Monday, March 31, 2014

Story on proverb - Kure ke din bhu phirte hain/ कूड़े के दिन भी फिरते हैं


मैं वैली स्कूल में आई. सी. एस. ई  में भी हिंदी पढ़ाती हूँ । इस बोर्ड के हिंदी पेपर में कहावत के ऊपर एक निबंध पूछा जाता है । बच्चों से कई सारी  कहावतों पर निबंध लिखाना मुश्किल है इसलिए हर छात्र-छात्रा को अलग-अलग कहावत दी जाती है जिस पर वे निबंध लिखते हैं और फिर कक्षा में सब छात्र-छात्राएँ अपने लिखे निबंध पढ़ते हैं जिससे सबको कहावतें भी समझ आ जाएँ और परीक्षा में उन्हें कोई मुश्किल न हो । इन कहावतों पर लिखे निबंधों को छात्र-छात्रों को सुनाया जा सकता है या उन्हें पढ़ने के लिए दिया जा सकता है जिससे उन्हें कहावतों का अर्थ अच्छी तरह से समझ आ सके । हर कहावत के आगे वर्ष लिखा गया है , इसका मतलब है कि यह कहावत बोर्ड में उस वर्ष में पूछी गई है । आशा है कि यह सामग्री अध्यापकों और अध्यापिकाओं के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के लिए भी उपयोगी होगी । 



कूड़े के दिन भी फिरते हैं   (मेघा) 1993

राजस्थान के एक छोटे से गाँव में एक लड़का अशोक रहता था । वह अपने माता-पिता के साथ एक छोटे-से घर में रहता था । उसका परिवार गरीब था , मगर सब खुश थे । वे समझते थे कि प्यार और सुख पैसे से बेहतर है । इस आनन्दित वातावरण में अशोक बड़ा हुआ । जब वह दस साल का था, उसके पिता बीमार पड़ गए । घर की खुशी मानो खत्म हो गई । उसकी माँ रानी हर रात रोते-रोते बिताती थी । जब वह ग्यारह साल का था, उसके पिताजी को देहांत हो गया । कुछ महीने बाद उसकी माँ की भी दु:ख से मृत्यु हो गई । अशोक इस दुनिया में अकेले  रह गया । अपनी माँ की अन्त्येष्टि के बाद वह अपने चाचा के घर जयपुर में रहने के लिए चला गया ।
उसे चाचा के घर में हर दिन काम करना पड़ा । वह स्कूल नहीं जा सकता था । उसके चाचा राम उसको हर दिन चाय की दुकान पर काम करने के लिए भेजते थे । हर रोज सुबह पाँच बजे उठकर, वह दुकान साफ करते, बर्तन साफ करता और चाय बनना शुरु करता । उसके चाचा काम को सात बजे आराम से आते थे । दुकान खुलते ही ग्राहक आना शुरु हो जाते । पूरा दिन काम करने के बाद, उसे खाने को सूखी रोटी ही मिलती थी और कभी-कभी साथ में बासी सब्ज़ी ।
अशोक की ज़िंदगी में एक ही अच्छी चीज़ थी जिससे उसे खुशी मिलती थी , वह थी उसका चचेरा भाई श्याम जो राम चाचा का बेटा था । श्याम उसको अपने हिस्से का थोड़ा खाना देता और उसको अपने स्कूल के बारे में भी बताता था । श्याम से अशोक हर दिन कुछ न कुछ नया सीखता था । जब अशोक बहुत दु:खी होता था, तो श्याम उसे खुश करता था ।
ज़िंदगी के दो साल ऐसे ही बीत गए । एक दिन जब अशोक तेरह साल का था, एक आदमी उसके चाचा की दुकान में आया । अशोक को वहाँ देखकर वह बहुत दु:खी हुआ । उन्होंने अशोक को बताया कि इस छोटी-सी उम्र में काम करना ठीक नहीं है । अशोक को स्कूल जाना चाहिए । वह अभी बच्चा है , उसे ठीक से खाना भी खाना चाहिए । हर दिन यह अमीर आदमी आता और अशोक से बातें करता था ।

एक हफ्ते बाद उसने अशोक को बताया कि वह उसे एक अच्छे स्कूल में डाल रहा था, जहाँ उसे ठीक से खाना-पीना भी मिलेगा । अशोक बहुत खुश हो गया । जाने से पहले, उसने श्याम से वादा किया कि वह उसको कभी नहीं भूलेगा और हर हफ्ते चिट्ठी लिखेगा ।




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