Monday, March 31, 2014

Story on proverb - Aage kuan picche khai/ आगे कुआँ पीछे खाई


मैं वैली स्कूल में आई. सी. एस. ई  में भी हिंदी पढ़ाती हूँ । इस बोर्ड के हिंदी पेपर में कहावत के ऊपर एक निबंध पूछा जाता है । बच्चों से कई सारी  कहावतों पर निबंध लिखाना मुश्किल है इसलिए हर छात्र-छात्रा को अलग-अलग कहावत दी जाती है जिस पर वे निबंध लिखते हैं और फिर कक्षा में सब छात्र-छात्राएँ अपने लिखे निबंध पढ़ते हैं जिससे सबको कहावतें भी समझ आ जाएँ और परीक्षा में उन्हें कोई मुश्किल न हो । इन कहावतों पर लिखे निबंधों को छात्र-छात्रों को सुनाया जा सकता है या उन्हें पढ़ने के लिए दिया जा सकता है जिससे उन्हें कहावतों का अर्थ अच्छी तरह से समझ आ सके । हर कहावत के आगे वर्ष लिखा गया है , इसका मतलब है कि यह कहावत बोर्ड में उस वर्ष में पूछी गई है । आशा है कि यह सामग्री अध्यापकों और अध्यापिकाओं के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के लिए भी उपयोगी होगी । 

आगे कुआँ पीछे खाई (अदिति)
श्यामलाकांत एक धनी आदमी थे । उनके पास अच्छी-मंहगी गाड़ी , बड़ा बंगला, सुन्दर पत्नी और दो छोटे-प्यारे बच्चे थे । जो भी वे चाहते थे, उन्हें मिलता था । उनका घर इतना बड़ा था कि उन्हें दस-पन्द्रह नौकरों को रखना पड़ा । उनके घर के अंदर एक बड़ा-सा कमरा था । श्यामलाकांत की ज़िंदगी में ऐसा कुछ नहीं था जो वे चाहते थे और उन्हें नहीं मिले । इस प्रकार वे दुनिया के सबसे भाग्यशाली व्यक्ति थे । यह नहीं कहा जा सकता क्योंकि इतना सब कुछ होने पर भी वे खुश नहीं थे । वे उन्नति चाहते थे । इससे भी बड़ा घर और तीन नई गाड़ियाँ चाहते थे । वे और ज़्यादा पैसों के मालिक बनना चाहते थे । कभी-कभी वे अपने-आप को सोने-चांदी में खेलने के सपने देखते थे । अत: श्यामलाकांत एक धनी और लालची व्यक्ति थे ।

सोमवार का दिन था । सुबह दस बजे वे अपने दफ्तर जाने की तैयारी कर रहे थे । उन्हें क्या पता था कि आज कोई साधारण सोमवार नहीं था । आज उन्हें तरक्की मिलने वाली थी । दफ्तर में उनके लिए पार्टी रखी गई थी । खा-पीकर उन्होंने बहुत मज़ा किया । पूरा काम खत्म करके वे घर पर पहुँचे । घर में पहुँचते ही उनका फोन बज उठा । कोई प्रतिद्वंद्वी कम्पनी उन्हें अपनी कम्पनी में काम करने के लिए बुला रही थी । इस कम्पनी ने उन्हें बहुत पैसे और अच्छा पद देने का वादा किया । श्यामलाकांत जी फोन रखकर सोचने लगे," अगर मैं एक और कम्पनी के लिए काम करूँगा तो मेरे मालिक को अच्छा नहीं लगेगा.....पर...क्या करूँ? ......इतने पैसे!.....शायद मैं दोनों कम्पनी के लिए काम कर सकता हूँ .....दिन भर एक कम्पनी में और रात भर दूसरी कंपनी में .....किसी को कुछ पता नहीं चलेगा और मैं दुनिया में सबसे आदमी बन जाऊँगा।" बस यह सब सोचते ही उन्होंने प्रतिद्वंद्वी कंपनी को "हाँ" कहा । अगले दिन श्यामलाकांत उठकर जल्दी से अपनी कम्पनी में गए । वहाँ उन्होंने कुछ कार्य किया और शाम होते ही चले गए । सात बजे से दूसरी कंपनी में काम करने लगे । पूरा एक सप्ताह उन्होंने ऐसे ही बिताया । सप्ताह का अंत होने तक वे बहुत ही थक गए थे । बेचारे खाना खाने से पहले ही सो गए । शानिवार और रविवार को उन्होंने आराम किया । फिर सोमवार आ गया । एक कम्पनी में काम करके वे दूसरी कंपनी में काम करने गए । रात हो गई थी तभी उन्होंने देखा कि उनकी पहली कम्पनी का मालिक और दूसरी कम्पनी का मालिक एक-दूसरे पर चिल्ला रहे हैं और झगड़ा कर रहे हैं । श्यामलाकांत जी ने चुपके से भागने की कोशिश की पर दोनों मालिकों की नज़रें एकाएक उन पर पड़ीं । दोनों ने उन्हें एक साथ प्रश्न किया कि वह किस कम्पनी के लिए काम कर रहा है? अब वे क्या करें? उनके लिए तो "आगे कुआँ पीछे खाई" वाली मुसीबत थी । अगर सच बताते तो दोनों ही नौकरियों से हाथ धोना पड़ता और चुप तो वह रह नहीं सकते थे क्योंकि उन्हें जवाब तो देना ही पड़ता ।


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