Sunday, November 30, 2014

Story on Proverb- Kathin shanon mein apanaa dharya athva dheeraj nahi khona chaiye/ कठिन क्षणों में अपना धैर्य अथवा धीरज नहीं खोना चाहिए

मैं वैली स्कूल में आई. सी. एस.   में भी हिंदी पढ़ाती हूँ इस बोर्ड के हिंदी पेपर में कहावत के ऊपर एक निबंध पूछा जाता है बच्चों से कई सारी  कहावतों पर निबंध लिखाना मुश्किल है इसलिए हर छात्र-छात्रा को अलग-अलग कहावत दी जाती है जिस पर वे निबंध लिखते हैं और फिर कक्षा में सब छात्र-छात्राएँ अपने लिखे निबंध पढ़ते हैं जिससे सबको कहावतें भी समझ जाएँ और परीक्षा में उन्हें कोई मुश्किल हो इन कहावतों पर लिखे निबंधों को छात्र-छात्रों को सुनाया जा सकता है या उन्हें पढ़ने के लिए दिया जा सकता है जिससे उन्हें कहावतों का अर्थ अच्छी तरह से समझ सके हर कहावत के आगे वर्ष लिखा गया है , इसका मतलब है कि यह कहावत बोर्ड में उस वर्ष में पूछी गई है आशा है कि यह सामग्री अध्यापकों और अध्यापिकाओं के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के लिए भी उपयोगी होगी

A. कठिन क्षणों में अपना धैर्य अथवा धीरज नहीं खोना चाहिए  (काव्या, कक्षा नौ)
एक लड़की थी जिसका नाम कीकी था । कीकी बहुत हठीली और अधीर थी । एक दिन कीकी और उसके दोस्त बाहर गए थे । वे कपड़ों की एक बड़ी-सी दुकान के अंदर गए। कीकी ने वहाँ कुछ कपड़े खरीदे । कपड़ों का बिल भरने के लिए उस दुकान में एक लम्बी कतार लगी थी। कीकी और उसके दोस्त कतार में सबसे पीछे थे । दो मिनट के बाद कीकी उधर ही झींकने लगी और उसे गुस्सा आ गया क्योंकि इतनी देर लग रही थी।
"ओह! यह कतार कितनी लम्बी है।" और, फिर दो मिनट के बाद कीकी ऊँची आवाज़ में चिल्लाने लगी । "हम लोग इतनी देर से खड़े हैं और अभी तक हमारी बारी नहीं आई ।" 
लोग कीकी की ओर देखकर कतार से बाहर आ गए । कीकी फौरन आगे बढ़कर अपना बिला चुकाने लगी और तभी उस दुकान के किसी कर्मचारी से उसने कहा कि -"मैं यहाँ कभी भी वापिस नहीं आऊँगी।" कर्मचारी ने धीमी आवाज़ में कहा -"मुझे माफ कर दीजिए । मैं यहाँ नया हूँ।"
कीकी ज़ोर से हँसी । फिर वह दुकान से बाहर चली गई। अगले दिन कीकी घर में अपनी गुड़िया के साथ खेल रही थी । कुछ देर तक खेलने के बाद वह टी.वी देखने लगी। टी.वी पर गुड़िया का एक विज्ञापन आया ।
"माँ", कीकी ज़ोर से चिल्लाई । उसकी माता दौड़कर वहाँ आईं।
"क्या हुआ?क्या तुम ठीक हो?" माँ ने चिंतित स्वर में कहा ।
"हाँ माँ, मैं ठीक हूँ ।" कीकी ने कहा । "मुझे यह गुड़िया अभी चाहिए।"
"कीकी, अब यह गुड़िया कहाँ मिलेगी?"
"अभी चाहिए, अभी चाहिए, अभी चाहिए।" कीकी ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी।
"अरे बेटी, चुप हो जाओ।" माँ ने कहा । लेकिन कीकी और ज़ोर से रोने लगी।
"आओ चलो।" माँ ने कहा । "हम दुकान पर चलते हैं, गुड़िया खरीदने के लिए।"
दुकान में एक लड़की गुड़िया लेने के लिए चिल्ला रही थी।
"माँ, देखो ।’ कीकी ने कहा । "वो लड़की कितना चिल्ला रही है।"
"बेटी, तुम भी उसी की तरह ही चिल्लाती हो। हमें भी याद रखना चाहिए कि कठिन क्षणों में अपना धैर्य अथवा धीरज नहीं खोएं।"
कीकी ने जब माँ की बात सुनी तो उसने गुड़िया वापिस रख दी ।" माँ, मुझे माफ कर दो।" कीकी ने धीमी आवाज़ में कहा । फिर वह कपड़ों की दुकान पर वापिस गई और वहाँ के कर्मचारी से अपने गल्त व्यवहार के लिए माफी माँगी। फिर कभी भी कीकी ने अपना धीरज नहीं खोया ।

B. कठिन क्षणों में अपना धैर्य नहीं खोना चाहिए   (राहेल, कक्षा ८)

एक शहर में एक बड़ा-सा स्कूल था । उस स्कूल में ५० अध्यापक थे और सौ बच्चे। सब लोग बहुत खुशी से पढ़ते-लिखते और मिलजुलकर रहते थे। यह एक बोर्डिंग स्कूल था । इस स्कूल में खाना बहुत अच्छा मिलता था। इस कारण सब बच्चे और बड़े बहुत खुश थे।
एक दिन एक गणित के अध्यापक ने स्कूल छोड़ दिया और उनके स्थान पर एक नए अध्यापक स्कूल में सिखाने के लिए आए। वे अध्यापक बहुत कठोर स्वभाव के थे। अगर किसी ने अपना गृहकार्य नहीं किया या कक्षा में कोई बात कर रहा है तो वे कक्षा से बाहर कर देते थे । ये अध्यापक कक्षा आठ को गणित सिखाते थे।
एक दिन एक नया लड़का स्कूल में आया। वह सीखने में विशेष रूप से नई चीज़ें सीखने में थोड़ा ज़्यादा समय लेता था । उसे सभी विषयों की अपेक्षा गणित सीखने में अधिक समय लगता था। गणित का अध्यापक उसे इसलिए बहुत मारता था और वह बच्चा इस बात से दु:खी रहता था । इस नए बच्चे का नाम धीरज था। एक बार धीरज ने अपना गृहकार्य नहीं किया तो गणित के अध्यापक ने उसके कान पकड़कर उसे कक्षा से बाहर निकाल दिया । सब छात्र-छात्राएँ उसकी मदद करना चाहते थे। पर उन्हें नहीं पता था कि कैसे उसकी मदद करें?
एक दिन कक्षा आठ के कई छात्र-छात्राएँ प्रधानाचार्य के ऑफिस में गए और गणित के नए अध्यापक की शिकायत उनसे की। प्रधानाचार्य हैरान हो गए और उन्होंने कहा,"धीरज आम लड़का नहीं है। उसे नई चीज़ें सीखने में कठिनाई होती है। तुम लोग चिन्ता मत करो, मैं अध्यापक जी से बात करूँगा।" प्रधानाचार्य जी द्वारा आश्वासन दिए जाने पर कक्षा आठ के सब छात्र-छात्राएँ संतुष्ट हो गए।
अगले दिन जब धीरज कक्षा में अकेला था तो गणित के अध्यापक ने कक्षा का दरवाजा बंद कर दिया और धीरज से पूछा कि वह गणित क्यों नहीं सीख पा रहा है । धीरज ने उन्हें बताया कि वे जो कुछ सिखा रहे हैं , उसे सीखना उसके लिए बहुत कठिन है । यह सुनकर अध्यापक ने धीरज के हाथों पर डंडा मारते हुए कहा कि उसी के लिए वह सब कठिन हो सकता है जब कि दूसरे सभी बच्चे आसानी से सीख पा रहे हैं । धीरज डंडे की मार से दर्द से चीख उठा और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा । संयोगवश उसी समय ही प्रधानाचार्य जी कक्षा आठ के पास से गुज़र रहे थे और उन्होंने रोने की आवाज़ सुनी । वे कक्षा के अन्दर आए और धीरज को रोते देखा । गणित के अध्यापक उसके कान उमेठ रहे थे । यह सब देखकर वे सब कुछ समझ गए। उन्होंने गणित के अध्यापक को धीरज के बारे में बताया और उन्हें यह भी कहा कि धीरज के प्रति उनका यह व्यवहार देखकर उन्हें बहुत दु:ख है। प्रधानाचार्य जी ने गणित के अध्यापक से कहा कि आप तो जानते ही हैं कि कठिन क्षणों में किसी को भी अपना धैर्य अथवा धीरज नहीं खोना चाहिए । और, धीरज को तो आपके स्नेह और अतिरिक्त समय की आवश्यकता है। हम अध्यापकों को तो सभी छात्र-छात्राओं को स्नेह और धीरज से पढ़ाना चाहिए । यदि इस तरह के कठिन क्षण हमारी ज़िंदगी में आएं तो भी अपना धीरज नहीं छोड़ना चाहिए।

उस दिन के बाद गणित के अध्यापक स्कूल में नहीं दिखाई दिए। सब छात्र-छात्राएँ बहुत खुश थे क्योंकि उनके पहले वाले अध्यापक वापिस आ गए थे । उन्हीं की देख-रेख में धीरे-धीरे धीरज भी गणित सीख रहा था । सब कुछ पहले जैसा हो गया था । सही है कि हमें कठिन समय में धीरज नहीं खोना चाहिए क्योंकि सब्र का फल मीठा होता है ।      

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