्ष में
पूछी गई है ।
आशा है कि यह
सामग्री अध्यापकों और अध्यापिकाओं के
साथ-साथ छात्र-छात्राओं के लिए भी
उपयोगी होगी ।
A. संगठन में ही बल है- मिलकर रहने
में ही शक्ति है (पार्थ, कक्षा नौ)
एक पाठशाला में फुटबॉल की प्रतियोगिता होने वाली है। उस
पाठशाला में टीम के खिलाड़ी चुनने वाले हैं । ग्यारह खिलाड़ी पाठशाल में से चुने गए
। वह प्रतियोगिता जनवरी एक पर शुरु होने वाली है। सब पाठशाला के खिलाड़ी बहुत मेहनत
कर रहे हैं। सारी टीम सिवाय एक टीम के सब एक साथ अपनी टीम के साथ खेल का अभ्यास
बड़ी मेहनत से कर रहे हैं । टीम का नाम ’शेर’ है।
एक जनवरी पर प्रतियोगता शुरु हो गई । सब इस दिन एक टीम के
साथ खेलने वाले हैं । कोई पाठशाला टीम से हार जाए तो उन्हें और एक बार खेलने को
मिलेगा पर वह मैच भी अगर वे हार गए तो वे प्रतियोगिता से बाहर हो जाएंगे ।
शेर टीम दूसरी पाठशाला के साथ अपना पहला खेल खेलने वाली है
। उस खेल में शेर टीम हार गई क्योंकि उस खेल में एक दूसरे को गेंद देने के बजाए वे
सब अकेले ही खेल खेल रहे थे । खेल के बाद सब एक दूसरे को दोष देने लगे । तब टीम के
कोच ने आकर खिलाड़ियों को शान्त कराया ।
वे सब अपनी पाठशाला में फुटबॉल खेलने गए । उन सबको वह
प्रतियोगिता अवश्य जीतनी है । वे सब कुर्सी पर बैठे थे । कोच ने आकर उन्हें एक साथ
खेलने की सलाह दी पर कोच उन खिलाड़ियों को आश्वस्त करने में कामयाब नहीं हुए । फि
उन्होंने एक खिलाड़ी की कुर्सी को एक पैर से लात मार कर तोड़ दिया और वह खिलाड़ी गिर
गया । तब कोच ने कहा कि कुर्सी सिर्फ अपने सारे पैर पर खड़ी रह सकती है। इसके सारे
पैर एक साथ काम करते हैं अगर इसका एक भी पैर टूटता है तो इस पर बैठा कोई भी
व्यक्ति गिर सकता है । फिर कोच ने ज़मीन पर पड़ी लकड़ियाँ उठाईं और एक खिलाड़ी के हाथ
पर एक लकड़ी रख उसे तोड़ने को कहा । खिलाड़ी ने आसानी से उस एक लकड़ी को तोड़ दिया । तब
कोच ने उसे अन्य पाँच लकड़ियाँ एक साथ तोड़कर दिखाने को कहा , तब वह खिलाड़ी उन
पाँचों लकड़ियों को नहीं तोड़ पाया । इस पर कोच ने कहा- संगठन में ही बल है अथवा
मिलकर रहने में ही शक्ति होती है। यह बात सब खिलाड़ियों की समझ में आई और वे सब मैच
में एक साथ खेले ।
इस बार दूसरी पाठशाला की टीम के साथ वह मैच जीत गए क्योंकि
वे इस बार एक दूसरे को गेंद दे रहे थे । सभी की कोशिश यही थी कि वे मिल-जुलकर
खेलें । एक-दूसरे के गुणों और योग्यता को समझ कर खेलें । हर तरह से संगठित होकर
खेलने पर ही उन्होंने प्रतियोगिता जीत ली। सच है है कि संगठन में ही बल है और इससे
सब कुछ हासिल कर सकते हैं ।
B.संगठन में ही बल है अथवा मिलकर रहने में
ही ताकत है (निखिल, कक्षा ८)
यह कहानी पंज़ाब के एक किसान के बारे में
है। किसान का नाम रामसिंह था। उसके सात लड़के थे। लड़कों की उम्र २० से २५ वर्ष के बीच
की थी। रामसिंह के पास एक बड़ा मकान था और उसके पास बहुत बड़ी ज़मीन भी थी। रामसिंह ६०
साल का था। उसकी पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी।एक दिन रामसिंह बीमार पड़ गया । वह कई दिनों
तक घर से नहीं निकला । खाट पर खाली पड़े-पड़े वह सोचने लगा कि अगर उसकी मृत्यु हो गई
तो इतने बड़े घर और उसकी ज़मीन का क्या होगा? उसके
सात लड़के थे- सोनू, रामू, रमन, परम, डोलू, बोलू और करण । सोनू
२५ साल का, रामू २४ और रमन २३ साल का था। परम २१ साल का,
बोलू २० साल का तो डोलू १९ साल का था। उसका सबसे छोटा पुत्र करण १६ साल
का था। ये सब भाई कुछ काम न करते थे । वे सब पिता की ज़मीन पर अपना अधिकार समझ आपस में
झगड़ा करते थे। पर इन भाइयों में से करण ऐसा था कि उसे केवल अपने पिता का घर ही चाहिए
था। एक दिन रामसिंह अपने पुत्रों को ज़मीन के लिए इस तरह लड़ते-झगड़ते देखकर नाराज़ हो
गया। उसने अपने पुत्रों से कहा," अगर तुम सब ऐसे ही लड़ते
रहोगे तो मैं अपनी सारी ज़मीन और मकान तुममें से किसी को नहीं दूँगा। सब भाइयों ने पिता
को नाराज़ देख सोच लिया कि वे अब नहीं लड़ेंगे।
रामसिंह भी ठीक हो गया और दिन पहले जैसे
ही बीतने लगे। ऐसे ही दस वर्ष बीत गए। रामसिंह ७० वर्ष का हो गया। अपने जन्म दिन पर
उसे अचानक ख्याल आया कि अब समय आ गया है कि वह अपनी ज़मीन और मकान को अपने पुत्रों में
बाँट दे। रामू ने अपने पिता को अपने चाचा से यह सब कहते हुए सुन लिया। वह फौरन सब भाइयों
के पास गया और यह बात सबको बता दी। सभी भाई भाग-भाग कर रामसिंह के पास गए और ज़मीन के
बंटवारे के बारे में बात करने लगे। देखते-देखते वे फिर से आपस में लड़ने लगे, सब ही अधिक से अधिक भाग अपने नाम करवाना चाहते थे।
रामसिंह को अपने पुत्रों पर बेहद गुस्सा
आया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वे कैसे उन्हें समझाए कि ज़मीन का बंटवारा कर देने से
ज़मीन की महत्ता खत्म हो जाएगी। बहुत सोच-विचार करने के बाद उसने उन सबसे कहा कि वह
उन सबकी परीक्षा लेगा और यदि वे उसमें सफल हो गए तभी वह ज़मीन उनके नाम करेगा । वरना
किसी के नाम कुछ भी नहीं होगा।अगले दिन रामसिंह ने सोनू से पास के जंगल
से कुछ लकड़ियाँ जमा कर लाने के लिए कहा। फिर उसने एक-एक लकड़ी सब पुत्रों को तोड़ने के
लिए दी। सबने बड़ी आसानी से उसे तोड़ दिया। फिर उसने दो-दो लकड़ियाँ सब पुत्रों को देकर
उन्हें एक साथ तोड़ने को कहा । उन्हें भी उन सब पुत्रों ने आसानी से तोड़ लिया। फिर उसने
तीन लकड़ियाँ फिर चार एक साथ तोड़ने को दीं। वह धीरे-धीरे लकड़ियों की संख्या बढ़ाता जा
रहा था। एक समय ऐसा आया कि सब पुत्रों को आठ-दस लकड़ियाँ एक साथ तोड़नी थीं। सबने बहुत
कोशिश की पर कोई भी पुत्र उन आठ-दस लकड़ियों के गट्ठर को एक साथ तोड़ न पाया। तब रामसिंह
ने उन्हें कहा कि उन्हें अपने पिता की बात समझ आई या नहीं। अगर वे अलग-अलग रहेंगे तो
वे घाटे में रहेंगे क्योंकि कोई भी उन्हें इन लकड़ियों की तरह तोड़ देगा पर यदि वे मिल-जुलकर
रहेंगे तो उन्हें लाभ ही लाभ होगा क्योंकि कोई उन्हें तोड़ नहीं पाएगा।
रामसिंह के पुत्रों ने पिता से माफी माँगी
। तब रामसिंह ने उन्हें कहा कि अब मैं सारी ज़मीन और मकान तुम सब के नाम करता हूँ। तुम
सबका इन पर समान अधिकार है। इसलिए तुम सबको एक साथ मिलकर इसका ध्यान रखना है और कभी
भी आगे से तुम सब लड़ना नहीं , मिल-जुल कर रहना। अत: एक
लकड़ी की तरह कोई भी अकेले व्यक्ति को तोड़ सकता है या नुकसान पहुँचा सकता है। पर लकड़ियों
के गट्ठर को तोड़ना नामुमकिन है इसी प्रकार सात भाइयों के एक साथ मिलकर रहने से उन्हें
तोड़ना आसान नहीं है। इसलिए ही कहते हैं कि संगठन में बल होता है अथवा मिल-जुलकर रहने
में ताकत होती है।
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