Sunday, November 30, 2014

Story on Proverb-Nehle par dehla/ नहले पर दहला अथवा ईंट का जवाब पत्थर से देना



मैं वैली स्कूल में आई. सी. एस.   में भी हिंदी पढ़ाती हूँ इस बोर्ड के हिंदी पेपर में कहावत के ऊपर एक निबंध पूछा जाता है बच्चों से कई सारी  कहावतों पर निबंध लिखाना मुश्किल है इसलिए हर छात्र-छात्रा को अलग-अलग कहावत दी जाती है जिस पर वे निबंध लिखते हैं और फिर कक्षा में सब छात्र-छात्राएँ अपने लिखे निबंध पढ़ते हैं जिससे सबको कहावतें भी समझ जाएँ और परीक्षा में उन्हें कोई मुश्किल हो इन कहावतों पर लिखे निबंधों को छात्र-छात्रों को सुनाया जा सकता है या उन्हें पढ़ने के लिए दिया जा सकता है जिससे उन्हें कहावतों का अर्थ अच्छी तरह से समझ सके हर कहावत के आगे वर्ष लिखा गया है , इसका मतलब है कि यह कहावत बोर्ड में उस वर्ष में पूछी गई है आशा है कि यह सामग्री अध्यापकों और अध्यापिकाओं के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के लिए भी उपयोगी होगी

 नहले पर दहला अथवा ईंट का जवाब पत्थर से देना  (समीर)
एक दिन मैं और मेरा मित्र राम स्कूल जाने के लिए सुबह मेरे घर पर ही तैयार हो रहे थे। उसके माता-पिता दिल्ली गए थे क्योंकि उसके पिता और माता को वहाँ दो दिन के लिए काम था। इसलिए उन्होंने राम को मेरी माता से पूछकर दो दिन के लिए मेरे घर में भेजा था ।
सुबह के सात थे। हमें अपनी स्कूल बस जहाँ रुकती है, वहाँ साढ़े सात बजे पहुँचना था। परन्तु उस दिन मेरे भाई को तैयार होने के लिए बहुत समय लग रहा था। मेरे पिताजी टेनिस खेलने के लिए गए थे और मेरी माँ अस्पताल में अपने मित्र से मिलने गईं थीं। वे सवा सात बजे तक भी घर नहीं लौटीं थीं। मेरी माँ ही मुझे हमेशा अपनी गाड़ी में बस स्टॉप पर पहुँचाती हैं। इसलिए हम अपने तीनों बस स्टॉप पहुँचने के लिए दौड़ने लगे। परन्तु वहाँ कोई नहीं था और बस भी वहाँ रुकी नहीं थी। हम सोच ही रहे थे कि क्या करें? तभी मेरे मन में विचार आया इसलिए मैंने कहा कि हम क्यों ना अगले बस स्टॉप तक दौड़ें। मेरे भाई और राम दोनों ने  सोचा और फिर मुझे "हाँ" कहकर मेरे साथ दौड़ना शुरु किया।
जब हम अगले बस स्टॉप पर पहुँचे तो वहाँ कोई नहीं था और बस भी वहाँ नहीं रुकी हुई थी। फिर राम ने बस को मैन रोड की अगली रोड पर देखा तो उसने मेरे भाई का हाथ पकड़ कर कहा,"वहाँ देखो, बस वहाँ है। समीर के बिना हम बस पर चढ़ेंगे।" परन्तु राम मेरे बिना नहीं दौड़ा। मेरे भाई ने दौड़ना शुरु किया परन्तु वह दो-तीन कदम आगे लेकर रुक गया। उसने देखा कि वहाँ कोई बस नहीं थी। मेरे भाई को बहुत गुस्सा आया परन्तु उसने अपना गुस्सा नहीं दिखाया । जब हम मैन रोड को क्रोस कर रहे थे, उसने राम को धकेल दिया तब तक गाड़ी आ रही थी परन्तु उसने राम के बैग को पकड़ा क्योंकि उसे सिर्फ राम के गिरने का भय था परन्तु इस सब में राम का बैग टूट गया और वह रोड पर गिरा। परन्तु गाड़ी जल्दी से उसके सामने आकर रुक गई।
मैं और मेरे भाई ने उसे जल्दी से सड़क से उठाया और अपने साथ उठाकर लाये। वह होश में नहीं था। इसलिए उस गाड़ी के लोगों ने हमें हमारे घर थक पहुँचा दिया । अब तक भी मेरे माता-पिता घर नहीं लौटे थे। जब वे घर आए तो राम को होश आया और जब उन्होंने उससे पूछा कि उसे क्या हुआ था तो उसने बताया कि वह रोड पर अपने आप गिर गया था। कार को देखकर डर के कारण वह बेहोश हो गया।

अगले दिन मैंने उसे बताया कि यह एक "नहले पर दहला" वाली बात थी। परन्तु उसने उसकी परवाह नहीं की । मेरे भाई ने उससे माफी माँगी और राम ने भी उसे माफ कर दिया इसलिए हम तीनों आज अच्छे मित्र हैं।

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