Sunday, November 30, 2014

Story on Proverb-Kaaua hans nahi ban sakta/ कौवा हंस नहीं बन सकता अथवा जन्म से ही अयोग्य व्यक्ति योग्य नहीं बन सकता

मैं वैली स्कूल में आई. सी. एस.   में भी हिंदी पढ़ाती हूँ इस बोर्ड के हिंदी पेपर में कहावत के ऊपर एक निबंध पूछा जाता है बच्चों से कई सारी  कहावतों पर निबंध लिखाना मुश्किल है इसलिए हर छात्र-छात्रा को अलग-अलग कहावत दी जाती है जिस पर वे निबंध लिखते हैं और फिर कक्षा में सब छात्र-छात्राएँ अपने लिखे निबंध पढ़ते हैं जिससे सबको कहावतें भी समझ जाएँ और परीक्षा में उन्हें कोई मुश्किल हो इन कहावतों पर लिखे निबंधों को छात्र-छात्रों को सुनाया जा सकता है या उन्हें पढ़ने के लिए दिया जा सकता है जिससे उन्हें कहावतों का अर्थ अच्छी तरह से समझ सके हर कहावत के आगे वर्ष लिखा गया है , इसका मतलब है कि यह कहावत बोर्ड में उस वर्ष में पूछी गई है आशा है कि यह सामग्री अध्यापकों और अध्यापिकाओं के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के लिए भी उपयोगी होगी


A. कौवा हंस नहीं बन सकता अथवा जन्म से ही अयोग्य व्यक्ति योग्य नहीं बन सकता (संजीव)
दिलीप नाम का एक आदमी था और वह बहुत ही लापरवाह किस्म का आदमी था। उसको क्रिकेट खेलने की इच्छा थी पर वह उसके लिए कुछ भी तैयारी नहीं करता था। उसके मन में क्रिकेट खेलने के प्रति इच्छा जागी क्योंकि उसको बारहवीं कक्षा में अच्छे अंक नहीं प्राप्त हुए थे और उसको पता चला कि वह पढ़ने में अयोग्य है। उसके बाद उसने तीन खेलों के लिए "स्टेट टीम" को दरख्वास्तें लिखीं। पहले खेल के लिए "स्टेट टीम" ने उसे बुलाया, वह खेल था- फुटबॉल। वह फुटबॉल खेलते समय दौड़ा ही नहीं जिस कारण से चयनकर्त्ताओं ने उसे स्टेट टीम से निकाल दिया। दूसरा खेल बॉस्केट बॉल था । इसे खेलते समय भी दिलीप को कूदने के लिए कहा गया पर लापरवाह दिलीप ने तब भी कुछ नहीं किया इसलिए चयनकर्त्ताओं ने इस खेल से भी उसे निकाल दिया। अंत में वह क्रिकेट खेल के चयन के लिए गया। उसमें वह भाग्यशाली रहा क्योंकि क्षेत्ररक्षण के समय उसके पास गेंद ही नहीं आयी और चयनकर्त्ताओं ने उसका चुनाव कर लिया । इस कारण उसे भी गल्तफहमी हो गई कि वह क्रिकेट में अच्छा है। चयनकर्त्ता भी उसके खेलने की योग्यता को ही आँक नहीं सके थे इसलिए वह क्रिकेट स्टेट टीम में चुन लिया गया।
दिलीप को स्टेट टीम की तैयारी करने के लिए रोज सात बजे अभ्यास के लिए आने को बोला गया पर वह अभ्यास के लिए गया ही नहीं। और तो और उसने झूठ भी बोला कि वह घर पर ही क्रिकेट खेलने का अभ्यास रोजाना कर रहा है। इस तरह पूरे महीने एक दिन भी वह अभ्यास के लिए नहीं गया। टूर्नामेंट नज़दीक आ रहा था पर दिलीप ने तो अभी तक कुछ भी तैयारी नहीं की थी । टूर्नामेंट तक वह घर पर ही बैठा रहा और आखिरकार टूर्नामेंट का दिन आ ही गया।
टूर्नामेंट में १६ टीम आई थीं। दिलीप की टीम का नाम "कर्नाटक वारियर्स" था। उसका पहला खेल दिल्ली से होने वाला था और वह खेल "कर्नाटक वारियर्स" जीत गए क्योंकि उस मैच के लिए दिलीप टीम में उपस्थित नहीं था। दिलीप टूर्नामेंट के लिए देर से पहुँचा था और उसकी टीम तब तक आखिरी दौर के खेल पर पहुँच गई थी । अगले खेल में दिलीप टीम का सदस्य था पर इस मैच में दिलीप कोई भी गेंद पकड़ नहीं पया। उसने बहुत से छक्के और चौके गेंदबाजी करते हुए दिए। इसके साथ ही बल्लेबाजी के समय भी दिलीप ने कई गेंदें छोड़ीं। अंतिम ओवर चल रहा था और यह ओवर दिलीप ही खेल रहा था। उस समय दो रन एक गेंद पर लेने थे और वह बल्लेबाजी कर रहा था। वह उसी गेंद पर आउट हुआ और इससे स्टेट टीम हार गई। इस हार के लिए दिलीप का ज़िम्मेदार था। उसके कोच ने उसे टीम से बाहर निकाल दिया और वह वापिस घर आया। अब वह कुछ भी नहीं काम नहीं कर रहा था क्योंकि उसने तीन अवसर गँवा दिए।
यदि दिलीप ने खेल की तैयारी की होती तो वह अच्छा खेलता और उसकी टीम जीत जाती पर उसकी लापरवाही से ही वे मैच हार गए। यदि वह कुछ भी काम अच्छी तरह से और बिना लापरवाही से करता तो वह अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकता था इसलिए यह कहावत सही है कि "कौवा हंस नहीं बन सकता" अथवा अयोग्य आदमी योग्य नहीं बन सकता चाहे कितने भी उसे अवसर दिए जाएं।

B.कौवा हंस नहीं बन सकता अथवा जन्म से ही अयोग्य व्यक्ति योग्य नहीं बन सकता (आरती मुखेड़कर, कक्षा ८)

एक छोटे गाँव में एक छोटा लड़का रहता था। उसका नाम समुर था। वह हर किसी के बारे में झूठ बोलता था, चाहे वह विद्यालय में दिया गृहकार्य हो या क्रिकेट के बारे में। वह अपने माता-पिता से भी बहुत झूठ बोलता था , पर उसके माता-पिता इसके बारे में परेशान नहीं थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि हर बच्चा "छोटे-छोटे" झूठ बोलता है। मज़े की बात थी कि वह इतनी आसानी से झूठ बोलता था कि किसी को उसके झूठ के बारे में पता नहीं चलता था।
एक दिन उसने एक घर से दो सौ रुपए चोरी किए। जब मालिक ने सबसे पूछा कि "किसने चोरी की?" उसने आसानी से एक कहानी सुनाकर अपने शत्रु रामू पर इल्जाम लगाया। वह यह सब इतनी आसानी से बोला कि घर के मालिक ने उस पर विश्वास किया और बेचारे रामू को सज़ा मिली। बुरी बात यह थी कि समुर को अच्छा लगा जब राम को सज़ा मिल रही थी।
रामू इसी तरह के "छोटे-छोटे" झूठ बोलता था। एक दिन उसके चाचा उसके घर में दो दिन रहने आए। समुर ने चाचा को मूर्ख नहीं बनाया क्योंकि उसे पता था कि चाचा सब कुछ देख सकते थे। समुर को इसीलिए चाचा से डर लगा पर चाचा ने समुर को कुछ "सजा" नहीं दी। लेकिन चाचा ने उसको उनकी फैक्ट्ररी में काम करने के लिए उत्साहित किया। समुर के माता-पिता मान गए और समुर ने एक हफ्ते बाद अपने चाचा की फैक्ट्ररी में काम करना शुरु किया। कुछ दिनों तक सब ठीक-ठाक चलता रहा । चाचा हर रोज़ आते और देखते कि समुर कुछ मस्ती नहीं कर रहा था। एक दिन चाचा काम पर नहीं आए। समुर ने सोचा कि यदि वह आज कुछ चुरा लेता है तो कोई नहीं जानेगा। तो उसने छोटी-छोटी चीज़ें अपनी जेब में डाली और चुपचाप घर गया ।समुर को विश्वास था कि उसके चाचा को कुछ पता नहीं लगेगा। पर उसके चाचा उम्र में ही उससे बड़े नहीं थे। वे अनुभवी थे और उन्होंने दुनिया देखी थी। उन्हें पता था कि समुर इतनी जल्दी अपनी बुरी आदत छोड़ने वाला नहीं था। इसलिए उन्होंने अगले दिन आते ही फैक्ट्री की हर जगहा को जाँचा-परखा। उनकी अनुभवी आँखों से कुछ छिपा न रहा।वे पूरे दिन चुप रहे। शाम होते ही उन्होंने समुर को कहा कि वे उसे घर छोड़ देंगे। इसलिए बहाने से वे उसके घर गए और उन्होंने समुर को बाज़ार से मिठाई लाने भेजा यह कहते हुए कि वे उसको फैक्ट्री में तरक्की दे रहे हैं । इसलिए वह अपने माता-पिता का मुँह मीठा कराए। फिर उन्होंने उसके घर की दो-तीन जगहों पर फैक्ट्री का सामान देख लिया। तभी समुर भी वापिस आ गया। तब उसे देखकर चाचा ने कहा कि सच में कौवा हंस नहीं बन सकता अथवा जन्म से अयोग्य व्यक्ति योग्य नहीं बन सकता।    


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