मैं वैली स्कूल में आई. सी. एस. ई में भी हिंदी पढ़ाती हूँ । इस बोर्ड के हिंदी पेपर में कहावत के ऊपर एक निबंध पूछा जाता है । बच्चों से कई सारी कहावतों पर निबंध लिखाना मुश्किल है इसलिए हर छात्र-छात्रा को अलग-अलग कहावत दी जाती है जिस पर वे निबंध लिखते हैं और फिर कक्षा में सब छात्र-छात्राएँ अपने लिखे निबंध पढ़ते हैं जिससे सबको कहावतें भी समझ आ जाएँ और परीक्षा में उन्हें कोई मुश्किल न हो । इन कहावतों पर लिखे निबंधों को छात्र-छात्रों को सुनाया जा सकता है या उन्हें पढ़ने के लिए दिया जा सकता है जिससे उन्हें कहावतों का अर्थ अच्छी तरह से समझ आ सके । हर कहावत के आगे वर्ष लिखा गया है , इसका मतलब है कि यह कहावत बोर्ड में उस वर्ष में पूछी गई है । आशा है कि यह सामग्री अध्यापकों और अध्यापिकाओं के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के लिए भी उपयोगी होगी ।
दयानतदारी सर्वश्रेष्ठ नीति है (अजित) 1990
दयानतदारी
सर्वश्रेष्ठ नीति है-जब भी मैं यह वाक्य पढ़ता हूँ तो सर्वप्रथम जो कहानी मेरे
दिमाग में आती है वह है - महाराज शिवि की । महाराज शिवि , भगवान विष्णु के भक्त और
एक बहुत प्रसिद्ध राजा थे । एक बार वे यज्ञ कर रहे थे कि एक कबूतर आकर उनकी गोद
में छिप गया । पीछे से एक बाज़ भी आया और कबूतर को भोजने के रूप में माँगने लगा ।
कबूतर की रक्षा के लिए राजा शिवि ने उनसे कबूतर के बराबर का माँस उनके शरीर से
माँगा । राजा शिवि ने तराजू मँगवाया और कबूतर की रक्षा के लिए और बाज की भूख के
निवारण के लिए वे अपना माँस काटकर तराजू में रखते गए । पर कबूतर और माँस दोनों
समान नहीं हो रहे थे । पर शिवि हार न माने और अपना माँस काट कर देते रहे । तभी
आकाश से पुष्प गिरने लगे । कबूतर के रूप में इन्द्र और बाज़ के रूप में अग्नि देव
दोनों उनकी परीक्षा लेने आए थे ।
इसी कहानी
को याद कर मुझे याद आता है- बहुत वर्षों पहले विदेश में एक शहर में एक छोटा लड़का
रहता था । वह लड़का बहुत गरीब था । लेकिन वह बहुत समझदार था । उसका एक ही सपना था
कि वह एक बड़ा डाक्टर बन सके । वह सारा समय छोटी-छोटी चीज़ें बेचकर पैसे जमा करता था
। ये पैसे वह अपने पास ही रखता था और खाने के लिए प्रयोग नहीं करता था । वह इन
पैसों से अपने पढ़ने की फीस देता था । ऐसे ही बहुत दिनों तक चलता रहा ।
एक दिन यह
लड़का शहर में छोटी-छोटी चीजें बेच रहा था । उस दिन बहुत गर्मी थी । गर्मी के कारण
उसको प्यास लग रही थी । एक बोतल पानी खरीदने के लिए भी उसके पास पैसे नहीं थे ।
कहीं आस-पास कोई नल या कुआँ भी नहीं था । उसने सोचा कि किसी के घर जाकर एक गिलास
पानी के लिए पूछता हूँ । उसने एक घर के बाहर खड़े होकर दरवाजा खटखटाया । एक स्त्री
ने दरवाजा खोला । लड़के ने उस स्त्री के चेहरे पर दया का भाव देखा इसलिए उसने उससे एक
गिलास पानी माँगा । वह स्त्री अंदर गई और उसने एक बड़ा गिलास छाछ का लाकर लड़के के
हाथ में रखते हुए कहा," लो बेटा, पियो ।" लड़के ने एक ही झटके में पूरा
गिलास खाली किया और संतुष्ट हो गया । स्त्री को बार-बार धन्यवाद कहता हुआ वह वहाँ
से चला आया ।
बहुत
वर्षों बाद वह लड़का अपनी पढ़ाई पूरी करके एक बड़ा डाक्टर बन गया । उसका परिवार भी है
और अब उसके पास सुख की हर वस्तु है । एक दिन वह स्त्री जिसने वर्षों पहले उस बच्चे
को छाछ पिलाई थी , वह कैंसर से पीड़ित हो उसी बच्चे के अस्पताल में आती है । वह
बच्चा अब कैंसर का प्रसिद्ध डाक्टर है । वह स्त्री द्वारा भरे फार्म में पता देखता
है तो उसे उस स्त्री की याद आती है । आज भी वह उस छाछ के साथ उस स्त्री के स्नेह
और दया को नहीं भूला है । वह उस स्त्री के पास जाता है और उसे पहचान जाता है । वह
उसका इलाज कर उसे कैंसर से बचा लेता है । लेकिन वह स्त्री बिल चुकाने के बारे में
बहुत चिंतित होती है क्यों कि उसके पास बिल भरने के पूरे रुपए नहीं हैं । इधर
डाक्टर सोचता है कि कैसे वह इस स्त्री को याद दिलाए कि उसके द्वारा दी छाछ और
स्नेह वह अभी तक नहीं भूला । उसे एक उपाय सूझता है । वह वैसा ही करता है । उस स्त्री
के पास बिल जाता है तो वह देखती है कि वहाँ पैसे की जगह लिखा था-" एक गिलास
छाछ का मूल्य यही है ।" यह पढ़कर वह कुछ नहीं समझती तब वह डाक्टर आकर उसे इतने
वर्षों पहले घटी घटना के बारे में बताते हैं । सब कुछ सुनकर स्त्री की आँखों में
खुशी के आँसू आते हैं और डाक्टर की आँखें भी भर आती हैं । वास्तव में, दयानतदारी
का कोई मुकाबला नहीं ।
इस कहानी
से हम समझते हैं कि दयानतदारी ही सर्वश्रेष्ठ नीति है । तुम जो भी काम कर रहे हो
चाहे तुम अमीर हो या गरीब , यह सब न सोचकर किसी के प्रति दया दिखाना ही मानवता है
। आज नहीं तो कल अथवा भविष्य में सभी को वही दया और खुशी अवश्य हासिल होगी ।
दयानतदारी सर्वश्रेष्ठ नीति है (मित्रन)
सूर्यन
नामक एक आदमी मंगलौर में रहता था । वह अपने जीवन में अधिकतम आराम लेना चाहता था ।
उसकी बहुत अच्छी नौकरी थी और उसे काफी अच्छी आय मिलती थी । सूर्यन अपने पड़ोस में
सर्वप्रिय था और उसके अनेक प्रिय दोस्त भी थे । उनमें से मानस सूर्यन का सबसे गहरा
दोस्त था । वह युवा और बुद्धिमान था परन्तु उसका परिवार गरीब था । एक दिन सूर्यन
घर आया तब उसने देखा कि उसका पड़ोसी कार्तिक और मानस कार्तिक के घर के बाहर बातें
कर रहे हैं । वह उनके पास गया और उनका अभिवादन करके पूछा कि वह यहाँ क्या कर रहा
है ? मानस ने बताया कि उसे वकालत पढ़ने के लिए कालेज में प्रवेश मिला है पर उसके
पास कालेज की फीस देने के लिए रुपए नहीं हैं । कालेज का शुल्क छ: लाख पचास हज़ार
रुपए है । वह कार्तिक के साथ शुल्क व्यवस्था के बारे में बात कर रहा है । सूर्यन
ने उसे आश्वासन दिया कि वह चिन्ता न करे , वह उसे सहायता देगा ।
सूर्यन मन
ही मन सोच रहा था कि वह चाहे तो मानस की पूरी फीस दे सकता था क्योंकि उसके पास
काफी धन था परन्तु उसे भी धन की आवश्यकता थी । काफी सोचने के बाद उसे लगा कि मानस
उसका प्रिय दोस्त है और उसे उसकी सहायता अवश्य करनी चाहिए । उसने यह निश्चय करके
मानस को फोन किया और कहा कि वह उसकी पूरी फीस भर देगा और उसे किसी और से पूछने की
आवश्यकता नहीं है । यह सुनकर मानस फूला न समाया । इस तरह मानस कालेज में पढ़ पाया ।
कई साल
बीत गए । एक दिन सूर्यन जब घर आया तो देखा कि बहुत सारे पुलिस अफसर उसके घर के
बाहर खड़े हैं । एक अफसर ने उसके पास आकर कहा कि सोने की चोरी के लिए उसे हिरासत
में लिया जाता है । सूर्यन अवाक रह गया और उसने कहा कि उसने सोने की चोरी नहीं की
है । पर अफसर ने कहा कि चुराया गया सोना उसके घर में एक संदूक से मिला है और उसे
उनके साथ थाने चलना होगा । थाने में उसे पता चला कि उसे तीन दिनों में न्यायालय
में पेश होना होगा और अपना केस लड़ने के लिए उसे वकील रखना होगा । वकील शब्द सुनकर
उसे मानस की याद आ गई और उसने फौरन मानस को फोन किया और सारा किस्सा सुनाया । मानस
ने उसे कहा कि वह चिन्ता न करें , वह उनका मुकद्दमा लड़ेगा । मानस सूर्यन से मिला
और पूरा किस्सा समझा । फिर अगले तीन दिनों मानस पूरी छानबीन और जाँच-पड़ताल में लगा
रहा । उसने पूरा केस अच्छी तरह पढ़ा और समझा । उसने केस की सुनवाई से पहले सूर्यन
को आश्वासन दिया कि वह निर्दोष है और वह यह अदालत में साबित कर देगा ।
मुकद्दमे
का दिन आया । सूर्यन को अदालत की कार्यवाही खास समझ में नहीं आई । केवल इतना ही
समझ आया कि मानस ने उसके निर्दोष होने के कई प्रमाण दिए जैसे कि- चोरी के समय
सूर्यन अपने दफ्तर में था, संदूक जिसमें चुराया हुआ सोना मिला था उसपर सूर्यन की
उँगुलियों की छाप नहीं थी आदि । जब न्यायालय ने निर्णय सुनाया तो सूर्यन दूसरे
कक्ष में था । अचानक ही मानस उस कक्ष में आया और सूर्यन को कहा कि सोने की चोरी
उनके पड़ोसी कार्तिक ने की थी और चुपके से चुराया हुआ सोना उनके घर में रखा था ।
अदालत ने सूर्यन को बाइज़्ज़त छोड़ दिया । सूर्यन ने मानस को धन्यवाद दिया तो मानस ने
कहा कि मेरी वकालत की डिग्री आपके द्वारा ही दी हुई है । आज मैं आपके काम आ सका तो
मुझे लग रहा है कि आपका धन और मेरी मेहनत कामयाब हो गई । आज मैं जो भी हूँ वह आपकी
दया से ही हूँ । सच ही है- दयानतदारी सर्वश्रेष्ठ नीति है ।
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