मैं वैली स्कूल में आई. सी. एस. ई में भी हिंदी पढ़ाती हूँ । इस बोर्ड के हिंदी पेपर में कहावत के ऊपर एक निबंध पूछा जाता है । बच्चों से कई सारी कहावतों पर निबंध लिखाना मुश्किल है इसलिए हर छात्र-छात्रा को अलग-अलग कहावत दी जाती है जिस पर वे निबंध लिखते हैं और फिर कक्षा में सब छात्र-छात्राएँ अपने लिखे निबंध पढ़ते हैं जिससे सबको कहावतें भी समझ आ जाएँ और परीक्षा में उन्हें कोई मुश्किल न हो । इन कहावतों पर लिखे निबंधों को छात्र-छात्रों को सुनाया जा सकता है या उन्हें पढ़ने के लिए दिया जा सकता है जिससे उन्हें कहावतों का अर्थ अच्छी तरह से समझ आ सके । हर कहावत के आगे वर्ष लिखा गया है , इसका मतलब है कि यह कहावत बोर्ड में उस वर्ष में पूछी गई है । आशा है कि यह सामग्री अध्यापकों और अध्यापिकाओं के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के लिए भी उपयोगी होगी ।
सालाना
नाव/जहाज चलाने और बनाने की प्रतियोगिता में मैंने भाग लिया । हर साल मैं और मेरे
बाबा इस साल में भाग लेते थे पर इस साल मैं अपने दोस्तों के साथ इस प्रतियोगिता
में भाग लेना चाहता था ।
जब मैंने
यह बात बाबा को बताई तो वह काफी मायूस थे । यह देखकर मैंने उससे पूछा
"क्यों?" तब उन्होंने बताया कि सालों पुरानी परंपरा है कि बाप बेटा मिल
कर खानदानी गुप्त जहाज बनाएं और उसे चला कर प्रतियोगिता जीते । मैंने उनकी बातों
को सुनकर भी टाल दिया और सब भूलकर अपने दोस्त के घर चला गया ।
वहाँ पर
हमने दिन-रात एक करके काम किया और एक आधुनिक और अनोखा जहाज बनाया । जहाज बहुत तेज़
चलत था । जहाज काफी छोटा भी था जिसके कारण वह कहीं से भी निकल सकता था । उसमें एक
छोटा-सा कम्पयूटर भी लगा था जिससे वह अपने-आप को खतरनाक जहाज़ोम से भी बचा सकता था
। हम लोग हमारे आधुनिक और अनोखे जहाज को बनाने के बाद हम बहुत खुश थे । पर मुझे
पता थ कि बाबा मुझसे थोड़े रूठे थे । इस कारण मैं उनके पास माफी माँगने गया ।
उन्होंने
मुझे हँसते हुए गले लगाकर माफ कर दिया । उन्होंने मुझे बताया कि वह भी अकेले
प्रतियोगिता में भाग ले रहे हैं । जब उन्होंने मुझे अपना जहाज़ दिखाया तो मैं मन ही
मन हँसने लगा । उनके द्वारा बना जहाज़ लकड़ी का था । वह बहुत भारी-भरकम था और उसमें
मोटर भी नहीं लगी थी । मैं कल की प्रतियोगिता की तैयारी करने में लग गया ।
तालाब में
सबने अपने जहाज़ उतार दिए । हमारा जहाज़ काफी छोटा था । बाकी जहाज काफी बड़े थे ।
जैसे ही प्रतियोगिता शुरु हुई वैसे ही हमारा जहाज़ आगे बढ़ गया पर दूसरे बड़े जहाज़ों
ने हमारे जहाज़ को मार दिया । बाबा का जहाज़ भारी-भरकम था , इस कारण बच गया और
प्रतियोगिता भी जीत गया । यह देख मुझे बहुत पछतावा हुआ । मेरी समझ में आया कि
अनुभव से इन्सान सीख सकता है । शायद इसलिए ही बड़े बुजुर्ग हमारे द्वारा गलती करने पर
यह कहते हैं कि हमारी बात सुन लिया करो क्योंकि हमने अपने बाल धूप में सफेद नहीं
किये हैं । अपनी नादानी को समझने के बाद मैं घर पहुँचा और मैंने बाबा से माफी
माँगी । उन्होंने मुझे माफ कर दिया ।
इस प्रतियोगिता से मुझे यह ज्ञात हुआ कि
"पुरातन ही श्रेष्ठ है ।"
पुरातन ही सर्वश्रेष्ठ है
(श्रृंगी)
झाँसी के
हलिदा नामक गाँव में दो भाई कमल और जमन रहते थे । बचपन में दोनों ने साथ ही सब कुछ
किया । दोनों ने अपने पिता के साथ खेत में काम किया, दोनों साथ-साथ खेले-कूदे और
खाया-पिया । दोनों ने माँ से कथाएँ भी एक साथ सुनीं । उनके दोस्त भी एक जैसे थे और
दोनों ने हलिदा गाँव पाठशाला में मिडिल भी पास कर लिया । इनके पिता चाहते थे कि
लड़के पूरा दिन खेत में काम करना शुरु करे । कमल इससे खुश था, उसे सूझा तक नहीं था
कि ज़िंदगी में कुछ और हो भी सकता था । परन्तु जमन इस सलाह से क्रोधित था । जन्म से
ही वह पूरी दुनिया देखना चाहता था । जमन की इस अभिलाषा के कारण परिवार में झगड़ा हो
गया और जमन दिल्ली में फूफा के साथ रहने चला गया जहाँ वह पढ़ाई करना चाहता था ।
कमल ने
कुछ समय अकेले खेत संभाला । फिर एक दिन दो साल बाद जमन वापिस आ गया । जमन में
जमीन-आसमान का परिवर्तन आ गया था । पूरा परिवार जमन के बदलाव से आश्चर्यचकित रह
गया । अब जमन नए विचारों में विश्वास करता था । वह अपने परिवार की जीवन-शैली पर
मज़ाक करता था और अपने माता-पिता और भाई पर भी हँसता था । जमन रोज़ अपने भाई को
दिल्ली के बारे में बताता था । नए विचार वाले लोग, बड़ी-बड़ी इमारतें, गाड़ियाँ और
उसके नए तौर तरीके वाले मार्डन दोस्त । कमल इन सबसे प्रभावित नहीं हुआ पर जमन को
तो रोकना नामुमकिन था । एक दिन जमन ने परिवार को बताया कि वह फिर से दिल्ली जा रहा
था पैसा कमाने । जब उसे पैसे मिल जाएंगे तो वह वापिस आएगा और अपना पुराना घर
तुड़वाकर नया व बड़ा घर अपने परिवार के लिए बनाएगा । जमन ने यह भी कहा कि परिवार में
किसी को काम भी नहीं करना पड़ेगा । इस पर पिताजी को क्रोधित हुए और कहा कि अभी तक
उनका स्वास्थ्य ठीक है और हाथ-पैर काम कर रहे हैं । उनको अपना यह पुराना घर ही
प्रिय है क्योंकि पुरातन ही श्रेष्ठ है । फिर से परिवार में झगड़ा-फसाद हुआ और जमन
घर छोड़कर चला गया ।
इस बार जब
जमन पाँच साल बाद घर वापिस लौटा । दिल्ली में वह बड़ा आदमी हो गया था । जमन ने
हलिदा पहुँचते ही अपने पुश्तैनी मकान को तुड़वाने का काम शुरु किया । तीन महीनों
में ही उसने नया घर खड़ा कर दिया । जमन ने नौकर भी रखे-घर साफ करने, खाना पकाने आदि
के लिए । उसके पास इतना पैसा था कि परिवार में किसी को काम करने की ज़रूरत नहीं थी
। थोड़े दिन तक तो परिवार में खुशी रही पर धीरे-धीरे जमन ने परिवार के दूसरे पुराने
विचारों को भी टुकड़े-टुकड़े कर दिया । कुछ काम न करने के कारण माता-पिता और कमल
उदासीन और दु:खी रहने लगे । जमन तो अपने काम और पढ़ाई में ही मस्त रहता था फिर भी
घर का उदास वातावरण उसे भी प्रभावित करने लगा । एक साल के अंदर ही घर में खुशी का
नामोनिशान था , केवल उदासी व दु:ख का वातावरण था । जमन के मन में यह देखकर विचार
आया कि यदि वह दिल्ली जाकर नए विचारों से प्रभावित न होता तो उसकी व उसके परिवार
की ज़िंदगी पहले जैसे ही रहती और घर में उदासी भरा और दु:ख भरा वातावरण न होता ।
कमल और पिता खेत में काम करते और माँ भी घर के कामों में व्यस्त रहती । अपने
परिवार को इस तरह उसे दु:खी न देखना पड़ता । उसने अपने माता-पिता और कमल से जाकर
माफी माँगी और यह मान लिया कि पुरातन ही श्रेष्ठ है ।
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