Sunday, November 30, 2014

Story on Proverb-Karat karat abyas kar jadmati hot sujan/ करत-करत अभ्यास कर जड़मति होत सुजान


मैं वैली स्कूल में आई. सी. एस.   में भी हिंदी पढ़ाती हूँ इस बोर्ड के हिंदी पेपर में कहावत के ऊपर एक निबंध पूछा जाता है बच्चों से कई सारी  कहावतों पर निबंध लिखाना मुश्किल है इसलिए हर छात्र-छात्रा को अलग-अलग कहावत दी जाती है जिस पर वे निबंध लिखते हैं और फिर कक्षा में सब छात्र-छात्राएँ अपने लिखे निबंध पढ़ते हैं जिससे सबको कहावतें भी समझ जाएँ और परीक्षा में उन्हें कोई मुश्किल हो इन कहावतों पर लिखे निबंधों को छात्र-छात्रों को सुनाया जा सकता है या उन्हें पढ़ने के लिए दिया जा सकता है जिससे उन्हें कहावतों का अर्थ अच्छी तरह से समझ सके हर कहावत के आगे वर्ष लिखा गया है , इसका मतलब है कि यह कहावत बोर्ड में उस वर्ष में पूछी गई है आशा है कि यह सामग्री अध्यापकों और अध्यापिकाओं के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के लिए भी उपयोगी होगी

A. करत-करत अभ्यास कर जड़मति होत सुजान  (माया, कक्षा नौ)

पश्चिम बंगाल की राजधानी, कलकत्ता में मुकुल नाम का एक छोटा लड़का रहता था । जन्म से उसकी रीढ़ की हड्डी में दोष था । इसलिए वह व्हील चेयर पर ही घूमता रहता था । डॉक्टरों ने कहा था कि जब वह तेरह साल का हो जाएगा, तब वे एक सर्जरी करेंगे जिससे रीढ़ की हड्डी ठीक हो जाएगी।मुकुल को फुटबॉल खेलने का बहुत शौक था । वह अपनी बीमारी के कारण फुटबॉल खेल नहीं पाता था मगर दूसरों को फुटबॉल खेलते हुए देखने से वह बहुत खुश होता था । उसका सपना था कि वह बड़ा होकर एक प्रसिद्ध फुटबॉल खिलाड़ी बन जाए ।जब मुकुल तेरह साल का हो गया, तो उसकी रीढ़ की हड्डी की सर्जरी हुई । वह अब व्हील चेयर के बिना घूम सकता था । वह दौड़ भी सकता था । वह बहुत खुश था क्योंकि अब वह फुटबॉल खेलना सीख सकता था ।मुकुल ने देखा था कि उसके इलाके में लड़कों का एक दल हर दिन शाम को फुटबॉल खेलता था । इसलिए मुकुल उन लड़कों के पास गया और उनसे कहा," मेरा नाम मुकुल है। क्या मैं आपके साथ फुटबॉल खेल सकता हूँ?’ फिर एक लड़के ने कहा," मेरा नाम रोहित है। क्या तुम्हें फुटबॉल खेलना आता है?" मुकुल ने कहा,"हाँ! मुझे फुटबॉल खेलना आता है..." "बहुत अच्छा।’ "दो हफ्तों में हमें एक मैच खेलना है । उस मैच में अगर किसी को चोट लगी तो तुम उसकी जगह पर खेलोगे । ठीक है?" मुकुल घबरा गया । उसे सच में फुटबॉल खेलना नहीं आता था । उसने यह सब तो रोहित से इसलिए कहा था क्योंकि वह यह नहीं चाहता था कि वे लड़के उसे अपने साथ खेलने न दें । अब वह क्या करे? वह ना कैसे कह सकता था ? उसने कहा," हाँ! बिल्कुल ठीक है। दो हफ्तों में मैं तैयार हो जाऊँगा।"अब दो हफ्तों में मुकुल को फुटबॉल सीखनी थी । वह रोज छ: बचे उठता था और फुटबॉल खेलने के लिए जाता था । वह सिर्फ भोजन करने के लिए रुकता था । वह शाम को उन लड़कों के साथ खेलता था । वह बहुत अच्छा नहीं था मगर उसे पता था कि हर दिन अभ्यास करने से ही वह दो हफ्तों में एक अच्छा खिलाड़ी बन सकता था । रोहित भी उसे देखता रहता था । रोहित को समझ में आ गया कि मुकुल ने पहले कभी फुटबॉल नहीं खेली। रोहित ने फुटबॉल खेलने के लिए उसे एक बहुत ज़रूरी सलाह दी। मुकुल आठ बजे घर वापिस आता था , भोजन करता था और सो जाता था ।आखिर में मैच का दिन आ ही गया । मैच के आरम्भ में ही एक लड़के को चोट लगी । अब मुकुल की बारी थी। शुरु में वह बहुत घबरा गया लेकिन खेलते-खेलते उसका आत्मविश्वास बढ़ता गया । वह बहुत अच्छा खेलने लगा। मैच में उसने पूरे तीन बार गेंद को गोल में डाला । उसके परिवार को और रोहित को भी उसके ऊपर गर्व हुआ ।मुकुल बड़ा होकर एक शानदार फुटबॉल खिलाड़ी बन गया । वह विश्व के सारे व्हीलचेयर पर बैठे हुए अपंग छोटे बच्चों के लिए एक प्रेरक व्यक्ति बन गया । जब उससे पूछा गया कि उसकी कामयाबी के पीछे उसका मंत्र क्या था तो उसने कहा," करत-करत अभ्यास कर जड़मति होत सुजान। अभ्यास से ही मूर्ख भी विद्वान बन सकते हैं । मैं फुटबॉल के बारे में कुछ नहीं जानता था मगर अभ्यास करने से ही मैं आज यहाँ तक पहुँचा हूँ।

B.करत-करत अभ्यास कर जड़मति होत सुजान अथवा निरन्तर अभ्यास करने से मूर्ख भी विद्वान हो जाता है (काश्वी, कक्षा ८)


एक बड़े शहर में एक बड़े-से घर में एक लड़की रहती थी जिसका नाम तारा था। तारा के माता-पिता बहुत अमीर थे और जो भी तारा को चाहिए होता वे उसे अवश्य देते थे। वह अच्छे से अच्छे कपड़े पहनती थी । पर तारा की ज़रुरतों को पूरी कराने और उसे सर्वोत्तम साधन उपलब्ध कराने के लिए तारा के माता-पिता बहुत काम करते थे और तारा के पास घर में बहुत थोड़े समय के लिए रहते थे। यानि कि उनके पास तारा के साथ समय बिताने के लिए समय न था इसलिए तारा मूर्ख और शैतान बन गई थी। पर वह तो सोचती थी कि वह कुछ भी कर सकती थी। उसे अपने पर पूरा भरोसा था और यह भी यकीन था कि उसकी किसी बात का माता-पिता को पता नहीं चलेगा।तारा एक बड़ी पाठशाला में पढ़ने जाती थी। उसके बहुत सारे दोस्त थे। सारे दोस्तों के माता-पिता भी अमीर थे। तारा की आदतें अच्छी नहीं थीं। वह दिन पर दिन बिगड़ती जा रही थी । वह कक्षा में कभी भी नहीम सुनती थी और अपना गृहकार्य समय पर नहीं देती थी। वह बहुत लापरवाह हो गई थी। जब परीक्षा होती थी तो वह एक दिन पहले या फिर पाठशाला में आते वक्त बस में ही पढ़ती थी। इस कारण उसके अंक बहुत कम आते थे पर इस सबका कुछ भी असर उस पर नही पड़ता था। उसे लगता था कि वह तो अपने माता-पिता के पैसे पर ही पूरी ज़िंदगी बिता सकती है।
पर एक दिन तारा की माता को उसकी पाठशाला में हेडमास्टर के साथ बात करने के लिए बुलाया गया। जब तारा को यह पता चला तो वह परेशान हो गई । उसे समझ नहीं आया कि अब वह क्या करे?
हेडमास्टर ने तारा की माता से पूछा कि तारा के अंक इतने बुरे क्यों आए हैं? पर दोनों ही अथवा तारा के माता-पिता को पता नहीं था कि ऐसा क्यों हो रहा है? तारा की माता ने कहा कि वह तारा से इस बारे में बात करेगी और उसे पढ़ाई की महत्ता के बारे में बताएगी। घर में तारा भी सोच रही थी कि थोड़ा-सा अभ्यास करके वह अच्छे अंक ला सकती है। उसकी माता जी ने घर आकर तारा से बात की और अंत में तारा ने कहा कि वह अभी से ही काम अच्छी तरह से करेगी क्योंकि उसे पता चल गया था कि लगातार थोड़ी और मेहनत और वक्त के साथ वह अच्छी तरह काम कर पाएगी।
अगली परीक्षा में उसने बहुत मेहनत की। परीक्षा से एक हफ्ते पहले ही उसके माता-पिता ने भी अपने काम से छुट्टी लेकर घर पर रहकर उसको पढ़ाई में मदद की। उस परीक्षा में उसे अच्छे अंक प्राप्त हुए। और अगली परीक्षा में तो उसे उस से भी अच्छे अंक प्राप्त हुए। इस तरह तारा को पता चल गया कि "करत-करत अभ्यास कर जड़मति होत सुजान।" अथवा अभ्यास करने से मूर्ख भी विद्वान हो सकते हैं।
 



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