मैं वैली स्कूल में आई. सी. एस. ई में भी हिंदी पढ़ाती हूँ । इस बोर्ड के हिंदी पेपर में कहावत के ऊपर एक निबंध पूछा जाता है । बच्चों से कई सारी कहावतों पर निबंध लिखाना मुश्किल है इसलिए हर छात्र-छात्रा को अलग-अलग कहावत दी जाती है जिस पर वे निबंध लिखते हैं और फिर कक्षा में सब छात्र-छात्राएँ अपने लिखे निबंध पढ़ते हैं जिससे सबको कहावतें भी समझ आ जाएँ और परीक्षा में उन्हें कोई मुश्किल न हो । इन कहावतों पर लिखे निबंधों को छात्र-छात्रों को सुनाया जा सकता है या उन्हें पढ़ने के लिए दिया जा सकता है जिससे उन्हें कहावतों का अर्थ अच्छी तरह से समझ आ सके । हर कहावत के आगे वर्ष लिखा गया है , इसका मतलब है कि यह कहावत बोर्ड में उस वर्ष में पूछी गई है । आशा है कि यह सामग्री अध्यापकों और अध्यापिकाओं के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के लिए भी उपयोगी होगी ।
मानव जीवन
उतार-चढ़ाव से भरा है । कभी धूप यानि खुशी तो कभी छाँव या गम तो होता ही है । कहते
हैं कि जो मनुष्य सुख और दु:ख-दोनों को एक समान सह सके, वह ही जीवन का सार समझ
पाता है ।
इसी भावना
को यदि हम ध्यान दें तो यह भी सुना है कि हिम्मत न हारना सफलता के लिए आवश्यक है ।
कितने इन्सान "किस्मत खराब है" कहकर जीवन से हार मान जाते हैं । लेकिन
हम खुद ही अपनी तकदीर के लेखक हैं । इसलिए आत्मविश्वास से हम अपनी हार को जीत में
बदल सकते हैं ।
पिछले
वर्ष मुझे कई प्रकार के खाद्य पदार्थों से एलर्जी हो गई । मुझे खाने-पीने का बहुत
शौक है और हमारे परिवार को घूमने का भी । इसलिए भारत के साथ पूरे विश्व के विभिन्न
प्रान्तों के खाने मैंने बचपन से ही चखने शुरु कर दिए थे । इसलिए जब मुझे कुछ विशेष
प्रकार के पकवानों को खाने से खुजली शुरु हुई तो बहुत परेशानी हुई । डाक्टरों का
कहना था कि मेरी तबीयत तब ठीक होगी जब मैं वे पकवान खाना छोड़ दूँ । पहले दूध से
संबंधित सभी पदार्थ-दूध, दही,मक्खन, घी, आइस्क्रीम, चीज़, पनीर आदि । फिर मैदा,
आटा, सूजी, रोटी, परांठा, समोसा, पीज़ा, डबलरोटी, बिस्कुट और भी न जाने क्या-क्या ।
मेरी माँ ने सोचा," चलो, फल-सब्ज़ी तो खा सकती है ।" लेकिन संतरे व
अन्नानास खाने से भी कष्ट होने लगा ।
पहले तीन
महीने तो बहुत ही अचरज में गुज़रे, जब हम एक के बाद एक पकवानों के खाने के प्रभाव
को परखते रहे । फिर डाक्टरों के चक्कर काटने लगे । एक तरह से देखा जाए तो ज़िदगी तो
पहले जैसे ही रही-स्कूल, पढ़ाई, दोस्त इत्यादि । लेकिन मुझे बहुत थकावट महसूस होने
लगी और खेल-कूद काफी कम हो गया । बहुत-से विशेषज्ञों को मिलने के बाद भी किसी भी
नतीजे पर हम नहीं पहुँच पाए । दु:ख तो मुझे और सभी को उस समय अधिक हुआ जब मैं अपनी
कक्षा के साथ पूना पाठशाला की रेलयात्रा पर भी न जा सकी ।
फिर
दुर्गा पूजा की छुट्टियों में मैं अपनी नानी के घर गई । पहली बार उन्होंने मुझे
अपने बचपन की कहानी सुनाई । जब वे छोटी थीं तो उन्हें पोलियो हो गया था । उस ज़माने
में न टीका था और न ही इलाज । लेकिन उन्होंने हार न मानी । बड़ी होकर शिक्षिका बनने
का फैसला किया । अपनी कमाई से स्कूटर खरीदा । जम्मू शहर में वे पहली महिला थीं
जिन्होंने ऐसा किया । लोग जानते ही नहीं थे कि वे अपंग हैं ।
उनकी
कहानी से मुझे प्रेरणा तथा साहस मिला । मैंने अपने मन में सोच लिया कि चाहे कुछ भी
हो जाए मैं हर हाल में खुश रहूँगी । तो क्या हुआ अगर मैं पहले की तरह सब चीजें
नहीं खा सकती । यदि मैं अपनी सेहत का ख्याल रखूँ तो पहले की तरह पढ़ाई व खेल में
भाग ले सकूँगी । इस तरह मैंने अपनी बीमारी से हार नहीं मानने का निश्चय कर उसका
सामना करने का निर्णय लिया ।
जब मैं
अपने आस-पास देखती हूँ तो एहसास होता है कि मैं कितनी खुशकिस्मत हूँ। मेरे पास
प्यार करने वाले माता-पिता, अध्यापक-गण व दोस्त हैं । मुझे अपनी पाठशाला बहुत पसंद
है और मैं सबका नाम रोशन करना चाहती हूँ । इसलिए मुझे अपने विचारों को अच्छा रखना
और सही संगति में रहना ज़रूरी है । यह मैं समझती हूँ इसलिए ही मुझे स्वस्थ रहने की
शक्ति मिलती है और खुद पर दया न करने की क्षमता । आखिरकार, हार या जीत तो हमारे मन
में ही है । मेरी नानी ने मुझे सिखाया- मन के हारे हार है, मन के जीते जीत ।
ye kitna shabd ka hai . vaise acha hai mere competition mai gitna ke lia
ReplyDeletecount kr lo 😂
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